डॉ0 कफील का माह-ए-रमज़ान कुछ ऐसा गुजर रहा है
गोरखपुर। बीआरडी मेडिकल कालेज के डॉ0 कफील अहमद खान हिन्दुस्तान का चर्चित चेहरा व नाम बन चुके है। आठ माह जेल में गुजारने वाले डॉ0 कफील की जेल में गुजरी पहली और आखिरी रात गहरी व उलझनों भरी रही और डा. कफील के आंखें आज भी यही सवाल कर रही हैं कि "वो सजा देकर दूर जा बैठा, किससे पूछूं मेरी खता क्या है"। जमानत पर रिहाई के बाद डॉ0 कफील कई प्रदेशों का दौरा कर चुके है। एक बार फिर सूर्खियों में है। केरल के कोझीकोड में निपाह वायरस से प्रभावित मरीजों के लिए अपनी सेवाएं देने को तैयार है। कुछ दिक्कतों से अभी केरल नहीं जा पाये हैं।
जब वह जेल गए थे उस वक्त पूरे हिन्दुस्तान में ईद-उल-अज़हा का त्यौहार मनाया जा रहा था। अकीदतमंद कुर्बानियां पेश कर रहे थे। डॉ0 कफील व उनका कुनबां भी कुर्बानियां पेश कर रहा था 'सब्र' का। कहते है हर सियाह रात के बाद उजाले की सुबह नमूदार होती है डॉ0 कफील के जिंदगी की सियाह रात के बाद उजाले की सुबह नमूदार हुई। अप्रैल में उन्हें हाईकोर्ट से जमानत पर रिहाई का परवाना मिला। किसी को उम्मीद नहीं थी कि डॉ0 कफील अपने घरवालों के साथ इस मुकद्दस रमज़ान में रहमत व बरकत का फैज ले पायेंगे, लेकिन डॉ0 कफील को लोगों की दुअाओं का साथ मिला। जमानत पर रिहाई हुई। मुकद्दस माह का हर-हर पल हर-हर लम्हां डॉ0 कफील अपने घरवालों के साथ गुजार रहे है। डॉ0 कफील का यह रमज़ान बहुत अलग है। आईए हम आपको लिए चलते है मुकद्दस रमज़ान में डॉ0 कफील के घर बसंतपुर। जहां पर आठ माह की मायूसी की बाद रौनक है। वहां की दरो दीवार खुश है। रमज़ान में तमाम मुसलमानों की दिनचर्या बदलती है उसी तरह डॉ0 कफील की भी बदल गयी है। अलसुबह डॉ0 कफील व उनके पूरे परिवार को उनकी मां आवाज लगा कर सहरी के लिए जगाती है कहीं ऐसा न हो मेरे बच्चे भूखे ही रोजा रह जायें। मां है न बच्चों का भूखा रहना उन्हें गंवारा नहीं। मां की आवाज पर डॉ0 कफील पहली रमज़ान से अल सुबह 3 से 3:15 बजे के बीच उठ जाते है फिर फ्रेश होने के बाद मक्खन, ब्रेड, खजूर, दो केला व एक कप चाय के साथ सहरी करते है और रोजे की नियत करते है। इससे पहले खूब सारा पानी पीना भी नहीं भूलते। जनाब शिद्दत की गर्मी और करीब 15 घंटा का रोजा जो है। जब फज्र की नमाज के लिए मोअज्जिन मस्जिद की मीनारों से अजान की सदा आती है, तब डॉ0 कफील वुजू करते हैं। मुसल्ला बिछाते है दो रकात सुन्नत व दो रकात फर्ज नमाज अदा करते है। इसके बाद फिर एक नींद सो जाते है। सुबह करीब 7 से 7:30 बजे के बीच उठते है तो तमाम अखबारों की खबरों पर नजर दौड़ाते है करीब एक घंटा। आज कल उनकी भी खबरें अख़बारों में खूब आ रही है। अख़बार की बोझिल खबरों से उबकर अख़बार को किनारे करते है और नहाने के बाद अपनी बीटिया व भतीजों के साथ जमकर खेलते है। दोपहर की नमाज के बाद फिर एक नींद सो जाते है। जब आंख खुलती है तो चिकित्सा सबंधी किताब पढ़ते है। असर की नमाज के बाद से इफ्तार तक पूरा समय घरवालों के साथ गुजारते है। एक घंटा सोशल मीडिया व ई मेल पर लोगों के जवाबात भी देते है। शाम 6:30 बजे घर का मंजर देखने लायक रहता है। इफ्तार के दस्तरखान पर अल्लाह की अता की हुई तमाम नेमतें रहती है। फल फ्रुट, शर्बत, चना पकौड़ी, खजूर सब कुछ। इफ्तारी बनने का सिलसिला इफ्तार से दो घंटा पहले शुरु हो जाता है। घर के सब लोग इक्ट्ठा होते है उनके बड़े भाई अदील अहमद खान (डॉ0 कफील की लड़ाई को डटकर लड़ने वाले), छोटे भाई कासिफ, पत्नी डॉ0 शबिस्ता खान, भाई की पत्नी आयशा खान, खालिदा, मां नुजहत परवीन, भतीजे आबान, राहिल व भतीजी रिदा और बेटी जबरीना खान आदि सब अल्लाह की बारगाह में खैर व आफियत की दुआ मांगते है जैसे ही मस्जिद से डंके की आवाज आती है सब मिलकर रोजा इफ्तार करते है और अल्लाह का शुक्र अदा करते है। मगरिब की नमाज अदा करने के बाद चाय की चुस्कियों के साथ हर मौजू पर गुफ्तगू होती है घर वालों के साथ। डॉ0 कफील एशा व तरावीह की नमाज में रात साढ़े दस बजे तक मशगूल रहते हैं। इसके बाद चलता है डिनर का सिलसिला जिसमें ज्यादातर मटन ब्रियानी के साथ रायता रहता है। घर के हर सदस्य का पसंदीदा है। खासकर डॉ0 कफील का। कुछ मिठाईयां भी रहती है खाना खाने के बाद के लिए। यह एक खास आदमी की आम दिनचर्या है। जो रमज़ान में पूरी तरह से बदली हुई। जो इनका मनोबल बढ़ा रही है। रोजे से इन्हें शुक्र व सब्र की ताकत मिल रही है। नमाज से सुकून मिल रहा है। यह बदला हुई दिनचर्या यकीनन डॉ0 कफील के आत्मविश्वास को बढ़ाने में कारगर साबित होगी। तीस दिन तक ऐसे ही चलेगा। आने वाले वक्त का हर लम्हां डॉ0 कफील अहमद खान की जिंदगी में अहम साबित होगा। पूरी उम्मीद है कि जल्द वह बीआरडी मेडिकल कालेज में अपनी सेवाएं देते नजर आएं।
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