गजल हिन्दुस्तानी औरत की तरह: प्रो. वसीम बरेलवी उर्दू के फरोग के लिए बेटियों को उर्दू जरूर पढ़ाए

सैयद फरहान अहमद गोरखपुर। मशहूर शायर प्रोफेसर वसीम बरलेवी ने गजल, उर्दू, शेर व शायरी पर खुल कर अपने सोच को बयां किया। मुशायरे व कवि सम्मेलन में शिरकत करने आए प्रो. वसीम ने गजल पर कहा कि इसकी लोकप्रियता दिन बा दिन बढ़ती चली जा रही है। गजल के शायरी कहने की ऐसी विधा है जिसे कोट किया जाता है। कोटबीलिटी जितनी गजल में पायी जाती है। उतनी किसी और जुबान व विधा के पास ये चीज नहीं पायी जाती है। गजल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसने अपने को हिन्दुस्तानी औरत की तरह हालात व माहौल के मुताबिक ढ़ालने की ऐसी अजीबो गरीब सलाहियत है जो हिन्दुस्तानी औरत के पास मय्यसर है। जिस तरह वह बाप के पास रहती है तो बेटी बनकर, पति के पास बेगम व उनके बच्चे की मां बनकर। ठीक उसी तरह गजल के मुख्तलिफ रूप है। जहां-जहां जाती है। माहौल के हिसाब से ढ़ाल लेती है। जो हिन्दुस्तान और उसके मिजाज का हिस्सा है। इसकी मकबूलियत का सबसे बड़ा राज यहीं है। उर्दू के सिमटने के सवाल पर बोले इसके लिए हम खुद जिम्मेदार है। उर्दू घरानों में उर्दू से दिलचस्पी की कमी हुई है। हम लोग इतनी मीठी जुबान की हिफाजत अपने घरों में नहीं कर पा रहे है। ये हमारे लिए सोचनीय है। सरकारों क्या करेंगी। आप खुद बदलने को तैयार नहीं है। दुनिया की कौन सी सरकार आपके घर में आपके बच्चों को उर्दू पढ़ायेगी। उर्दू जुबान हमारी तहजीबी, तारीखी, समाजी, मजहबी विरासत है। हम खुद अपने घर में यह एक जुबान नहीं पढ़ा सकते है तो हम अपनी विरासत को कैसे सहेजेंगे। इसके लिए सबसे जरूरी है कि जिन्हें उर्दू आती है वह अपने घर के आस-पास के चार लोगों को उर्दू सिखाये। इससे भी ज्यादा जरूरी है कि बेटियों को उर्दू सिखाया जायें। उनके दामान व आचल में कौम व मिल्लत का मुस्तकबिल रहता है। जब वह पढ़ेगी तो आने वाली नस्लें उर्दू से जरूरी वाकिफ होंगी। यहीं मैं हर मंच पर कहता हूं। गजल जगत में जगजीत सिंह की कमी पर बोले यहां टैलेंट की कमी नहीं उनकी जगह जरूर भरेगी। क्या मीर और गालिब के बाद शायर नहीं पैदा हुए। कोई ना कोई उस मुकाम तक जरूर पहुंचेगा। हिन्दुस्तान के हालात पर प्रो. वसीम का मुख्तलिफ नजरिया है। असहिष्णुता के मुद्दे पर कहा कि छोडि़ए पुरानी बातें। सकारात्मक सोंच को प्रमोट कीजिए। सकारात्मक इदारों, लोगों, शख्सियतों को आगे बढ़ाईए। यहीं इस मुल्क की सबसे बड़ी खिदमत होगी। साहित्कारों ने जो किए उससे आगे बढ़े। आगे बहुत कुछ करने की जरूरत है। अगर हम इन सब बहसों में पड़े रहेंगे तो आगे का सफर मुश्किल होगा। जितना इन चीजों को नजरअंदाज करेंगे। उतना कामयाबी की तरफ बढ़ेगे। नहीं तो उलझ कर रह जायेंगे। बड़ी ताकतें चाहती है कि आप इन चीजों में उलझ रहे ताकि आप उनके बराबर ना आ सके। आपके पास बेहतर जेहन, टैलेंट, मैन पाॅवर है। इन चीजों में जज्बाती होकर उलझने की जरूरत नहीं है। एक शेर में उन्होंने अपनी बात कहीं- ’’वो मेरे चेहरे तक अपनी नफरतें लाया तो था। मैंने उसके हाथ चूमें और बेबस कर दिया।।’’ दूसरा शेर पढ़ा ’’तू समझता है रिश्तों की दुहाई देंगे। हम तो वो है तेरे चेहरे से दिखाई देंगे। ’’ ’’हमको महसूस किया जायें खुश्बू की तरह। हम कोई शोर नहीं है जो सुनाई देेंगे। ’’ आखिर में कहा मुहब्बत ताकत देती है। इसे बरकरार रखिए। अगर नफरत आपके दिल में है आपसे ज्यादा बेबुनियाद आदमी कोई नहीं है।

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