पहुंचेगा मेरा लाशा करवट बदल-बदल के।।
दीवारों दर के बोसे लूंगा मचल-मचल के।
देखूंगा उनका रौजा आंखें मसल-मसल के।।
तैबा से दूर रह कर गर दफन हो गया मैं।
अर्शे बरीं से गुजरे महबूबे किब्रिया जब।
आईं सलामी देने हूरें निकल-निकल के।।
अर्शे बरीं से गुजरे महबूबे किब्रिया जब।
आईं सलामी देने हूरें निकल-निकल के।।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें