गोरखपुर - एक कप खून निकाल कर, हो रहा 72 बीमारियों का इलाज



सैयद फरहान अहमद

गोरखपुर । आपने कप का प्रयोग चाय पीने में किया होगा लेकिन एक कप खून निकालवा कर इलाज नहीं करवाया होगा। न ही कप के जरिए मसाज करवाया होगा। इलाज में आमतौर पर खून चढ़ाया जाता है, लेकिन खून निकाल कर इलाज नहीं सुना होगा। गोरखपुर में करीब डेढ़ साल से एक ऐसी विधि से इलाज हो रहा है जो हजारों साल पुरानी है। इसे 'हिजामा' या 'पछना' या 'सिंघी लगवाना' या 'कपिंग थेरेपी' के नाम से जाना जाता है। 'हिजामा' विधि  में एक कप के जरिए फासिद या गंदा खून निकाल दिया जा रहा है। इसी गंदे खून के जरिए शरीर में जमा हानिकारक टॉकिसन खुद बा खुद बाहर निकल जाता है। वहीं ड्राई (खुश्क या सूखा) कपिंग के जरिए मसाज भी किया जा रहा है। गोरखपुर मंडल में यह विधि बिल्कुल नई है। गोरखपुर के शाहमारुफ जामा मस्जिद रोड पर अलीगढ़ दवाखाना में डा. मोहम्मद अख़लद 'हिजामा' विधि से इलाज कर रहे हैं। यहां एक कप खून निकलवाने की कीमत केवल 150 रुपया है। 'हिजामा' विधि का कोई साइड इफेक्ट्स भी नहीं हैं। इस विधि से करीब 72 असाध्य बीमारियों का इलाज किया जा रहा है। इस इलाज में दवा की जरुरत नहीं होती है। और न ही किसी तरह का परहेज करने की जरुरत पड़ती है।

इस 'हिजामा' विधि में शरीर से गंदा खून निकालकर बीमारी दूर की जाती है। सालों पुरानी इस विधि से लोग अनजान हैं, यहां तक कि डॉक्टर भी इसके बारे में कम ही जानते हैं। लेकिन गोरखपुर में इस विधि के जरिए इलाज किया जा रहा है  डा. अखलद का कहना है कि 'हिजामा' विधि कई बीमारियों में बेहद मुफीद है। यह थेरेपी काफी पुरानी है। हम इसे मॉडीफाय कर रहे हैं और लोगों तक पहुंचा रहे हैं। इसकी थ्योरी यह है कि शरीर में कई बीमारी की वजह खून का असंतुलन होता है। हम कपिंग थेरेपी के जरिए इस ब्लड को बैलेंस कर देते हैं और बीमारी ठीक हो जाती है और पेशेंट को जल्द आराम मिल जाता है।


-'हिजामा' के जरिए ऐसे  किया जाता इलाज

डा. अख़लद ने बताया कि पहले मरीज का हेल्थ रिकार्ड चेक किया जाता है। जरूरी ब्लड टेस्ट किया जाता है और उससे संबंधित बीमारी का एक्स रे कराया जाता है। डॉक्टर रिपोर्ट के आधार पर तय करते हैं कि बॉडी में कपिंग (हिजामा) कहां की जाए। कपिंग के लिए एनाटॉमी और फीजियोलॉजी की समझ होनी चाहिए। बीमारी के अनुसार गर्दन या गर्दन के नीचे या पीठ में कपिंग की जाती है। कपिंग के लिए शीशे का कप यूज करके वैक्यूम पैदा किया जाता है ताकि कप शरीर से चिपक जाए। कुछ देर बाद वह जगह उभर जाती है। फिर उस प्वाइंट पर सर्जिकल ब्लेड से माइनर कटिंग कर फिर से कपिंग की जाती है। कपिंग करने के तीन से पांच मिनट बाद असंतुलित खून जमा हो जाता है। जमा हुए खून को निकाल दिया जाता है। अगर बीमारी शुरुआती हो तो दो सीटिंग में बीमारी खत्म हो जाती है, वरना तीन-चार सीटिंग की जरुरत होती है। उन्होंने  बताया कि 'हिजामा' विधि प्राकृतिक चिकित्सा की सबसे पुरानी पद्घति है। समय के साथ-साथ हम इस विधि को भूलते चले गए। अब समय आ गया है कि फिर से 'हिजामा' विधि को जिंदा किया जाए।


