27वीं रमजान की रात में हिन्दुस्तान हुअा आजाद



-आजादी व छोटी ईद (अलविदा) की खुशी एक साथ
सैयद फरहान अहमद

गोरखपुर। अाने वाली 22 व 23 जून की तारीख बहुत ही मुबारक व महत्वपूर्ण हैं। इस रोज रमजान की 27 तारीख हैं। इस्लामिक माह रमजान की 27 तारीख 1366 हिजरी (15 अगस्त सन् 1947) को हिन्दुस्तान अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ। खास बात जब मुल्क आजाद हुआ तो वह शब-ए-कद्र की 27वीं रात और अलविदा (रमजान माह का आखिरी जुमा) का दिन था। इस दिन हमें दो खुशियां मनाने को मिलेंगी। 22 जून (27 रमजान की रात)  को अकीदतमंद शब-ए-कद्र में इबादत करेंगे और मुल्क के आजाद होने पर अल्लाह का शुक्रिया अदा करेंगे। वहीं 23 जून ( 27 रमजान का दिन) में छोटी ईद यनी अलविदा में इबादत कर खुशियां मनायेंगे।


मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने  बताया कि 15 अगस्त 1947 को जब मुल्क आजाद हुआ तो वह 27रमजान 1366 हिजरी शब-ए-कद्र की रात थी और अलविदा का दिन था। लोग शब-ए-कद्र में जागकर इबादत में मश्गूल थे और अल्लाह का शुक्रिया अदा कर रहे थें। रामलीला मैदान नई दिल्ली में लोगों ने अलविदा की नमाज अदा कर तिरंगा झंडा लहराया था। शायद ही किसी मुल्क को यह एजाज मिला हो। यानी हमें अल्लाह पाक ने आजादी की सौगात जिस दिन दी थी वह दिन दिनों का सरदार, जिस रमजान के महीने में आजादी मिली वह महीनों का सरदार और वह रात हजार रातों से अफजल। यह यूं ही नहीं है - मान्यता हैं कि हजरत आदम अलैहिस्सलाम भी इसी मुल्क में उतारे गए थे।


मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार के मोहम्मद आजम ने बताया कि शब-ए-कद्र हजार रातों से अफजल हैं। इसी दिन अल्लाह तआला ने कुरआन करीम समेत दूसरी आसमानी किताबें नाजिल की। अहम बात यह है कि 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ था तो उस दिन भी 27 वीं शब-ए-कद्र थी। जिस दिन हमें आजादी मिली उस रोज 27 रमजान 1366 हिजरी थी। यही नहीं दिन भी अलविदा का था। जुमा हफ्ते की ईद हैं और अलविदा छोटी ईद हैं इसलिए खुशी इस बार दुगनी हैं क्योंकि मुल्क की आजादी की तारीख भी तो हैं।


गाजी मस्जिद गाजी रौजा के पेश इमाम हाफिज रेयाज अहमद ने बताया कि रमजान माह की बड़ी अजमत है। रमजान का महीना तमाम महीनों का सरदार है। शब-ए-कद्र तमाम रातों की सरदार। यूं तो रमजान के आखिरी दस दिनों की हर ताक रातें शब-ए-कद्र शुमार की जाती हैं। लेकिन इनमें 27 वीं शब-ए-कद्र ज्यादा अफजल है। हमें इस दिन आजादी का नसीब होना अपने मुल्क हिन्दुस्तान पर अल्लाह पाक की रहमत को दिखाता है।


मुफ्ती अख्तर हुसैन कहते हैं कि हमारे लिए नाज की बात है कि अपना मुल्क 27 रमजान शब-ए-कद्र की रात में आजाद हुआ था। यह रात और दिन हमारे लिए बड़ी फजीलत का  है। जुमा को वैसे भी हफ्ते की ईद माना जाता हैं। यह हमारे लिए दोहरी खुशी हैं।



(बतातें चलें की इस्लामिक तिथि सूर्यास्त के समय से शुरु होती हैं इसलिए 22 जून को सूर्यास्त के समय रमजान की 27वीं तारीख लग जायेगी इसी रात मुल्क आजाद हुआ यह शब-ए-कद्र की ताक रात भी होती हैं। वहीं अगला दिन 27 रमजान का ही रहता हैं लेकिन अंग्रेजी तिथि परिवर्तित हो जाती हैं जो इस बार 23 जून हैं। जिसमें अलविदा की नमाज सम्पन्न होगी।)

