जिसने रोशन किया सुन्नियत का दीया वो है मेरा रजा शाह अहमद रजा : मुफ्ती अख्तर हुसैन
जिसने रोशन किया सुन्नियत का दीया वो है मेरा रजा शाह अहमद रजा : मुफ्ती अख्तर हुसैन
-आला हजरत चौदहवीं सदीं के मुजद्दीद हैं : मौलाना असलम
-आला हजरत का 98वां उर्स-ए-पाक मनाया गया
गोरखपुर। मुजद्दीदे दीनों मिल्लत इमामे इश्कों मुहब्बत अशशाह आला हजरत इमाम अहमद रजा खां फाजिले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह का 98वां उर्स-ए-पाक शहर में विभिन्न जगहों पर अकीदत के साथ मनाया गया।
मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार में उर्स-ए-आला हजरत के मौके पर जलसा हुआ। जिसमें मुफ्ती अख्तर हुसैन अजहरी ने आला हजरत की शख्सियत पर तकरीर करते हुए कहा कि आला हजरत इमाम अहमद रजा खां दीन-ए-इस्लाम के बहुत बड़े मोहद्दीसऔर आलिम गुजरे हैं। तेरह साल की उम्र से ही फतवा लिखना और लोगों को इस्लाम का सही पैगाम पहुंचाना शुरू कर दिया। पूरी उम्र दीन की खिदमत में गुजारी। रसूले पाक अलैहिस्सलाम से आपको सच्ची मुहब्बत और गहरा इश्क आपका सबसे अजीम सरमाया था। उलेमा अरब व अजम सबने आप की इल्मी लियाकत को तस्लीम किया। आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान क़ादरी 14 वीँ शताब्दी के नवजीवनदाता (मुजद्दिद) थे। जिन्हेँ उस समय के प्रसिद्ध अरब विद्वानों ने यह उपाधी दी। आप ने 55 उलूम में एक हजार से ज्यादा किताबें लिखीं। जिसने रोशन किया सुन्नियत का दीया वो है मेरा रजा शाह अहमद रजा ।
मुफ्ती अख्तर ने कहा कि आला हजरत ने एक महीने में कुरआन पाक हिफ्ज कर लिया। उनकी एक प्रमुख पुस्तक जिस का नाम अद्दौलतुल मक्किया है जिस को उन्होंने केवल 8 घंटों में बिना किसी संदर्भ ग्रंथों के मदद से हरम-ए-मक्का में लिखा। उनकी एक प्रमुख ग्रंथ फतावा रजविया इस सदीं के इस्लामी कानून का अच्छा उदाहरण है जो 12 विभागों में है। उर्दू जुबान में कुरआन का तर्जुमा कन्जुल ईमान विश्वविख्यात हैं।
मोहम्मद इरशाद रजा ने कहा कि आला हजरत की मशहूर किताब फतावा रजविया शरीफ है जो मौजूदा वक्त में तसरीह करने के बाद 30 जिल्दों में छपकर आई है जो पचासों हजारत सफाहत पर मुस्तमिल है।
हाफिज श्म्सुज्जोहा ने कहा कि आला हजरत के साहबजादे मुस्तफा रजा खां अलैहिर्ररहमां जिनको दुनिया मुफ्ती आजम हिंद के नाम से जानती है। उन्होंने अपनी पूरी जिदंगी दीने इस्लाम के लिए वक्फ कर दी। आला हजरत का पूरा खानवादा इस्लाम की तरक्की में लगा रहा।
मोहम्मद कलीमुल्लाह ने भी आला हजरत के इल्मी लियाकत पर रोशनी डाली।
अध्यक्षता मदरसे के प्रधानाचार्य हाफीज नजरे आलम कादरी ने किया। संचालन मोहम्मद अहमद हसन ने किया। इससे पूर्व कार्यक्रम की शुरूआत तिलावत कुरआन पाक से हाफिज मोहम्मद मिनहाज अहमद ने की। नात शरीफ मोहम्मद हुसैन, महमूद रजा, सद्दाम हुसैन, मोहम्मद अब्बास अली ने प्रस्तुत की। आखिर में कुल शरीफ की रस्म अदा कर सारी दुनिया में अमन व शंति की और मुख्तलिफ मुल्कों में मुसलमानों पर हो रहे जुल्म से हिफाजत की दुआ मांगी गयी। सलातो सलाम पढ़ा गया। इस दौरान मोहम्मद नसीम खान, मोहम्मद कासिम, रियाज अहमद, नवेद आलम, मोहम्मद आजम, अबु अहमद, सूफी निसार अहमद, , अनीसुल हसन, मोहम्मद हाशिम, हिमायतुल्लाह, हाजी मोहम्मद कासिम, अबुल हसन, बदरे आलम, इस्माइल खां, अब्दुल हमीद, सलाउद्दीन आदि मौजूद रहे।
