जकात व फित्रा अलर्ट जरुर जानें : साढे़ सात तोला सोना पर ₹ 6418, साढ़े बावन तोला चांदी पर ₹ 616 जकात, सदका-ए-फित्र ₹ 40
-आप जकात व सदका-ए-फित्र अदा करेंगे तो गरीब दुआएं देंगे
-जकात की रकम हकदार मुसलमानों तक जल्द पहुंचायें
-मुकद्दस रमजान का तीसरा रोजा
सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर। मुकद्दस रमजान के शुरु होते ही रब की रहमतें बंदों पर बरस रही हैं। पहले दिन से मौसम खुशगवार बना हुआ हैं। इबादतों का सिलसिला जारी रहा। सहरी व इफ्तार का फैजान बदस्तूर जारी हैं।
तंजीम कारवाने अहले सुन्नत के बानी मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने बताया कि इस्लाम में जकात फर्ज हैं। जकात पर हक मजलूमों, गरीबों, यतीमों, बेवाओं का है। इसे जल्द से जल्द हकदारों तक पहुंचा दें ताकि वह रमजान व ईद की खुशियों में शामिल हो सकें। जकात फर्ज होने की चंद शर्तें है। मुसलमान अक्ल वाला हो, बालिग हो, माल बकदरे निसाब (मात्रा) का पूरे तौर का मालिक हो। मात्रा का जरुरी माल से ज्यादा होना और किसी के बकाया से फारिग होना, माले तिजारत (बिजनेस) या सोना चांदी होना और माल पर पूरा साल गुजरना जरुरी हैं। सोना-चांदी के निसाब (मात्रा) में सोना की मात्रा साढ़े सात तोला (87 ग्राम 48 मिली ग्राम ) है जिसमें चालीसवां हिस्सा यानी सवा दो माशा जकात फर्ज है। इस वक्त 10 ग्राम सोना की बाजार कीमत 29350 रुपया हैं। साढ़े सात तोला सोना की मौजूदा कीमत 256753 रुपया 8 पैसा पड़ रही हैं। जिसका चालीसवां हिस्सा 6418 रुपया 84 पैसा जकात निकालनी हैं। चांदी की मात्रा साढ़े बावन तोला (612 ग्राम 360 मिली ग्राम ) है। चांदी की मौजूदा कीमत एक किलो की 40265 रुपया हैं। साढ़े बावन तोला चांदी की बाजार कीमत 24656 रुपया 67 पैसा हैं। जिसमें जकात करीब 616 रुपया निकालनी हैं। सोना-चांदी के बजाय बाजार भाव से उनकी कीमत लगा कर रुपया वगैरह देना जायज है। जिस आदमी के पास साढ़े बावन तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना या उसकी कीमत का माले तिजारत हैं और यह रकम उसकी हाजते असलिया से अधिक हो। ऐसे मुसलमान पर चालीसवां हिस्सा यानी सौ रुपये में ढ़ाई रुपया जकात निकालना जरुरी हैं। दस हजार रुपया पर ढ़ाई सौ रुपया, एक लाख रुपया पर ढ़ाई हजार रुपया जकात देनी हैं। सोना-चांदी के जेवरात पर भी जकात वाजिब होती है। तिजारती (बिजनेस) माल की कीमत लगाई जाए फिर उससे सोना-चांदी का निसाब (मात्रा) पूरा हो तो उसके हिसाब से जकात निकाली जाए। अगर सोना चांदी न हो और न माले तिजारत हो तो कम से कम इतने रूपये हों कि बाजार में साढ़े बावन तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना खरीदा जा सके तो उन रूपर्यों की जकात वाजिब होती है।
-इन्हें दी जा सकती हैं जकात
