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आजादी की रौशन इबारत डोहरिया

गोरखपुर। सहजनवां तहसील के पाली ब्लाक अन्तर्गत डोहरिया गांव में 23 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के अंग्रेजों भारत छोड़ों के आह्वान पर अंग्रेज हुक्मरानों द्वारा चलायी गई गोली से कुल नौ लोगों ने कुर्बानी देकर अपने खून से इबारत लिखकर आजादी के पन्नों में अपना नाम दर्ज करा दिया। जिसे कभी मिटाया नहीं जा सकता है। नौ अगस्त को गांधी जी ने अंग्रेजों भारत छोड़ों का आह्वान पर इस गांव के देशभक्तों ने एक खुफिया बैठक कर निर्णय लिया कि हम सब 23 अगस्त को डोहरिया गांव की बाग में इकट्ठा होंगे। वही से गाजे बाजे के साथ सहजनवां कूंच करेंगे तथा वहां पर थाना, पोस्टआफिस व रेलवे स्टेशन फंूक देंगें। भीड़ ने ज्यों ही वहां से प्रस्थान  किया तभी तत्कालीन थानेदार ऐनुल हक ने बड़ी संख्या में फोर्स लेकर वहां पहुंच गया। भीड़ को काबू में करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया लेकिन भीड़ काबू में नहीं आ सकी। तब थोनदार उस समय के अंग्रेज क्लेक्टर मास को सूचित किया। सूचना मिलते ही वह बड़ी संख्या में फोर्स लेकर वहां पहुंचा। पहुुचतें ही गोली चलाने का आदेश दे दिया।  अंग्रेजी हुक्मरानों की गोली से नौ देशभक्तों...

हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां का उर्स-ए-पाक 12 अगस्त से शुरू

गोरखपुर। नार्मल स्थित हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां का सालाना उर्स-ए-पाक 12 , 13, 14 अगस्त को अदबो एहतराम व अकीदत के साथ मनाया जायेगा। उर्स-ए-पाक में पूर्वांचल व दूर दराज के जिलों से बड़ी संख्या में मजार शरीफ का दर्शन करने आते है। यह जानकारी अराकीन कमेटी आस्तानए आलिया हजरत बाबा मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां , वक्फ नम्बर 151 के अध्यक्ष इकरार अहमद ने दी। उन्होंने बताया कि तैयारियां जोर शोर से चल रही है। 12 अगस्त बरोज बुध बाद नमाज एशा को रात्रि की नमाज के बाद जलसा-ए-ईदमिलादुन्नबी का प्रोग्राम रखा गया है। उन्होंने बताया कि जलसा-ए-पाक में मुल्क के बड़े-बड़े उलमा व शायर शिरकत करेंगे। खास तौर पर हजरत अल्लामा मुफ्ती अख्तर हुसैन जम्दा शाही, हजरत अल्लामा मौलाना कारी रूहुल अमीन जबलपुर, शायरे इस्लाम मुजफ्फर रजा कलकत्ता, लियाकत मेंहदी झारखण्ड व दीगर मुकामी उलमा व शायर की शिरकत होगी।  जलसा-ए-ईदमिलादुन्नबी के बाद भोर में 3 बजे गुस्ल व संदल पोशी की रस्त अदा की जायेगी। उन्होंने बताया कि 13 अगस्त को बरोज जुमेरात बाद नमाज फज्र कुरआन ख्वानी होगी। सुबह 10 बजे कुल शरीफ होगा। शाम  ...

जब सरदार अली खां की रिहाईशगाह आखिरी आरामगाह बनी

गोरखपुर। 1857 की जंगे आजादी की पहली लड़ाई हम भुल नहीं सकते। कहतें है शहीद मरता नहीं है। यह सभी धर्मों का अकीदा है। हमारा भी यहीं अकीदा है। लेकिन शहीद का भुला देना या सम्मान न देने की सभी धर्मों में मजम्मत होती है। देश के लिए जान कुर्बान करने वालों के साथ यह अन्याय कई सौ सालों से चला आ रहा हैं। ऐसी ही एक शख्सियत हैं सरदार अली खां। जिन्हें हर खासों आम जानता जरूर है कि वह जंगे आजादी के योद्धा थे। लेकिन वह वाकिया आवाम के जेहन में नहीं है। जिसकी वजह से उन्हें और अहले खानदान को शहादत देनी पड़ी। पहली जंगे आजादी के दीवाने की मजार आज भी मौजूद है। घरवालें भी है। मजार पर जाकर और घरवालों से बात करके देखिए आपका दिल पिघल जायेगा। जिससे सम्मान का यह घराना हकदार था। उसी मयस्सर नहीं हुआ। नखास स्थित कोतवाली से हर कोई वाकिफ है। यह कभी मुअज्जम अली खां की हवेली हुआ करती थी। आज उनके खानदान वालों की आखिरी आरामगाह बन चुकी है। सरदार अली खां ,उनके भाई रमजान अली खां व उनके परिवार वालों की रूहें वहां पर मौजूद है। कभी आईए तो खुद बा खुद अहसास हो जायेगा। शहीद का दर्जा भी न मिल सका। यह जो मजार आप देख रह...

