वनटांगियां

उप्र विधानसभा चुनाव के दौरान सैयद फरहान अहमद की रिपोर्ट
सोहगीबरवा जंगल से (महराजगंज)
-सौ साल से शिक्षा, चिकित्सा और बिजली से महरुम

 गोरखपुर। न वह किसी दूसरे देश से आकर यहां बसे और न ही वह किसी देश के शरणार्थी हैं। हिन्दुस्तान के बाशिंदे हैं। मतदाता हैं। लेकिन इन्हें वह हक आज तक नहीं मिला जिसके यह हकदार हैं। हिन्दुस्तान के सामान्य नागरिकों को जो अधिकार मिले वह इन्हें मयस्सर नहीं। हां यह जरुर हैं पहले यह अंग्रेजों के गुलाम थे अब सिस्टम के गुलाम हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं गोरखपुर-महराजगंज के जंगलों में सैकड़ों सालों से रहने वाले वनटांगिया समुदाय की। जिन्होंने सौ सालों से न तो अपने गांवों में विद्यालय, चिकित्सालय और न ही बिजली को मुहं देखा। दोनों जिलों के 23 वन ग्रामों में करीब 4745 वनटांगिया परिवार रहते हैं जिनकी कुल आबादी करीब 40 हजार है। इनमें 21 हजार मतदाता है। वन अधिकार कानून लागू होने के बाद वर्ष 2011 में इन्हें अपने घर और खेती की जमीन पर मालिकाना हक मिल तो गया लेकिन उनके गांवों को राजस्व गांव नहीं बनाया गया। जिससे उनके गांवों में स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, सड़क, पेयजल, आवास, मनरेगा सहित सभी सरकारी योजनाएं नहीं लागू होती हैं। इनके गांव से अस्पताल 18 किलो मीटर दूर, राशन दुकान 16 किलेमीटर दूर, स्कूल 8 किलोमीटर दूर, मतदाता स्थल 8 किलोमीटर दूर और बिजली 100 साल से दूर हैं। न ही यहां बिजली खंभें है और न तार। न ही किसी ने गैस चूल्हा कभी देखा। अनिवार्य शिक्षा अधिनियम, सबका साथ सबका विकास, काम बोलता हैं जैसी बातें यहां बेमानी हैं। जमीन तो मिल गयी वानटांगिया को लेकिन पक्का मकान बनाने की इजाजत नहीं हैं। अबकी वनटांगियों ने वोट न डालने का मन बनाया था लेकिन प्रशासन के कहने पर वोट डालने को तैयार हो गये। 
गोरखपुर मुख्यालय से दूर महराजगंज जिले में करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर जब हम सोहगीबरवां सेंचुरी में स्थित पकड़ी रेंज के बीट वनग्राम पहुंचे तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आये। हमारी मदद के लिए विनोद तिवारी के निर्देश पर सागर व मुकुल हमें लेकर बीट व चैतरा गांव पहुंचे। घने जंगलो से गुजरते हुए जंगल में करीब 18 किलोमीटर चलना पड़ा। रास्ते में एक नाला पड़ा। मुकुल ने बताया कि जब बारिश होती हैं तो यह नाला ऊफान पर होता हैं पूरा एरिया जलमग्न हो जाता हैं। गांवों के लोगों का आना जाना मुश्किल हो जाता हैं। यहीं पास मौजूद मंदिर के पुजारी के पास नाव हैं वह दस रुपए किराये पर नाव मुहैया करवाते हैं। जब घने जंगलों से गुजर रहे थे तब विभिन्न प्रकार के पशु पक्षियों की आवाजें कौतुहल पैदा कर रही थीं। जंगल में मिट्टी के बड़े-बड़े टीले आकर्षक नजर आ रहे थें। मुकुल ने बताया कि जंगल में हिरन, नीलगाय, जंगली सुअर, बारहसिंगहा, तेंदुआ सहित तमाम तरह के जानवर हैं। कुछ मिनटों का सफर तय कर जब हम बीट व चैतरा गांव पहुंचें। यह दोनों गांव एक दूसरे से सटे हुए हैं। यह गांव एक सीध में बसा हुआ हैं। घरों के अगल-बगल खेत हैं। यहीं खेत इन वानटांगियां समुदाय के जीने का सहारा हैं। यहां तमाम तरह का फसलें व सब्जियां उगायी जाती हैं। मवेशियों की कोई कमी नहीं हैं। ज्यादातर घर छप्पर के हैं। कुछ घरों पर सीमेंट की चादर नजर आयीं। तीन घर पक्के थें। छप्पर पर कद्दू नजर आयें पुछने पर पता चला इन्हीं कद्दूओं से पेठा बनता हैं। वहीं हर घर पर कोबर के कंडे थे। इस गांव की कुल आबादी 1500 सौ हैं। 