"ज़कात" में अफ़ज़ल यह है कि इसे पहले अपने भाई-बहनों को दें, फ़िर उनकी औलाद को, फ़िर चचा और फुफीयों को, फ़िर उनकी औलाद को, फ़िर मामू और ख़ाला को, फ़िर उनकी औलाद को, बाद में दूसरे रिश्तेदारों को, फ़िर पड़ोसियों को, फ़िर अपने पेशा वालों को। ऐसे छात्र को भी "ज़कात" देना अफ़ज़ल है, जो "इल्मे दीन" हासिल कर रहा हो। ऊपर बताये गये लोगों को जकात तभी दी जायेगी जब सब गरीब हो, मालिके निसाब न हो।
-मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार के मुफ्ती अख्तर हुसैन अजहरी ने बताया जकात का इंकार करने वाला काफिर और अदा न करने वाला फासिक और अदायगी में देर करने वाला गुनाहगार हैं। मुसलमानों को चाहिए कि जल्द से जल्द जकात की रकम निकाल कर गरीब, यतीम, बेसहारा मुसलमान को दें दे ताकि वह अपनी जरुरतें पूरी कर लें। जकात बनी हाशिम यानी हजरते अली, हजरते जाफर, हजरते अकील और हजरते अब्बास व हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब की औलाद को देना जाइज नहीं। किसी दूसरे मुरतद बद मजहब और काफिर को जकात देना जाइज नहीं है। सैयद को जकात देना जाइज नहीं इसलिए कि वह भी बनी हाशिम में से है। जकात का माल मस्जिद में लगाना, मदरसा तामीर करना या उससे मय्यत को कफन देना या कुआं बनवाना जाइज नहीं यानी अगर इन चीजों में जकात का माल खर्च करेगा तो जकात अदा न होगी। कम मात्रा यानी चांदी का एतबार ज्यादा बेहतर हैं कि सोना इतनी कीमत का सबके पास नहीं।नबी के जमाने में सोना-चांदी की मात्रा मालियत के एतबार से बराबर थीं। अब ऐसा नहीं हैं। गरीब के लिए भलाई कम निसाब (मात्रा) में हैं।
-मौलाना अयाज अहमद ने बताया कि अगर आप "मालिके निसाब" हैं, तो हक़दार को "ज़कात" ज़रुर दें, क्योंकि "ज़कात" ना देने पर सख़्त अज़ाब का बयान कुरआन शरीफ में आया है। जकात हलाल और जाइज़ तरीक़े से कमाए हुए माल में से दी जाए। क़ुरआन शरीफ में हलाल माल को खुदा की राह में ख़र्च करने वालों के लिए ख़ुशख़बरी है, जैसा कि क़ुरआन में अल्लाह तआला फ़रमाता है कि... "राहे ख़ुदा में माल ख़र्च करने वालों की मिसाल ऐसी है कि जैसे ज़मीन में किसी ने एक दाना बोया, जिससे एक पेड़ निकला, उसमें से सात बालियां निकलीं, उन बालियों में सौ-सौ दाने निकले। गोया कि एक दाने से सात सौ दाने हो गए। अल्लाह इससे भी ज़्यादा बढ़ाता है। जिसकी नीयत जैसी होगी, वैसी ही उसे बरकत देगा"।
-मौलाना रियाजुद्दीन कादरी बताते हैं कि ज़कात ना देने वालों के बारे में अल्लाह तआला क़ुरआन शरीफ के 10वें पारे में इर्शाद फ़रमाता है कि... "जो लोग सोना-चांदी जमा करते हैं और उसे अल्लाह तआला की राह में ख़र्च नहीं करते हैं, तो उन्हें दर्दनाक अज़ाब की ख़ुशख़बरी सुना दो। जिस दिन उनके माल को जहन्नम की आग में तपाया जाएगा और उससे उनके पहलुओं, पेशानियों और पीठों को दागा जाएगा और उनसे कहा जाएगा, यही वह माल है, जिसे तुमने अपने लिए जमा किया था और उसकी "ज़कात" नहीं देते थे, तो फ़िर अपने जमा किए माल का मज़ा चखो"।
