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दीन-ए-इस्लाम के पहले मुअज़्ज़िन हज़रत बिलाल को शिद्दत से किया याद

गोरखपुर।


दीन-ए-इस्लाम के पहले मुअज़्ज़िन (अज़ान देने वाले) सहाबी-ए-रसूल हज़रत सैयदना बिलाल हबशी रदियल्लाहु अन्हु के उर्स-ए-मुक़द्दस पर शनिवार को मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक, मकतब इस्लामियात चिंगी शहीद इमामबाड़ा तुर्कमानपुर, सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफ़रा बाजार, चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर व मुस्लिम घरों में क़ुरआन ख़्वानी व फातिहा ख़्वानी हुई। हज़रत बिलाल को शिद्दत से याद कर अकीदत का नज़राना पेश किया गया।

मदीना मस्जिद के इमाम मुफ्ती मेराज अहमद कादरी ने कहा कि हज़रत बिलाल पैगंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथियों में से थे। आप दीन-ए-इस्लाम के पहले मुअज़्ज़िन हैं। आपका जन्म मक्का शरीफ में हुआ। आपके माता-पिता हबशा (अबीसीनिया/अफ्रीका) के रहने वाले थे। आप गुलाम थे और आपका शुमार दीन-ए-इस्लाम में दाखिल होने वाले अव्वलीन सहाबा-ए-किराम में होता है। आपने तीस साल की उम्र में दीन-ए-इस्लाम कबूल किया। आपके मालिक को जब इसका पता चला तो उसने आप पर बहुत जुल्म ढ़ाया। आपको गर्म रेत पर लिटाकर आपके ऊपर बड़ा भारी पत्थर रखा जाता था। हज़रत बिलाल ने हर तकलीफ बर्दाश्त की मगर इस्लाम और दामने मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को न छोड़ा और इश्क-ए-मुस्तफा का सबूत दिया। पैगंबरे इस्लाम के हुक्म पर हज़रत सैयदना अबू बक़्र सिद्दीक़ ने भारी कीमत देकर आपको गुलामी से आज़ाद करवाया। हज़रत बिलाल बहुत इबादतगुजार थे।

चिश्तिया मस्जिद के इमाम हाफ़िज़ महमूद रज़ा क़ादरी व सब्जपोश हाउस मस्जिद के इमाम हाफिज रहमत अली निजामी ने कहा कि हज़रत बिलाल ने जंगे बद्र और दूसरी तमाम जंग में शिरकत की। पैगंबरे इस्लाम ने हज़रत बिलाल को मुअज़्ज़िन मुकर्रर किया। आप हमेशा पैगंबरे इस्लाम के साथ रहते थे। जब मक्का फतह हुआ तो आपने काबा शरीफ पर अज़ान पुकारी। पैगंबरे इस्लाम ने आपको अपना खजांची मुकर्रर किया था।

मकतब इस्लामियात में हाफिज सैफ अली, मौलाना दानिश रज़ा, हाफिज अशरफ रज़ा ने कहा कि हज़रत बिलाल हमेशा वुजू करते तो दो रकात नफ्ल नमाज़ तहीयतुल वुजू अदा करते थे। जब वुजू टूट जाता तो फौरन वुजू कर लिया करते थे। पैगंबरे इस्लाम के पर्दा फरमाने के बाद हज़रत सैयदना अबू बक़्र सिद्दीक़ के कहने पर आप मदीना शरीफ में ठहरे रहे लेकिन हज़रत सैयदना अबू बक़्र के इंतकाल के बाद आप शाम (सीरिया) की तरफ रवाना हो गये। आपका इंतकाल 20 मुहर्रम को हुआ। आपका मजार दमिश़्क सीरिया में है।

अंत में सलातो सलाम पढ़कर तरक्की, खुशहाली, भाईचारा व अमनो अमान की दुआ मांगी गई। शीरीनी बांटी गई।

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