*गोरखपुर में डोमिनगढ़ सल्तनत थी जिसे राजा चंद्र सेन ने नेस्तोनाबूद किया*


*जब शेख सनाउल्लाह आये राजा को पकड़ने*
*राजा चंद्र सेन ने रामगढ़ताल के किनारे दुर्ग (किला) बनवाया था*

गोरखपुर-परिक्षेत्र का इतिहास के लेखक डा. दानपाल सिंह लिखते हैं कि मध्यगुम के आरम्भ में रोहिणी व राप्ती नदी के मध्यवर्ती द्वीप स्थल पर डोमिनगढ़ की स्थापना हुई। सन् 1210 - 1226 ई. में राजा चन्द्र सेन ने डोमिनगढ़ राज्य पर विजय प्राप्त की। उस समय तक गोरखपुर शहर नहीं बसा था। डोमिनगढ़ सतासी राज्य का समीपवर्ती एक प्रमुख नगर एवं गढ़ था। राजा चन्द्रसेन ने डोमिनगढ़ पर आक्रमण किया। डोमिनगढ़ का किला बहुत मजबूत और प्राकृतिक साधनों द्वारा पूर्ण सुरक्षित था। डोमकटार पहले से संशाकित थे, उन्होंने पर्याप्त सैनिक तैयारी भी कर ली थी। किले में महीनों खाने-पीने की सामग्री रख ली गयी थी। डोमकटारों ने कई दिनों तक जमकर युद्ध किया। पराजय नजदीक देखकर डोमकटार राजा सुरक्षात्मक मुद्रा में आ गया तथा अपने बचे हुए सैनिकों के साथ किले के अंदर फाटक बंद कर बैठ गया। राजा चन्द्रसेन ने किले को ध्वस्त करने की आज्ञा दे दी। देखते ही देखते सतासी राज के सैनिकों (राजा चन्द्रसेन) ने दुर्गम किले को ध्वस्त कर दिया तथा उसमें छिपे डोमकटार शासक एवं उसके सैनिक मारे गये। डोमिनगढ़ पर सतासी राज का अधिकार हो गया।
राजा चन्द्र सेन द्वारा डोमिनगढ़ पर अधिकार का एक मनोरंजक वर्णन जनश्रुतियों में भी मिलता है। इसके अनुसार डोमकटार राजा ने सतासी राजा से अपनी लड़की के विवाह तथा अपने राज्य का कुछ भाग दहेज में देने का प्रस्ताव भेजा। विवाह का दिन निश्चित था। डोमिनगढ़ में विवाह की तैयारियां हो रही थीं। विवाह का दिन आ गया। राजा चन्द्र सेन बारात के साथ डोमिनगढ़ पहुंचें। बारात द्वारपूजा के लिए कोट में चली, बारात में सबसे आगे बाजा और उसके पीछे हाथ में नंगी तलवार लिए सेनाध्यक्ष घोड़े पर सवार था। उसके पीछे शेष बाराती तथा घराती लोग थे। जब घुड़सवार सेना फाटक के भीतर पहुंच गयी तब आगे के लोगों ने खिड़कियां और पीछे के लोगों ने फाटक बंद कर दिया। बाहर वाले लोगों ने समझा कि अधिक भीड़ से बचने के लिए फाटक बंद कर दिया गया है। डोमकटार राजा द्वारपूजा के चौक पर मारा गया। बाजा बजता रहा और मार-काट चलता रहा। प्रभात काल में जब फाटक खोला गया तो डोमिनगढ़ पर सतासी राज का अधिकार था। लोग इसे तिलस्मी कहानी मात्र कहते हैं, जो राज परिवर्तन के बारे में गढ़ दी जाती है।

