इमामे आज़म अबू हनीफा नोमान बिन साबित रदियल्लाहु अन्हु की हालाते ज़िन्दगी : Imam e Azam Abu Hanifa

 

विलादत बा सआदत : 


सय्यदुल औलिया, रईसुल फुक़्हा, वल मुज्तहदीन, वल मुहद्दिसीन, इमामुल अइम्मा, सिराजुल उम्माह, काशिफ़ुल गुम्मह, इमामे आज़म अबू हनीफा नोमान बिन साबित कूफ़ी रदियल्लाहु तआला अन्हु” आप अस्सी 80 हिजरी में कूफ़ा में पैदा हुए। “नुज़हतुल कारी शरह सहीहुल बुखारी में है कि हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु की पैदाइश किस सन में हुई इस बारे में दो क़ौल मशहूर हैं, 70 हिजरी या अस्सी 80 हिजरी ज़्यादातर लोग अस्सी 80 हिजरी को तरजीह देते हैं, लेकिन बहुत से मुहक़्क़िक़ीन ने 70 हिजरी को तरजीह दी है, मुफ़्ती शरीफुल हक़ अमजदी रहमतुल्लाह अलैह के नज़दीक भी यही सही है।


आप का नाम : 


आपका नामे नामी इस्मे गिरामी “नोमान” है, और वालिद का नाम “साबित” और दादा का नाम ज़ूता है, और आप की कुन्नियत “अबू हनीफा” है, आप के पोते हज़रत इस्माईल बिन हम्माद रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि मैं इस्माईल बिन हम्माद बिन नोमान बिन साबित बिन नोमान मर्ज़बान हूँ, हमारे दादा “इमाम अबू हनीफा” अस्सी 80 हिजरी में पैदा हुए, उनके दादा अपने नोमोलूद बेटे साबित को हज़रत सैयदना अली रदियल्लाहु तआला अन्हु की खिदमत में हाज़िर हुए तो मौला अली रदियल्लाहु तआला अन्हु ने उनके लिए और उनकी औलाद के लिए बरकत की दुआ फ़रमाई, और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से उम्मीद रखते हैं कि उसने हज़रत मौला अली रदियल्लाहु तआला अन्हु की दुआ हमारे हक़ में ज़रूर क़बूल फ़रमाई है (तबीज़ुस सहीफ़ा)।


हज़रत नोमान बिन साबित रदियल्लाहु तआला अन्हु को इमामे आज़म “अबू हनीफा” क्यों कहते हैं? :


हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु के तमाम तज़किरा निगार इस बात पर मुत्तफ़िक़ हैं कि आपकी कुन्नियत “अबू हनीफा” थी, ज़्यादातर तज़किरा निगार लिखते हैं कि इमामे आज़म रहीमाहुल्लाह के सिर्फ एक बेटे थे, इनके अलावा आप के कोई औलाद न थी, (और बाज़ो ने कहा के आपकी साहबज़ादी का नाम हनीफा था ये सही नहीं है इसलिए कि आपके सिर्फ एक बेटे के सिवा कोई औलाद नहीं थी) वो आपकी कुन्नियत अबू हनीफा की मन्दर्जा ज़ेल तौजीहात (वजाह) बयान करते हैं:

“हनीफा” हनीफ का तानीस है जिसके माने हैं, इबादत करने वाला और दीन की तरफ रागिब होने वाला,

आप का हल्काए दर्स बहुत बड़ा था और आपके शागिर्द क़लम दवात रखा करते थे, चूंकि अहले इराक दवात को हनीफा कहते हैं, इसलिए आप को “अबू हनीफा” कहा गया यानी दवात वाले। आपकी कुन्नियत वज़ई माने के एतिबार से है यानी “अबुल मिल्लता हनीफा” क़ुरआन मजीद में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मुसलमानों से फ़रमाया है, ” فَاتَّبِعُوْا مِلَّةَ اِبْرَہِیْمَ حَنِیْفَا “ (सूरह आले इमरान आयत नंबर 55)। इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु ने इसी निस्बत से अपनी कुन्नियत “अबू हनीफा”इख़्तियार की, और इसका मफ़हूम है “बातिल अदयान को छोड़ कर दीने हक़ इख़्तियार करने वाला” (अल खैरातुल हिसान सफ़ा नंबर 71)


इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु का ज़िक्र इसी कुन्नियत के साथ “तौरेत” में आया है,

शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रहिमाहुल्लाह फरमाते हैं, बाज़ उलमा ने बयान किया है के हज़रत कअब बिन अहबार रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है के अल्लाह पाक ने जो “तौरेत” हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर नाज़िल फ़रमाई उसमें हमें ये बात मिलती है के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने फ़रमाया “रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्मत में एक नूर होगा जिसकी कुन्नियत अबू हनीफा होगी” इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु के लक़ब सिराजुल उम्माह से इसकी ताईद होती है।


आपके फ़ज़ाइल व रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बशारत :


अल्लामा मौफिक़ बिन अहमद मक्की रहिमाहुल्लाह रिवायत करते हैं कि हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि “मेरी उम्मत में एक मर्द पैदा होगा जिस का नाम अबू हनीफा होगा, वो क़यामत में मेरी उम्मत का चिराग है”। आपने ये रिवायत भी तहरीर की है कि हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुए और अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हज़रत लुक़मान के पास हिकमत का इतना बड़ा ज़खीरा था कि अगर वो अपने खिरमने हिकमत से एक दाना बयान फरमाते तो पूरी दुनिया की हिकमते आपके सामने दस्त बस्ता खड़ी होतीं, ये सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को ख्याल आया के काश मेरी उम्मत में कोई ऐसा शख़्स होता जो हज़रते लुक़मान की हिकमत का सरमाया होता,‌ हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम दोबारा हाज़िर हुए और अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम आपकी उम्मत में एक ऐसा मर्द होगा जो हिकमत के ख़ज़ाने से हज़ारों हिकमतें बयान करेगा और आपकी उम्मत को आपके एहकाम से आगाह (ख़बरदार) करेगा। रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ये सुन कर हज़रते अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु को अपने पास बुलाया और उनके मुंह में अपना लुआबे दहन इनायत फ़रमाया और वसीयत की के अबू हनीफा के मुंह में ये अमानत डालना, रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ये अमानत यानी लुआबे दहन इमामे आज़म को हज़रते अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु के ज़रिए मिला। 


हज़रते अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मेरी उम्मत में ऐसा शख़्स पैदा होगा जिसे नोमान कहा जाएगा और उसकी कुन्नियत अबू हनीफा होगी, वो अल्लाह तआला के दीन और मेरी सुन्नत को ज़िंदा करेगा।


इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के वो मक़बूल बन्दे हैं जिन की पैदाइश से पहले रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने सत्तर 70, साल पहले बशारत सुनाई।


इमाम जलालुद्दीन सीयूती शाफ़ई रहिमाहुल्लाह फरमाते हैं, रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने एक हदीस में इमाम मालिक रदियल्लाहु तआला अन्हु के लिए ये बशारत दी एक ज़माना आएगा कि लोग ऊंटों पर सवार हो कर इल्म की तलाश में निकलेगें मगर मदीना शरीफ के एक आलिम से बढ़कर किसी को न पाएंगें, और एक हदीस में इमाम शाफ़ई रहिमाहुल्लाह के लिए ये बशारत दी के “क़ुरैश को बुरा न कहो क्यूंकि उनमे का एक आलिम ज़मीन को इल्म से भर देगा” और में कहता हूँ रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु के लिए इस हदीस में बशारत दी है‌ कि हाफ़िज़ अबू नोएम ने “हिलयतुल औलिया” में हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की है कि रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अगर इल्म सुरय्या के पास हो तो फ़ारस के जवान मर्दों में से एक मर्द ज़रूर उस तक पहुंच जाएगा,

और हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु की वो हदीस है जो (सही बुखारी व मुस्लिम) में इस तरह है “अगर ईमान सुरय्या के पास हो तो कुछ लोग उस को ज़रूर हासिल कर लेगें” और सही मुस्लिम की एक रिवायत के अल्फ़ाज़ इस तरह हैं: अगर ईमान सुरय्या के पास हो तो मरदाने फारस में से एक शख़्स उस तक पहुंच जाएगा और उसको हासिल कर लेगा।


नीज़ मुअजम कबीर में हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अगर दीन आसमान के पास हो तो यक़ीनन फारस के कुछ लोग उसे ज़रूर हासिल कर लेंगे।


सही बुख़ारी ओ मुस्लिम में

हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है के रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने सूरह जुमा की आयत “व आखिरीना मिन्हुम लम्मा यलहकू” तिलावत फ़रमाई तो किसी ने दरयाफ्त किया “आक़ा” ये दूसरे लोग कौन हैं जो अभी तक हमसे नहीं मिले? आप जवाब में खामोश रहे, जब बार-बार सवाल किया गया तो आपने हज़रत सलमान फ़ारसी रदियल्लाहु अन्हु के कंधे पर अपना मुबारक हाथ रख कर फ़रमाया “अगर ईमान सुरय्या के पास भी होगा तो उस की क़ौम के लोग उस को ज़रूर हासिल कर लेंगे”।


अल्लामा जलालुद्दीन सीयूती और दूसरे अइम्मए मुहद्दिसीन रहीमाहुमुल्लाहू तआला ने बुखारी व मुस्लिम की इन हदीस से इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ही को मुराद लिया है क्यूंकि फारस के इलाके से कोई एक शख़्स भी इमामे आज़म जैसे इल्मों फ़ज़ल का हामिल न हुआ और न ही किसी को आप जैसा बुलंद मक़ाम नसीब हुआ। यह बात भी तवज्जुह के लाइक है कि इमाम जलालुद्दीन सीयूती, इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु के मुक़ल्लिद नहीं बल्के इमाम शाफ़ई के मुक़ल्लिद हैं, नीज़ हाफ़िज़ इब्ने हजर हैतमी मक्की भी हनफ़ी नहीं बल्के इमाम शाफ़ई के मुक़ल्लिद हैं, और इन दोनों बुज़ुर्गों ने इमामे आज़म की फ़ज़ीलत पर तरतीब के साथ किताबें लिखीं “तबीज़ुस सहीफ़ा” और "अल खैरातुल हिसान” और बुखारी व मुस्लिम की मज़कूरा हदीस का मिस्दाक़ “इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ही को क़रार दिया”।


अल्लामा इब्ने हजर मक्की शाफ़ई रहिमाहुल्लाह फरमाते हैं कि इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु की शान में रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इस इरशाद से भी इस्तदलाल हो सकता है कि “दुनिया की ज़ीनत सन 150, हिजरी में उठाली जाएगी”। इस हदीस की शरह में शमशुल अइम्मा इमाम करदारी रहिमाहुल्लाह ने फ़रमाया के ये हदीस इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु पर सादिक़ आती है क्यूंकि आपका ही इंतकाल इस सन में हुआ।



इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु “ताबई” हैं :


अल्लामा इब्ने हजर मक्की शाफ़ई रहिमाहुल्लाह फरमाते हैं अल्लामा ज़हबी से मन्क़ूल सही रिवायत से साबित है कि इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु ने बचपन में हज़रत अनस बिन मालिक रदियल्लाहु तआला अन्हु का दीदार किया था। एक और रिवायत में है कि इमामे आज़म ने फ़रमाया “मैंने कई बार हज़रत अनस बिन मालिक रदियल्लाहु तआला अन्हु की ज़ियारत की, वो सुर्ख ख़िज़ाब लगाते थे, अक्सर मुहद्दिसीन का इत्तिफ़ाक़ है कि ताबई वो है जिसने किसी सहाबी का दीदार किया हो।


हज़रत अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु का विसाल 95 हिजरी में और एक क़ौल के मुताबिक़ 93 हिजरी में हुआ।

इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु के ताबई होने के मुतअल्लिक़ जब शैखुल इस्लाम हाफ़िज़ इब्ने हजर शाफ़ई रहिमाहुल्लाह से पूछा गया तो उन्होंने ये जवाब दिया, इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु ने सहाबा-ए-किराम की एक जमाअत को पाया है। आपकी पैदाइश एक रिवायत के मुताबिक 80हिजरी में कूफ़ा में हुई। वहां उस वक़्त सहाबा-ए-किराम में से सैयदना अब्दुल्लाह बिन अबी ओफा मौजूद थे। उनका विसाल 88 हिजरी में या उसके बाद हुआ। उसी ज़माने में बसरा में सैयदना अनस बिन मालिक थे, उनका का इन्तिकाल 90 हिजरी में या उसके बाद हुआ। इब्ने सअद ने मज़बूत सनद के साथ बयान किया है कि इमामे आज़म अबू हनीफा ने हज़रते अनस को देखा है इन दोनों सहाबियों के अलावा भी बकसरत सहाबा-ए-किराम मुख्तलिफ शहरों में उनके बाद ज़िंदा मौजूद थे रदियल्लाहु अन्हुम।


बिला शुबा बाज़ उलमा ने इमामे आज़म की सहाबा-ए-किराम से मारवियात के बारे में रिसाले तसनीफ़ किए हैं, लेकिन उनकी इसनाद ज़ोअफ़ से खली नहीं मेरे नज़दीक मुस्तनद बात ये है कि इमामे आज़म ने बाज़ सहाबा-ए-किराम को देखा और उनसे मुलाकात की जैसा के मज़कूर हुआ यह बात इब्ने सअद ने भी कही है, इससे साबित हुआ के “इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु ताबईन के तबके में से हैं” और ये बात बिलादे इस्लामिया में उनके हम अस्र किसी इमाम के लिए साबित नहीं ख़्वाह मुल्के शाम में “इमाम ओज़ई” हों या बसरा में “हम्मा दीन” हों या कूफ़ा में “इमाम सुफियान सौरी” हों या मदीना में “इमाम मालिक” हों या मिस्र में “लैस बिन सअद” हों।


अल्लामा जलालुद्दीन सीयूती रहिमाहुल्लाह फरमाते के इमाम अबू मोआशर तबरी शाफ़ई रहिमाहुल्लाह ने एक रिसाले में सहाबा-ए-किराम से इमामे आज़म की मरवी अहादीस बयान की है और फ़रमाया है कि इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु ने रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के उन सात सहाबा-ए-किराम से मुलाक़ात की है, (1) सैयदना अनस बिन मालिक (2) सैयदना अब्दुल्लाह बिन हारिस बिन जुज़ (3) सैयदना जाबिर बिन अब्दुल्लाह (4) सैयदना मआकल बिन यसार (5) सैयदना वासला बिनुल असकआ (6) सैयदना अब्दुल्लाह बिन उनैस (7) सैयदा आयशा बिन्ते अजरिद रदियल्लाहु तआला अन्हुम अजमईन।


 इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु ने सैयदना अनस से तीन हदीसें, सैयदना वासला से दो हदीसें जबकि सैयदना जाबिर, सैयदना अब्दुल्लाह बिन उनैस, सैयदा आएशा बिन्ते अजरिद और सैयदना अब्दुल्लाह बिन जुज़ से एक-एक हदीस रिवायत फ़रमाई है। आपने अब्दुल्लाह बिन अबी ओफा से भी एक हदीस रिवायत फ़रमाई है और ये तमाम अहादीस इन तरीकों के सिवा भी वारिद हुई हैं।

सात सहाबा-ए-किराम से अहादीस रिवायत करने का ज़िक्र खुद इमामे आज़म ने भी किया है आप फरमाते हैं,

में रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सात सहाबा-ए-किराम से मिला हूं और मैंने उनसे अहादीस सुनी हैं।


इन दलाइल से साबित हुआ कि इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु को सात सहाबा-ए-किराम से बराहे रास्त अहादीस सुनने का शरफ़ हासिल है।

“दुर्रे मुख्तार” में है कि इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु ने बीस (20) सहाबा-ए-किराम का दीदार किया है। “खुलासए अकमाल फी अस्समाउर रिजाल” में है कि “आप ने छब्बीस 26 सहाबा-ए-किराम को देखा है”।


यह बात भी क़ाबिले गौर है कि इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु ने अपनी उम्र में “पचपन 55, हज” किए हैं। हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के मशहूर सहाबी हज़रत अबुल तुफैल आमिर बिन वासला रदियल्लाहु तआला अन्हु जिनका विसाल 102 हिजरी में या दूसरी रिवायत के मुताबिक 110 हिजरी में मक्का शरीफ में हुआ जबकि इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु ने पहला हज इमाम अबू युसूफ रहिमाहुल्लाह की मशहूर रिवायत के मुताबिक सोला 16 साल की उम्र में 93 हिजरी में और अल्लामा कोसरि मिस्री रहिमाहुल्लाह की तहक़ीक़ के मुताबिक 87 हिजरी में किया। अगर हम आप का सने विलादत 77 हिजरी मान लें तो इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु ने हज़रत आमिर बिन वासला की हयात (ज़िन्दगी) में दस हज किए और दूसरी रिवायत के मुताबिक अगर उन का सने विसाल 110 हिजरी माने तो अठ्ठारह (18) हज किए।