250 परिवार रहते हैं। करीब 100 घर हैं। जिसमें करीब 800 मतदाता हैं। इन मतदाताओं को मतदान करने के लिए बरगदवां राजा जाना पड़ेगा। हालांकि यह 2005 से वोट डालने के हकदार हो गये थे लेकिन पंचायत चुनाव मे इन्हें वोट डालने का अधिकार 2012 में मिला। लेकिन इनके गांव को राजस्व का दर्जा आज तक नहीं मिला, जिस वजह से यहां विकास की बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। इन्हीं वनटांगियों के वोट के सहारे कई ग्राम प्रधान बने लेकिन काम कराने में वह भी बेबस हैं। वनटांगियां समुदाय से भी दो ग्राम प्रधान हैं। हमें देखकर गांव के महिला, पुरुष इकट्ठा हो गये।  जब हम गांव पहुंचे तो वनटांगियों का दर्द छलक उठा। जिस घर के पास हम रुके वह 35 वर्षीय सर्वजीत का था। उसने कुछ दिनों पहले मकान पर सीमेंट की चादर रखी थीं। जो वन विभाग को नागवर गुजरी। हालांकि सीमेंट चादर कई घरों पर थीं। तब वनटांगियों ने बताया कि पहले वनाधिकारी नहीं रोकते टोकते थे। नये अधिकारी जंगल में तानाशाही चला रहे हैं। बकौल सर्वजीत वन विभाग वालों ने पैसा देने का दबाव बनाया तो सर्वजीत एक हजार रुपया देने को तैयार भी हो गया लेकिन मांग ज्यादा की थीं। सर्वजीत को बंदीगृह में डाल दिया गया। 24 घंटे तक कुछ खाने को नहीं दिया गया। अगले दिन गांव वालों ने प्रदर्शन किया तब सर्वजीत छूटा। लेकिन वन विभाग द्वारा मुकदमा दर्ज कर लिया गया। सभी गांव वाले डीएफओ के तानाशाही रवैया से आजिज हैं। श्रीराम ने बताया कि बहु रुपा को डिलेवरी होने वाली थीं। लेकिन वन विभाग की वजह से सही समय पर चिकित्सा सुविधा नहीं मिली। किसी तरह परमिशन लेकर 18 किलोमीटर अस्पताल पहुंचे। तब बच्चे का जन्म हुआ। सावित्री ने बताया कि शादी ब्याह के लिए गाड़ी का परमिट बनवाना पड़ता हैं तब बारात बाहर जाती हैं और बाहर से अंदर आती हैं।करीब पांच सौ रुपये से अधिक लिया जाता हैं। इसके अलावा डीएफओ द्वारा दोपहिया वाहनों की हवा निकालने की घटना आम हैं।चिकित्सालय के लिए 18 किलोमीटर दूर जाना पड़ता हैं। जब कभी इमरजेंसी होती हैं तो और मुसीबतों का सामना करना पड़ता हैं। कई लोग तो इलाज न मिलने से काल के गाल में समां गये। 
शिक्षा की समस्या पर गांव के इकलौते इंटर पास वीरेंद्र ने बताया कि किसी वनटांगियां गांव में एक भी स्कूल नहीं हैं। सिवाय गोरखपुर के तिनकोनिया में वह भी खुले छत के नीचे। यहां बच्चों को पढ़ने के लिए करीब 6-8 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती हैं ऊपर से जंगली जानवरें का खतरा अलग रहता। पढ़ाई के लिए रघुपर जाना पड़ता हैं बारिश के दिनों में तो बच्चों को तैर कर जाना पड़ता हैं। प्राथमिक विद्यालय भौहापुर में कक्षा पांच के छात्र सोनू ने बताया कि करीब 20 छात्र रोज कई किलोमीटर की दूरी तय कर स्कूल जाते हैं बारिश में तो तैर कर जाना पड़ता हैं। कई लड़कियां भी स्कूल ड्रेस में नजर आयीं।
बिजली की समस्या पर वनटांगियां विकास समिति के जयराम प्रसाद ने बताया कि 100 साल से वानटांगियां गांव ने बिजली नहीं देखी। सांसद निधि से पांच सोलर लैम्प लगे हुए हैं। एक खास बात यहां बिजली नहीं है लेकिन हर घर में सोलर एनर्जी है जिससे मोबाइल चार्ज होता हैं और एक बल्ब जलता हैं। 

