*Exclusive - गोरखपुर - जानिए 'धम्माल' मुहल्ले की दिलचस्प हिस्ट्री*





गोरखपुर। शहर गोरखपुर के मसायख-ए-इजाम की तारीख हकीकतन उसी वक्त से शुरू है जब हजरत बदीउद्दीन कुतबुल मदार अलैहिर्रहमां गोरखपुर की सरहद पर तशरीफ लाये और मदरिया पहाड़ के एक हुजरे नुमा गार में चिल्लाकश हो गये। मदरिया पहाड़ गोरखपुर की सरहद है और यहां हजरत मदार शाह का मेला आज भी लगता है और पहाड़ी आपके नाम से 'मदरिया पहाड़' के नाम से जानी जाती है। शहर गोरखपुर के मुहल्ला धम्माल में हजरत शाह मदार के तशरीफ लाने की दो निशानियां मिलती हैं। एक तो लफ्ज *धम्माल* जिसका उठाया जाना सिलसिला-ए-मदारिया के मलंगों की टोली का एक शगल है और तकरीब भी जिस की अमली शक्ल आज भी कस्बा मक्कनपुर तहसील बिल्हौर जिला कानपुर में देखी जा सकती है। यहां हजरत शाह बदीउद्दीन मदार का मजार है। मजमा-ए-आम में धम्माल उठाया जाता है और मलंग सिलसिले के हजरात इसे करते हैं। दूसरी निशानी यह है कि जमाना-ए-कदीम से मुहल्ला धम्माल में हजरत मदार शाह का मेला लगता चला आ रहा है और मेला आज भी हजरत मदार शाह के उर्स के ही अय्याम में लगता है। मुहल्ला धम्माल इसी वजह से मुहल्ले का नाम पड़ गया। अगर तारीख के ऐतबार से भी गौर किया जाये तो भी बात समझ में आती है कि शर्की सल्तनत का आखिरी सुल्तान इब्राहीम शर्की था। जिसका पाया तख्त जौनपुर था और गोरखपुर शर्की सल्तनत में शामिल था। इब्राहीम शर्की हजरत शाह बदीउद्दीन मदार का खास मुरीद था। हजरत शाह मदार का विसाल 838 हिजरी में हुआ। इब्राहीम शर्की मजार पर हाजिर हुआ। उसी ने मजार शरीफ का कुब्बा तामीर करवाया। बाद में चल बसा। हजरत शाह मदार जब अपने मुरीदे खास इब्राहीम शर्की के यहां तशरीफ लाये थे हो सकता है उसी जमाने में आप गोरखपुर तशरीफ लाये हों और मुहल्ला धम्माल में कयाम पजीद हुए हों। इस तरह से आपका शहर गोरखपुर से ताल्लुक साबित है। गोरखपुर के कदीम मसायख-ए-इजाम को सिलसिला-ए-आलिया मदारिया की भी इजाजत व खिलाफत हासिल थी। गोरखपुर के कदीम मसायख में एक दूसरी शख्सियत का भी पता लगता है। हजरत अब्दुल खालिक अलैहिर्रहमां जो गोरखपुर के रहने वाले थे और मुरीद हजरत ख्वाजा मासूम सरहिन्दी अलैहिर्रहमां के थे। आपका नाम और शहर गोरखपुर के बाशिंदे होने का सबूत "मकतूबाते ख्वाजा मासूम सरहिन्दी" में मिलता है। हजरत ख्वाजा मासूम का एक मुरीद अलवर्दी खां जो गोरखपुर में बहैसियत फौजदार के तैनात था। उसको किसी मामले में परेशानी हुई।  इस परेशानी से छुटकारे के लिए उसने हजरत ख्वाजी मासूम के पास एक खत भेजा। उसका जवाब यह मिला कि हजरत अब्दुल खालिक जल्द ही गोरखपुर आ रहे है  उनसे मिलकर अपनी परेशानी दूर कर लो। उन्हें तैयार कर दिया है।
*स्रोत - मसायख-ए-गोरखपुर लेखक सूफी वहीदुल हसन* (फोटो मुहल्ला धम्माल में बने मकबरे की 3 अक्टूबर 2018)

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