गोरखपुर : 50 सालों से हिन्दू-मुस्लिम मिलकर सजा रहे हैं पैगम्बर मोहम्मद साहब की महफिल

सीएम के शहर में
सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर। जहां एक तरफ हिन्दू-मुसलमान को बांटने की सियासत उरुज पर हैं, वहीं कुछ ऐसी मिसाले भी हैं जो समाज की सच्ची रहनुमाई  कर समाज को एकता के ढ़ाचे में संजोये हुये  हैं। जी हां सीएम आदित्यनाथ  के इस शहर में पांडेहाता बाजार एक ऐसी जगह हैं जहां पैगम्बर मोहम्मद साहब की  महफिल ( राष्ट्रीय स्तर की) के लिए हिन्दू समुदाय दिल खोल कर चंदा ही नहीं देते बल्कि महफिल करवाने में बढ़चढ़ कर हिस्सा भी लेते हैं और यह कोई एक दो सालों से नहीं पिछले 50 सालों से होता चला आ रहा हैं। इस प्रोग्राम को कराने के लिए 'बज्मे आले मुस्तफा कमेटी' बनी हुई हैं जिसमें हिन्दू समुदाय के लोग भी शामिल हैं। वहीं पांडेहाता बाजार की हर दुकान चाहे वह हिन्दू की हो या मुसलमान की बिना झिझक चंदा देने में सभी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। सारा प्रोग्राम पांडेहाता बाजार के दुकानदारों के चंदे ही से होता हैं। यहीं नहीं जब प्रोग्राम होता हैं तो हिन्दू समुदाय के लोग मुस्लिम समुदाय का इस्तकबाल करने के लिए बैनर आदि  भी लगाते हैं। प्रोग्राम करवाने में पांडेयहाता व्यापार मंडल के अध्यक्ष विजय पाठक, कोषाध्यक्ष छाजू राम केडिया, महासचिव बब्बू जैन आदि बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले सुख की अनुभूति करते हैं।
कमेटी के अध्यक्ष हाजी जावेद अली व महमूद अहमद उर्फ जुम्मन ने बताया कि आपसी भाईचारा की ऐसी मिसाल कहीं और देखने को कम ही मिलेगी। यह कोई दो साल की बात नहीं हैं। इस रिवायत को कायम हुए 50 साल गुजर गये। लेकिन दोनों समुदाय के खुलूसों मोहब्बत में किसी तरह की कोई कमी नहीं आयी। इस वर्ष 24 अप्रैल को पांडेय हाता बाजार में कमेटी के तत्वावधान में राष्ट्रीय स्तर का 'जश्ने मेराजुन्नबी' सम्मेलन का प्रोग्राम रखा गया हैं। जिसमें कानपुर के मशहूर इस्लामिक वक्ता मौलाना मोहम्मद हाशिम कानपुरी, सिद्धार्थनगर के विद्वान मुफ्ती मोहम्मद निजामुद्दीन नूरी, कुशीनगर के मौलाना मोहम्मद कमरुद्दीन संबोधित करेंगे। वहीं नात शरीफ मशहूर शायर राही बस्तवी पेश करेंगे। सम्मेलन की तैयारी जोरों पर हैं। चंदा जुटाने का काम हिन्दू-मुस्लिम समुदाय मिलकर कर रहा हैं। पिछले साल
’जश्ने रहमत आलम’ राष्ट्रीय सम्मेलन हुए  था। जिसमें  आल इंडिया उलेमा मशाइख बोर्ड के सदस्य  मौलाना सैयद काजिम पाशा व आंध्र प्रदेश के सैयद आले मुस्तफा ने शिरकत की थीं। जिन्होंने दहशतगर्दी की जमकर मजम्मत की थीं।
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