रजा-ए-इलाही में गुजरा रमजान का पहला अशरा, मगफिरत का अशरा शुक्रवार से
गोरखपुर। पवित्र माह रमजान का पहला अशरा रहमत का रजा-ए-इलाही में गुजरा। बदों ने नफिल नमाज, तिलावत, तस्बीह, खैरात व जकात के जरिए रब का राजी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। तहज्जुद, इस्राक, चाश्त, अव्वाबीन, सलातुल तस्बीह की नमाज कसरत से पढ़ी। दस दिन तक खुदा का फज्ल व करम खुशूसी तौर पर मुसलमानों पर बराबर बरसा। नेकियों में इजाफा हुआ । रोजी (कमाई) में वृद्धि हुई । वहीं शुक्रवार से रमजान का दूसरा अशरा मगफिरत का शुरू हो गया। बंदा-ए-खुदा की पूरी कोशिश रहेगी कि वह खूब इबादत कर रब से मगफिरत तलब करें। साढ़े पन्द्रह घंटे के रोजे में लोगों के सब्र का खूब इम्तेहान हो रहा है। मौसम में लगातार बदलवा जारी है। इसके बावजूद रोजेदारों के हौसलें में किसी तरह की कोई कमी नजर नहीं आ रही है। यानि गर्मी पर अकीदत भारी है।
मक्का मस्जिद मेवातीपुर के नायब इमाम हाफिज मोहम्मद आलम शाह ने बताया कि तीस दिनों तक चलने वाले इस पवित्र रमजान को तीन हिस्सों में विभाजित किया गया है। रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम ने फरमाया रमजान का पहला अशरा रहमत, दूसरा मगफिरत, तीसरा जहन्नम से आजादी का है। मालूम हुआ कि ये महीना रहमत, मगफिरत और दोजख से आजादी का महीना है। लिहाजा इस रहमत, मगफिरत और दोजख से आजादी के इनाम की खुशी में हमें ईद मनाने का मौका मिलेगा।
उन्होंने बताया कि तीन आदमियों की दुआ रद्द नहीं होती। एक रोजेदार की दुआ इफ्तार के वक्त, दूसरे आदिल बादशाह की, तीसरे मजलूम की। इस मुबाकर महीने में हर रात और दिन में हर मुसलमान की एक दुआ जरूर कुबूल होती है। यही एक महीना है जिस के दिन और रात दोनों फजीलत वाले है।
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*गोरखपुर में डोमिनगढ़ सल्तनत थी जिसे राजा चंद्र सेन ने नेस्तोनाबूद किया*
*जब शेख सनाउल्लाह आये राजा को पकड़ने* *राजा चंद्र सेन ने रामगढ़ताल के किनारे दुर्ग (किला) बनवाया था* गोरखपुर-परिक्षेत्र का इतिहास के लेखक डा. दानपाल सिंह लिखते हैं कि मध्यगुम के आरम्भ में रोहिणी व राप्ती नदी के मध्यवर्ती द्वीप स्थल पर डोमिनगढ़ की स्थापना हुई। सन् 1210 - 1226 ई. में राजा चन्द्र सेन ने डोमिनगढ़ राज्य पर विजय प्राप्त की। उस समय तक गोरखपुर शहर नहीं बसा था। डोमिनगढ़ सतासी राज्य का समीपवर्ती एक प्रमुख नगर एवं गढ़ था। राजा चन्द्रसेन ने डोमिनगढ़ पर आक्रमण किया। डोमिनगढ़ का किला बहुत मजबूत और प्राकृतिक साधनों द्वारा पूर्ण सुरक्षित था। डोमकटार पहले से संशाकित थे, उन्होंने पर्याप्त सैनिक तैयारी भी कर ली थी। किले में महीनों खाने-पीने की सामग्री रख ली गयी थी। डोमकटारों ने कई दिनों तक जमकर युद्ध किया। पराजय नजदीक देखकर डोमकटार राजा सुरक्षात्मक मुद्रा में आ गया तथा अपने बचे हुए सैनिकों के साथ किले के अंदर फाटक बंद कर बैठ गया। राजा चन्द्रसेन ने किले को ध्वस्त करने की आज्ञा दे दी। देखते ही देखते सतासी राज के सैनिकों (राजा चन्द्रसेन) ने दुर्गम किले को ध्वस्त कर दिया तथा उसमें छिप...
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