गोरखपुर : कुर्बानी की खाल के जरिए मदरसों की आर्थिक स्थिति संवरती है


सैयद फरहान अहमद


गोरखपुर। ईद-उल-अजहा के मौके पर जानवर की कुर्बानी साहिबे निसाब पर वाजिब करार दी गई है तो दूसरी ओर उस जानवर की खाल (चमड़ा) मदरसों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने का जरिया भी है। कुर्बानी के जानवर की खाल, जकात व सदकात से मदरसों का सालभर का खर्च चलता है। यही उनकी तरक्की का जरिया भी है।

शरीयत में कुर्बानी के जानवर के खाल की राशि को गरीबों में तकसीम या दीनी मदरसों की इमदाद करने का हुक्म है। ताकि मदरसों में तालीम हासिल करने वाले बच्चों के खाने व मदरसे के दीगर खर्च पूरे हो सकें। अमूमन 90 फीसद लोग कुर्बानी की खाल को मदरसों में बतौर इमदाद देते हैं। इसी से ही मदरसे सालभर अपना खर्च चलाते हैं। सरकार से अनुदान न मिलने वाले मदरसा अध्यापकों के वेतन का दारोमदार भी कुर्बानी के खाल पर रहता है। कई संस्थाओं जैसे इस्लामी बैतुल माल वगैरह की आय का बड़ा जरिया कुर्बानी की खाल हैं। रहमतनगर स्थित इस्लामी बैतुल माल में वर्ष 2016-2017 में कुर्बानी के खाल से तकरीबन 1,28,800  रुपया की आय हुई थीं। इस राशि से समाज के गरीब तबके की मदद की जाती हैं। कुर्बानी के तीनों दिन मदरसे का पूरा अमला कुर्बानी की खाल जमा करने में जुट जाता हैं। मदरसों द्वारा बाकायदा बैनर, पम्पलेट, कैलेंडर छपवा कर बंटवाया जाता हैं। विभिन्न क्षेत्रों में खाल जमा करने वालों के नाम व नम्बर पम्पलेट व नम्बर में दर्ज रहते हैं। मदरसे कुर्बानी भी करवाते हैं । खाल क्लेक्शन सेंटर भी बनाया जाता हैं।

मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार के प्रिंसिपल हाफिज नजरे आलम कादरी कहते हैं कि खाल की बिक्री से मदरसों का खर्च चलता है। इनमें बाहर के बच्चे दीनी तालीम हासिल करते हैं। चमड़ा व्यवसाय अधिकतर जगह मदरसों के माध्यम से हो रहा है।

उन्होंने बताया कि पिछले साल गोरखपुर में करीब 15-20 हजार बड़ें जानवर (भैंस, पड़वा) व 30-35 हजार बकरे की कुर्बानी हुई। उनके स्वयं के मदरसे में 100 से अधिक बड़ें जानवरों की कुर्बानी हुई। इस बार भी करीब इतने ही जानवर की कुर्बानी का टारगेट बनाया गया हैं। मदरसे की तरफ से गाजी रौजा, बुलाकीपुर, सैयद आरिफपुर में भी कुर्बानी होगी।
उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष मदरसे में तीन दिन तक हुई कुर्बानी के बाद 600 बकरे की व 250-300 के करीब बड़े जानवर की खाल जमा हुई। वह आगे बतातें हैं कि अंजुमन इस्लामियां खुनीपुर में करीब 500-600 बकरे की व 150 बड़ें जानवर की, चिलमापुर मदरसे में करीब 400-500 बकरे की व 150 बड़े जानवर की, मदरसा घोषीपुरवा में 600 के करीब बकरे की व 200-250 बड़े जानवर की खाल जमा हुई। खाल का रेट पिछली बार कम था। इसलिए मदरसों को ज्यादा फायदा नहीं हो पाया लेकिन फिर भी आमदनी हुई।

उन्होंने बताया कि शहर में मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार, तुर्कमानपुर, गाजी रौजा, बक्शीपुर, रहमतनगर, खोखरटोला, बड़े काजीपुर, जाफरा बाजार कसाई टोला, रसूलपुर, चक्शा हुसैन, अस्करगंज, गोरखनाथ, निजामपुर, जाहिदाबाद, मदरसा घोषीपुरवा, चिलमापुर, शाहपुर, पिपरापुर सहित तीन दर्जन से अधिक स्थानों पर सामूहिक रुप से बड़ें जानवरों की कुर्बानी होती हैं। बड़ें जानवरों की खाल बकर के खाल  से ज्यादा फायदा देती हैं। उन्होंने बताया कि खाल यहां के लोकल व्यापारी खरीदते हैं। इसके बाद फैजाबाद, चौरीचौरा व कानपुर भेजतें हैं।
बडें जानवर का चमड़ा कलकत्ता भेजा जाता हैं। कुल मिलाकर कुर्बानी में पशु पालक, ट्रांसपोर्ट, गरीब, मदरसा, समाजसेवी संस्था, चमड़ा व्यवसायी सभी को फायदा होता हैं। कई लोगों का रोजगार कुर्बानी से जुड़ा हुआ हैं।
मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी कहते हैं कि कुर्बानी का चमड़ा मदरसों के लिए आमदनी का जारिया हैं। उन्होंने बताया कि जनपद में करीब 170 के करीब मदरसे हैं। जिनमें 146 पंजीकृत हैं। इनमें मात्र 10 को सरकारी अनुदान मिलता हैं। उलेमाओं की माने तो सभी मदरसों का दारोमदार मदरसों की कुर्बानी के खाल या ईद-उल-फित्र के सदका-ए-फित्र पर है। हालांकि कुछ लोग दीगर तरीके से भी लोग मदरसों की मदद करते हैं। वहीं जकात से मदरसों की मदद होती हैं।

मोहम्मद आजम कहते हैं कि महानगर में दर्जनभर से अधिक मदरसे ऐसे हैं जिनमें कुर्बानी करने वाले स्वयं ही खाल या उसकी राशि पहुंचा देते हैं। जनपद के मदरसों को करीब 10-15 लाख रुपये से अधिक की सालाना आमदनी कुर्बानी की खाल से होती है। कुर्बानी के जानवर के खाल  को मदरसों में पहुंचा दिया जाता है। जिससे उनका कुछ खर्च चल जाता है।

नवेद आलम कहते हैं कि कुर्बानी के जानवर की खाल  को मदरसों में देने से उनमें तालीम हासिल कर रहे बच्चों व मदरसे का दीगर खर्च चल जाता है।

मुफ्ती-ए-गोरखपुर मुफ्ती अख्तर हुसैन ने बताया कि रमजान में जकात और ईद-उल-अजहा में कुर्बानी की  खाल से मिलने वाली रकम से मदरसा छात्र-छात्राओं की किफालत (पालन पोषण) में मदद होती है।  ईद-उल-अजहा पर कुर्बानी के बाद सभी मुसलमान इन खालों को मदरसों को चंदे के बतौर अदा करते है। उन्होंने लोगों से अपील किया कि खाल ले जाने वालों के साथ अच्छा व्यवहार करें।
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