अगर हम उन सहाबी की मिसाल लें जिनकी ज़ियारत व मुलाक़ात से ताबई होने का शरफ़ मिल रहा हो और इस सआदत का हुसूल मुश्किल भी न हो तो फिर ये कैसे मुमकिन है कि इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु दस या अठ्ठारह (18) बार कूफ़ा से हज के लिए मक्का तशरीफ़ लाए हों और एक बार भी हज़रत आमिर बिन वासला रदियल्लाहु तआला अन्हु की ज़ियारत की सआदत हासिल न की हो जबकि उस ज़माने में सहाबा की ज़ियारत के लिए लोग दूसरे शहरों का सफ़र किया करते थे।

इसके अलावा यह बात भी साबित हो चुकी है कि 77 हिजरी की पैदाइश के लिहाज़ से आपकी उम्र के पन्द्रवीं साल तक हज़रत अमर बिन हरीस रदियल्लाहु तआला अन्हु आपका विसाला 85 हिजरी में हुआ और आप की उम्र के दसवीं साल तक जबकि 70 हिजरी की पैदाइश के लिहाज़ से सत्तरवीं साल तक हज़रते अब्दुल्लाह बिन अबी ओफा रदियल्लाहु तआला अन्हु और आपका विसाल 87 हिजरी में हुआ। आप कूफ़ा शहर में ही मौजूद थे।


चुनांचे उस ज़माने के दस्तूर के मुताबिक आपके घर वाले आपको उन सहाबा-ए-किराम की बरकत की दुआ हासिल करने के लिए उनकी बारगाह में ले गए होंगें। आपके शरफ़े ताबईयत होने के लिए इतना ही काफी है लेकिन ये हकीकत भी साबित शुदा है कि आपने न सिर्फ मुतअद्दिद सहाबा-ए-किराम की ज़ियारत की बल्कि उनसे अहादीस भी रिवायत कीं, जैसा की इमाम जलालुद्दीन शाफ़ई, इमाम हजर मक्की शाफ़ई, और अल्लामा अलाउद्दीन हस्कफी रहिमाहुल्लाह तआला ने तहरीर फ़रमाया है।


खुलासा यह है कि सैयदना इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु “ताबई” हैं‌ और इन अहादीसे रसूल के मिस्दाक़ हैं,

मेरी उम्मत में सबसे बेहतर मेरे ज़माने वाले हैं फिर वो जो उनके बाद हैं (बुखारी व मुस्लिम)।


उस मुस्लमान को आग नहीं छूएगी जिसने मुझे देखा या मेरे देखने वाले को देखा (मिश्कात, तिरमिज़ी)।


इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु का इल्मे दीन हासिल करना :


इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु शुरू की तालीम हासिल करने के बाद तिजारत की तरफ मुतावज्जेह हो गए और एक कामयाब ताजिर (बिजनेसमैन) की हैसियत से मशहूर हुए, लेकिन फिर आपके दिल में और ज़्यादा इल्मे दीन हासिल करने का शोक पैदा हुआ।


आप इसे खुद बयान करते हुए फरमाते हैं कि मैं एक दिन बाज़ार जा रहा था कि कूफ़ा के मशहूर हज़रत इमाम शोआबी रहिमाहुल्लाह से मुलाकात हो गई, उन्होंने मुझसे कहा बेटा क्या काम करते हो? मैंने कहा बाज़ार में कारोबार करता हूं, आपने फ़रमाया तुम उलमा की मजलिस में बैठा करो मुझे तुम्हारी पेशानी पर इल्मों फ़ज़ल और दानिश मंदी के आसार नज़र आ रहे हैं। इनके इस इरशाद ने मुझे बहुत मुतअस्सिर किया और मैंने इल्मे दीन के हुसूल का रास्ता इख़्तियार किया। (मनाक़िबुल इमामे आज़म)


इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु ने इल्मे कलाम का गहरा मुतालआ करके इस में कमाल हासिल किया और और एक अरसा तक इस इल्म के ज़रिए बहसों मुनाज़िरा में मशगूल रहे फिर उन्हें इल्हाम हुआ कि सहाबा और ताबाईने किराम ऐसा न करते थे हालांकि वो इल्मे कलाम के ज़्यादा जानने वाले थे, वो शरई और फ़िक़्ही मसाइल के हुसूल और उनकी तालीम में मशगूल रहते थे चुनांचे आप की तवज्जोह मुनाज़रों से हटने लगी यहाँ कलाम से मुराद आज का मौजूदा इल्मे कलाम नहीं बल्कि उस अहिद में मज़हबी बुनियादी इख़्तिलाफ़त पर क़ुरआन व हदीस से सही मौक़िफ़ की हिमायत और गलत नज़रिए की तरदीद है।


आपके इस ख्याल को मज़ीद तक़वियत यूं हुई कि आप हज़रत इमाम हम्माद रहिमाहुल्लाह के हल्का-ए-दर्स के क़रीब रहते थे कि आपके पास एक औरत आयी और उसने पूछा कि एक शख़्स अपनी बीवी को सुन्नत के मुताबिक तलाक देना चाहता है वो क्या तरीक़ा अख़्तियार करे? आपने उसे हज़रत इमाम हम्माद रहिमाहुल्लाह की खिदमत में भेज दिया और फ़रमाया कि वो जो भी जवाब दें मुझे बताकर जाना।

हज़रत इमाम हम्माद रहिमाहुल्लाह ने फ़रमाया वो शख़्स औरत को उस तुहर में तलाक दे जिसमें जिमा न किया हो और फिर उससे अलेहदा रहे यहाँ तक के तीन हैज़ गुज़र जाएं तीसरे हैज़ पर वो इख़्तिताम पर वो औरत ग़ुस्ल करेगी और निकाह के लिए आज़ाद होगी, ये जवाब सुन कर इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु उसी वक़्त उठे और हज़रत इमाम हम्माद रहिमाहुल्लाह के हल्का-ए-दर्स दरस में शरीक हो गए।


इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु खुद फरमाते हैं कि गुफ्तुगू अक्सर याद कर लिया करता और मुझे उनके अस्बाक मुकम्मल तौर पर हिफ़्ज़ हो जाते आप के शागिर्द जब कोई मस्ला बयान करते तो मैं उनकी गलतियों की निशानदेही करता। चुनाचे उस्तादे मुहतरम हज़रत इमाम हम्माद रहिमाहुल्लाह ने मेरी ज़हानत और लगन को देख कर फ़रमाया “अबू हनीफा पहली सफ में मेरे सामने बैठा करो इस दरियाए इल्म से सैराब होने का यह सिलसिला दस साल तक जारी रहा।


इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु ने इल्मे हदीस की तहसील का आगाज़ भी कूफ़ा ही से किया और उस वक़्त कूफ़ा में मौजूद तिरानवे (93) मशाइख से अहादीस लीं‌ और इन मुहद्दिसीन में एक बड़ी तादाद ताबईन की थी। कूफ़ा के अलावा इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु ने बसरा के भी तमाम मुहद्दिसीन से अहादीस हासिल कीं। आपने इन दोनों मरकज़ से “हज़ारों हज़ार” अहादीस हासिल कीं।


शरह बुखारी फरमाते हैं कि मगर इमामे आज़म होने के लिए अभी बहुत कुछ ज़रुरत थी, यह कमी हरमैन शरीफ़ैन से पूरी हुई।


पहला सफ़र इमामे आज़म ने 96 हिजरी में किया था, “और आप ने उमर में 55 हज किए” 150 हिजरी में विसाल हुआ, तो इससे साबित हुआ के 96 हिजरी के बाद किसी साल हज नागा न हुआ। इसी अहिद में “हज़रत अता बिन रबाह रदियल्लाहु तआला अन्हु” मक्का मुअज़्ज़मा में मुहद्दिसीन के सरताज थे, “और ये ताबई हैं दो सौ (200) सहाबा-ए-किराम की सुहबत का इनको शरफ़ हासिल है।

ख़ुसूसन हज़रत इब्ने अब्बास, इब्ने उमर, उसामा, जाबिर, ज़ैद बिन अरक़म, अब्दुल्लाह बिन साइब, अक़ील बिन राफे, अबू दरदा, हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हुम अजमईन से भी अहादीस सुनी हैं, ये मुहद्दिस होने के साथ साथ बहुत अज़ीम मुजतहिद भी थे। हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर फरमाते थे कि “हज़रत अता बिन रबाह रदियल्लाहु तआला अन्हु” के होते हुए लोग मेरे पास क्यों आते हैं। हज के दिनों में हुकूमत की तरफ से एलाने आम हो जाता था के अता के अलावा और कोई फतवा न दे।


बड़े-बड़े मुहद्दिसीन इमाम ओज़ई, इमाम ज़हरी, इमाम अमर बिन दीनार उन्हीं के शागिर्दी खास थे, इमामे आज़म अबू हनीफा जब इनकी शागिर्दी के लिए हाज़िर हुए तो हज़रत अता ने उनका अक़ीदा पूछा इमामे आज़म ने कहा में अस्लाफ को बुरा नहीं कहता, गुनहगार को काफिर नहीं कहता ईमान बिल क़द्र रखता हूँ,

इसके बाद हज़रत अता ने आपको हल्का-ए-दर्स में दाखिल किया, दिन बदिन इमामे आज़म अबू हनीफा की ज़कावत (तेज़्फ़ेहमी) फतानत रौशन होती गई जिससे “हज़रत अता” इनको क़रीब से क़रीब करते रहे यहाँ तक कि अता दूसरों को हटा कर इमामे आज़म अबू हनीफा को अपने पहलू में बिठाते थे।


हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा जब मक्का शरीफ हाज़िर होते तो ज़्यादातर हज़रत अता की खिदमत में हाज़िर रहते उनका विसाल 115 हिजरी में हुआ, तो साबित हुआ के तक़रीबन बाईस 22, साल उनसे इस्तिफ़ादा (फाइदा) फ़ैज़ा बरकत हासिल करते रहे।


मक्का शरीफ में हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा ने एक और वक़्त के इमाम “हज़रत इकरमा” से भी उलूम को हासिल किया। इकरमा को कौन नहीं जानता ये हज़रत अली, अबू हुरैरा, इब्ने उमर, उक़्बा बिन अमर, सफ़वान, जाबिर, अबू क़तादा, इब्ने अब्बास रिदवानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन के शागिर्द हैं। तकरीबन 70 मशहूर ताबईन तफ़्सीरो हदीस में इन के शागिर्द हैं, (नुज़हतुल कारी जिल्द अव्वल पेज नंबर 121)।


“इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु के उस्ताद और आपका चार हज़ार मशाइख से अहादीस लेना”

इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु का इल्मे हदीस में मक़ामो मर्तबा इसी से मुतअय्यन हो जाता है कि “आपने चार हज़ार मशाइख से अहादीस ली हैं” और उनमें से तीन सौ ताबई थे जिन में बड़े-बड़े मुहद्दिसीन व अइम्मए किराम सिरे फिहरिस्त हैं।


इमामे आज़म के उस्तादों में हज़रत सय्यदना इमाम मुहम्मद बाक़र रदियल्लाहु तआला अन्हु भी हैं। इमामे आज़म का आपसे मुलाकात का दिलचस्प वाक़िया बाज़बान शरह बुखारी मुलाहिज़ा करें : एक बार मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्ल्लाहु शरफऊं व ताज़ीमा की हाज़री में जब हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़र रदियल्लाहु तआला अन्हु की खिदमत में हाज़िर हुए तो उनके एक साथी ने तआरुफ़ कराया कि ये “अबू हनीफा” हैं, हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़र रदियल्लाहु तआला अन्हु ने “इमामे आज़म” से कहा वो तुम ही हो जो क़यास से मेरे जद्दे करीम की अहादीस रद्द करते हो, इमामे आज़म ने अर्ज़ किया मआज़ अल्लाह हदीस को कौन रद्द कर सकता है हुज़ूर कुछ इजाज़त दें तो अर्ज़ करूँ इजाज़त के बाद इमामे आज़म ने अर्ज़ किया हुज़ूर मर्द ज़ईफ़ है या औरत? इरशाद फ़रमाया औरत, अर्ज़ किया, वरासत में मर्द का हिस्सा ज़्यादा है या औरत का? फ़रमाया मर्द का, अर्ज़ किया, नमाज़ अफ़ज़ल है कि रोज़ा, इरशाद फ़रमाया नमाज़, अर्ज़ किया क़यास ये चाहता है कि जब नमाज़ रोज़े से अफ़ज़ल है तो हाइज़ा पर नमाज़ की क़ज़ा बदरजए ओला होनी चाहिए अगर अहादीस के खिलाफ क़यास से हुक्म करता तो ये हुक्म देता के हाइज़ा नमाज़ की क़ज़ा ज़रूर करे इस बात पर इमाम मुहम्मद बाक़र रदियल्लाहु तआला अन्हु इतना खुश हुए कि उठ कर उनकी पेशानी चूमली। हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा ने एक मुद्दत तक इमाम मुहम्मद बाक़र रदियल्लाहु तआला अन्हु की खिदमत में हाज़िर रह कर इल्मे फ़िक़हा व इल्मे हदीस की तालीम हासिल की, इसी तरह इमाम मुहम्मद बाक़र रदियल्लाहु अन्हु के साहबज़ादे “इमाम जफ़र सादिक़” से भी फैज़ पाया। “हज़रत सैयदना इमाम जफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु भी आपके उस्ताद हैं”। बल्कि उनसे आपने शरीअत व तरीक़त दोनों उलूम हासिल किए। आप बेहद मुतक़्क़ी और मुस्तजाबुद दावात थे। आपकी यह आदत थी कि आप कभी बिला वुज़ू हदीस रिवायत नहीं करते,

उलमा ने फ़रमाया है कि जिस तरह दाऊद ताई रहिमाहुल्लाह तरीक़त में हज़रत हबीब अजमी रहिमाहुल्लाह के मजाज़ और खलीफा हैं इसी तरह आप इमामे आज़म अबू हनीफा के भी मजाज़ और खलीफा हैं, और इसी तरह इमामे आज़म अबू हनीफा भी तरीक़त में इमाम जफ़र सादिक़ रदियल्लाहु तआला अन्हु के मजाज़ और खलीफा हैं, आप ने सुलूक व तरीक़त के मराहिल इमाम जफ़र सादिक़ रदियल्लाहु तआला अन्हु से दो साल में तय किए हैं फिर फ़रमाया है कि अगर ये दो साल न होते तो नोमान हलाक हो जाता, शरीअत व तरीक़त कामिल होने के बाद इमामे आज़म अबू हनीफा ने गोशा नशिनी होने का इरादा फ़रमाया लेकिन एक दिन फिर आपका नसीब जागा और सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ज़ियारत नसीब हुई रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने आपको गोशा नशिनी को छोड़ने का हुक्म दिया।


चुनांचे हज़रत दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहिमाहुल्लाह फरमाते हैं कि शुरू में इमामे आज़म ने गोशा नशीन होने का इरादा फ़रमाया था कि दूसरी बार फिर इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ज़ियारत से मुशर्रफ हुए नूरे मुजस्सम रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ए अबू हनीफा तेरी ज़िन्दगी अहयाए सुन्नत यानि सन्नातों को ज़िंदा करने के लिए है तो आपने गोशा नाशिनी छोड़ दीे, रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का यह फरमान सुनकर आपने गोशा नाशिनी छोड़ दी।


आग़ाज़े तदरीस:


इस तरह इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने अहयाए सुन्नत और हिदायत उम्मत की तरफ मुतावज्जेह हुए और अपने उस्ताद “हज़रत इमाम हम्माद रहिमाहुल्लाह” के विसाल के बाद आप मसनदे इल्मों फ़ज़ल पर जलवा अफ़रोज़ हुए, इमाम मौफिक़ बिन अहमद मक्की तहरीर फरमाते हैं कि जब आपके उस्ताद इमाम हम्माद रहिमाहुल्लाह का विसाल हुआ तो लोगों ने उनके बेटे से इस्तिदा (दरख्वास्त, गुज़ारिश) की कि वो अपने वालिद की मसनद पर तशरीफ़ लाएं मगर वो इस अज़ीम ज़िम्मेदारी के लिए राज़ी न हुए, आखिर कार इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु की खिदमत में गुज़ारिश की गई तो आपने फ़रमाया मैं नहीं चाहता कि इल्म मिट जाए और हम देखते रह जाएं, चुनांचे आप अपने उस्तादे मुहतरम की मसनद पर बैठे, अहले इल्म का एक बड़ा हल्का आपके पास जमा होने लगा, आपने अपने शागिर्दों के लिए इल्मों फ़ज़ल के दरवाज़े खोल दिए। मुहब्बत व शफ़क़त के दामन फैला दिए। एहसानो कर्म की मिसालें काइम कर दीं और अपने शागिर्दों को इस तरह ज़ेवरे इल्म से आरास्ता किया कि  यह लोग मुस्तक़बिल यानी आने वाले ज़माने में आसमाने इल्मों फ़ज़ल के आफ़ताबो महताब सूरज बन कर चमकते रहे। (मनाक़िबुल इमामे आज़म सफा नंबर 95)


इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु ने मैदाने तदरीस संभालने के बाद इल्मों फ़ज़ल के ऐसे दरिया नायाब व नादिर गोहर लुटाए कि ज़माना आज भी इससे सर शार हो रहा है। इतने लोगों ने आपकी बारगाहे इल्मों फैज़ में ज़ानूए अदब तय किया है जिनके शुमार को उलमा ने नामुमकिन क़रार दिया है।

चुनांचे अल्लामा इब्ने हजर मक्की रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कि 

जिन हज़रात ने इमामे आज़म से इल्मे हदीस व फ़िक़हा हासिल किया उनका शुमार नामुमकिन है। बाज़ अइम्मा का क़ौल है कि किसी के इतने असहाब और शागिर्द नहीं हुए जिनते के इमामे आज़म के हुए और उलमा और अवाम को किसी से इस क़द्र फैज़ न पंहुचा जितना इमामे आज़म और उनके असहाब से मुश्तबा अहादीस की तफ़्सीर, अखज़ करदा मसाइल, जदीद पेश आने वाले मसाइल और क़ज़ा व एहकाम में फाइदा पंहुचा, खुदा उन हज़रात को जज़ाए खैर दे।


बाज़ मुतअख़्ख़िरीन मुहद्दिसीन ने इमामे आज़म के तज़किरे में उनके शागिर्दों की तादाद तक़रीबन आठ सौ (800) लिखी है और उनके नाम व नसब भी लिखे हैं। 


हाफ़िज़ अबुल मुहासिन शाफ़ई रहिमाहुल्लाह ने 918 लोगों के नाम व नसब लिखे हैं जो इमामे आज़म के हल्काए दरस से फ़ैज़याब हुए, इमामे आज़म के शागिर्दों में मुहद्दिस फ़क़ीह, मुफ़्ती क़ाज़ी, हत्ता के मुजतहिद भी मौजूद हैं, चुनांचे “हज़रत इमाम अबू युसूफ, इमाम मुहम्मद और इमाम ज़ुफर रदियल्लाहु तआला अन्हुम अजमईन दरजए इज्तिहाद पर फ़ाइज़ हैं”। एक मौके पर इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु ने अपने खास शागिर्दों के मुतअल्लिक़ फ़रमाया कि यह मेरे 36 असहाब हैं जिनमें से 28क़ाज़ी बनने की पूरी एहलियत है और 6 अफ़राद में फतवा देने की सलाहियत है जब कि मेरे दो शागिर्द हज़रत इमाम अबू युसूफ हज़रत इमाम ज़ुफर ये सलाहियत रखते हैं कि क़ाज़ियों और मुफ्तियों को मुहज़्ज़ब और मोअद्दब बनाए। (हयाते इमाम अबू हनीफा सफा नंबर 351)

(Part-2)

 

इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु की इल्मी अज़मतो रिफ़अत :


अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु को जो इल्मी अज़मतो रिफ़अत बुलंदी अता फ़रमाई है वो बहुत कम लोगों के हिस्से में आई है।


हैरान कुन ख़्वाब : 


इमामे आज़म ने एक रात ख़्वाब देखा के आप नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की क़ब्र मुबारक खोलकर आपके जिस्मे अक़दस की हड्डियां अपने सीने से लगा रहे हैं, यह ख्वाब देखकर आप पर सख्त घबराहट तारी हुई।  ख़्वाबों के बहुत बड़े आलिम ज़लीलुलक़द्र ताबई इमाम मुहम्मद बिन सीरीन रदियल्लाहु तआला अन्हु से इस ख़्वाब की ताबीर पूछी गई तो उन्होंने फ़रमाया कि

“इस ख़्वाब का देखने वाला हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की अहादीस और सुन्नतों को दुनिया में फैलाएगा और उनसे ऐसे मसाइल बयान करेगा जिनकी तरफ किसी का ज़हन मुन्तक़िल नहीं हुआ। 


इस इशाराए गैबी से इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु को इत्मीनान और ख़ुशी हासिल हुई और इस ख़्वाब की ताबीर इस तरह अमली तौर पर सामने आई के आपने आलमे इस्लाम को अहादीसे नबवी से मआरिफ़ (आगाह, बा खबर) किया और ऐसे मसाइल बयान किए जिससे अक़्ल हैरान हुई। (मनाक़िबुल इमामे आज़म)


अल्लामा हजर मक्की शाफ़ई रहिमाहुल्लाह ने “अल खैरातुल हिसान” में ख़तीब के हवाले से नकल किया है कि हज़रत इमाम अबू युसूफ रहिमाहुल्लाह ने फ़रमाया कि हदीस की तफ़्सीर और हदीस में जहाँ-जहाँ फ़िक़्ही निकात हैं उनका जानने वाला मैंने इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु से ज़्यादा किसी को नहीं देखा।

मैंने जब कभी उनका खिलाफ किया फिर गौर किया तो उनका मज़हब आख़िरत में ज़्यादा निजात देने वाला नज़र आया। एक बार हज़रत इमामे आज़म, हज़रत सुलेमान आमश के यहाँ थे, किसी ने कुछ मसाइल पूछे, उन्होंने इमामे आज़म से पूछा, आप क्या कहते हैं? हज़रत इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु ने उन सब के हुक्म बयान फरमाए, हज़रत सुलेमान आमश ने पूछा, कहाँ से ये कहते हो फ़रमाया आपही की बयान की हुई उन अहादीस से और इन अहादीस को सनादों के साथ बयान कर दिया, इमाम आमश ने फ़रमाया बस-बस मैंने आप से जितनी अहदीसें सौ (100) दिन में बयान कीं आपने वो सब एक दिन में सुना डालीं, मैं नहीं जनता कि आप इन अहादीस पर अमल करते हैं,

“ए फुक़्हा की जमाअत आप लोग अत्तार हैं और हम दवाफरोश मगर ए अबू हनीफा तुम ने तो दोनों किनारे घेर लिए”। (मुक़द्दिमा नुज़हतुल कारी जिल 1)


हज़रत दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कि हज़रत याहया बिन मुआज़ राज़ी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कि मैंने नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को ख़्वाब में देखा तो अर्ज़ किया ए अल्लाह के रसूल आपको क़यामत के दिन कहाँ तलाश करूँ? फ़रमाया अबू हनीफा के इल्म में या उनके झंडे के पास, हज़रत दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कि मैं मुल्के शाम में मस्जिदे नबवी शरीफ़ के मुअज़्ज़िन हज़रत बिलाल हब्शी रदियल्लाहु तआला अन्हु के रौज़ए मुबारक के सिरहाने सोया हुआ था, ख़्वाब में देखा कि मैं मक्का शरीफ में हूँ और हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम एक बुज़ुर्ग को आगोश में बच्चे की तरह लिए हुए बाबे शैबा से दाखिल हो रहे हैं मैंने मुहब्बत में दौड़ कर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के क़दम मुबारक को बोसा दिया,

मैं इस हैरतो तअज्जुब में था कि यह बुजुर्ग कौन हैं? हुज़ूर को अपनी मोजिज़ाना शान से मेरी बातनी हालत का अंदाज़ा हुआ तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ये तुम्हारे इमाम हैं जो तुम्हारी ही विलायत के हैं, यानी इमामे आज़म अबू हनीफा, इस ख़्वाब से यह बात मुन्कशिफ़ हुई की आपका इज्तिहाद हुज़ूरे अकरम की मुताबिअत में बे खता है, इस लिए की वो हुज़ूर के पीछे खुद नहीं जा रहे थे बल्के हुज़ूर खुद उन्हें उठाए लिए जा रहे थे, क्यूंकि वो बाक़ीयुस सिफ़त यानी तकल्लुफ व कोशिश से चलने वाले नहीं थे बल्के फानियुस सिफ़त और शरई एहकाम में बाक़ी व क़ाइम थे, जिस की हालत बाक़ीयुस सिफ़त होती है वो ख़ताकार होता है या राहे याब, लेकिन जब उन्हें ले जाने वाले हुज़ूर खुद हैं तो वो फानियुस सिफ़त हो कर नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सिफ़त बक़ा के साथ क़ाइम हुए चूंकि हुज़ूर से खता का सुदूर का इमकान ही नहीं इसलिए जो हुज़ूर के साथ क़ाइम हो उससे खता का इमकान ही नहीं यह एक लतीफ़ इशारा है।


आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ां अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि इमामे मुजतहिद मुतलक़ आलम क़ुरैश सैयदना इमाम शाफ़ई रदियल्लाहु तआला अन्हु ने जब मज़ारे मुबारक सैयदना इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु के हुज़ूर नमाज़ सुबह पढ़ाई, दुआए क़ुनूत न पढ़ी, न बिस्मिल्लाह व अमीन जिहर से कहे न गैर तहरीमा में रफायदैन फ़रमाया, उन्होंने खुद अपना मज़हब तर्क किया और उज़्र भी बयान फ़रमाया कग मुझे इमामे अजल इतने बड़े इमाम से शर्म आती है कि उनके सामने उनका खिलाफ करूँ, (फतावा रज़विया जिल्द तीन)


इसी में है:

इमाम अब्दुल वहाब शुआरानी अपने पिरो मुर्शिद हज़रत सैयदी अली ख्वास शाफ़ई से रवि के इमामे आज़म अबू हनीफा के मदारिक इतने दक़ीक़ हैं कि अकाबिर औलिया के कश्फ़ के सिवा किसी के इल्म की वहां तक पहुंच मालूम नहीं होती।


इमामे आज़म अबू हनीफा का इल्मे कश्फ़ व मुशाहिदा :


औलिया-ए-किराम का एक रूहानी वस्फ़ “कश्फ़ व मुशाहिदा” है अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने अपने हबीब के सदक़े व तुफ़ैल हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु को इस वस्फ़ से भी वाफिर हिस्सा अता फ़रमाया है, आप जिसके लिए जो बात इरशाद फ़रमा देते वो हो कर रहती क़ुतुब तवारीख में इस के बेशुमार शवाहिद मौजूद हैं, तारीखे बग़दाद में है कि इमाम अबू युसूफ रहिमाहुल्लाह बहुत गरीब घराने से ताअल्लुक़ रखते थे, उनकी वालिदा अक्सर उन्हें दर्स (सबक़) से उठा कर ले जाती थीं ताकि कुछ कमाकर लाएं, एक दिन इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ने उनकी वालिदा से फ़रमाया कि “तुम इसे इल्म सीखने दो, मैं देख रहा हूँ कि एक दिन ये रोगने पिस्ता के साथ फालूदा खाएगा” यह सुन कर वो बड़बड़ाती हुई चली गईं। एक अरसे के बाद एक दिन खलीफा हारुन रशीद के दस्तर ख्वान पर फालूदा पेश हुआ, खलीफा ने इमाम अबू युसूफ रहिमाहुल्लाह की खिदमत में पेश किया, पूछा यह क्या है? खलीफा ने कहा फालूदा और रोगने पिस्ता, यह सुन कर आप हंस पड़े, हंसने की वजह पूछी, तो मज़कूरा वाकिया बयान फ़रमाया, खलीफा ने कहा इल्मे दीन दुनिया में इज़्ज़त देता है। अल्लाह पाक “इमामे आज़म” पर रहमत फरमाए वो बातिन की आँखों से वो कुछ देखते थे जो ज़ाहिरी आँखों से नज़र नहीं आता। 


सैयदी अली ख्वास रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि 

के इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु जब वुज़ू का पानी देखते, लोगों के वुज़ू करने में गुनाहे सगीरा व कबीरा और मकरूह जो कुछ धुल कर इस में गिरा सब पहचान लेते, इसीलिए इमामे आज़म ने माए मुस्तामल के तीन हुक रखे, एक ये के निजासते ग़लीज़ा है, ये उस सूरत में है कि इस्तिमाल करने वाले ने कोई गुनाहे कबीरा किया हो, दोम निजासते ख़फ़ीफ़ा है, यह उस सूरत में है कि गुनाहे सगीरा का धोवन हो, तीसरा पाक है मगर पाक नहीं कर सकता, यह उस सूरत में है कि मकरूह का धोवन हो, इमामे आज़म के मुक़ल्लिदीन ने इससे यह समझा कि यह तीनो हुक्म हर हाल में हैं, हालांकि के वो मुख्तलिफ अहवाल पर हैं।


मीज़ानुश शरीअतुल कुबरा में है कि

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इमामे आज़म और उनके मानने वालों से राज़ी हो और उनपर अपनी रहमत नाज़िल फरमाए कि उन्होंने निजासत की दो किस्मे कीं, “ग़लीज़ा और ख़फ़ीफ़ा” क्यूंकि गुनाह दो ही किस्म के हैं, कबीरा हुए सगीरा। 


इमाम अब्दुल वहाब शोआरानी रहमतुल्लाह अलैह “मीज़ान” में फरमाते हैं कि मैंने अपने सरदार अली ख्वास रदियल्लाहु तआला अन्हु को फरमाते हुए सुना, आदमी को कश्फ़ हासिल हो तो लोगों के वुज़ू और ग़ुस्ल के पानी को निहायत घिनौना और बदबूदार पाए तो कभी उससे तहारत हासिल करने को उसका दिल न चाहे, जैसे थोड़े पानी में कुत्ता या बिल्ली मर जाए तो इंसान का दिल हरगिज़ उससे तहारत हासिल करने को न चाहे।


इमाम अब्दुल वहाब शोआरानी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कि इस पर मैंने उनसे अर्ज़ की कि उससे तो मालूम होता हैं कि इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु व इमाम अबू युसूफ माए मुस्तामल को नाजिस व नापाक मानते हैं क्यूंकि वो कश्फ़ वाले थे, फ़रमाया हाँ दोनों आज़म अहले कश्फ़ से थे,

इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु जब लोगों के वुज़ू का पानी देखते तो बे ऐनी ही उनके गुनाहों को पहचान लेते जो धुल कर पानी में गिरे और जुदा-जुदा जान लेते के यह धोवन गुनाहे कबीरा के हैं, ये सगीरा के, यह मकरूह का यह ख़िलाफ़े औला का, बिला तफ़ावुत इसी तरह जैसे कोई अजसाम को देखे।


एक रिवायत में है कि इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु जामा मस्जिद कूफ़ा के हौज़ पर तशरीफ़ ले गए, एक शख्स वुज़ू कर रहा था, उसका पानी जो टपका, इमामे आज़म ने उस पर नज़र फ़रमाई और उससे फ़रमाया ए मेरे बेटे माँ-बाप को तकलीफ देने से तौबा कर, उसने फ़ौरन कहा मैं अल्लाह पाक से तौबा करता हूँ, एक और शख़्स का धोवन देख कर आपने फ़रमाया ए भाई ज़िना से तौबा कर उसने कहा मैंने तौबा की, एक और शख़्स का धोवन देख कर आपने फ़रमाया शराब पीने और मज़ा मीर सुनने से तौबा कर, उसने कहा में ताइब हुआ, (फतावा रज़विया जिल्द अव्वल 245)


इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु का ज़ुहदो तक़वा और परहेज़गारी :


हज़रत अब्दुल्लाह बिन मुबारक रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं मैंने इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु से ज़्यादा मुत्तक़ी (परहेज़गार) किसी को न देखा, तुम ऐसे शख्स की क्या बात करते हो जिस के सामने कसीर माल पेश किया गया और उसने इस माल को निगाह उठा कर भी नहीं देखा, इस पर उसे कोड़ों से मारा गया मगर उसने सब्र किया और जिसने अल्लाह पाक की रज़ा की खातिर मुसीबतों को बर्दाश्त किया मगर मालो दौलत क़बूल न किया बल्के दूसरों की तरह जाह व माले दुनिया की कभी तमन्ना और आरज़ू भी न की हालांकि लोग इन चीज़ो के लिए सौ सौ जतन हीले बहाने करते हैं, बखुदा आप इन तमाम उलमा के बर अक्स थे जिन्हें हम माल व इनाम के लिए दौड़ता देखते हैं, यह लोग दुनिया के तालिब हैं और दुनिया इनसे भागती है जबकि इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु वो थे कि  दुनिया उनके पीछे आती थी और आप इससे दूर भागते थे। (मनाक़िबुल इमामे आज़म साफा 228)



यज़ीद बिन हारुन रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कि मैंने एक हज़ार (1000) “शीयूख” से इल्म हासिल किया मगर मैंने उनमे “इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु” से ज़्यादा न तो किसी को मुत्तक़ी पाया और न अपनी ज़बान का हिफाज़त करने वाला। (अल खैरातुल हिसान)


हज़रत शफ़ीक़ बिन इब्राहीम रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कि हम एक दिन इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु के पास मस्जिद में बैठे हुए थे कि अचानक छत से एक सांप आपके सर पर लटकता दिखाई दिया, सांप देख कर लोगों में भगदड़ मच गई,