-कारी अनीस अहमद बतातें हैं कि प्यारे नबी ने फ़रमाया कि "जो आदमी सोने व चांदी का मालिक हो और उस का ह़क़ अदा ना करे, तो जब क़यामत का दिन होगा, उस के लिए आग के पत्थर बनायें जायेंगे, उन पर नरक की आग भड़काई जाएगी और उन से उन की पेशानी, पीठ और करवट दागी जाऐंगी। जब ठंड़े होने पर आऐंगे, फिर वैसे ही कर दिए जाऐंगे। यह मामला उस दिन का है, जिस की मिक़दार 50 हज़ार साल है, यहां तक कि बन्दों के बीच फ़ैसला हो जाए, अब वह अपनी राह देखेगा, चाहे स्वर्ग की ओर जाए या नरक की ओर"।
-सदका-ए-फित्र ₹ 40 गरीबों में जल्द करें अदा
माह-ए-रमजान में सदका-ए-फित्र निकाला जाता है। यह एक दान हैं जो गरीबों, यतीमों व बेसहारा मुसलमानों को दिया जाता हैं। इसको निकालने में जल्दी करें ताकि गरीब भी खुशियों में शामिल हो सकें। जितनी जल्दी आप सदका-ए- फित्र निकालेंगे उतने जल्दी ही वह गरीबों के लिए मुफीद होगा।
मदरसा दारूल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार के मुफ्ती अख्तर हुसैन अजहरी ने बताया कि सदका-ए-फित्र की मात्रा में 2 किलो 45 ग्राम गेहूं या उसके आटे की कीमत से चाहे, गेहूं या आटा दे या उसकी कीमत बेहतर है कि कीमत अदा करेें। इस वक्त एक व्यक्ति पर करीब 40 रुपया सदका-ए-फित्र आ रहा है। लिहाजा जो उसके हकदार हो उन तक रकम पहुंचा दी जायें ताकि वह अपनी जरुरत पूरी कर लें। जब तक फित्रा अदा नहीं किया जाता है तब तक सारी इबादत जमीन व आसमान के बीच लटकी रहती है। जब फित्रा अदा कर दिया जाता है तो इबादतें बारगाहे इलाही में पहुंच जाती है। रोजे में इबादत में किसी किस्म की कमी रह गयी है तो यह फित्रा उस इबादत की कमी को पूरा कर देता है। फित्रा में गेहूं की जो कीमत आम बाजारों में है उसे ही दिया जायेगा।
सदका-ए- फित्र अदा करना वाजिब हैं। जो शख्स इतना मालदार है कि उस पर जकात वाजिब है, या जकात वाजिब हो मगर जरूरी सामान से ज्यादा इतनी कीमत का माल व सामान है जितनी कीमत पर जकात वाजिब होती है तो उस शख्स पर अपनी नाबालिग औलाद की तरफ से सदका-ए- फित्र देना वाजिब है। फित्रा वाजिब होने की तीन शर्तें है। आजाद होना, मुसलमान होना, किसी ऐसे माल के मात्रा का मालिक होना जो असली जरूरत से ज्यादा हो। उस माल पर साल गुजरना शर्त नहीं और न माल का तिजारती (बिजनेस) होना शर्त है और न ही साहिबे माल का बालिग व अकील होना शर्त हैं। यहां तक कि नाबालिग बच्चों और वो बच्चे जो ईद के दिन तुलू फज्र यानि सूरज निकलने से पहले पैदा हुये हो और मजनूनों पर भी फित्रा वाजिब हैं। उनके सरपरस्त हजरात को उनकी तरफ से फित्रा देना होगा।
आपने अपने इस आर्टिकल में सोना और चांदी के वजन से संबंधित बहुत अच्छी जानकारी दिया है. आपको देखकर मैं ब्लॉगिंग शुरू किया है. आपके लेख से प्रभावित होकर मैंने bhari gram से संबंधित एक लेख लिखा है. कृपया मेरे वेबसाइट विजिट करें. कोई कमी हो तो कमेंट करके जरूर बताइएगा.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.