'शरीयत' 14 सौ साल पुराना आज का सबसे ज्यादा मार्डन नियम : डा. अजीज अहमद

'शरीयत' 14 सौ साल पुराना आज का सबसे ज्यादा मार्डन नियम : डा. अजीज अहमद


"समान नागरिक संहिता क्यों" पर विचार गोष्ठी


गोरखपुर। इस वक्त का अहम तरीन मसला समान नागरिक संहिता की शक्ल में हमारे सामने हैं।क्या हिन्दुस्तान के विविधता लिए हुए  सामाजिक ढ़ाचें में ऐसा मुमकिन हैं। अगर नहीं तो इस बहस को छेड़ने का मकसद क्या हैं? इन्हीं विषयों पर तबादला खैर(विचार विमर्श) करने के लिए स्टूडेंट इस्लामिक आर्गनाइजेशन (एसआईओ) की जानिब से शहर में  एक सेमिनार "समान नागरिक संहिता क्यों"  बेनीगंज स्थित दुल्हन मैरेज हाउस में रविवार को आयोजित हुआ।


जिसमें ईसाई धर्म के विद्वान अरुण प्रकाश ने कहा कि इस्लामी कानून(शरीयत) की बहुत अच्छाई हैं।इसी कानून के जरिए अभी सऊदी राजकुमार को हत्या के लिए फांसी दी गयी। शरीयत बहुत सी ऐसी चीजें हैं जिन्हें आगे बढ़ाया जा सकता हैं। हमारा देश विभिन्न धर्म व संप्रदाय से मिलकर बना हैं। भारत जैसे देश में किसी एक धर्म के नियम को समाप्त कर पाना मुश्किल हैं। ईसाई समाज में शादी, तलाक, आराधना के नियम हैं अगर कोई सरकार इसमें हस्तक्षेप करती हैं तो हमें अच्छा नहीं लगेगा। जैन धर्म का उदाहरण देते हुए कहा कि उनके यहां अलग नियम कायदा कानून है अगर उसमें  सरकार हस्तक्षेप करेगी तो उस धर्म की आस्था को ठेस पहुंचेगी।  केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकार को धर्म की आस्था में दखल देने का हक नहीं हैं। जब किसी भी धर्म का बहुसंख्यक तबका पर्सनल लॉ में बदलाव का पक्षधर नहीं है तो सरकारों को इसमें नहीं  पड़ना चाहिए। सरकारें विकास के लिए है न कि विवाद के लिए। आस्था शरीयत के मसलों को लेकर विवाद होता हैं तो देश आगे नहीं बढ़ता हैं। इससे देश को नुकसान होता है।  जब मुस्लिम धर्म की मेजारिटी शरीयत से संतुष्ट हैं तो उसमें दखल बेफिजूल हैं।


बामसेफ के एडवोकेट विक्रम दास ने कहा कि हमें संविधान की बुनियाद को समझना होगा। मजहबों, धर्मों में बंटे लोगों को अगर कोई एक माला में पिरोने का काम  करता हैं तो वह संविधान हैं। सभी को समानता देने वाले संविधान को सरकारों ने  लज्जित कर रखा हैं।देश के पर नजर दौड़ाने की जरुरत हैं। वर्ष 1948 में जनगणना के मुताबिक देश की आबादी 38 करोड़ थीं और गरीब 7 करोड़(20 फीसदी) थे । वर्ष 2010 में अर्जुन सेन गुप्ता की रिपोर्ट के मुताबिक देश की जनसंख्या 120 करोड़ थी जिसमें एक नया वर्ग जिसे गरीबी रेखा से नीचे का वर्ग कहते है उनका प्रतिशत 83.6 हैं। 67 सालों में 20 फीसदी से 83 फीसदी गरीबी का स्तर चला गया।83 फीसदी कुपोषण का शिकार हो गए। गुलाम भारत में 20 फीसदी व आजाद भारत में 83 फीसदी, जिनके पास खाना नहीं हैं। यह स्थिति इसलिए आई कि संसद, विधायिका व न्यापालिका में रियल प्रतिनिधित्व नहीं हैं। ऐसी स्थिति में न्याय बेमानी हैं। संविधान को दरकिनार किया जा रहा हैं। लागू करने में कोताही हैं। आज बहुमत की सरकार होने के बावजूद जिन मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए उन मुद्दों से भटकाया जा रहा हैं।