सांप सांप कह कर सब लोग भागे, मगर इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु न तो अपनी जगह से उठे और न ही उनके चेहरे पर कोई परेशानी के आसार नज़र आए, इधर सांप सीधा इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु की गोद में आ गिरा, अपने हाथ से झटक कर उसे एक तरफ फेंक दिया मगर खुद अपनी जगह से न हिले, उस दिन से मुझे यक़ीन हो गया कि आपको अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की ज़ात पर कामिल यक़ीन और पुख्ता (पक्का) एतिमाद भरोसा है।


इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु 30 साल तक एक रकअत में पूरा क़ुरआन पढ़ते रहे :


अल्लामा इब्ने हजर रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं कि इमाम ज़हबी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया है कि इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु का पूरी रात इबादत करना और तहज्जुद पढ़ना तवातुर से साबित है, और यही वजह है कि कसरते क़याम की वजह से आपको विद यानी कील कहा जाता था।

“आप 30 साल तक एक रकअत में पूरा क़ुरआन पढ़ते रहे” और आपके बारे में मरवी है कि आपने 40 चालीस साल तक ईशा के वुज़ू से फज्र की नमाज़ पढ़ी।


इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु के तमाम रात इबादत करने का बाइस ये वाक़िआ हुआ कि एक बार आप कहीं तशरीफ़ ले जा रहे थे कि रास्ते में आपने किसी शख़्स को यह कहते सुना “ये इमाम अबू हनीफा हैं जो पूरी रात अल्लाह की इबादत करते हैं और सोते नहीं”।


आपने इमाम अबू युसूफ रहमतुल्लाह अलैह से फ़रमाया, सुब्हानल्लाह! क्या तुम खुदा की शान नहीं देखते की उसने हमारे लिए इस किस्म का चर्चा कर दिया और ये क्या बुरी बात नहीं कि लोग हमारे मुतअल्लिक़ वो बात कहें जो हम में न हो, लिहाज़ा हमें लोगों के गुमान के मुताबिक बनना चाहिए खुदा की कसम! मेरे बारे में लोग वो बात नहीं कहेंगें जो मैं नहीं करता, चुनांचे आप पूरी रात इबादत व दुआ और आहो ज़ारी में गुज़ारने लगे।


इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु रमज़ानुल मुबारक में 62, क़ुरआन शरीफ पढ़ते थे :


इमाम अबू युसूफ रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कि इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु रात के वक़्त एक क़ुरआने पाक नवाफिल में ख़त्म किया करते थे। “रमज़ानुल मुबारक में एक क़ुरआन सुबह और एक क़ुरआन असर के वक़्त ख़त्म करते थे” और आम तौर पर रमज़ान के दौरान “62, क़ुरआन शरीफ ख़त्म कर लेते थे”।


“इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु ने 55, हज किए”।

आखरी हज काबे शरीफ के मुजाविरों से इजाज़त लेकर काबे के अंदर चले गए और वहां आपने दो रकअत में पूरा क़ुरआन शरीफ इस तरह पढ़ा कि पहली रकअत में सीधे पाऊँ पर ज़ोर रखा और उलटे पैर को दबने नहीं दिया, इसी तरह आपने इस हाल में आधा क़ुरआन तिलावत किया फिर दूसरी रकअत में उलटे पाऊँ पर ज़ोर रखा अगरचे दूसरा पैर भी ज़मीन पर था मगर इस पर वज़न नहीं दिया, इस तरह आप ने बाक़ी आधे क़ुरआन की तिलावत (पढ़ना) पूरी की,

नमाज़ के बाद रोते हुए अल्लाह रब्बुल इज़्जत की बारगाह में अर्ज़ की, “ए मेरे रब मैंने तुझे पहचाना है जैसा कि पहचानने का हक़ है लेकिन मैं तेरी ऐसी इबादत न कर सका जैसा कि इबादत का हक़ था, मौला तू मेरी खिदमत की कमी को मारफअत के कमाल की वजह से बख्श दे, “तो ग़ैब से आवाज़ आई” “ए अबू हनीफा! तुमने हमारी मारफअत हासिल की और खिदमत में ख़ुलूस का मुज़ाहिरा किया इसलिए हम ने तुम्हे बख्श दिया और क़यामत तक तुम्हारे मज़हब पर चलने वालों को भी बख्श दिया”। सुब्हानल्लाह!


इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु सूफ़िया व औलिया-ए-किराम की नज़र में :


इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु के इल्मों फ़ज़्ल, अक़्लो ज़हानत, ज़ुहदो तक़वा, मुहद्दिसाना अज़मत और आपकी बेमिसाल फ़क़ाहत के बारे में ज़लीलुलक़द्र अइम्मए दीन व मुहद्दिसीने किराम और औलिया-ए- इज़ाम के इरशादात मुलाहिज़ा करें।

हज़रत दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कि इमामे तरीक़त इमामुल अइम्मा, मुक़्तदाए अहले सुन्नत, शरफ़े फुक़्हा, उलमा की इज़्ज़त, सैयदना इमामे आज़म नोमान बिन साबित खज़ाज़ी रदियल्लाहु तआला अन्हु इबादात व मुजाहिदात और तरीक़त के उसूल में अज़ीमुश्शान मर्तबे पर फ़ाइज़ हैं।


आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ां अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि इमामे अजल सुफियान सौरी ने हमारे इमाम से कहा, आप को वो इल्म खुलता है जिससे हम सब गाफिल होते हैं और फ़रमाया, अबू हनीफा का खिलाफ करने वाला इसका मुहताज है कि उन से मर्तबे में बड़ा और इल्म में ज़्यादा हो और ऐसा होना नामुमकिन है।


पूरी दुनिया में इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु की अक़्ल की तरह किसी की अक़्ल नहीं :


इमामे शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया, पूरी दुनिया में किसी की अक़्ल, अबू हनीफा की तरह नहीं, इमाम अली बिन आसिम रहमतुल्लाह अलैह ने कहा, अगर अबू हनीफा की अक़्ल तमाम रूए ज़मीन के निस्फ़ यानी आधे आदमियों की अक़्लों से तौली जाए, अबू हनीफा की अक़्ल ग़ालिब आएगी।


इमाम अबू बकर बिन हबीश ने कहा, अगर इनके तमाम अहले ज़माना की इकठ्ठी अक़्लों के साथ वज़न करें तो एक अबू हनीफा की अक़्ल इन तमाम अइम्मा बड़े बड़े मुजतहदीन व मुहद्दिसीन व अरिफीन में सबकी अक़्ल पर ग़ालिब आए।


इमाम अब्दुल वहाब शारानी शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह अपने पीरो मुर्शिद सैयदी अली ख्वास शाफ़ई से रावी के इमामे आज़म के मदारिक इतने दक़ीक़ हैं कि बड़े- बड़े औलिया के कश्फ़ के सिवा किसी के इल्म की वहां तक पहुंच मालूम नहीं होती, (फतावा रज़विया जिल्द 1)


इमाम मुहम्मद बाक़र रदियल्लाहु तआला अन्हु एक मुलाकात में इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु की गुफ्तुगू से खुश हुए। आपकी पेशानी को चूमा और आपको अपने सीने से लगा लिया।  दूसरे मौके पर फ़रमाया अबू हनीफा के पास ज़ाहिरी उलूम के ख़ज़ाने हैं और हमारे पास बातनी और रूहानी उलूम के ज़खाईर हैं।


हज़रत सैयदना इमाम जाफर सादिक़ रदियल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया कि ए अबू हनीफा! मैं देख रहा हूँ कि तुम मेरे नाना जान रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सुन्नते ज़िंदा करोगे‌ तुम्हारी रहनुमाई लोगों को सही रास्ता मिलेगा। तुम्हें अल्लाह पाक की तरफ से ये तौफ़ीक़ हासिल होगी कि ज़माने भर के उलमा-ए-रब्बानी तुम्हारी वजह से सही मसलक इख़्तियार करेंगें।


इमाम मालिक रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु ऐसे ज़हीन आलिम थे कि अगर वो ये दावा करते कि ये सुतून सोने का बना हुआ है तो वो दलाइल से साबित कर सकते थे कि वाक़ई सोने का है। वह फ़िक़्ह में निहायत बुलंद मक़ाम पर फ़ाइज़ थे। इमाम शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं, जो शख़्स दीन की समझ हासिल करना चाहे उसे चाहिए कि इमाम अबू हनीफा और उनके शागिर्दों से फ़िक़्हा सीखे क्यूंकि तमाम लोग फ़िक़्हा में इमामे आज़म के बच्चे हैं।

लोग फ़िक़्हा में इमामे आज़म के मुहताज हैं। मैंने उनसे ज़्यादा फ़क़ीह कोई नहीं देखा, जिसने इमामे आज़म की क़ुतुब में ग़ौरो फ़िक्र न की, न वो इल्म में माहिर हो सकता है और न हीं फ़क़ीह बन सकता है।


इमाम अहमद बिन हम्बल रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि अल्लाह पाक इमाम अबू हनीफा पर रहम फरमाए वो बेपनाह परहेज़गार थे। उन्हें मंसबे क़ज़ा क़बूल न करने पर हुक्मरानो ने कोड़े लगाए, मगर वो सब्रो इस्तक़लाल के साथ इंकार करते रहे।


हज़रत मुहम्मद बिन बिशर लिखते हैं कि मैं सुफियान सौरी के पास हाज़िर हुआ, उन्होंने पूछा कहा से आ रहे हो? मैंने अर्ज़ की, इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु के पास से, फ़रमाया यक़ीनन तुम ऐसे शख्स के पास से आ रहे हो जो रूए ज़मीन पर “सब से बड़ा फ़क़ीह है”।


हज़रत अब्दुल्लाह बिन मुबारक रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि किसी के लिए मुनासिब नहीं की वो यह कहे की ये मेरी राए है लेकिन इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु को ज़ेबा है कि वो यह कहें कि यह मेरी राए है।


इमाम ओज़ाई रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु मुश्किल से मुश्किल तर मसाइल को सबसे ज़्यादा जानने वाले थे।


इमाम शोआबा रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते है कि जिस तरह मैं जनता हूँ कि आफताब रौशन है इसी यक़ीन के साथ मैं कह सकता हूँ कि इल्म और अबू हनीफा हमनशीन और साथी हैं, (सीरते नोमान)। आपको इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु के विसाल की खबर मिली तो फ़रमाया “इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन” अफ़सोस! कूफ़ा से इल्म की रौशनी बुझ गई, अब इन जैसा कोई पैदा नहीं होगा।



इमाम अबू युसूफ रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मेरा तमाम इल्मे फ़िक़हा, इमाम अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु के इल्मे फ़िक़हा के मुक़ाबले में ऐसे है जैसे दरियाए फुरात की मोजों के मुकाबले में एक छोटी सी नहर हो। मैंने अहादीस की तफ़्सीर करने में इमामे आज़म से बढ़ कर किसी को नहीं देखा।


इमाम इब्ने खल्दून रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कि इमाम अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु इल्मे हदीस के बड़े मुज्तहदीन में से हैं। इसकी एक दलील यह है कि उनके मज़हब पर एतिमाद किया जाता है और रद्दो क़बूल में उन पर एतिबार किया जाता है।


इमाम ज़हबी शाफ़ई रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि 

इमाम अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु “इमामे आज़म” हैं, फकीहे इराक हैं।



इमामे आज़म का विसाले पुरमलाल :


इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु का विसाल दो (2) शबानुल मुअज़्ज़म एक सौ पचास 150 हिजरी में हुआ। शरह बुखारी मुफ़्ती मुहम्मद शरीफुल हक़ अमजदी रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु के विसाल की तारीख इस तरह बयान की है 146 हिजरी में बगदाद को दारुस सल्तनत बनाने के बाद मंसूर ने इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु को बग़दाद बुलवाया। मंसूर उन्हें शहीद करना चाहता था, मगर जवाज़ क़त्ल के लिए एक बहाने की तलाश थी, उसे मालूम था के इमामे आज़म मेरी हुकूमत के किसी उहदे को क़बूल न करेंगें, उसने इमामे आज़म की खिदमत में उहदाए क़ज़ा पेश किया इमाम साहब ने ये कह कर इंकार कर दिया कि मैं इसके लाइक नहीं, मंसूर ने झुंझला कर कहा तुम झूठे हो इमामे आज़म ने कहा, कि अगर में सच्चा हूँ तो साबित कि मैं उहदाए क़ज़ा के लाइक नहीं झूठा हूँ तो भी उहदाए क़ज़ा के लाइक नहीं, इसलिए कि झूठे को क़ाज़ी बनाना जाइज़ नहीं,

इस पर भी मंसूर नहीं माना और क़सम खा कर कहा कि तुम को क़बूल करना पड़ेगा। इमामे आज़म ने भी क़सम खाई के हरगिज़ नहीं क़बूल करूंगा। रबी ने गुस्से से कहा कि इमामे आज़म तुम अमीरुल मोमिनीन के मुकाबले में क़सम खाते हो, इमामे आज़म ने कहा हाँ यह इसलिए कि अमीरुल मोमिनीन को कसम का कफ़्फ़ारा अदा करना बा निस्बत मेरे ज़्यादा आसान है, इस पर मंसूर ने गुस्सा हो कर इमामे आज़म को क़ैद खाने में भेज दिया,

इस मुद्दत में मंसूर इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु को बुला कर अक्सर इल्मी मुज़किरात करता रहता था। बग़दाद शरीफ चूँकि दारुस सलतन था, इसलिए तमाम दुनियाए इस्लाम के उलमा, फुक़्हा, उमरा, तुज्जार, आवाम ख्वास,बगदाद आते थे। इमामे आज़म का गलगला चर्चा पूरी दुनिया में घर-घर पहुंच चूका था। क़ैद खाने ने उनकी अज़मत और असर को बजाए कम करने के और ज़्यादा बढ़ा दिया‌। जेल खाने ही में लोग जाते और उनसे फैज़ हासिल करते।


हज़रत इमाम मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह आखिर वक़्त तक क़ैद खाने में तालीम हासिल करते रहे, मंसूर ने जब देखा की इस तरह काम नहीं बना तो ख़ुफ़िया यानी छुप के से ज़हर दिलवा दिया। जब इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु को ज़हर का एहसास असर महसूस हुआ तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में सज्दा किया, सज्दे ही की हालत में आपकी रूह परवाज़ कर गई और आपका विसाल हो गया। जितनी हों क़ज़ा एक ही सज्दे में अदा हों।


“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो”


इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु की नमाज़े जनाज़ा छह (6)बार हुई :


विसाल की खबर बिजली की तरह पूरे बगदाद में फ़ैल गई। जो भी सुनता भागा हुआ चला आता। काज़िए बगदाद अम्मारा बिन हसन ने गुस्ल दिया। गुस्ल देते जाते और यह कहते जाते वल्लाह तुम! सबसे बड़े फ़क़ीह, सबसे बड़े आबिद, सबसे बड़े ज़ाहिद थे। तुम में सब खूबियां जमा थीं।

तुमने अपने जनशीनो को मायूस कर दिया है, कि वह तुम्हारे मर्तबे को पहुंच सकें। ग़ुस्ल से फारिग होते हुए जम्मे ग़फ़ीर यानी भीड़ इकठ्ठा हो गई। पहली बार नमाज़े जनाज़ा में “पचास हज़ार” का मजमा शरीक था। इस पर भी आने वालों का तानता बंधा हुआ था।

आपकी नमाज़ी जनाज़ा छह (6) बार हुई,। आखिर में इमामे आज़म के साहबज़ादे हज़रत हम्माद ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई। असर के वक़्त दफ़न की नौबत आई। इमामे आज़म ने वसीयत की थी कि उन्हें ख़ेज़रान के क़ब्रिस्तान में दफ़्न किया जाए, इस लिए कि वो जगह ग़सब की हुई नहीं थी। इसी के मुताबिक उसके पूर्वी हिस्से में मदफ़ून हुए। दफ़न के बाद बीस दिन तक लोग इमामे आज़म की नमाजे जनाज़ा पढ़ते रहे।ऐसे क़बूले आम की मिसाल पेश करने से दुनिया आजिज़ है।


हज़रत इमामे शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया कि मैं इमामे आज़म रहमतुल्लाह अलैह के तवस्सुल से बरकत हासिल करता हूँ। रोज़ाना उनके मज़ार की ज़ियारत को जाता हूँ। जब कोई हाजत पेश आती है तो उनके मज़ार के पास दो रकअत नमाज़ पढ़ कर दुआ करता हूँ तो मुराद पूरी होने में कोई देर नहीं लगती। इमामे आज़म रहमतुल्लाह अलैह का विसाल अस्सी 80 साल की उम्र में शअबान की दूसरी तारीख़ को एक सौ पचास 150 हिजरी में हुआ।


वाज़ेह हो कि आपकी उम्र मुबारक, 80 साल इस सूरत में होगी जब आप की तारीखे विलादत 70 हिजरी मानी जाए वरना मशहूर क़ौल में आपकी उम्र मुबारक 70 साल है।


आप का मज़ार शरीफ़ :


