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हुजूर आपके कदमों की मेहरबानी है

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प्लीज हजरत अमीर खुसरो के इस कलाम को जरूर पढ़े कमेंट भी करे फकत आपके लिए आओ जो घर में, तो लूंगी बलय्या। दौड़ झपट कदमों पे गिरूंगी।। दामन पकड़ के ये अर्ज करूंगी। ऐ री सखी मोरे पिया घर आए। भाग्य लगे इस आंगन को।। हमारे घर को रौनक कहां मय्यसर थीं। ।। ऐ री सखी मोरे पिया..... वो आ रहे है वो आते है वो आ रहे होंगे। तमाम रात इसी में गुजार दी मैंने।। ऐ री सखी मोरे पिया..... एै मेरे आरामें जा तकलीफ फरमाना जरा। मौत के आने से पहले तुम चले आना जरा।। ऐ री सखी मोरे पिया..... अल्लाह कोई हद हैं मेरे इंतजार की। तस्वीर बन गया हूं दिले बेकरार की।। मरने के बाद भी यूं खुली रही आंखें। आदत पड़ी हुई थी तेरे इंतजार की।। ऐ री सखी मोरे पिया..... दिलों निगाह में तस्वीर यार रहती है। मेरे चमन में हमेशा बहार रहती है। ऐ री सखी मोरे पिया..... तसव्वुर मे दिलोजां में उजाला कर लिया मैंने। जब आंखे बंद की उनका नजारा कर लिया मैंने।। ऐ री सखी मोरे पिया..... बलि बलि जाऊं मैं अपने पियां के। चरन लगाओ निर्धन को। क्हूं एक बात जी की अगर जां की अमां पाऊं। मुझे कुर्बान होने दें तेरे कुर्बान हो जाऊं।। जिसका पिया संग बीते सावन। उस दुल्...

नजर से जब मदीना करीब होता है

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कसम खुदा की वह मंजर अजीब होता है। हयाते रौजए अकदस का उनके क्या कहना। जो देख आता है वह खुश नसीब होता है।।

पहुंचेगा मेरा लाशा करवट बदल-बदल के।।

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दीवारों दर के बोसे लूंगा मचल-मचल के। देखूंगा उनका रौजा आंखें मसल-मसल के।। तैबा से दूर रह कर गर दफन हो गया मैं। अर्शे बरीं से गुजरे महबूबे किब्रिया जब। आईं सलामी देने हूरें निकल-निकल के।।

मेरे उम्मती को तू बख्श दे यह मेरे नबी का कलाम था।।

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न तो रब्बे अरनी का शोर था न कलीम था न कलाम था। थीं तजल्लियों प तजल्लियां वह हबीबे महवे खराम था। जहां जिबरईल न जा सके न किसी नबी का गुजर हुआ। वहां पहुंचे सरवरे अम्बिया वह उबूदियत का मकाम था। कभी पुलसिरात पे जलवागर कभी उनकी मीजां पे थी नजर। हमी आसियों की तलाश में वह शफीये आली मकाम था। कदमें हबीब जहां रूका वहीं उदनु मिना की दी सदा। वह नजर नवाज तजल्लियों का अजीब तरजे कलाम था। मेरे मुस्तफा मेरे मुज्तबा यह बताओ क्या-क्या करूं अता। मेरे उम्मती को तू बख्श दे यह मेरे नबी का कलाम था।।

हजरत मौलाना सिब्तैन रजा खां का निधन

हुजूर अमीन-ए-शरियत हजरत मौलाना सिब्तैन रजा खां का सोमवार दोपहर उनके आवास पर इंतकाल हो गया। फाजिल-ए-बरेलवी इमाम अहमद रजा खां के परपोते हजरत मौलाना सिब्तैन रजा खां (93) काफी समय से बीमार थे। इन्होंने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में तमाम मदरसे-मस्जिद कायम की। बीमारी के चलते चलना-फिरना मुश्किल हो गया। इसलिए इनके पुत्र मौलाना सलमान रजा खां और मौलाना नुमान रजा खां मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में शिक्षा के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी निभा रहे थे। देर रात तक सुपुर्दे खाक को लेकर कोई फैसला नहीं हुआ था। बड़े पुत्र मौलाना सलमान रजा खां महाराष्ट्र में थे। इसके साथ ही मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक अकीदतमंद हैं। यहां के अकीदतमंद रायपुर में सुपुर्दे खाक करने की मांग कर रहे थे। नासिर कुरैशी ने बताया दुनियाभर में अकीदतमंद हैं, जो शाम से ही बड़ी संख्या में बरेली पहुंचने लगे हैं।