राजा चन्द्र सेन ने रामगढ़ ताल के निकट एक दुर्ग बनवाया। जिसके ध्वंसावेश वर्तमान में भी दृष्टिगोचर होते है। (छठीं शताब्दी ई. पू. में यह परिक्षेत्र यानी गोरखपुर 'रामग्राम' के रूप में विख्यात था, जो संभवत: रामगढ़ताल के निकट स्थित था, किन्तु कालान्तर में यह राप्ती-रोहिणी बाढ़ के प्रकोप से विनष्ट हो गया)
डोमिनगढ़ में हजरत सैयद लतीफ शाह बड़े बुजुर्ग गुजरे है जिनका उर्स इस्लामी तारीख 27 जिलहिज्जा को धूमधाम से मनाया जाता है। यहीं डोमिनगढ़ रेलवे स्टेशन है। डोमिनगढ़ में मुस्लिमों ने भी किला बनाया था।  मुस्लिम सैनिकों ने नवाब सफदर जंग जो अवध का नवाब था उसके खिलाफत बगावत कर दी थी। नवाब ने अली हुसैन खां के नेतृत्व में गोरखपुर सेना भेजीं। सबसे पहले उसने डोमिनगढ़ का नवनिर्मित मुस्लिम किले को तोड़ा और मुसलमान विद्रोहियों को दबाया।
*शहंशाह औरंगजेब की दी सनद आज भी मौजूद है*
तिवारीपुर के खादिम हुसैन अहाता में रहने वाले हाजी मोहम्मद आशिक हुसैन सिद्दीकी (शेख सनाउल्लाह इनके पूर्वज हैं) ने वर्ष 2015 में मुझे बताया था कि मुगल शहंशाह औरंगजेब की जब हुक्मरानी चली तो आपके दौरे हुकूमत में जनपद के डोमिनगढ़ में राजा डोम सिंह (गालिबन) ने आवाम पर तरह-तरह के जुल्म करने शुरू किए। इसकी खबर शहंशाह औरंगजेब को हुई तो आपने शेख सनाउल्लाह लंग पहलवान (दादा औलिया) अलैहिर्रहमां को शाही फौज की एक टुकड़ी का सिपहसालार बना कर गोरखपुर भेजा। आप एक टुकड़ी को लेकर गोरखपुर आये और वर्तमान तिवारीपुर (औलिया चक) में ठहरे। आपको शहंशाह औरंगजेब ने फरमान दिया था कि राजा को जिंदा गिरफ्तार कर भेजा जाये। हाजी मोहम्मद आशिक हुसैन सिद्दीकी ने बताया था कि जंग हुई। राजा को जिंदा गिरफ्तार करना था। आपने कमंद (रस्सी का फंदा) डालकर पकड़ना चाहा, लेकिन चूक गये राजा ने पलटकर वार कर दिया आपका पैर शहीद हो गया। आपने हार नहीं मानी और राजा को गिरफ्तार कर शहंशाह के पास भेज दिया। शहंशाह के नाम एक खत लिखा कि आपकी सेवा के लायक में नहीं रह गया हूं आप मुझे यहीं तिवारीपुर (औलिया चक) में रहने की इजाजत दे दें। शहंशाह औरंगजेब ने कुबूल कर लिया और सनद जारी की और आपको कई गांव इनायत किया। इस सनद पर शहंशाह के आफिस की मुहर के साथ शहंशाह की अगूंठी की भी मुहर लगी हुई है। जो गोरखपुर विश्वविद्यालय में मौजूद है। जिसके बारे में हाजी खादिम हुसैन (इन्हीं के पूर्वज है शेख सनाउल्लाह) ने अपने हस्तलिखित नोट में भी लिखा है। इसके अलावा जिस हुजरे में शेख सनाउल्लाह रहते थे वह हुजरा भी मौजूद है।
**यह भी जानें
मरहूम हाजी खादिम हुसैन ने अपने निवास स्थान तिवारीपुर में ’’दायरे रब्बानी’’, और ’’जामए रब्बानी’’ का केन्द्रीय कार्यालय स्थापित किया था। यहीं से पत्रिका ’’रूहानियत’’ ''दावत''  ''रब्बानियत'' का प्रकाशन हुआ। हाजी खादिम हुसैन ने मौलाना आजाद सुभानी के साथ मिलकर 'हयातुन्नबी' जैसी जखीम किताब लिखी। इसके अलावा 'रिसाला मेराज शरीफ', 'शहादत-ए-कुब्रा', मशहूर बुजुर्गाने दीन की हालात पर किताब, 'हकीकत नामा', 'रहमतुल्लिल आलमीन', 'एजाजे कुरआनी', 'हकीकत बैअत' आदि लिखी। आपके हाथों की लिखी तमामें किताबें अभी छपी नहीं हैं। खादिम हुसैन नात के बहुत शौकीन थे। उनके द्वारा लिखी किताब 'गुलिस्ताने नात' छप चुकी है।

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