दसवीं मुहर्रम कोई मामूली दिन नहीं, मुहर्रम की दस तारीख को जमीन पर पहली बारिश हुई, कयामत भी इसी दिन, और क्या-क्या हुआ जानने के लिए जरुर पढ़े

दसवीं मुहर्रम कोई मामूली दिन नहीं, मुहर्रम की दस तारीख को जमीन पर पहली बारिश हुई, कयामत भी इसी दिन, और क्या-क्या हुआ जानने के लिए जरुर पढ़े

फजाइले आशूरह यानी दसवीं मुहर्रम के अहम वाकयात
सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर। खुदावन्दे कुद्दूस अपने मुकद्दस कलाम पाक में इरशाद फरमाता है बेशक महीनों की गिनती अल्लाह के नजदीक बारह महीने है। अल्लाह की किताब में जबसे उसने आसमान व जमीन बनाए उनमें से चार हुरमत (ज्यादा इज्जत एवं इबादत करने) वाले है। उन ही हुरमत वाले महीनों में माहे मुहर्रम भी शामिल है । इस महीने की दसवीं तारीख जिसे आशूरह के नाम से याद किया जाता है दुनिया की तारीख में इतनी अजमत व बरकत वाला दिन है कि जिसमें खुदा की कुदरतों और नेमतों की बड़ी-बड़ी निशानियां जाहिर हुई । उसी दिन हजरत आदम की तौबा कुबूल हुई। हजरत इदरीस व हजरत ईसा आसमान पर उठाए गये। हजरत नूह की कश्ती तुफाने नुह में सलामती के साथ जुदी पहाड़ पर पहुंची उसी दिन हजरत इब्राहीम की विलादत हुई। हजरत यूनुस मछली के पेट से जिन्दा सलामत बाहर आए। अर्श व कुर्सी, लौह व कलम, आसमान व जमीन, चॉंद व सूरज, सितारे व जन्नत बनाए गए। हजरत युसूफ गहरे कुंए से निकाले गए। उसी दिन याकूब की अपने बेटे युसूफ से मुलाकात हुई। हजरत दाऊदकी लगजिश माफ हुई। उसी दिन हजरत मूसा को फिरऔन से नजात मिली और फिरऔन अपने लश्कर समेत दरिया में गर्क हो गया। उसी दिन आसमान से जमीन पर सब से पहले बारिश हुई। उसी दिन कयामत (प्रलय) आएगी और उसी दिन हजरत इमाम हुसैन और आपके रूफाकाए किराम ने मैदाने करबला में तीन दिन के भूखे प्यासे रह कर इस्लाम की बका व तहफ्फुज के लिए जामे शहादत नोश फरमा कर हक के परचम को सरबुलन्द फरमाया।

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आशूरह के दिन यह करें रब होगा राजी

नवीं और दसवीं मुहर्रम दोनों दिन का रोजा रखना चाहिए। इसकी बहुत फजीलत है। हजरत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास से रिवायत है कि रसूल मदीना तशरीफ लाए तो यहूदियों को आशूरह के दिन रोजा रखे हुए देखा। आप ने उनसे फरमाया यह कैसा दिन है कि जिसमें तुम लोग रोजा रखते हो? उन्होंने कहा यह वह अजमत वाला दिन है जिसमें अल्लाह ने मूसा और उनकी कौम को फिरऔन के जुल्म से नजात दी और उसको उसकी कौम के साथ डुबो दिया। हजरत मूसा ने उसी के शुक्रिया में रोजा रखा। इसलिए हम भी रोजा रखते हैं। रसूल ने फरमाया हजरत मूसा की मुवाफिकत करने में तो तुम्हारी बनिस्बत हम ज्यादा हकदार है। चुनांचे हुजूर ने खुद भी आशूरह का रोजा रखा और सारी उम्मत को उसी दिन रोजा रखने का हुक्म दिया। मुसनद इमाम अहमद अैर बज्जाज में हजरत इब्ने अब्बास से मर्वी है कि रसूल ने फरमाया यौमे आशूरह का रोजा रखो और उसमें यहूद की मुखालफत करो। यानि नवीं और दसवीं मुहर्रम दोनों दिन रोजा रखों।



खिचड़ा और सबीले इमाम हुसैनः- खिचड़ें के मुताल्लिक तो एक रिवायत मे आता है कि खास मुहर्रम के दिन खिचड़ा पकाना हजरत नूह अलैहिस्सलाम की सुन्नत है। चुनांचे मंकल है कि हजरत नूह की कश्ती तूफान से नजात पाकर जूदी पहाड़ पर ठहरी हो वह दिन आशुरह मुहर्रम था। हजरत नूह ने कश्ती के तमाम अनाजों को बाहर निकाला तो फोल (बड़ी मटर), गेहूं, जौ, मसूर,चना, चावल, प्याज यह सात किस्म के गल्ले मौजूद थे। आप ने उन सातों को एक हांडी में लाकर पकाया। चुनांचे अल्लामा शहाबुद्दीन कल्यूबी ने फरमाया कि मिस्र में जो खाना आशूरह के दिन तबीखुल हुबूब (खिचड़ा) के नाम से मशहर है उसकी असल व दलील यही हजरत नूह अलैहिस्सलाम का अमल है। सबीले वगैरह बांटने में सवाबे खैर है।


 मजालिसे मुहर्रम :- मुहर्रम-हराम (पाक) के दसों दिन खुसूसन आशूरह के दिन मजलिस मुनअकिद करना और सही रिवायतों के साथ हजरत सैयदना इमाम हुसैन व शोहदाए करबला के फजाइल और वाकियाते करबला बयान करना जायज व बाइसे सवाब है। हदीस शरीफ में है जिस मजलिस में सालिहीन का जिक्र हो, वहां रहमत का नुजूल होता है।

आशूरह के दिन हमें क्या करना चाहिए? आशूरह के दिन दस चीजों को उलमाए किराम ने मुस्तहब लिखा है। बाज उलमा ने उसे इरशादे रसूल और बाज नेउसे हजरत अली का कौल बताया है। बहरहाल ! यह सब काम अच्छे काम है, उनको करना चाहिए।रोजा रखना,सदका करना, नवाफिल पढ़ना, एक हजार मर्तबा सूरः इख्लास पढ़ना, उलमा और औलिया की जियारत करना, यतीमों के सर पर हाथ रखना, अपने घर वालों पर खाने में वुस्अत व फराखी करना,सुरमा लगाना, गुस्ल करना, नाखुन तराशना और मरीजों की बीमार पुर्सी करना , इमाम आली मकाम व दीगर के नाम की फातिहा करना।

गुस्लः- मुहर्रम की दस तारीख को गुस्ल जरूर करें। क्योंकि उस रोज जमजम का पानी तमाम पानियों में पहंचता है। मुसन्निफे तफसीर नईमी अलैहिर्रहमः फरमाते है आशूरह के दिन गुस्ल करने वाला साल भर बीमारियों से महफूज रहेगा।


सुरमा लगानाः-मुहर्रम की दस तारीख को जो शख्स सुरमा लगाए तो इंशाअल्लाह साल भर उसकी आंख नहीं दुख्ेगी।

होकर शहीद, जिन्दगीए जाविंदा मिली। जिन्दा था और आज भी जिन्दा हुसैन है।।

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