जब गौर्रा का पानी अंग्रेजों के खून से लाल हो गया

गोरखपुर। 1857 ई. भारत इतिहास में अतिशय महत्व का वर्ष रहा हैं । जनपद में कठेन नाला मशहूर था। जब पहली आजादी की लड़ी। तो देशभक्तों ने अंग्रेजों के विरूद्ध जंग छेड़ दी। अंग्रेजों का कत्ले आम शुरू हुआ। जिस वजह से कठेन नाला का पानी अंग्रेजों के खून से लाल हो गया। तभी से उस का नाम गोर्रा पड़ गया। इतिहासकार बीएल ग्रोवर लिखते हैं कि मुस्लिम काल में देश में विद्यमान अधिकांश राज्य स्वीकार करते थे। मुगल साम्राज्य को वह कर एवं आवश्यकता पड़ने पर सैनिक सहायता देते थे। वे अपने आतंरिक मामलों मंे स्वतंत्र थे। जहां तक गोरखपुर परिक्षेत्र का प्रश्न है यहां के शासक अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के कारण अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा कहीं अधिक स्वतंत्र थे और सतासी राज का इतिहास तो अपने स्वाभिमान एवं स्वतंत्रता के लिए विदेशी आक्रमणकारियों से सदैव संघर्ष का ही रहा है। किन्तु अंग्रेजों के आने के पश्चात स्थितियां बदलने लगी थ्ीा। अंग्रेजों ने शताब्दियों पुराने ढ़ांचे को तोड़ने का प्रयास किया। जिससे देशी राज्यों के साथ-साथ वहां की जनता में भी अंग्रेजी राज्य के विरूद्ध असंतोष की आग सुलगने लगी थी। इस असंतोश ...

गोरखपुर के मौलाना सुभानी को भुल गया हिंदुस्तान

हिन्दू राजा व मौलाना की अनोखी जंगे आजादी की दास्तान जंगे आजादी के लिए यूरोप से लगायत पश्चिमी देशों की यात्रा राष्ट्रअध्यक्षों से मिलकर अंग्रेजों पर दबाव बनाने कि इल्तिजा अकीदत के दो फूल भी नहीं चढ़ाता कोई कच्ची बाग में कब्र है लेकिन गुमनाम गोरखपुर। मौलाना अब्दुल कलाम आजाद से तो सभी वाकिफ है। लेकिन गोरखपुर के मौलाना आजाद सुभानी से कम लोग वाकिफ है। एक हिन्दू राजा व मौलाना की अनोखी दास्तान जिसने आजादी में अहम किरदार निभाया। जिन्हांेने बिना अस्त्र शस्त्र के देश की आजादी की लड़ाई लड़ी और फत्ह पायी। देश व विदेश में व्याप्क जनसम्पर्क किया। सूफीयाना शैली से भाईचारगी का पैगाम दिया। अफसोस सद् अफसोस महात्मा गांधी, बल्लभ भाई पटेल, सरोजनी नायडू, जवाहर लाल नेहरू, अब्दुल कलाम आजाद को तो हिंदुस्तान ने याद रखा। आजादी के इस अजीम मतवालें के कारनामें का फरामोश (भुला) दिया। हालांकि भारत सरकार ने मौलाना का मुस्लिम स्वतंत्र संगा्रम सेनानियों की सूची में 31 नंबर पर रखा है। वहीं खिलाफत आंदोलन में आप ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। यह गोरखपुर वालों के लिए फख्र की बात है। मौलाना आजाद सुभानी को इमामें हिंद...

किस्सा दुनिया की आखिरी डोली का

गोरखपुर। भारतीय संस्कृति विलक्षण है। ऐसी संस्कृति दुनिया के किसी अन्य देश में देखने को नहीं मिलेगी। यह हमारा दावा है। दावे की दलील भी है। यहां की मिट्टी में कई मजहब, भाषा, रीति रिवाज, रहन सहन कदम-कदम पर बदलते हुये मिलेंगे। फिर भी संस्कृति विविधता लिये एकता के सूत्र  में जुड़ी है। सभी एक दूसरे की संस्कृति, रीति रिवाज की इज्जत करते है। यह हमारी आन, बान और शान की मिसाल है। शहर से लेकर गांव तक संस्कृति  के विविध रंग नजर आयेंगे। जिस पर कभी हमें फख्र हुआ करता था। शायद अब नहीं। आधुनिकता की अंधी दौड़ ने हमारा नजरिया बदल दिया। शहरीकरण व औद्योगिकीकरण ने संस्कृति रीति रिवाज में दखल दी। जिससे कुछ रीति रिवाज लुप्त हो गये और कुछ आखिरी सांसे गिन रहे है। एक ऐसी प्रथा प्रचलन में थी डोली या पालकी। जिससे आप अच्छी तरह वाकिफ है। आप को जानकर ताज्जुब होगा। यह डोली या पालकी का प्रचलन खत्म हो गया। यह अब हमें किस्से, कहानियों, शायरों के शेर या दूल्हा दुल्हन के तसव्वुर में सुनने को मिलेगा। आज हम आपके लिये लाये दुनिया की आखिरी डोली की कहानी तफसील से। प्रिय पाठकों मेरे एक मित्र है पत्रकार अ...