तुर्कमानपुर स्थित नूरी मस्जिद में बाद नमाज जोहर कुल शरीफ का आयोजन हुआ।
इस मौके पर मौलाना मोहम्मद असलम कादरी ने तकरीर पेश करते हुए कहा कि आला हजरत ने इस्लाम और सुन्नत की सही तफसीर पेश की। बानिए इस्लाम पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम की पूरी शरीयत की अच्छी तफसीर फरमायी। जिससे पूरी दुनिया में आला हजरत को इस्लाम के सच्चे आलिमेदीन के तौर पर जाना गया। चौदहवीं सदी के मुजद्दीद है। बदअकीदगी के तूफान को रोका। लाखो मुसलामानों का ईमान बचाया।
नात शरीफ मोहम्मद मोहसिन ने पेश की। इस दौरान मौलान अशरफ, अलाउद्दीन, शाबान अहमद, मौलाना मकबूल, शरीफ अहमद, हाजी साबिर अली खान सहित तमाम अकीदतमंद शामिल हुए।
नार्मल स्थित हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां आस्ताने पर मौजूद मदरसा दारुल उलूम अहले सुन्नत फैजाने मुबारक खां शहीद में उर्स-ए-आला हजरत मनाया गया। आस्ताने पर कुरआन ख्वानी, नात ख्वानी व तकरीरी प्रोग्राम का आयोजन किया। कुल शरीफ हुआ। इस मौके पर मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने कहा कि आला हजरत ने कुरआन पाक का उर्दू में तर्जमा किया। 66 साल की उम्र में उन्होंने इस्लाम, साइंस, अर्थव्यवस्था और कई उलूम पर एक हजार से ज्यादा किताबें लिखीं। सच्चे आशिके रसूल थे। पूरी जिंदगी इस्लाम के लिए वक्फ कर दी। आज पूरी दुनिया में उनका चर्चा हैं। उन्होंने हिंद उपमहाद्वीप के मुसलमानों के दिलों में अल्लाह सुब्हान व तआला और मुहम्मद रसूलल्लाह सल्लाहु तआला अलैही वसल्लम के प्रति प्रेम भर कर और मुहम्मद रसूलल्लाह सल्लाहु तआला अलैही वसल्लम की सुन्नतों को जीवित किया।
इस मौके पर दरगाह के मुतवल्ली इकरार अहमद, कारी सराफत हुसैन कादरी आदि मौजूद रहे।
मदरसा दारूल उलूम अहले सुन्नत मजहरूल उलूम घोषीपुरवां में उर्स-ए-आला हजरत के मौके पर मौलाना शेर मोहम्मद ने बतौर मुख्य अतिथि कहा कि इमाम अहमद रज़ा खान फाज़िले बरेलवी बहुत बड़े मुफ्ती, आलिम, हाफिज़, लेखक, शायर, धर्मगुरु, भाषाविद, युगपरिवर्तक तथा समाज सुधारक थे। सिर्फ 13 वर्ष की कम आयु में मुफ्ती की श्रेणी ग्रहण की। उन्होंने विभिन्न विषयों पर 1000 से अधिक किताबें लिखीं ।
उन्होंने कहा कि यह देश की खुशनसीबी है कि आला हजरत भारत के मशहूर शहर बरेली में पैदा हुए। इनकी शुरूआती तालीम अपने पिता के द्वारा हुई। हजरत शाहे आले रसूल मारहरवी मौलाना अब्दुल अली रामपुरी और शाह अबुल हुसैन नूरी से भी तालीम हासिल की। इनको 55 विषयों पर महारत हासिल थी। तकरीर मौलाना मकबूल, कारी सराफत व मौलाना अब्दुल बरकाती ने पेश की।
नात शरीफ हाफिज अब्दुल व नवाज अख्तर ने पेश की। अध्यक्षता अल्लामा तुर्बाउल हक, संचालन मौलाना मकसूग आलम ने व सरपरस्ती कारी रईसुल कादरी ने किया।
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