मुल्के इराक़ की राजधानी बगदाद शरीफ में है हर साल आपका उर्स होता है और हज़ारों अकीदतमंद हाज़िर हो कर फ़ैज़याब होते हैं।


(Part-3)


इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु दरमियाना क़द,  खूबसूरत, खुश गुफ्तार और शीरीं लहजे वाले थे। आप की गुफ्तुगू (बात चीत) फसीह व बलीग़ होती।


हज़रत अबू नोएम रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं कि इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह का चेहरा अच्छा, कपड़े अच्छे खुशबू अच्छी और मजलिस अच्छी होती। आप बहुत करम करने वाले और रफ़ीक़ों (दोस्त, साथी) बड़े गमख्वार थे।


उमर बिन हम्माद रहिमाहुल्लाह कहते हैं‌ कि आप खूबसूरत और खुश लिबास थे। कसरत से खुश्बू इस्तेमाल करते थे। जब सामने से आते या घर से निकलते तो आपके पहुंचने से पहले आपकी खुश्बू पहुंच जाती।‌ (खतीब बगदादी जिल्द 13)


हज़रत अब्दुल्लाह बिन मुबारक रहिमाहुल्लाह ने हज़रत सुफियान सौरी रहिमाहुल्लाह से कहा, इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह ग़ीबत करने से कोसों दूर थे। मैंने कभी नहीं सुना कि उन्होंने अपने किसी मुखालिफ की ग़ीबत की हो। हज़रत सुफियान सौरी रहिमाहुल्लाह ने फ़रमाया कि अल्लाह की क़सम! वो बहुत अक़्लमंद थे। वह अपनी नेकियों पर कोई ऐसा अमल मुसल्लत नहीं करना चाहते थे, जो उनकी नेकियों को ज़ाए कर दे।


हज़रत शरीक रहिमाहुल्लाह ने कहा कि इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु निहायत खामोश तबअ, बहुत अक़्लमंद ज़हीन, लोगों से कम बहस करने वाले और कम बोलने वाले थे।


हज़रत ज़मरा रहिमाहुल्लाह के बक़ौल लोगों का इत्तिफ़ाक़ है कि इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु दुरुस्तक (ठीक, सही) ज़बान थे। उन्होंने कभी किसी का ज़िक्र बुराई से न किया और जब उनसे कहा गया, लोग आप पर एतिराज़ करते हैं? तो आपने फ़रमाया “यह अल्लाह पाक का फ़ज़ल है” जिसको चाहे अता करे।


हज़रत बोकेर बिन मअरूफ़ रहिमाहुल्लाह ने फ़रमाया कि उम्मते मुहम्मदी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम में कोई शख्स, मैंने “इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु” से बेहतर नहीं देखा,

एक बार खलीफा हारुन रशीद ने इमाम अबू युसूफ रहिमाहुल्लाह से कहा, “इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु” के अख़लाक़ बयान करो।


उन्होंने फ़रमाया कि “इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु हराम चीज़ों से खुद भी बचते और दूसरों को भी बचाने की बहुत कोशिश करते। बगैर इल्म के दीन में कोई बात कहने से बहुत डरते थे। वह अल्लाह पाक की इबादत में मुजाहिदा करते। वह दुनियादारों से दूर रहते और कभी किसी की खुशामद न करते। वह अक्सर खामोश रहते और दीनी मसाइल में ग़ौरो फ़िक्र करते। इल्मों अमल में बुलंद रुतबा होने के बावजूद आजिज़ी व इंकिसारी का पैकर थे।


जब उनसे कोई मसला पूछा जाता तो क़ुरआनो सुन्नत की तरफ रुजू करते अगर क़ुरआनो सुन्नत में उसकी नज़ीर न मिलती हक़ तरीक़े पर क़यास करते, आपने नफ़्स और दीन की हिफाज़त करते और राहे खुदा में इल्म और माल व दौलत खूब खर्च करते। उनका नफ़्स तमाम लोगों से बेनियाज़ था। लालच और हिर्स की तरफ उनका मैलान न था। वह ग़ीबत करने से बहुत दूर थे। अगर किसी का ज़िक्र करते तो भलाई से करते”, ये सुन कर खलीफा ने कहा “सावलिहीन के अख़लाक़ ऐसे ही होते हैं” फिर उसने कातिब को ये औसाफ़ लिखने का हुक्म दिया और आपने बेटे से कहा, इन औसाफ़ को याद कर लो।


बीस (20) साल तक इमामे ज़ुफर रहिमाहुल्लाह, इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह की खिदमत में :


इमामे ज़ुफर रहिमाहुल्लाह फरमाते हैं कि मुझे इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह की खिदमत में बीस (20) साल से ज़्यादा मुद्दत गुज़ारने की सआदत मिली, मैंने आपसे ज़्यादा लोगों का खैर ख़्वाह हमदर्द और शफ़क़त करने वाला नहीं देखा। आप इल्म वालों को दिलों जान से चाहते। आपकी दिन व रात अल्लाह पाक की याद के लिए वक़्फ़ थे। सारा दिन तालीमों तदरीस में गुज़रता। बाहर से आने वाले मसाइल का जवाब लिखते, बिलमुशफा मसाइल पूछने वालों की रहनुमाई फरमाते। मजलिस में बैठते तो वो दरसो तदरीस की महफ़िल होती और बाहर निकलते तो मरीज़ों की ईयादत, जनाज़ों में शिरकत, फ़क़ीरों मसाकीन की खिदमत, रिश्तेदारों की खबर गिरी और आने वालों की हाजत रवाई में मशगूल हो जाते। रात इबादत में गुज़ारते और क़ुरआन मजीद की बहतीरीन अंदाज़ में तिलावत करते। यही मामूलात ज़िन्दगी भर क़ाइम रहे। यहाँ तक के आपका विसाल हो गया।


मुआनी बिन इमरान अल मूसली रहिमाहुल्लाह कहते हैं कि 

इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु‌ तआला अन्हु में दस सिफ़ात ऐसी थीं कि अगर उन में से एक भी अगर किसी में मौजूद हो तो वह अपनी कौम का सरदार बन जाता है, परहेज़गारी सच्चाई, फ़िक़्ही महारत, अवाम की खातिर मदारात और सखावत, पुर ख़ुलूस हमदर्दी लोगों को नफ़ा पहुंचाने में सबक़त, तवील ख़ामोशी फ़ुज़ूल गुफ्तुगू से परहेज़, गुफ्तुगू में हक़ बात कहना और मज़लूम की मुआविनत ख़्वाह वो दुश्मन हो या दोस्त।


हज़रत दाऊद ताई रदियल्लाहु तआला अन्हु इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु की खिदमत में :


हज़रत दाऊद ताई रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैं बीस साल तक इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु की खिदमत में रहा, इस मुद्दत में मैंने उन्हें ख़ल्वत और जल्वत में नंगे सर और पाऊं फैलाए हुए नहीं देखा। एक बार मैंने उनसे अर्ज़ की उस्तादे मुहतरम अगर आप ख़ल्वत में पाऊं फैला लिया करें तो इसमें क्या मुज़ाइक़ा है? फ़रमाया ख़ल्वत में अदब मलहूज़ रखना जल्वत की बनिस्बत बेहतर और ज़्यादा ओला है।


इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु इल्मों फ़ज़ल की दुनिया में फ़िक़ाह पर बड़ी गहरी नज़र रखते थे। आप आपने अहबाब के लिए बेपनाह फ़िक्र मंद रहते। इल्मी हाजात पूरी करने में बड़ी तवज्जुह और क़ाबिलियत से हिस्सा लेते। जिसे पढ़ाते उसके दुख दर्द में शरीक होते। गरीब और मसाकीन शागिर्दों का ख़ास ख़याल करते। आप बाज़ औक़ात लोगों को इतना देते कि वो खुशहाल हो जाते। आपके पास अक़्ल व बसीरत के ख़ज़ाने थे।


इसके बावजूद आप मुनाज़िरों से इज्तिनाब फरमाते। आप लोगों से बहुत कम गुफ्तुगू फरमाते और उनसे मसाइल में उलझते नहीं थे, बल्कि ख़ामोशी इख़्तियार करते।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह के हुस्ने अख़लाक़ के बारे में बेशुमार वाक़िआत क़ुत्बे कसीरा में मौजूद हैं। सच तो ये है कि जिस तरह इल्मों अमल में बे मिस्ल व बे मिसाल शान रखते हैं, इसी तरह हुस्ने अख़लाक़ और सीरत व किरदार में भी उनका कोई सानी नहीं। इमाम अबू युसूफ रहिमाहुल्लाह ने तो गोया समंदर को कूज़े में समो कर रख दिया,आप ने फ़रमाया कि

अल्लाह पाक ने इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह को इल्मों अमल, सखावत व ईसार और दीगर क़ुरआनी अख़लाक़ से मुज़य्यन कर दिया था।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह तिजारत (बिजनेस) का कारोबार करते थे :


रेशमी कपड़े के ताजिर (बिजनेसमैन) को अरबी ज़बान में अल खिज़ाज़ कहते हैं। इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह रेशमी कपड़े की तिजारत किया करते थे। आपकी तिजारत बहुत बड़ी थी। लाखों का लेन देन था। अक्सर शहरों में कारिंदे मुक़र्रर थे। बड़े-बड़े सौदागरों से मुआमला रहता था। इतने बड़े कारोबार के बावजूद दियानत और एहतियात का इस क़द्र खयाल रखते थे कि नाजाइज़ तौर पर एक आना भी उनकी आमदनी में दाखिल नहीं हो सकता था।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह चार सिफ़ात की वजह से एक कामिल और माहिर ताजिर (बिजनेसमैन) हुए -

1. आप का नफ़्स गनी था, लालच का असर किसी वक़्त भी आप पर ज़ाहिर न हुआ।

2. आप निहायत दर्जा अमानत दार थे।

3. आप माफ़ और दरगुज़र करने वाले थे।

4. आप शरीअत के एहकाम पर सख्ती से अमल पैरा थे।


इन औसाफ़े आलिया का इज्तिमाई तौर पर जो असर आप के तिजारती मुआमलात पर हुआ। उसकी वजह से आप ताजिरों के तबके में अनोखे ताजिर हुए और बेश्तर अफ़राद ने आपकी तिजारत को हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु तआला अन्हु की तिजारत से तश्बीह दी है, गोया आप हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु तआला अन्हु की तिजारत की एक मिसाल पेश कर रहे हैं, और आप उन तरीकों पर चल रहे हैं जिन पर सल्फ सालिहीन का अमल था। आप माल खरीदते वक़्त भी इसी तरह अमानत दारी के तरीके पर आमिल रहते थे, जिस तरह बेचने के वक़्त आमिल रहा करते थे।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लह का तिजारत में तक़वा :


एक दिन एक औरत आपके पास रेशमी कपड़े का थान बेचने के लिए लाइ। आपने उससे दाम पूछे। उसने एक सौ बताए आपने फ़रमाया ये कम है। कपड़ा ज़्यादा क़ीमती है। उस औरत ने दो सौ बताए। आपने फिर कहा यह दाम कम है। उसने फिर सौ और बढ़ाए यहाँ तक कि चार सौ तक पहुंच गई। आप ने फ़रमाया यह चार सौ से ज़्यादा का है वो बोली तुम मुझ से मज़ाक़ करते हो? आपने उससे पांच सौ देकर वो कपड़ा खरीद लिया। इस तक़वा और दियानत ने आपके कारोबार को बजाए नुकसान पहुंचाने के और चमका दिया।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने कभी किसी बेचने वाली की गफलत और ला इल्मी से फायदा नहीं उठाया बल्कि आप उनकी भलाई के लिए उनकी बेहतरीन रहनुमाई फरमाते थे। आप आपने अहबाब से या किसी गरीब खरीदार से नफ़ा भी नहीं लिया करते थे, बल्कि आपने नफ़ा में से भी उस को दे दिया करते।


एक बूढ़ी औरत आपके पास आई और उसने कहा मेरी ज़्यादा इस्तिाअत नहीं इसलिए यह कपड़ा जितने में आपको पड़ा है उस दाम पर मेरे हाथ बेच दें, आपने फ़रमाया तुम चार दिरहम में ले लो, वो बोली में एक बूढ़ी औरत हूँ मेरा मज़ाक़ क्यों उड़ाते हो क्यों कि यह क़ीमत बहुत कम है? आपने फ़रमाया

मैंने दो कपड़े खरीदे थे और उनमें से एक कपड़े को दोनों की क़ीमत खरीद से चार दिरहम कम पर बेचा चुका हूँ, अब ये दूसरा कपड़ा है जो मुझे चार दिरहम में पड़ा है, तुम चार दिरहम में इसे ले लो।


एक बार आपने अपने कारोबारी शरीक को बेचने के लिए कपड़े की थान भेजी। जिनमें से एक थान में कोई नुक़्स और ऐब था, उससे फ़रमाया जब इस थान को बेचो तो इस का ऐब भी बता देना, उसने थान बेच दिया, गाहिक (कस्टमर) से इस थान का ऐब बयान करना भूल गए, और यह भी याद न रहा कि वह ऐबदार थ न गाहिक (कस्टमर) को बेचा था,‌ इमामे आज़म रहिमाहुल्लह को जब इस बात का इल्म हुआ तो आपने इन ताम थानों की क़ीमत तीस हज़ार दिरहम सदक़ा कर दी और इस शरीक को अलग कर दिया।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह की ज़िन्दगी भर यह कोशिश रही कि वह सैयदना हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु तआला अन्हु के नक़्शे क़दम पर ज़िन्दगी बसर करें और आप के अक़वाल, अफआल, और खसाइल की पैरवी करें, क्यूंकि सैयदना हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु तआला अन्हु तमाम सहाबा-ए-किराम से अफ़ज़ल हैं।


हुज़ूर रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से क़ुरबत इसलिए थी कि वो मिज़ाज शनास आदाते रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम थे।


सहाबा-ए-किराम में सब से बढ़ कर आलिम, फ़क़ीह, मुत्तक़ी, परहेज़गार, इबादत गुज़र सखी और जांनिसार आप ही थे। इसी तरह इमामे आज़म रहिमाहुल्लह “ताबईन में सब से ज़्यादा इल्म वाले सब से ज़्यादा मुत्तक़ी, सब से ज़्यादा सखी और सब से ज़्यादा जव्वाद थे।


हज़रत अबू बक्र रदियल्लाहु तआला अन्हु मक्का शरीफ में दुकानदारी करते थे। कपड़े का कारोबार था। इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने कूफ़ा में कपड़े का कारोबार किया। हुज़ूर रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सुन्नतों की मारफअत और दीन की समझ भी हासिल की। इस तरह हज़रत अबू बक्र रदियल्लाहु तआला अन्हु का एक-एक लम्हा आप ने अपनी ज़िन्दगी में शामिल कर लिया।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लह की सखावत :


इमामे आज़म रहिमाहुल्लह की बड़ी तिजारत का मक़सद सिर्फ दौलत कमाना नहीं था बल्कि आपका मक़सद लोगों को ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा पहुंचना था। जितने अहबाब मिलने वाले थे सबके वज़ीफ़े मुक़र्रर कर रखे थे। शीयूख और मुहद्दिसीन के लिए तिजारत का एक हिस्सा मख़सूस कर दिया था कि उससे जो नफा होता था, साल के साल उन लोगों को पंहुचा दिया जाता था।


आपका आम मामूल था कि घर वालों के लिए कोई चीज़ खरीदते तो उसी क़द्र मुहद्दिसीन, और उलमा, के पास भिजवाते, अगर कोई शख्स मिलने आता तो उसका हाल पूछते और हाजत मंद होता तो हाजत रवाई करते। शागिर्दों में जिस को तंग दस्त देखते उसकी घरेलू ज़रूरियात की किफ़ालत करते ताकि वो इत्मीनान से इल्म की तकमील कर सके। बहुत से लोग जो मुफलिसी की वजह से इल्म हासिल नहीं कर सकते थे, आपही की दस्तगीरी की बदौलत बड़े बड़े रुत्बों पर पहुंचे, उनमे,‌ “हज़रत इमाम अबू युसूफ रहिमाहुल्लह”, बहुत मशहूर हैं।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लह तिजारत के नफ़ा को साल भर जमा करते और फिर उससे असातिज़ा और मुहद्दिसीने किराम की ज़रूरियात मसलन खुराक और लिबास वगैरह खरीद कर उनकी खिदमत में पेश कर दिया करते और जो रूपया नक़द बाक़ी रह जाता वो उन हज़रात की खिदमत में बतौर नज़राना पेश फरमाते, मैंने अपने माल में से कुछ नहीं दिया, यह सब अल्लाह पाक का है, और उसने अपने फ़ज़्लो करम से आप हज़रात के लिए यह माल मुझे आता फ़रमाया है जो मैं आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूं।


हज़रत सुफियान बिन उईना रहिमाहुल्लाह फरमाते हैं कि इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह बहुत ज़्यादा सदक़ा किया करते थे।