जिला वनाधिकार समिति के सदस्य नूर मोहम्मद ने बताया कि सफेद कार्ड बना हैं। राशन लेने के लिए गांव वालों को 16 किलोमीटर दूर जाना पड़ता हैं। 35 किलो राशन मिलता हैं। उन्होंने बताया कि वानटांगियां गांवों में मुसलमानें की 200 परिवार रहते हैं। शादी के लिए परमिट बनवाना पड़ता हैं। अगर कोई बीमार हो जाता हैं तो एंबुलेंस आने से पहले वनविभाग 8 किलोमीटर अंदर आकर तस्दीक करता हैं तब एंबुलेंस को अंदर आने की परमिशन मिलती हैं। वहीं बहु बेटियों को जंगल में रोक लिया जाता हैं तस्दीक करने के बाद अंदर जाने दिया जाता हैं। कच्ची सड़कों से दुश्वारी रहती हैं। जब बारिश होती हैं तो चलना असंभव हो जाता हैं। 
वनटांगियां समुदाय के हर संघर्ष में उनके साथी विनोद तिवारी ने बताया कि 1, 2 गांवों को छोड़कर जितने भी मतदाता स्थल बने हैं गांवों से उनकी दूरी 6-8 किलोमीटर हैं। जिसकी वजह से इन्हें वोट डालने में काफी दूरी तय करनी पड़ेगी। 

जब हम चेतरा गांव के आखिरी छोर पर पहुंचे तो प्यासा नाला नजर आया फिर शाम होने पर हम वापस लौटने लगे तो देखा घर के बाहर तमाम  महिलाएं रंगीन मौनी बना रही थीं। इसी दैरान इसरावती मिल गयी जो मौनी बनाते हुए वनटांगिया गीत गा रही थीं । हमारे कहने पर दो लाइनें गुनाने लगीं-
"कन्हवां कुदारी लीहली, गोदे में बलक लीहलीं।
चली गयी ली, नरिया खोदन हो सजनवां"
कन्हवां कुदारी धईली, कखवां भी बीहवली।
चल गई, पौधा लगाय।"
85 साल की गुलइचा ने भी गीत सुनाया। फिर उसी राह से हम वापस हुये। लेकिन दिल में टीस थीं कि रहनुमाआ इन्हें हक कब देंगें। वनटांगियों ने भी संघर्ष से पीछे नहीं हटने की शपथ खायी हैं।
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वन विभाग का उत्पीड़न जारी हैं : जयराम प्रसाद