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अल्लाह के हुक्म के मुताबिक जिंदगी गुजारना इबादत : अजहर

गोरखपुर। नार्मल स्थित दरगाह मुबारक खां शहीद में 24वें दर्स के दौरान मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने कहा कि

इस्लाम के आखिरी पैगम्बर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने  विश्व को निराकार ईश्वर की उपासना का संदेश देकर जहालत को दूर करने का पैगाम दिया। इसी ईश्वर की उपासना की तीसरी कड़ी बना रोजा। इस्लाम में होश संभालने से लेकर मरते दम तक अल्लाह के कानून और उसके हुक्मों के मुताबिक जिंदगी गुजारना इबादत है। पवित्र कुरआन कहता है कि तुम वह बेहतरीन उम्मत हो, जिसे लोगों के लिए बनाया गया है। तुम्हारा काम है कि तुम लोगों को नेकी का हुक्म दो, बुराई से रोको, अल्लाह पर यकीन रखो।


मौलाना मकसूद आलम ने कहा कि रमजान माह में प्रत्येक इंसान हर तरह की बुराइयों व गुनाहों से खुद को बचाता है। रमजान की रातों में एक रात शब-ए-कद्र की कहलाती है। यह रात बड़ी खैर व बरकत वाली रात है। कुरआन में इसे हजारों महीनों से अफजल बताया गया है। यह वह पवित्र रात है, जिसमें हजरत जिब्राईल फरिश्तों की एक बड़ी जमाअत लेकर जमीन पर तशरीफ लाते हैं। अल्लाह के हुक्म से पूरी दुनिया का चक्कर लगाते हैं।

इबादत में रात गुजारने वालों के लिए दुआएं करते हैं और मुबारकबाद पेश करते हैं। पूरी रात चारों तरफ सलामती ही सलामती रहती है। फज्र का वक्त होते-होते यह नूरी काफिला वापस चला जाता है। रमजान के आखिरी अशरा की 21, 23, 25, 27 व 29वीं रातों को शब-ए-कद्र की रात बताया गया है। रोजा अल्लाह के आदेश का पालन करने और अनुशासित जीवन जीने के लिए प्रशिक्षित करता है।इस मौके पर दरगाह के  मुतवल्ली इकरार अहमद, मोहम्मद आजम, अली अकबर सिद्दीकी, माजिद , जमील अहमद, मो. शाहिद, नबी हुसैन, सालिम, अब्दुल हकीम, शहाबुद्दीन, महबूब आलम, अब्दुल राजिक, मोहम्मद शारिक  सहित तमाम लोग मौजूद रहें।

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दरगाह पर आज से शुरु होगी शबीना

नार्मल स्थित दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां मस्जिद में 21 व 22 जून को रात्रि 9:30 बजे शबीना (नफील नमाज ) होगी। जिसमें मदरसा दारुल उलूम अहले सुन्नत फैजाने मुबारक खां शहीद के  कारी शराफत हुसैन कादरी, शहादत हुसैन, अशरफ रजा, मोहम्मद अजीम आदि दस छात्र शबीना में एक कुरआन शरीफ मुकम्मल करेंगे। यह जानकारी मस्जिद के पेश इमाम मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने दी हैं। उन्होंने लोगों से इसमें बड़ी संख्या में शिरकत करने की अपील की हैं।

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मक्का मस्जिद में हुई शबीना


शब-ए-कद्र की तीसरी ताक रात (25वें रमजान की रात) को मगरिब की नमाज के बाद इबादतों का सिलसिला चल पड़ा जो सुबह फज्र की नमाज तक जारी रहा। नमाज, तिलावत, तस्बीह, दरुदों सलाम से लोगों ने अल्लाह को राजी करने की कोशिश की और जहन्नम से आजादी की दुआएं मांगी। इस मौके पर मक्का मस्जिद मेवातीपुर में बाद नमाज मगरिब शबीना (नफील नमाज) का प्रबंध किया गया। जिसमें हाफिज अंसारुल हक ने कुरआन शरीफ के दस पारे और हाफिज शहजाद, हाफिज सेराज, हाफिज कुरबान व हाफिज रज्जब अली ने 5-5 पारे पढ़े। शबीना देर रात खत्म हुई। इसके बाद सबने मिल कर सहरी खायीं। शबीना में करीब 100 लोगों ने शिरकत की।

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