उनको जो भी नफ़ा होता वह दे दिया करते थे। मुझको इस कसरत से तोहफे भेजते कि मुझको वहशत होने लगी। मैंने उनके कुछ असहाब से इसका शिकवा किया तो उन्होंने कहा अगर तुम इन तोहफ़ों को देखते हो जो उन्होंने ने सईद बिन अबी अरवाह रहिमाहुल्लह को भेजे हैं तो हैरान रह जाते।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने मुहद्दिसीन में से किसी को भी नहीं छोड़ा कि जिसके साथ भलाई न की हो। हज़रत इमाम मुसइर रहिमाहुल्लह कहते हैं कि जब भी अपने लिए या अपने घर वालों के लिए कपड़ा या मेवा खरीदते तो इसी मिक़्दार में कपड़ा या मेवा उलमा व मशाइख के लिए खरीदते।


हज़रत शरीक रहिमाहुल्लह ने कहा कि जो शख्स आपसे पढ़ता तो आप उस को नानो नफ़्क़ा की तरफ से बेनियाज़ कर दिया करते बल्कि उसके घर वालों पर भी खर्च करते थे, और जब वो इल्म पढ़ लेता तो उससे फरमाते,

“अब तुम को बहुत बड़ी दौलत मिल गई है क्यूंकि तुम को हलालो हराम की पहचान हो गई है”।


इमाम अबू युसूफ रहिमाहुल्लह ने बयान किया कि “आपने बीस साल तक मेरा और मेरे घर वालों का खर्च बर्दाश्त किया और में जब भी आपसे कहता कि मैंने आपसे ज़्यादा देने वाला नहीं देखा तो आप फरमाते हैं, अगर तुम मेरे उस्ताद इमाम हम्माद रहिमाहुल्लह को देख लेते तो ऐसा न कहते।


आपने यह भी फ़रमाया अगर आप किसी को कुछ दिया करते थे अगर वो आपका शुक्रिया अदा करता तो आप को बड़ा मलाल होता था, आप उससे फरमाते शुक्र अल्लाह पाक का अदा करो कि उसने यह रोज़ी तुम को दी है।


हज़रत अल्लामा इब्ने हजर मक्की रहिमाहुल्लह फरमाते हैं कि इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु सब से ज़्यादा अपने असहाब और हम नशीनो की ग़मख़्वारी और उनका इकराम करने वाले थे, इसीलिए आप मुहताजों का निकाह करा देते और तमाम इख़राजात खुद बर्दाश्त करते थे। आप हर शख्स की तरफ उसके मर्तबे के मुताबिक़ खर्च भेजते थे।

एक बार आप ने एक शख्स को अपनी मजलिस में फाटे पुराने कपड़े पहने देखा तो जब लोग जाने लगे आपने उससे फ़रमाया तुम ज़रा ठहर जाओ फिर फ़रमाया मेरे जानमाज़ के नीचे जो कुछ है वह ले लो और उससे अपनी हालत सवांरो, उसने जानमाज़ उठा कर देखा तो वहां हज़ार दिरहम थे, उसने अर्ज़ की में दौलत मंद हूँ मुझे इसकी ज़रुरत नहीं, तो आपने फ़रमाया तुमने ये हदीस नहीं सुनी कि अल्लाह पाक अपने बन्दों पर अपनी नेमतों का असर देखना चाहता है लिहाज़ा तुम अपनी हालत बदलो कि तुम्हे देख कर किसी को तुम्हारे मुहताज होने का शुबह (शक) न हो और तुम्हारे दोस्त तुम्हारी खुशहाली से खुश हों।


इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने दस हज़ार का क़र्ज़ माफ़ कर दिया :


एक बार आप किसी बीमार की इयादत को जा रहे थे, कि रास्ते में एक शख्स आता दिखाई दिया जो आपका मक़रूज़ था, उसने दूर से आपको देख लिया और मुँह छुपा कर दूसरी तरफ जाने लगा, आपने उसे देख लिया और नाम लेकर उस को पुकारा वो खड़ा हो गया आपने क़रीब पहुंच कर फ़रमाया तुमने मुझ से रास्ता क्यों बदला?

उसने अर्ज़ की मुझे आपका दस हज़ार दिरहम क़र्ज़ अदा करना है, इस शर्मिंदगी की वजह से आप का सामना नहीं करना चाहता था, आपने फ़रमाया सुब्हानल्लाह, मैं खुदा को गवाह बना कर कहता हूँ मैंने सारा क़र्ज़ माफ़ कर दिया तुम आइंदा मुझ से मुँह न छुपाना और मेरी वजह से जो तुम्हे निदामत और परेशानी हुई उसके लिए माफ़ी चाहता हूँ।


यह रिवायत बयान करके शफ़ीक़ रहिमाहुल्लाह फरमाते हैं कि आपका यह हुस्ने सुलूक देखकर मुझे यक़ीन हो गया आप से बढ़ कर शायद ही कोई ज़ाहिद दरया दिल मेहरबान सखी हो‌

एक बार हज के सफर में अब्दुल्लाह बिन बिक्र सहमी रहिमाहुल्लह का किसी आराबी से झगड़ा हो गया, वह इन्हें इमाम साहब की खिदमत में ले आया कि यह मेरी रक़म अदा नहीं कर रहा है, उन्होंने इंकार किया आपने आराबी से फ़रमाया तुम मुझे बताओ तुम्हारे कितने दिरहम बनते हैं? उसने कहा चालीस दिरहम बनते हैं, आपने फ़रमाया कि तअज्जुब है की लोगों के दिलों से अख़लाक़ो हमीयत का ज़ज्बा ख़त्म हो गया। इतनी सी रक़म पर झगड़ा, मुझे तो शर्म महसूस होती है फिर आपने अपने पास से चालीस दिरहम उस आराबी को दे दिए‌

जब आप के साहबज़ादे हम्माद रहिमाहुल्लह ने उस्ताद से सूरह फातिहा पढ़ी तो आपने उनके उस्ताद को एक हज़ार दिरहम नज़राना पेश किया। वह कहने लगे हुज़ूर मैंने कौन सा इतना बड़ा कारनामा सर अंजाम दिया है कि आप इतनी ज़्यादा रक़म नज़राना दे रहे हैं। आपने फ़रमाया मेरे बेटे को जो दौलत इनायत की है उसके सामने तो ये नज़राना बहुत हक़ीर है बाखुद अगर मेरे पास इससे ज़्यादा होता तो वो भी पेश कर देता।


हज़रत वकी रहिमाहुल्लह कहते हैं कि  इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने मुझसे फ़रमाया हज़रत अली शेरे खुदा रदियल्लाहु तआला अन्हु का इरशादे गिरामी है चार हज़ार या इससे कुछ कम नफ़्क़ा है यानी साल भर के लिए इतना खर्च काफी है, इस इरशादे गिरामी की वजह से चालीस साल में कभी चार हज़ार दिरहम का मालिक नहीं हुआ। जब भी मेरे पास चार हज़ार दिरहम से ज़्यादा माल आता है, मैं वह ज़्यादा माल राहे खुदा में खर्च कर देता हूँ और अगर मुझे यह डर न होता कि मैं लोगों का मुहताज हो जाऊँगा तो एक दिरहम भी अपने पास न रखता।

इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने जिस ख़ुलूस के साथ अवाम और उलमा किराम की खिदमत की, उसकी मिसाल नहीं मिलती जो लोग आपकी मजलिस में यूं ही चंद लम्हे सुस्ताने के लिए बैठ जाते वह भी आपकी सखावत से फ़ैज़याब होते। आप उनसे भी उनकी ज़रूरियात पूछते अगर कोई भूखा होता तो उसे खाना खिलाते। बीमार होता तो इलाज के लिए रक़म देते। कोई हाजत मंद होता तो उसकी हाजत रवाई करते। अगर कोई ज़बान से हाजत बयान न करता तो उसके कहे बगैर फरासते बातनी से उसका मक़सद जान लेते।



इमामे आज़म रहिमाहुल्लह गरीब मुहताजों की बहुत मदद करते थे :


हज़रत अल्लामा मोफिक बिन अहमद मक्की रहिमाहुल्लह लिखते हैं कि कूफ़ा में एक माल दार शख्स था बड़ा खुद्दार और हयादार था, एक वक़्त ऐसा आया कि वह ग़रीब और मुहताज हो गया, वह बाज़ार जा कर मज़दूरी करता, मशक़्क़त उठाता और सब्र करता, एक दिन उसकी बच्ची ने बाज़ार में ककड़ी देखी घर आ कर माँ से ककड़ी लेने के लिए पैसे मांगें मगर माँ उसकी ख्वाहिश पूरी न कर सकी घर का सामान पहले ही बिक चुका था बच्ची रोने लगी, उस शख्स ने इमामे आज़म रहिमाहुल्लह से मदद लेने का इरादा किया वह आपकी मजलिस में आ कर बैठा मगर शर्मों हया की वजह से उसकी ज़बान न खुली। इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह ने अपनी फिरासत से भांप लिया कि इस शख्स को कोई हाजत है मगर हया की बिना पर यह सवाल नहीं कर रहा, जब वह शख्स वहां से उठकर जाने लगा तो आपने एक आदमी उसके पीछे रवाना कर दिया उस शख्स ने घर जा कर अपनी बीवी को बताया कि मैं शर्मों हया की वजह से उस बाबरकत मजलिस में कुछ न मांग सका। इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह के भेजे हुए आदमी ने वापस जा कर सब अहवाल इमाम साहब से बयान कर दिया।

जब रात का एक हिस्सा गुज़र गया तो इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह पांच हज़ार दिरहम की थैली लेकर उस शख्स के घर पहुंच गए और दरवाज़ा खटखटा कर फ़रमाया “मैं तुम्हारे दरवाज़े पर एक चीज़ रखे जा रहा हूँ इसे ले लो” ये फरमा कर आप वापस आ गए, उसके घर वालों ने थैली खोली तो उसमे पांच हज़ार दिरहम थे और एक कागज़ के पुर्ज़े पर लिखा था तुम्हारे दरवाज़े पर अबू हनीफा यह थोड़ी सी रक़म लेकर आया था यह उसकी हलाल कमाई से है इसे इस्तिमाल में लाओ और वापस न करना।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लह अपने वक़्त में बहुत बड़े अमीन व दियानत दार थे :


हमक बिन हिशाम रहिमाहुल्लह फरमाते हैं कि इमामे आज़म रहिमाहुल्लह अपने वक़्त में बहुत बड़े अमीन व दियानत दार थे। जब खलीफा ने उनको हुक्म दिया कि वह उसके ख़ज़ाने के मतवल्ली और देखरेख करने वाले बन जाएं वरना वह उन्हें सज़ा देगा तो आपने अल्लाह पाक के अज़ाब के बजाए खलीफा की इज़ा रसानी को क़बूल फरमा लिया।

क्यूंकि अक्सर बादशाह और हुक्काम सरकारी ख़ज़ाने का बेजा इस्तिमाल करते हैं और आप उनके इस नाजाइज़ काम में हिस्सेदार नहीं बनना चाहते थे।


हज़रत वकी रहिमाहुल्लह फरमाते हैं कि खुदा की क़सम इमामे आज़म रहिमाहुल्लह में बहुत बड़े अमीन व दियानत दार थे। उनके दिल में अल्लाह पाक की शान और उस का खौफ जलवागर था और उसकी रज़ा पर किसी चीज़ को तरजीह नहीं देते थे।


हज़रत अब्दुल अज़ीज़ सनआनी रहिमाहुल्लह फरमाते हैं कि जिन्होंने आप से फ़िक़्हा पढ़ी थी, फरमाते हैं, जब में हज पर गया तो अपनी एक हसीन कनीज़ इमामे आज़म रहिमाहुल्लह के पास बतौरे अमानत छोड़ गए, एक अरसे बाद जब मैं आप के पास हाज़िर हुआ तो मैंने मालूम किया, हुज़ूर मेरी कनीज़ ने आपकी कैसी खिदमत की? आपने फ़रमाया मैंने उससे कभी कोई काम न लिया और न ही उसे आँख उठा कर देखा क्यूंकि यह आपकी अमानत थी।


एक देहाती ने आपके पास एक लाख सत्तर हज़ार दिरहम बतौरे अमानत रखे मगर उसका इंतक़ाल हो गया, उसने किसी को बताया भी न था कि मैंने इस क़द्र रक़म इमामे आज़म के पास बतौरे अमानत रखवाई है, उसके छोटे छोटे बच्चे थे, जब वो बालिग़ हुए तो इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने उन्हें अपने पास बुलाया और उनके वालिद की सारी रक़म लौटा दी और फ़रमाया कि यह तुम्हारे वालिद की अमानत थी। आपने यह अमानत ख़ुफ़िया (छुपाना) तौर पर लौटाई ताकी इतनी बड़ी रक़म का लोगों को इल्म न हो और वो इन्हें तंग न करें।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह का तक़वा और अमानत व दियानत के बाइस उलमा और अवाम आपकी बेहद इज़्ज़त किया करते थे जबकि मुख़ालिफ़ीन व हसीदीन हसद की आग में जलते रहते और मुख्तलिफ हरबे इस्तिमाल करके आप के मक़ाम व रुतबे को घटाने की मज़मूम कोशिश करते।


एक बार एक शख्स के ज़रिए आपके पास एक थैली अमानत रखवाई गई जिस पर सरकारी मुहर भी लगी हुई थी। हासिदों की बदगुमानी यह थी कि इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह कुछ अरसा बाद यक़ीनन इस रक़म का कारोबार में इस्तिमाल कर लें और इसी में गिरफ्त की जाएगी। चुनांचे इस मंसूबा बंदी के साथ एक शख्स ने कूफ़ा के क़ाज़ी इब्ने अबी लैला के पास दावा दाइर किया कि इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने फुलां शख्स का माले तिजारत के लिए अपने बेटे को दे दिया है हालांकि यह माले अमानत के तौर पर रखवाया था,

चुनांचे इमाम साहब को तलब किया गया और बताया गया कि आप पर इलज़ाम है कि आप ने फुलां शख्स की अमानत अपने कारोबार में लगा दी है, आपने फ़रमाया यह इल्ज़ाम बिल्कुल गलत है, इसकी अमानत जूँ की तूँ मेरे पास महफ़ूज़ है। अगर आप चाहें तो सरकारी नुमाइंदा भेज कर तस्दीक़ कर लें। जब वो लोग आए तो आपके माल खाने में वह अमानत वैसी ही मौजूद पाई। जिस पर सरकारी मुहर लगी हुई थी यह देखकर सबको निदामत हुई।

उनके लिए निदामत और हैरत की वजह यह भी थी कि इमामे आज़म रहिमाहुल्लह के पास इतनी कसीर अमानतें जमा थीं जो उनके वहमों गुमान में भी नहीं थी।


मुहम्मद बिन फ़ज़्ल रहिमाहुल्लह फरमाते हैं कि जब इमामे आज़म का विसाल हुआ तो आप के पास लोगों की पांच करोड़ (50000000) की अमानते थीं जिन्हें आपके बेटे हज़रते हम्माद रहिमाहुल्लह ने लोगों को लौटाया। 


यह बात गौर तलब है कि यह वो रक़म है जो आपके विसाल के बाद मौजूद थी। जबकि आखरी उम्र में खलीफा की मुखालिफत के बाइस आपके लिए जेल की क़ैद और दूसरी सज़ाओं का इमकान बहुत बढ़ चुका था।

लिहाज़ा आपके तक़वा और बसीरत के बाइस यह बात यक़ीन से कही जा सकती है कि आपने उस ज़माने में इन अमानतों की ज़िम्मेदारियों से सबकदोश होने की कोशिश में कोई कसर न छोड़ी होगी लेकिन लोगों की अमानतों का सिलसिला इस क़द्र वसी था कि उसे समेटते समेटते भी पांच करोड़ (50000000) की अमानते बच गईं जो बाद में आप के सबज़ादे ने उन लोगों तक पहुचाईं।


इससे यह अंदाज़ा होता है कि इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने लोगों की अमानतों की हिफाज़त की हिफाज़त का एक अज़ीम निज़ाम कायम किया हुआ था। दफ्तर, माल खाना, मुलाज़िम, खाता, रजिस्टर और हिसाब किताब करने वाले हिसाब जानने वाले यक़ीनन इस निज़ाम का हिस्सा होंगें। इस बिना पर यह कहा जा सकता है कि लोगों के अमवाल और क़ौम की हिफाज़त और उनकी अस्ल मालिकों को वापसी यक़ीनी बनाने के लिए इमामे आज़म रहिमाहुल्लह मंसूबा बंदी और अमली इक़दामात कर के सूद से पाक खालिस इस्लामी बैंक का वाज़ेह तसव्वुर पेश कर चुके हैं।


`इमामे आज़म अबू हनीफा नोमान बिन साबित रदियल्लाहु तआला अन्हु की हालाते ज़िन्दगी (Part-3)`


इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु दरमियाना क़द,  खूबसूरत, खुश गुफ्तार और शीरीं लहजे वाले थे। आप की गुफ्तुगू (बात चीत) फसीह व बलीग़ होती।