-'हिजामा' कारगर मगर कम खर्चीला

बड़े देशों व शहरों में यह इलाज महंगा माना जाता है लेकिन ऐसा है नहीं। यह बेहद कारगर व कम खर्चीला इलाज है। एक कप गंदा खून निकलवाने की कीमत मात्र 150 रुपया है। एक बार में दो से चार कप की जरुरत पड़ती है। हिजामा करने में आधे घंटे का वक्त लगता है। अभी इस विधि के बारे में लोग जान नहीं रहे है। जैसे-जैसे लोग इस विधि के बारे लोग जानेंगे 'हिजामा' करवाने वालों की तादाद बढ़ेगी। उन्होंने बताया कि उनके क्लीनिक में ड्राई कपिंग या वेट कपिंग के जरिए मसाज भी किया जा रहा है जिसकी कीमत मात्र 50 रुपया है।


-इन बीमारियों का इलाज होता 'हिजामा' से

डा. अख़लद ने बताया कि सालों पुरानी इस पद्धति को कपिंग थेरेपी भी कहते हैं। माइग्रेन, ज्वाइंट पेन, कमर दर्द, स्लिप डिस्क, सर्वाइकल डिस्क, पैरों में सूजन, सुन्न होना शूगर, ब्लड प्रेशर,  पेट की बीमारियां, बवासीर, पुराना कब्ज भूलने की बीमारी, जिगर की बीमारियां और झनझनाहट, मोटापा, दुबलापन, बांझपन, नींद का न आना, डिप्रेशन जैसी बहुत सी बीमारी का इलाज मिनटों में संभव है। 'हिजामा' के जरिए रुहानी बीमारियों का भी इलाज किया जाता है।

हकीम मोहम्मद अहमद ने बताया कि 'हिजामा' कराने से जोड़ों के दर्द, हृदय रोग, डायबिटीज, सिर दर्द, चर्म रोग, ब्लड प्रेशर, रीढ़ की हड्डी, नसों से जुड़ी बीमारियों में होने वाले दर्द से 70 पर्सेंट तक राहत मिलती है।


-'हिजामा' या 'पछना' लगवाना नबी-ए-पाक की सुन्नत

इस्लामिक स्कॉलर मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी  ने बताया कि 'हिजामा' या 'पछना' लगवाना नबी-ए-पाक की सुन्नत है। हदीस में नबी-ए-पाक फरमाते है कि हिजामा करवाना दवाओं से बेहतर है। तुम्हारी दवाओं में सबसे बेहतरीन दवा इलाज-ए- हिजामा है। उन्होंने बताया कि हिजामा के कई प्रकार है लेकिन ब्लड कपिंग ही नबी-ए-पाक की सुन्नत है। मेराज शरीफ में नमाज के साथ हिजामा का भी तोहफा उम्मत को मिला। 'हिजामा' में फासिद या गंदा खून निकाल दिया जाता है। उन्होंने बताया कि नबी-ए-पाक ने स्वयं भी 'हिजामा' या 'पछना' लगवाया और दूसरों को हुक्म दिया। नबी-ए-पाक ने तीन चीज में शिफा बताया है उसमें शहद पीना व 'हिजामा' करवाना शामिल हैं। हिजामा करवाते वक्त आयतल कुर्सी पढ़नी चाहिए। 'हिजामा' कराने के बाद सदका करें, नमाज पढ़े। इस्लामी माह की 17, 19 व 21 तारीख को हिजामा करवाने से बहुत फायदा होता है।