वरिष्ठ चिकित्सक डा. अजीज अहमद ने कहा कि 1400 साल पुराना इस्लामी कानून आज के दौर का सबसे मार्डन नियम हैं। केन्द्र सरकार का नाम लिए बिना कहा कि आप कौन होते हो हमारे शरीयत के मामले में दखल देने वाले। आपके यहां बुराई सड़कों तक पहुंची हुई हैं। हमें संविधान ने हक दिया हैं। सियासत के धारे का रुख हम ऐसा मोड़ेगे कि आप कहीं के नहीं रहेंगे।  आज वक्त आप का कल हमारा रहेगा। हम ईमान और इस्लाम को सबसे ऊपर रखते हैं। तीन तलाक तो एक सूरत हैं मियां बीवी से अलग होने की। जब ज्यादा जरुरत हो तभी दिया जा सकता हैं।  गैर मुस्लिमों में तलाक का प्रतिशत 3.7 जबकि मुसलमानों में . 5 प्रतिशत हैं। हमारा समाज पूरी हैसियत रखता है मुखालफत करने का । केंद्र सरकार दोस्त नुमा दुश्मन हैं।इसे तो एएमयू  का अल्पसंख्यक दर्जा भी गवारा नहीं। दस्तखती मुहीम तेजी से आगे बढ़ रही हैं। हम सब बढ़चढ़ कर हिस्सा लें । मुतमईन रहिए कुछ नहीं होगा।


शहर ए काजी मुफ्ती वलीउल्लाह ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ पूरी दुनिया में एक हैं। कुरआन व सुन्नत आधारित हैं। इसमें बदलाव नहीं हो सकता हैं। यह मुद्दा सीट व हिन्दुस्तान की दौलत लूटने के लिए के लिए परवान चढ़ाया जा रहा हैं। अगर हिन्दू मुसलमान में नफरत व विभाजन को तूल दिया गया तो  हिन्दुस्तान की एकजहती ढ़ूढने  से भी नहीं मिलेगी। समाज में तालीम पर जोर दिया जाये।

अध्यक्षता करते हुए नसीम अशराफ ने कहा कि यह देश के असल मुद्दो से भटकाने की साजिश हैं। चुनावी चाल हैं। सरकार का खोखला प्रोपगंडा हैं। जिसे मुसलमान कामयाब नहीं होने देंगे।

इससे पहले अहमद सगीर ने कॉमन सिविल कोड व समान नागरिक संहिता पर रोशनी डाली। सुझाव दिया कि समान नागरिक संहिता की जगह शरीयत का कानून लागू करने पर विचार करना चाहिए।उन्होंने बताया कि समय-समय पर ब्लात्कार के मामलों में इस्लामिक कानून की मांग समाज के हर तबके से उठती रही है। इस पर विचार करते हुए आर्थिक मामलों में इस्लामिक बैंक की स्थापना की जायें। 2006 की आर्थिक मंदी में इस्लामिक बैंक को नुकसान न के बराबर हुआ।अभी गुजरात में दो तीन माह पूर्व इस्लामिक बैंक खोला गया। इसी तरह अन्य मामलों में शरीयत कानून प्रभावी साबित होगा।  उन्होंने सुझाव दिया कि केंद्र व राज्य स्तर पर उलेमाओं की समिति बने जो हर जुमा में होने वाले खुत्बे के लिए एक पत्र जारी करें। उस पत्र को पढ़ मुसलमानों को जागरुर किया जायें।  संचालन आर्गनाईजेशन के गोरखपुर शाखा के अध्यक्ष मोहम्मद राफे ने किया।


इस दौरान औसाफ अहमद, डा. अब्दुल वली, इंजीनियर अब्दुर्रब , फैजान सरवर, समीर अहमद समेत बड़ी तादाद में लोग मौजूद रहे।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

*गोरखपुर में डोमिनगढ़ सल्तनत थी जिसे राजा चंद्र सेन ने नेस्तोनाबूद किया*

*गोरखपुर के दरवेशों ने रईसी में फकीरी की, शहर में है हजरत नक्को शाह, रेलवे लाइन वाले बाबा, हजरत कंकड़ शाह, हजरत तोता-मैना शाह की मजार*

जकात व फित्रा अलर्ट जरुर जानें : साढे़ सात तोला सोना पर ₹ 6418, साढ़े बावन तोला चांदी पर ₹ 616 जकात, सदका-ए-फित्र ₹ 40