हज़रत अबू नोएम रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं कि इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह का चेहरा अच्छा, कपड़े अच्छे खुशबू अच्छी और मजलिस अच्छी होती। आप बहुत करम करने वाले और रफ़ीक़ों (दोस्त, साथी) बड़े गमख्वार थे।


उमर बिन हम्माद रहिमाहुल्लाह कहते हैं‌ कि आप खूबसूरत और खुश लिबास थे। कसरत से खुश्बू इस्तेमाल करते थे। जब सामने से आते या घर से निकलते तो आपके पहुंचने से पहले आपकी खुश्बू पहुंच जाती।‌ (खतीब बगदादी जिल्द 13)


हज़रत अब्दुल्लाह बिन मुबारक रहिमाहुल्लाह ने हज़रत सुफियान सौरी रहिमाहुल्लाह से कहा, इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह ग़ीबत करने से कोसों दूर थे। मैंने कभी नहीं सुना कि उन्होंने अपने किसी मुखालिफ की ग़ीबत की हो। हज़रत सुफियान सौरी रहिमाहुल्लाह ने फ़रमाया कि अल्लाह की क़सम! वो बहुत अक़्लमंद थे। वह अपनी नेकियों पर कोई ऐसा अमल मुसल्लत नहीं करना चाहते थे, जो उनकी नेकियों को ज़ाए कर दे।


हज़रत शरीक रहिमाहुल्लाह ने कहा कि इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु निहायत खामोश तबअ, बहुत अक़्लमंद ज़हीन, लोगों से कम बहस करने वाले और कम बोलने वाले थे।


हज़रत ज़मरा रहिमाहुल्लाह के बक़ौल लोगों का इत्तिफ़ाक़ है कि इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु दुरुस्तक (ठीक, सही) ज़बान थे। उन्होंने कभी किसी का ज़िक्र बुराई से न किया और जब उनसे कहा गया, लोग आप पर एतिराज़ करते हैं? तो आपने फ़रमाया “यह अल्लाह पाक का फ़ज़ल है” जिसको चाहे अता करे।


हज़रत बोकेर बिन मअरूफ़ रहिमाहुल्लाह ने फ़रमाया कि उम्मते मुहम्मदी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम में कोई शख्स, मैंने “इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु” से बेहतर नहीं देखा,

एक बार खलीफा हारुन रशीद ने इमाम अबू युसूफ रहिमाहुल्लाह से कहा, “इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु” के अख़लाक़ बयान करो।


उन्होंने फ़रमाया कि “इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु हराम चीज़ों से खुद भी बचते और दूसरों को भी बचाने की बहुत कोशिश करते। बगैर इल्म के दीन में कोई बात कहने से बहुत डरते थे। वह अल्लाह पाक की इबादत में मुजाहिदा करते। वह दुनियादारों से दूर रहते और कभी किसी की खुशामद न करते। वह अक्सर खामोश रहते और दीनी मसाइल में ग़ौरो फ़िक्र करते। इल्मों अमल में बुलंद रुतबा होने के बावजूद आजिज़ी व इंकिसारी का पैकर थे।


जब उनसे कोई मसला पूछा जाता तो क़ुरआनो सुन्नत की तरफ रुजू करते अगर क़ुरआनो सुन्नत में उसकी नज़ीर न मिलती हक़ तरीक़े पर क़यास करते, आपने नफ़्स और दीन की हिफाज़त करते और राहे खुदा में इल्म और माल व दौलत खूब खर्च करते। उनका नफ़्स तमाम लोगों से बेनियाज़ था। लालच और हिर्स की तरफ उनका मैलान न था। वह ग़ीबत करने से बहुत दूर थे। अगर किसी का ज़िक्र करते तो भलाई से करते”, ये सुन कर खलीफा ने कहा “सावलिहीन के अख़लाक़ ऐसे ही होते हैं” फिर उसने कातिब को ये औसाफ़ लिखने का हुक्म दिया और आपने बेटे से कहा, इन औसाफ़ को याद कर लो।


बीस (20) साल तक इमामे ज़ुफर रहिमाहुल्लाह, इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह की खिदमत में :


इमामे ज़ुफर रहिमाहुल्लाह फरमाते हैं कि मुझे इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह की खिदमत में बीस (20) साल से ज़्यादा मुद्दत गुज़ारने की सआदत मिली, मैंने आपसे ज़्यादा लोगों का खैर ख़्वाह हमदर्द और शफ़क़त करने वाला नहीं देखा। आप इल्म वालों को दिलों जान से चाहते। आपकी दिन व रात अल्लाह पाक की याद के लिए वक़्फ़ थे। सारा दिन तालीमों तदरीस में गुज़रता। बाहर से आने वाले मसाइल का जवाब लिखते, बिलमुशफा मसाइल पूछने वालों की रहनुमाई फरमाते। मजलिस में बैठते तो वो दरसो तदरीस की महफ़िल होती और बाहर निकलते तो मरीज़ों की ईयादत, जनाज़ों में शिरकत, फ़क़ीरों मसाकीन की खिदमत, रिश्तेदारों की खबर गिरी और आने वालों की हाजत रवाई में मशगूल हो जाते। रात इबादत में गुज़ारते और क़ुरआन मजीद की बहतीरीन अंदाज़ में तिलावत करते। यही मामूलात ज़िन्दगी भर क़ाइम रहे। यहाँ तक के आपका विसाल हो गया।


मुआनी बिन इमरान अल मूसली रहिमाहुल्लाह कहते हैं कि 

इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु‌ तआला अन्हु में दस सिफ़ात ऐसी थीं कि अगर उन में से एक भी अगर किसी में मौजूद हो तो वह अपनी कौम का सरदार बन जाता है, परहेज़गारी सच्चाई, फ़िक़्ही महारत, अवाम की खातिर मदारात और सखावत, पुर ख़ुलूस हमदर्दी लोगों को नफ़ा पहुंचाने में सबक़त, तवील ख़ामोशी फ़ुज़ूल गुफ्तुगू से परहेज़, गुफ्तुगू में हक़ बात कहना और मज़लूम की मुआविनत ख़्वाह वो दुश्मन हो या दोस्त।


हज़रत दाऊद ताई रदियल्लाहु तआला अन्हु इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु की खिदमत में :


हज़रत दाऊद ताई रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैं बीस साल तक इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु की खिदमत में रहा, इस मुद्दत में मैंने उन्हें ख़ल्वत और जल्वत में नंगे सर और पाऊं फैलाए हुए नहीं देखा। एक बार मैंने उनसे अर्ज़ की उस्तादे मुहतरम अगर आप ख़ल्वत में पाऊं फैला लिया करें तो इसमें क्या मुज़ाइक़ा है? फ़रमाया ख़ल्वत में अदब मलहूज़ रखना जल्वत की बनिस्बत बेहतर और ज़्यादा ओला है।


इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु तआला अन्हु इल्मों फ़ज़ल की दुनिया में फ़िक़ाह पर बड़ी गहरी नज़र रखते थे। आप आपने अहबाब के लिए बेपनाह फ़िक्र मंद रहते। इल्मी हाजात पूरी करने में बड़ी तवज्जुह और क़ाबिलियत से हिस्सा लेते। जिसे पढ़ाते उसके दुख दर्द में शरीक होते। गरीब और मसाकीन शागिर्दों का ख़ास ख़याल करते। आप बाज़ औक़ात लोगों को इतना देते कि वो खुशहाल हो जाते। आपके पास अक़्ल व बसीरत के ख़ज़ाने थे।


इसके बावजूद आप मुनाज़िरों से इज्तिनाब फरमाते। आप लोगों से बहुत कम गुफ्तुगू फरमाते और उनसे मसाइल में उलझते नहीं थे, बल्कि ख़ामोशी इख़्तियार करते।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह के हुस्ने अख़लाक़ के बारे में बेशुमार वाक़िआत क़ुत्बे कसीरा में मौजूद हैं। सच तो ये है कि जिस तरह इल्मों अमल में बे मिस्ल व बे मिसाल शान रखते हैं, इसी तरह हुस्ने अख़लाक़ और सीरत व किरदार में भी उनका कोई सानी नहीं। इमाम अबू युसूफ रहिमाहुल्लाह ने तो गोया समंदर को कूज़े में समो कर रख दिया,आप ने फ़रमाया कि

अल्लाह पाक ने इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह को इल्मों अमल, सखावत व ईसार और दीगर क़ुरआनी अख़लाक़ से मुज़य्यन कर दिया था।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह तिजारत (बिजनेस) का कारोबार करते थे :


रेशमी कपड़े के ताजिर (बिजनेसमैन) को अरबी ज़बान में अल खिज़ाज़ कहते हैं। इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह रेशमी कपड़े की तिजारत किया करते थे। आपकी तिजारत बहुत बड़ी थी। लाखों का लेन देन था। अक्सर शहरों में कारिंदे मुक़र्रर थे। बड़े-बड़े सौदागरों से मुआमला रहता था। इतने बड़े कारोबार के बावजूद दियानत और एहतियात का इस क़द्र खयाल रखते थे कि नाजाइज़ तौर पर एक आना भी उनकी आमदनी में दाखिल नहीं हो सकता था।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह चार सिफ़ात की वजह से एक कामिल और माहिर ताजिर (बिजनेसमैन) हुए -

1. आप का नफ़्स गनी था, लालच का असर किसी वक़्त भी आप पर ज़ाहिर न हुआ।

2. आप निहायत दर्जा अमानत दार थे।

3. आप माफ़ और दरगुज़र करने वाले थे।

4. आप शरीअत के एहकाम पर सख्ती से अमल पैरा थे।


इन औसाफ़े आलिया का इज्तिमाई तौर पर जो असर आप के तिजारती मुआमलात पर हुआ। उसकी वजह से आप ताजिरों के तबके में अनोखे ताजिर हुए और बेश्तर अफ़राद ने आपकी तिजारत को हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु तआला अन्हु की तिजारत से तश्बीह दी है, गोया आप हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु तआला अन्हु की तिजारत की एक मिसाल पेश कर रहे हैं, और आप उन तरीकों पर चल रहे हैं जिन पर सल्फ सालिहीन का अमल था। आप माल खरीदते वक़्त भी इसी तरह अमानत दारी के तरीके पर आमिल रहते थे, जिस तरह बेचने के वक़्त आमिल रहा करते थे।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लह का तिजारत में तक़वा :


एक दिन एक औरत आपके पास रेशमी कपड़े का थान बेचने के लिए लाइ। आपने उससे दाम पूछे। उसने एक सौ बताए आपने फ़रमाया ये कम है। कपड़ा ज़्यादा क़ीमती है। उस औरत ने दो सौ बताए। आपने फिर कहा यह दाम कम है। उसने फिर सौ और बढ़ाए यहाँ तक कि चार सौ तक पहुंच गई। आप ने फ़रमाया यह चार सौ से ज़्यादा का है वो बोली तुम मुझ से मज़ाक़ करते हो? आपने उससे पांच सौ देकर वो कपड़ा खरीद लिया। इस तक़वा और दियानत ने आपके कारोबार को बजाए नुकसान पहुंचाने के और चमका दिया।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने कभी किसी बेचने वाली की गफलत और ला इल्मी से फायदा नहीं उठाया बल्कि आप उनकी भलाई के लिए उनकी बेहतरीन रहनुमाई फरमाते थे। आप आपने अहबाब से या किसी गरीब खरीदार से नफ़ा भी नहीं लिया करते थे, बल्कि आपने नफ़ा में से भी उस को दे दिया करते।


एक बूढ़ी औरत आपके पास आई और उसने कहा मेरी ज़्यादा इस्तिाअत नहीं इसलिए यह कपड़ा जितने में आपको पड़ा है उस दाम पर मेरे हाथ बेच दें, आपने फ़रमाया तुम चार दिरहम में ले लो, वो बोली में एक बूढ़ी औरत हूँ मेरा मज़ाक़ क्यों उड़ाते हो क्यों कि यह क़ीमत बहुत कम है? आपने फ़रमाया

मैंने दो कपड़े खरीदे थे और उनमें से एक कपड़े को दोनों की क़ीमत खरीद से चार दिरहम कम पर बेचा चुका हूँ, अब ये दूसरा कपड़ा है जो मुझे चार दिरहम में पड़ा है, तुम चार दिरहम में इसे ले लो।


एक बार आपने अपने कारोबारी शरीक को बेचने के लिए कपड़े की थान भेजी। जिनमें से एक थान में कोई नुक़्स और ऐब था, उससे फ़रमाया जब इस थान को बेचो तो इस का ऐब भी बता देना, उसने थान बेच दिया, गाहिक (कस्टमर) से इस थान का ऐब बयान करना भूल गए, और यह भी याद न रहा कि वह ऐबदार थ न गाहिक (कस्टमर) को बेचा था,‌ इमामे आज़म रहिमाहुल्लह को जब इस बात का इल्म हुआ तो आपने इन ताम थानों की क़ीमत तीस हज़ार दिरहम सदक़ा कर दी और इस शरीक को अलग कर दिया।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह की ज़िन्दगी भर यह कोशिश रही कि वह सैयदना हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु तआला अन्हु के नक़्शे क़दम पर ज़िन्दगी बसर करें और आप के अक़वाल, अफआल, और खसाइल की पैरवी करें, क्यूंकि सैयदना हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु तआला अन्हु तमाम सहाबा-ए-किराम से अफ़ज़ल हैं।


हुज़ूर रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से क़ुरबत इसलिए थी कि वो मिज़ाज शनास आदाते रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम थे।


सहाबा-ए-किराम में सब से बढ़ कर आलिम, फ़क़ीह, मुत्तक़ी, परहेज़गार, इबादत गुज़र सखी और जांनिसार आप ही थे। इसी तरह इमामे आज़म रहिमाहुल्लह “ताबईन में सब से ज़्यादा इल्म वाले सब से ज़्यादा मुत्तक़ी, सब से ज़्यादा सखी और सब से ज़्यादा जव्वाद थे।


हज़रत अबू बक्र रदियल्लाहु तआला अन्हु मक्का शरीफ में दुकानदारी करते थे। कपड़े का कारोबार था। इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने कूफ़ा में कपड़े का कारोबार किया। हुज़ूर रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सुन्नतों की मारफअत और दीन की समझ भी हासिल की। इस तरह हज़रत अबू बक्र रदियल्लाहु तआला अन्हु का एक-एक लम्हा आप ने अपनी ज़िन्दगी में शामिल कर लिया।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लह की सखावत :


इमामे आज़म रहिमाहुल्लह की बड़ी तिजारत का मक़सद सिर्फ दौलत कमाना नहीं था बल्कि आपका मक़सद लोगों को ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा पहुंचना था। जितने अहबाब मिलने वाले थे सबके वज़ीफ़े मुक़र्रर कर रखे थे। शीयूख और मुहद्दिसीन के लिए तिजारत का एक हिस्सा मख़सूस कर दिया था कि उससे जो नफा होता था, साल के साल उन लोगों को पंहुचा दिया जाता था।


आपका आम मामूल था कि घर वालों के लिए कोई चीज़ खरीदते तो उसी क़द्र मुहद्दिसीन, और उलमा, के पास भिजवाते, अगर कोई शख्स मिलने आता तो उसका हाल पूछते और हाजत मंद होता तो हाजत रवाई करते। शागिर्दों में जिस को तंग दस्त देखते उसकी घरेलू ज़रूरियात की किफ़ालत करते ताकि वो इत्मीनान से इल्म की तकमील कर सके। बहुत से लोग जो मुफलिसी की वजह से इल्म हासिल नहीं कर सकते थे, आपही की दस्तगीरी की बदौलत बड़े बड़े रुत्बों पर पहुंचे, उनमे,‌ “हज़रत इमाम अबू युसूफ रहिमाहुल्लह”, बहुत मशहूर हैं।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लह तिजारत के नफ़ा को साल भर जमा करते और फिर उससे असातिज़ा और मुहद्दिसीने किराम की ज़रूरियात मसलन खुराक और लिबास वगैरह खरीद कर उनकी खिदमत में पेश कर दिया करते और जो रूपया नक़द बाक़ी रह जाता वो उन हज़रात की खिदमत में बतौर नज़राना पेश फरमाते, मैंने अपने माल में से कुछ नहीं दिया, यह सब अल्लाह पाक का है, और उसने अपने फ़ज़्लो करम से आप हज़रात के लिए यह माल मुझे आता फ़रमाया है जो मैं आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूं।


हज़रत सुफियान बिन उईना रहिमाहुल्लाह फरमाते हैं कि इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह बहुत ज़्यादा सदक़ा किया करते थे।

उनको जो भी नफ़ा होता वह दे दिया करते थे। मुझको इस कसरत से तोहफे भेजते कि मुझको वहशत होने लगी। मैंने उनके कुछ असहाब से इसका शिकवा किया तो उन्होंने कहा अगर तुम इन तोहफ़ों को देखते हो जो उन्होंने ने सईद बिन अबी अरवाह रहिमाहुल्लह को भेजे हैं तो हैरान रह जाते।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने मुहद्दिसीन में से किसी को भी नहीं छोड़ा कि जिसके साथ भलाई न की हो। हज़रत इमाम मुसइर रहिमाहुल्लह कहते हैं कि जब भी अपने लिए या अपने घर वालों के लिए कपड़ा या मेवा खरीदते तो इसी मिक़्दार में कपड़ा या मेवा उलमा व मशाइख के लिए खरीदते।