-शरीर में 21 जगहों पर 'हिजामा' किया जाता है

डा. अख़लद ने बताया कि 'हिजामा' हर उम्र में हो सकता है लेकिन 20 के बाद की उम्र का हिजामा इस समय किया जा रहा है। शरीर के 21 प्वाइंट पर 'हिजामा' किया जा सकता है। 'हिजामा' स्वस्थ लोग भी करा सकते हैं। सुन्नत प्वाइंट सी7 जो रीढ़ की हड्डी में मौजूद है। अमूमन हिजामा' के लिए यह प्वाइंट बहुत महत्वपूर्ण  है। 'इसके अलावा घुटना, सिर, कंधा, तलुआ आदि जगहों में 'हिजामा' किया जा सकता है।


-गोरखपुर में जल्द होगा जोंक के जरिए से 'हिजामा'

डा. अख़लद ने बताया कि 'हिजामा' की शुरुआत हजार साल पहले मिस्र में बतायी जाती हैं। जिसे 'हार्न थेरेपी' के नाम से जाना जाता है। प्राचीन व मध्य कालीन भारत में जोंक के कीड़े द्वारा इलाज इस विधि का एक प्रकार है। उन्होंने बताया कि उनके क्लीनिक में जल्द ही जोंक के कीड़े द्वारा इलाज की व्यवस्था शुरू की जायेगी। यह जोंक आम नहीं होंगी बल्कि पाली जाने वाली जोंक होंगी। जिन्हें मुरादाबाद से मंगवाया जायेगा। यह विधि थोड़ी महंगी होगी। लेकिन जल्द इस विधि से भी इलाज किया जायेगा।


-शहर में 'हिजामा' के इकलौते डाक्टर व  क्लीनिक

शाहमारुफ में 'हिजामा' का वाहिद क्लीनिक अलीगढ़ दवाख़ाना हैं। यहां के डा. मोहम्मद अख़लद शहर में हिजामा के इकलौते डाक्टर है।इन्होंने वर्ष 2015 में जामिया हमदर्द नई दिल्ली से बीयूएमएस किया है। इन्होंने 'हिजामा' की पढ़ाई के साथ  केरल के डा. केटी अजमल से प्रशिक्षण भी हासिल किया है। इन्होंने शाहमारुफ में मई 2016 में क्लीनिक खोली। बतातें चलें इनका अलीगढ़ दवाखाना 100 साल पुराना है। इनके दादा मरहूम हकीम वसी अहमद व पिता हकीम मोहम्मद अहमद जाने माने हकीम हैं। उन्होंने बताया कि रहमतनगर के हाफिज इसहाक, सूफी हाता तिवारीपुर के डा. रिजवानुल हक फलाही, छोटे काजीपुर की सलमा बेगम को सहित 40-50 मरीजों को 'हिजामा' से बेहद फायदा हुआ है। इस 'हिजामा' क्लीनिक से ज्यादातर लोग नावाकिफ है। लोगों को इस विधि के प्रति जागरुक करने के लिए पम्पलेट वगैरह बांटे जा रहे है।


-'हिजामा' के दौरान प्रयोग होने वाली चीजें व सावधानियां

'हिजामा' प्रक्रिया दास्ताने, वैक्यूम या सकिंग पम्प, सर्जिकल ब्लेड, कप, टीशू पेपर व बीटाडीन के जरिए पूरी की जाती है। साफ-सफाई का बेहद ध्यान दिया जाता है। 'हिजामा' करने से पहले व बाद में बीटाडीन से 'हिजामा' किए जाने वाले प्वाइंट से साफ किया जाता है। हर कपिंग में नई कप व नई सर्जिकल ब्लेड इस्तेमाल की जाती है।  'हिजामा' भूखे पेट करवाना चाहिए । 'हिजामा' कराने के बाद ड्रेसिंग की जाती है। दो तीन घंटे बाद ड्रेसिंग की पट्टी हटा दी जाती है।  'हिजामा' कराने के बाद एअरकंडीशनर से बचना चाहिए व हिजामा वाली जगह पर साबुन या शैंपू उस दिन नहीं लगाना चाहिए। 'हिजामा' कराने से पहले डाक्टर को हेल्थ से सबंधित तमाम जानकारी दे देनी चाहिए।

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