आईये करबला चले...तीन दिन के भूखे प्यासे...हुसैन शाह हैं बादशाह हैं हुसैन दीन हैं
आईये करबला चले...तीन दिन के भूखे प्यासे...हुसैन शाह हैं बादशाह हैं हुसैन दीन हैं
जिक्रे शोहदाए करबला
करबला की दोपहर के बाद रिक्कत अंगेज दास्तां सुनन से पहले एक लरजां खेज और दर्दनाक मंजर निगाहों के सामने लाइए। सुबह से दोपहर तक खानदाने नुबुवत के तमाम चश्मों चिराग व जुमला आवान व असांर एक करके शहीद हो गये। नजर के सामने लाशों के अंबार है,उनमें जिगर के टुकड़े भी है और आंख के तारे भी भाई और बहन के लाडले भी हैं, और बाप की निशानियां भी, इन बेगोरों कफन जनाजां पर कौन आसूं बहाये। तन्हा एक हुसैन रजियल्लाहु अन्हु और दोनों जगह की उम्मीदों का हुजूम। उन्होंने आगे कहा कि नाना जाना की शरीअत के मुहाफिज हजरत इमाम हुसैन सर से कफन बांध कर जंग में जाने के लिए निकल पड़ते है। अपने नाना जाना नबी-ए-पाक का अमामए मुबारक सर पर बांधा। सैयदुश्शुहदा हजरत अमीर हमजा रजियल्लाहु अन्हु की ढाल पुश्त पर रखी। शेरे खुदा हजरत सैयदुना अली रजियल्लाहु अन्हु की तलवार जुलफिकार गले में हमाइल की और हजरत जाफर तय्यार रजियल्लाहु अन्हु का नेजा हाथ में लिया। ओर अपने बिरादरे अकबर इमाम हसन रजियल्लाहु अन्हु का पटका कमर में बांधा। इस तरह शहीदों के आका, जन्नत के नौजवानों के सरदार सब कुछ राहे हक में कुरबान करने के बाद अब अपनी जाने अजीज का नजराना पेश करने के लिए तैयार हो गए।तीन दिन के भूखे प्यासे और अपनी निगाहों के सामने अपने बेटों भाईयों भतीजों और जां निसारों को राहे हक में कुर्बान कर देने वाले इमाम। पहाडों की तरह जमी हुई फौजों के मुकाबले में शेर की तरह डट कर खडे हो गए और मैदाने करबला में एक वलवला अंगेज रिज़्ज़ पढी जो आपके नसब और जाती फजाइल पर मुशतमिल थी और उसमें शामियों को रसूले करीम की नाखुशी व नाराजगी और जुल्म के अंजाम से डराया था। उसके बाद आपने एक फसीह व बलीग तकरीर फरमाई। और जबरदस्त मुकाबला हक और बातिल के बीच शुरू हुआ। तीर नेजा और शमशीर के बहत्तर (72) जख्म खाने के बाद आप सज्दे में गिरे और अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए वासिले बहक हो गए। जुमा के दिन मुहर्रम की दसवीं तारीखें सन् 61 हिजरी मुताबिक 681 इमाम आली मकाम इस दारे फानी से रेहलत फरमा गए।
जिक्रे शोहदाए करबला
करबला की दोपहर के बाद रिक्कत अंगेज दास्तां सुनन से पहले एक लरजां खेज और दर्दनाक मंजर निगाहों के सामने लाइए। सुबह से दोपहर तक खानदाने नुबुवत के तमाम चश्मों चिराग व जुमला आवान व असांर एक करके शहीद हो गये। नजर के सामने लाशों के अंबार है,उनमें जिगर के टुकड़े भी है और आंख के तारे भी भाई और बहन के लाडले भी हैं, और बाप की निशानियां भी, इन बेगोरों कफन जनाजां पर कौन आसूं बहाये। तन्हा एक हुसैन रजियल्लाहु अन्हु और दोनों जगह की उम्मीदों का हुजूम। उन्होंने आगे कहा कि नाना जाना की शरीअत के मुहाफिज हजरत इमाम हुसैन सर से कफन बांध कर जंग में जाने के लिए निकल पड़ते है। अपने नाना जाना नबी-ए-पाक का अमामए मुबारक सर पर बांधा। सैयदुश्शुहदा हजरत अमीर हमजा रजियल्लाहु अन्हु की ढाल पुश्त पर रखी। शेरे खुदा हजरत सैयदुना अली रजियल्लाहु अन्हु की तलवार जुलफिकार गले में हमाइल की और हजरत जाफर तय्यार रजियल्लाहु अन्हु का नेजा हाथ में लिया। ओर अपने बिरादरे अकबर इमाम हसन रजियल्लाहु अन्हु का पटका कमर में बांधा। इस तरह शहीदों के आका, जन्नत के नौजवानों के सरदार सब कुछ राहे हक में कुरबान करने के बाद अब अपनी जाने अजीज का नजराना पेश करने के लिए तैयार हो गए।तीन दिन के भूखे प्यासे और अपनी निगाहों के सामने अपने बेटों भाईयों भतीजों और जां निसारों को राहे हक में कुर्बान कर देने वाले इमाम। पहाडों की तरह जमी हुई फौजों के मुकाबले में शेर की तरह डट कर खडे हो गए और मैदाने करबला में एक वलवला अंगेज रिज़्ज़ पढी जो आपके नसब और जाती फजाइल पर मुशतमिल थी और उसमें शामियों को रसूले करीम की नाखुशी व नाराजगी और जुल्म के अंजाम से डराया था। उसके बाद आपने एक फसीह व बलीग तकरीर फरमाई। और जबरदस्त मुकाबला हक और बातिल के बीच शुरू हुआ। तीर नेजा और शमशीर के बहत्तर (72) जख्म खाने के बाद आप सज्दे में गिरे और अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए वासिले बहक हो गए। जुमा के दिन मुहर्रम की दसवीं तारीखें सन् 61 हिजरी मुताबिक 681 इमाम आली मकाम इस दारे फानी से रेहलत फरमा गए।
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