हज़रत शरीक रहिमाहुल्लह ने कहा कि जो शख्स आपसे पढ़ता तो आप उस को नानो नफ़्क़ा की तरफ से बेनियाज़ कर दिया करते बल्कि उसके घर वालों पर भी खर्च करते थे, और जब वो इल्म पढ़ लेता तो उससे फरमाते,

“अब तुम को बहुत बड़ी दौलत मिल गई है क्यूंकि तुम को हलालो हराम की पहचान हो गई है”।


इमाम अबू युसूफ रहिमाहुल्लह ने बयान किया कि “आपने बीस साल तक मेरा और मेरे घर वालों का खर्च बर्दाश्त किया और में जब भी आपसे कहता कि मैंने आपसे ज़्यादा देने वाला नहीं देखा तो आप फरमाते हैं, अगर तुम मेरे उस्ताद इमाम हम्माद रहिमाहुल्लह को देख लेते तो ऐसा न कहते।


आपने यह भी फ़रमाया अगर आप किसी को कुछ दिया करते थे अगर वो आपका शुक्रिया अदा करता तो आप को बड़ा मलाल होता था, आप उससे फरमाते शुक्र अल्लाह पाक का अदा करो कि उसने यह रोज़ी तुम को दी है।


हज़रत अल्लामा इब्ने हजर मक्की रहिमाहुल्लह फरमाते हैं कि इमामे आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु सब से ज़्यादा अपने असहाब और हम नशीनो की ग़मख़्वारी और उनका इकराम करने वाले थे, इसीलिए आप मुहताजों का निकाह करा देते और तमाम इख़राजात खुद बर्दाश्त करते थे। आप हर शख्स की तरफ उसके मर्तबे के मुताबिक़ खर्च भेजते थे।

एक बार आप ने एक शख्स को अपनी मजलिस में फाटे पुराने कपड़े पहने देखा तो जब लोग जाने लगे आपने उससे फ़रमाया तुम ज़रा ठहर जाओ फिर फ़रमाया मेरे जानमाज़ के नीचे जो कुछ है वह ले लो और उससे अपनी हालत सवांरो, उसने जानमाज़ उठा कर देखा तो वहां हज़ार दिरहम थे, उसने अर्ज़ की में दौलत मंद हूँ मुझे इसकी ज़रुरत नहीं, तो आपने फ़रमाया तुमने ये हदीस नहीं सुनी कि अल्लाह पाक अपने बन्दों पर अपनी नेमतों का असर देखना चाहता है लिहाज़ा तुम अपनी हालत बदलो कि तुम्हे देख कर किसी को तुम्हारे मुहताज होने का शुबह (शक) न हो और तुम्हारे दोस्त तुम्हारी खुशहाली से खुश हों।


इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने दस हज़ार का क़र्ज़ माफ़ कर दिया :


एक बार आप किसी बीमार की इयादत को जा रहे थे, कि रास्ते में एक शख्स आता दिखाई दिया जो आपका मक़रूज़ था, उसने दूर से आपको देख लिया और मुँह छुपा कर दूसरी तरफ जाने लगा, आपने उसे देख लिया और नाम लेकर उस को पुकारा वो खड़ा हो गया आपने क़रीब पहुंच कर फ़रमाया तुमने मुझ से रास्ता क्यों बदला?

उसने अर्ज़ की मुझे आपका दस हज़ार दिरहम क़र्ज़ अदा करना है, इस शर्मिंदगी की वजह से आप का सामना नहीं करना चाहता था, आपने फ़रमाया सुब्हानल्लाह, मैं खुदा को गवाह बना कर कहता हूँ मैंने सारा क़र्ज़ माफ़ कर दिया तुम आइंदा मुझ से मुँह न छुपाना और मेरी वजह से जो तुम्हे निदामत और परेशानी हुई उसके लिए माफ़ी चाहता हूँ।


यह रिवायत बयान करके शफ़ीक़ रहिमाहुल्लाह फरमाते हैं कि आपका यह हुस्ने सुलूक देखकर मुझे यक़ीन हो गया आप से बढ़ कर शायद ही कोई ज़ाहिद दरया दिल मेहरबान सखी हो‌

एक बार हज के सफर में अब्दुल्लाह बिन बिक्र सहमी रहिमाहुल्लह का किसी आराबी से झगड़ा हो गया, वह इन्हें इमाम साहब की खिदमत में ले आया कि यह मेरी रक़म अदा नहीं कर रहा है, उन्होंने इंकार किया आपने आराबी से फ़रमाया तुम मुझे बताओ तुम्हारे कितने दिरहम बनते हैं? उसने कहा चालीस दिरहम बनते हैं, आपने फ़रमाया कि तअज्जुब है की लोगों के दिलों से अख़लाक़ो हमीयत का ज़ज्बा ख़त्म हो गया। इतनी सी रक़म पर झगड़ा, मुझे तो शर्म महसूस होती है फिर आपने अपने पास से चालीस दिरहम उस आराबी को दे दिए‌

जब आप के साहबज़ादे हम्माद रहिमाहुल्लह ने उस्ताद से सूरह फातिहा पढ़ी तो आपने उनके उस्ताद को एक हज़ार दिरहम नज़राना पेश किया। वह कहने लगे हुज़ूर मैंने कौन सा इतना बड़ा कारनामा सर अंजाम दिया है कि आप इतनी ज़्यादा रक़म नज़राना दे रहे हैं। आपने फ़रमाया मेरे बेटे को जो दौलत इनायत की है उसके सामने तो ये नज़राना बहुत हक़ीर है बाखुद अगर मेरे पास इससे ज़्यादा होता तो वो भी पेश कर देता।


हज़रत वकी रहिमाहुल्लह कहते हैं कि  इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने मुझसे फ़रमाया हज़रत अली शेरे खुदा रदियल्लाहु तआला अन्हु का इरशादे गिरामी है चार हज़ार या इससे कुछ कम नफ़्क़ा है यानी साल भर के लिए इतना खर्च काफी है, इस इरशादे गिरामी की वजह से चालीस साल में कभी चार हज़ार दिरहम का मालिक नहीं हुआ। जब भी मेरे पास चार हज़ार दिरहम से ज़्यादा माल आता है, मैं वह ज़्यादा माल राहे खुदा में खर्च कर देता हूँ और अगर मुझे यह डर न होता कि मैं लोगों का मुहताज हो जाऊँगा तो एक दिरहम भी अपने पास न रखता।

इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने जिस ख़ुलूस के साथ अवाम और उलमा किराम की खिदमत की, उसकी मिसाल नहीं मिलती जो लोग आपकी मजलिस में यूं ही चंद लम्हे सुस्ताने के लिए बैठ जाते वह भी आपकी सखावत से फ़ैज़याब होते। आप उनसे भी उनकी ज़रूरियात पूछते अगर कोई भूखा होता तो उसे खाना खिलाते। बीमार होता तो इलाज के लिए रक़म देते। कोई हाजत मंद होता तो उसकी हाजत रवाई करते। अगर कोई ज़बान से हाजत बयान न करता तो उसके कहे बगैर फरासते बातनी से उसका मक़सद जान लेते।



इमामे आज़म रहिमाहुल्लह गरीब मुहताजों की बहुत मदद करते थे :


हज़रत अल्लामा मोफिक बिन अहमद मक्की रहिमाहुल्लह लिखते हैं कि कूफ़ा में एक माल दार शख्स था बड़ा खुद्दार और हयादार था, एक वक़्त ऐसा आया कि वह ग़रीब और मुहताज हो गया, वह बाज़ार जा कर मज़दूरी करता, मशक़्क़त उठाता और सब्र करता, एक दिन उसकी बच्ची ने बाज़ार में ककड़ी देखी घर आ कर माँ से ककड़ी लेने के लिए पैसे मांगें मगर माँ उसकी ख्वाहिश पूरी न कर सकी घर का सामान पहले ही बिक चुका था बच्ची रोने लगी, उस शख्स ने इमामे आज़म रहिमाहुल्लह से मदद लेने का इरादा किया वह आपकी मजलिस में आ कर बैठा मगर शर्मों हया की वजह से उसकी ज़बान न खुली। इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह ने अपनी फिरासत से भांप लिया कि इस शख्स को कोई हाजत है मगर हया की बिना पर यह सवाल नहीं कर रहा, जब वह शख्स वहां से उठकर जाने लगा तो आपने एक आदमी उसके पीछे रवाना कर दिया उस शख्स ने घर जा कर अपनी बीवी को बताया कि मैं शर्मों हया की वजह से उस बाबरकत मजलिस में कुछ न मांग सका। इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह के भेजे हुए आदमी ने वापस जा कर सब अहवाल इमाम साहब से बयान कर दिया।

जब रात का एक हिस्सा गुज़र गया तो इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह पांच हज़ार दिरहम की थैली लेकर उस शख्स के घर पहुंच गए और दरवाज़ा खटखटा कर फ़रमाया “मैं तुम्हारे दरवाज़े पर एक चीज़ रखे जा रहा हूँ इसे ले लो” ये फरमा कर आप वापस आ गए, उसके घर वालों ने थैली खोली तो उसमे पांच हज़ार दिरहम थे और एक कागज़ के पुर्ज़े पर लिखा था तुम्हारे दरवाज़े पर अबू हनीफा यह थोड़ी सी रक़म लेकर आया था यह उसकी हलाल कमाई से है इसे इस्तिमाल में लाओ और वापस न करना।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लह अपने वक़्त में बहुत बड़े अमीन व दियानत दार थे :


हमक बिन हिशाम रहिमाहुल्लह फरमाते हैं कि इमामे आज़म रहिमाहुल्लह अपने वक़्त में बहुत बड़े अमीन व दियानत दार थे। जब खलीफा ने उनको हुक्म दिया कि वह उसके ख़ज़ाने के मतवल्ली और देखरेख करने वाले बन जाएं वरना वह उन्हें सज़ा देगा तो आपने अल्लाह पाक के अज़ाब के बजाए खलीफा की इज़ा रसानी को क़बूल फरमा लिया।

क्यूंकि अक्सर बादशाह और हुक्काम सरकारी ख़ज़ाने का बेजा इस्तिमाल करते हैं और आप उनके इस नाजाइज़ काम में हिस्सेदार नहीं बनना चाहते थे।


हज़रत वकी रहिमाहुल्लह फरमाते हैं कि खुदा की क़सम इमामे आज़म रहिमाहुल्लह में बहुत बड़े अमीन व दियानत दार थे। उनके दिल में अल्लाह पाक की शान और उस का खौफ जलवागर था और उसकी रज़ा पर किसी चीज़ को तरजीह नहीं देते थे।


हज़रत अब्दुल अज़ीज़ सनआनी रहिमाहुल्लह फरमाते हैं कि जिन्होंने आप से फ़िक़्हा पढ़ी थी, फरमाते हैं, जब में हज पर गया तो अपनी एक हसीन कनीज़ इमामे आज़म रहिमाहुल्लह के पास बतौरे अमानत छोड़ गए, एक अरसे बाद जब मैं आप के पास हाज़िर हुआ तो मैंने मालूम किया, हुज़ूर मेरी कनीज़ ने आपकी कैसी खिदमत की? आपने फ़रमाया मैंने उससे कभी कोई काम न लिया और न ही उसे आँख उठा कर देखा क्यूंकि यह आपकी अमानत थी।


एक देहाती ने आपके पास एक लाख सत्तर हज़ार दिरहम बतौरे अमानत रखे मगर उसका इंतक़ाल हो गया, उसने किसी को बताया भी न था कि मैंने इस क़द्र रक़म इमामे आज़म के पास बतौरे अमानत रखवाई है, उसके छोटे छोटे बच्चे थे, जब वो बालिग़ हुए तो इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने उन्हें अपने पास बुलाया और उनके वालिद की सारी रक़म लौटा दी और फ़रमाया कि यह तुम्हारे वालिद की अमानत थी। आपने यह अमानत ख़ुफ़िया (छुपाना) तौर पर लौटाई ताकी इतनी बड़ी रक़म का लोगों को इल्म न हो और वो इन्हें तंग न करें।


इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह का तक़वा और अमानत व दियानत के बाइस उलमा और अवाम आपकी बेहद इज़्ज़त किया करते थे जबकि मुख़ालिफ़ीन व हसीदीन हसद की आग में जलते रहते और मुख्तलिफ हरबे इस्तिमाल करके आप के मक़ाम व रुतबे को घटाने की मज़मूम कोशिश करते।


एक बार एक शख्स के ज़रिए आपके पास एक थैली अमानत रखवाई गई जिस पर सरकारी मुहर भी लगी हुई थी। हासिदों की बदगुमानी यह थी कि इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह कुछ अरसा बाद यक़ीनन इस रक़म का कारोबार में इस्तिमाल कर लें और इसी में गिरफ्त की जाएगी। चुनांचे इस मंसूबा बंदी के साथ एक शख्स ने कूफ़ा के क़ाज़ी इब्ने अबी लैला के पास दावा दाइर किया कि इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने फुलां शख्स का माले तिजारत के लिए अपने बेटे को दे दिया है हालांकि यह माले अमानत के तौर पर रखवाया था,

चुनांचे इमाम साहब को तलब किया गया और बताया गया कि आप पर इलज़ाम है कि आप ने फुलां शख्स की अमानत अपने कारोबार में लगा दी है, आपने फ़रमाया यह इल्ज़ाम बिल्कुल गलत है, इसकी अमानत जूँ की तूँ मेरे पास महफ़ूज़ है। अगर आप चाहें तो सरकारी नुमाइंदा भेज कर तस्दीक़ कर लें। जब वो लोग आए तो आपके माल खाने में वह अमानत वैसी ही मौजूद पाई। जिस पर सरकारी मुहर लगी हुई थी यह देखकर सबको निदामत हुई।

उनके लिए निदामत और हैरत की वजह यह भी थी कि इमामे आज़म रहिमाहुल्लह के पास इतनी कसीर अमानतें जमा थीं जो उनके वहमों गुमान में भी नहीं थी।


मुहम्मद बिन फ़ज़्ल रहिमाहुल्लह फरमाते हैं कि जब इमामे आज़म का विसाल हुआ तो आप के पास लोगों की पांच करोड़ (50000000) की अमानते थीं जिन्हें आपके बेटे हज़रते हम्माद रहिमाहुल्लह ने लोगों को लौटाया। 


यह बात गौर तलब है कि यह वो रक़म है जो आपके विसाल के बाद मौजूद थी। जबकि आखरी उम्र में खलीफा की मुखालिफत के बाइस आपके लिए जेल की क़ैद और दूसरी सज़ाओं का इमकान बहुत बढ़ चुका था।

लिहाज़ा आपके तक़वा और बसीरत के बाइस यह बात यक़ीन से कही जा सकती है कि आपने उस ज़माने में इन अमानतों की ज़िम्मेदारियों से सबकदोश होने की कोशिश में कोई कसर न छोड़ी होगी लेकिन लोगों की अमानतों का सिलसिला इस क़द्र वसी था कि उसे समेटते समेटते भी पांच करोड़ (50000000) की अमानते बच गईं जो बाद में आप के सबज़ादे ने उन लोगों तक पहुचाईं।


इससे यह अंदाज़ा होता है कि इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने लोगों की अमानतों की हिफाज़त की हिफाज़त का एक अज़ीम निज़ाम कायम किया हुआ था। दफ्तर, माल खाना, मुलाज़िम, खाता, रजिस्टर और हिसाब किताब करने वाले हिसाब जानने वाले यक़ीनन इस निज़ाम का हिस्सा होंगें। इस बिना पर यह कहा जा सकता है कि लोगों के अमवाल और क़ौम की हिफाज़त और उनकी अस्ल मालिकों को वापसी यक़ीनी बनाने के लिए इमामे आज़म रहिमाहुल्लह मंसूबा बंदी और अमली इक़दामात कर के सूद से पाक खालिस इस्लामी बैंक का वाज़ेह तसव्वुर पेश कर चुके हैं।



मआख़िज़ व मराजे (रेफरेन्स) : अल खैरातुल हिसान, तबीज़ुस सहीफ़ा फी मनाक़िबुल इमाम अबी हनीफा, इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु, सवानेह इमामे आज़म अबू हनीफा, इमामुल अइम्मा अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु, इमामे आज़म हज़रत मुजद्दिदे अल्फिसानी की नज़र में, इमामे आज़म और इल्मे हदीस, शाने इमामे आज़म रहमतुल्लाह अलैह, सवानेह बे बहाए इमामे आज़म अबू हनीफा, अनवारे इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु, हयाते इमाम अबू हनीफा, तज़किरातुल औलिया, ख़ज़ीनतुल असफिया, बुज़ुरगों के अक़ीदे, मिरातुल असरार, मनाक़िबुल इमामे आज़म,

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