वनटांगियां विकास समिति के अध्यक्ष जयराम प्रसाद ने कहा कि वनटांगिया लोगों को सरकार द्वारा अधिकार पत्र मिल चुका हैं उसके बावजूद भी वन विभाग का उत्पीड़न जारी हैं।  मकान नहीं बनवा सकते हैं।न स्कूल हैं न चिकित्सालय। पानी की सुविधा भी नहीं हैं। भू-राजस्व गांव की कोई सुविधा वनटांगिया समुदाय को नहीं मिली हैं। जंगल में गाड़ी लाने पर टैक्स वसूला जाता हैं। वन विभाग पूरी तरह से अंग्रेजों की नीति अपनायें हुये हैं। न उनको कानून के बारे में जानकारी हैं न यह लोग कानून मानते हैं।
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मूलभूत सुविधाएं नदारद : नूर मोहम्मद
महराजगंज जिला वनाधिकार समिति के सदस्य नूर मोहम्मद ने वनटांगियों के संघर्ष पर बताया कि 1918 से गोरखपुर मंडल में नौ वन प्रभागों में वनटांगिया का काम शुरु हुआ। आज के दौर में गोरखपुर व महरादगंज जिले में 23 वनटांगियां गांव में लोग रहते हैं। यहां 1982 के बाद वन निगम आया। उसके पहले हम लोग वन विभाग के वृक्षारोपण का काम करते थे। यहां शाल, सागौन, साखू का पौधा लगाया। फलदार वृक्ष लगायें। यह क्रम सन् 1918 से लेकर 1985 तक चला। उसके बाद हमें यहां से हटाने की मुहीम चलीं। बहुत संघर्ष करना पड़ा । फिर हमनें गोरखपुर व महराजगंज में न्यायालय का सहारा लिया। स्थगन आदेश प्राप्त किया। सन् 1995 में वनटांगिया  विकास समिति बनीं। सन् 1997 में हाईकोर्ट से हमें यहां रहने व खोती करने के लिए स्थगन आदेश मिल गया। यह क्रम लगाता चलता रहा। उसके बाद भारत सरकार ने फारेस्ट राइट एक्ट( अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी(वनअधिकारों की मान्यता अधिनियनसम 2006 एवं नियम 2007 ) 2006 बनाया। जिसमें वनटांगियों को मुलभूत अधिकार देने का स्पष्ट प्राविधान हैं।  यह एक्ट 2008 में लागू हुआ। उसके तहत 2011 में महराजगंज के 18 वनटांगियां गांव के 3796 परिवारों व गोरखपुर के 504 परिवारों को अधिकार पत्र मिल गया। उसी अधिकार पत्र के बिना पर वनटांगिया अपनी आजीविका चला रहे हैं।राजस्व का दर्जा नहीं मिलने के कारण कोई मूलभूत सुविधायें इन वनटांगियां लोगों को नहीं मिल रही हैं। स्कूल नहीं हैं। इंडिया मार्का हैंडपम्प कहीं  दो तीन लगा हैं। चिकित्सालय नहीं हैं। कई गर्भवती महिलाएं इलाज में देरी के कारण दम तोड़ चुकी हैं। जंगल में आने जाने के लिए परमिशन लेना पड़ता हैं। खेती से पेट की आग ही शांत होती हैं। बिजली तो अंग्रोजों के जमाने से नहीं हैं। अंग्रेज के जमाने में जो हाल था वहीं अब भी हैं।
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राजस्व ग्राम हैं इनकी बड़ी मांग
वनटांगिया गोरखपुर-महराजगंज जिले के 23 वन ग्रामों को राजस्व गांव बनाकर वहां सरकार की सभी योजनाओं को लागू करने की मांग पर सरकार की वादाखिलाफी से नाराज हैं। वनटांगिया 19 सितम्बर 2016 में कमिश्नर कार्यालय पर अनिश्चितकालीन डेरा डालो-घेरा डालो सत्याग्रह शुरू किया था ।
वनटांगिया 2011 से लगातार धरना-प्रदर्शन, बैठक, सम्मेलन कर शासन-प्रशासन से मांग करते आए लेकिन उनकी नहीं सुनी गई। इस पर उन्होंने 10 और 11 जून 2012  को कमिश्नर कार्यालय पर डेरा डालो-घेरा डालो आंदोलन किया। इसके बाद उनके गांवों को बगल के गांवों से जोड़कर पंचायत का गठन किया गया और आजादी के बाद पहली बार उन्हें पंचायत में वोट देने का मौका मिला। इसके बाद महराजगंज जिले में दो वनटांगिया ग्राम प्रधान भी चुने गए। वनटांगियों को भरोसा था कि पंचायत चुनाव के बाद उनके गांव राजस्व गांव बनेंगे और वहां भी विकास कार्य होंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चुने गए ग्राम प्रधानों को अधिकारी साफ तौर पर कह रहे हैं कि वन ग्रामों के विकास के लिए कोई बजट आंवटित नहीं हो सकता क्याेंकि वे राजस्व गांव नहीं हैं। रजही गांव के प्रधान रणविजय सिंह उर्फ मुन्ना सिंह ने बताया कि उनके ग्राम पंचायत में तीन वन ग्राम रजही कैम्प, रजही खाले और आमबाग आते हैं। वह इन गांवों में विकास के कार्य कराना चाहते हैं लेकिन शासन से कोई बजट आवंटित नहीं किया जा रहा है। यही हाल अन्य वन ग्रामों का है। बरहवा के ग्राम प्रधान रामजतन वनटांगिया समुदाय के ही है। वह प्रधान तो बन गए लेकिन अपने गांव में कोई कार्य नहीं करा पाने से बहुत निराश हैं।
23 गांवों को राजस्व गांव बनाने का प्रस्ताव 14 अगस्त 2014 को ही राजस्व परिषद में भेज दिया गया है लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
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ऐसे पड़ा वनटांगिया नाम 
महराजगंज जिला वनाधिकार समिति के सदस्य नूर मोहम्मद बतातें हैं कि वनटांगिया शब्द वर्मी हैं। 'वन' का मतलब जंगल, 'टांग' का मतलब पर्वत और 'या' का मतलब खेती होता हैं। यानी वनों में रह कर पर्वतों पर खेती की जो विधि होती हैं उसे वनटांगिया कहते हैं। जब अंग्रेजों ने रेल व्यवस्था शुरु की तो पटरियां बनाने के लिए वृक्षों की जरुरत पड़ी। इसके अलावा अंग्रेजों ने यहां की लकड़ी अपने मुल्क भेजनी शुरु की। इस तरह सारे वन विलुप्त होने के कागार पर पहुंच गये। अंग्रेजों ने सोचा की जब साखू के वृक्ष काट दिए जायेंगे तो जो उनकी ग्रोथ निकलेगी उसी ग्रोथ से नया वृक्ष तैयार होगा। लेकिन वह ग्रोथ जब 5-10 फीट का हुआ तो तेज हवा के झोंके से एक-एक कर वह टूट कर गिरने लगे। उस समय वर्मा में टांगिया पद्धति से खेती होती थीं। यहां के अंग्रेज हुक्मरानों ने वहां देखा कि पर्वतों के ऊपर एक गड्ढा खोदकर खेती की जा रही हैं । वह पद्धति बहुत कामयाब हैं। वहीं पद्धति को अंग्रेजों ने वृक्षों को लगाने के लिए पसंद किया। उसी टांगिय पद्धति के कारण यहां के रहने वालों को वनटांगिया कहा जाने लगा। खैर। इस समय यहां आबाद सारे लोग की कई पीढ़िया बाहर से आकर यहां बसीं। अंग्रेजों ने एक मुनादी करवा दी। उस समय सारे लोग जमींदारों के उत्पीड़न से त्रस्त थे। वहीं मुनादी सुनकर लोग जंगलों में काम करने को तैयार हो गये। अंग्रेजों ने हर तरह की सुविधायें देने का वादा किया। उसी लालच में लोग यहां आकर बसे फिर यहीं के होकर रह गये। न तो अंग्रेज ने अपने वादे को निभाया और न ही सरकार ने इनके लिए कुछ किया। इनके अधिकारों के लिए कानून तो जरुर बना लेकिन अमल में आज तक नहीं आ सका।
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फैक्ट :- 
जंगल - 
सोहगीबरवां सेंचुरी महराजगंज
कुसम्ही जंगल गोरखपुर

