जब गौर्रा का पानी अंग्रेजों के खून से लाल हो गया

गोरखपुर। 1857 ई. भारत इतिहास में अतिशय महत्व का वर्ष रहा हैं । जनपद में कठेन नाला मशहूर था। जब पहली आजादी की लड़ी। तो देशभक्तों ने अंग्रेजों के विरूद्ध जंग छेड़ दी। अंग्रेजों का कत्ले आम शुरू हुआ। जिस वजह से कठेन नाला का पानी अंग्रेजों के खून से लाल हो गया। तभी से उस का नाम गोर्रा पड़ गया।
इतिहासकार बीएल ग्रोवर लिखते हैं कि मुस्लिम काल में देश में विद्यमान अधिकांश राज्य स्वीकार करते थे। मुगल साम्राज्य को वह कर एवं आवश्यकता पड़ने पर सैनिक सहायता देते थे। वे अपने आतंरिक मामलों मंे स्वतंत्र थे। जहां तक गोरखपुर परिक्षेत्र का प्रश्न है यहां के शासक अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के कारण अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा कहीं अधिक स्वतंत्र थे और सतासी राज का इतिहास तो अपने स्वाभिमान एवं स्वतंत्रता के लिए विदेशी आक्रमणकारियों से सदैव संघर्ष का ही रहा है। किन्तु अंग्रेजों के आने के पश्चात स्थितियां बदलने लगी थ्ीा। अंग्रेजों ने शताब्दियों पुराने ढ़ांचे को तोड़ने का प्रयास किया। जिससे देशी राज्यों के साथ-साथ वहां की जनता में भी अंग्रेजी राज्य के विरूद्ध असंतोष की आग सुलगने लगी थी। इस असंतोश का प्रथम विस्फोट 10 मई 1857 को फौज के सिपाहियों में शुरू हुआ। जिसने धीरे-धीरे पूरे देश में फैलकर देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का स्वरूप ले लिया।
सतासी राज से प्राप्त साक्ष्यों पर नजर डाले तो कहा जा सकता है कि 1857 के विप्लव में प्रमुख रूप से भाग लेने वालों में थे, अंग्रेजी सत्ता से क्षुब्घ मराठे, दिल्ली और लखनऊ के मुसलमान और अवध के पूर्विये हिन्दू। विद्रोह की लपटें गोरखपुर भी पहुंची। अतः जब विद्रोह की शुरूआत हुई तो इस राजवंश ने सबसे इस परिक्षेत्र में विद्रोह का शख्ंानाद किया। जब महान क्रांतिकारी नेता मोहम्मद हसन फैजाबाद से तत्कालीन सतासी नरेश राजा उदित नारायण ंिसंह के पास अपना साथ देने के लिए दूत भेजा तो उस देशभक्त राजा ने उत्तर दिया वह अविस्मरिणीय है। राजा ने दूत से कहा आज ने कोई हिन्दू है और न कोई मुसलमान, आज हम सभी हिन्दूस्तानी हैं।
गोरखपुर परिक्षेत्र का इतिहास खण्ड प्रथम में डा. दानपाल सिंह लिखते हैं कि इस समय गोरखपुर के कलेक्टर मिस्टर पेटर्सन, ज्वाइंट मजिस्टेªेट बर्ड, जज विनियर्ड और सेना के कप्तान स्टील थे जो आजमगढ़ में रहते थे। इन अंग्रेज अधिकारियों को क्रान्तिकारियों का सामना करना पड़ा। गोरखपुर में क्रांति की ज्वाला फैल चुकी थी। कुसम्ही जंगल के दक्षिण में वर्तमान झंगहा ग्राम के पास सतासी राज उदित नारायण ंिसंह की अध्यक्षत में बढ़यापार के कौशिक राजा तेजप्रताप बहादुर चन्द, नरहरपुर (चिल्लूपार) के विशेन राजा तथा शाहपुर एवं नगर बस्ती आदि के राजाओं की एक सभा हुई। इसमें डुमरी राज के बाबू बन्धूसिंह तथा पाण्डेपार, तिहरा आदि के श्रीनेत बबुआन भी काफी संख्या में सम्मिलित हुए। उस सभा में सर्वसम्मति से एक जुट होकर अंग्रेजों के विरूद्ध युद्ध की घोषणा की गयी और क्रांति के श्री गणेश के रूप में बंदी बनाये गये कई अंग्रेज कठेन नाल के किनारे कत्ल कर दिये गये। उन अंग्रेजों के रूधिर से कठने नाला का पानी लाल हो गया, तभी से उस का नाम गोर्रा पड़ गया।

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