दो पैगम्बरों की कुर्बानी का अजीम पर्व ईद-उल-अजहा
गोरखपुर। ‘‘ ऐ मुसलमां सुन ये नुक़्ता दरसे कुरआनी में है। अजमतें इस्लाम व मुस्लिम सिर्फ कुर्बानी में है।।’’ इस्लाम में कुर्बानियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। उसी में से एक ईद-उल-अजहा है। जो एक अजीम बाप की अजीम बेटे की कुर्बानी के लिए याद किया जाता है। दुनिया के तीन सबसे बड़े मजहब इस्लाम, यहूदी, ईसाई तीनों के एक पैगम्बर जिनका नाम इब्राहीम है। उनसे मंसूब एक वाक्या इस त्यौहार की बुनियाद है। मदरसा दारूल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार के मुफ्ती अख्तर हुसैन मन्नानी ने बताया कि यह वाक्या यह है कि खुदा के हुक्म से उन्होंने अपने बेटे हजरत इस्माइल जो बुढ़ापे के दौरान सालों की दुआओं के बाद पैदा हुये उनको खुदा की राह में कुर्बान करने से ताल्लुक रखता है। खुदा ने हजरत इब्राहीम को ख्वाब में अपनी सबसे अजीज चीज कुर्बान करने का हुक्म दिया। हजरत इब्राहीम ने अपने तमाम जानवरों को खुदा की राह में कुर्बान कर दिया। यह ख्वाब दो मर्तबा हुआ। तीसरी मर्तबा हजरत इब्राहीम समझ गये कि खुदा उनसे प्यारे लाडले की कुर्बानी का तालिब है। यह अल्लाह की अजमाइश का सबसे बड़ा इम्तिहान था। अल्लाह के हुक्म से उन्हें जिब्ह करने के लिये म...