वनटांगियां ग्राम कुल - 23
गोरखपुर-5
महराजगंज - 18

वनटांगिया आबदी - दोनों जनपद में 40 हजार के करीब/ गोरखपुर में परिवार 550 व महराजगंज में 3500
मतदाता - 22 के करीब दोनों जनपदों में 

गोरखपुर में 504 को वहीं महराजगंज में 3796 को जमीन का पट्टा मिला

जंगल के वन ग्राम व उसमें रहने वाले परिवार 
1.गोरखपुर में कुल 5 वानटांगियां गांव
रजही कैम्प/ रजही खोल/ आम बाग/ तिकोनिया/चिलबिलवा(टोटल परिवार 550)

2. महराजगंज जिला  में 18 वनटांगियां गांव में 3500 परिवार

महराजगंज - बीट (212 परिवार)/चेतरा (80)/ उसरहवां (249)
फरेंदा - भारीवैसी (315)/ सूर्यपार (317)/ खुर्रमपुर ( 304)
लक्ष्मीपुर - अचलगढ़ ( 210)/ तिनकोनियां (190)/ कानपुर दर्रा (95)/ बेलोहादर्रा (50)
मिठौरा - कम्पाट 27 (240)/ कम्पाट 28 (242)/ कम्पाट 24 ( 320)/ हथियहवां (152)/ बलुवहिया (276)
परतावल - बेलासपुर (412)/ दौलतपुर (109)
पनियरा - भरहवां (317)


जातियां -
हिन्दू (केवट, साहनी, चौहान, चमार, गुप्ता)  मुसलमान केवल 5 प्रतिशत

वनटांगियां से तीन ग्राम प्रधान
महरागंज - बरहवां व अचलगढ़
गोरखपुर - रजही कैंप

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