जुमा की नमाज में इमामों ने बयान की कुर्बानी की फजीलत
गोरखपुर। ईद-उल-अजहा पर्व के मद्देनजर शुक्रवार को जुमा की नमाज में कुर्बानी की फजीलत बयान की गयीं। आवाम से अपील भी की गयी कि साफ-सफाई का खास ध्यान रखा जायें। यह भी अनुरोध किया गया कि कुर्बानी का गोश्त पास-पड़ोस, गरीबों, फकीरों में जरुर बांटा जाये। कुर्बानी के जानवर की खाल मदरसों व दीनी दर्सगाह को दी जाए। जिससे मदरसों में पढ़ने वाले तालिबे इल्म को सहूलियत हो।
गाजी मस्जिद गाजी रौजा में मुफ्ती-ए-गोरखपुर मुफ्ती अख्तर हुसैन ने कहा कि अल्लाह ने कुरआन शरीफ में कुर्बानी का हुक्म दिया हैं। इस्लाम में कुर्बानियों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
उसी में से एक ईद-उल-अजहा है। जो एक अजीम बाप हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की अजीम बेटे हजरत ईस्माइल अलैहिस्सलाम की कुर्बानी के लिए याद किया जाता है। पैगम्बर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम व हजरत ईस्माइल अलैहिस्सलाम से मंसूब एक वाक्या इस त्योहार की बुनियाद है। मालिके निसाब पर कुर्बानी वाजिब है। इसी वजह से हर मुसलमान इस दिन कुर्बानी करवाता है। मजहबे इस्लाम में ज्यादा से ज्यादा कुर्बानी का हुक्म किया गया है। उन्होंने लोगों से शंति व्यवस्था बनाये रखने व साफ-सफाई रखने की अपील की हैं साथ ही कहा हैं कि कुर्बानी की तस्वीरात व वीडियो न बनाये जायें और न ही सोशल मीडिया पर शेयर किया जाये। दिखावा अल्लाह को पसंद नहीं हैं। कुर्बानी से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों को गड्ढ़ों में दफन करें। हड्डियां सड़कों पर न फेंके। कुर्बानी का गोश्त पास-पड़ोस, गरीबों व फकीरों में जरुर बांटे। जिनके कुर्बानी न हुई हो उनके घर सबसे पहले गोश्त भेजवायें । खाल ले जाने वाले मदरसों के लोगों के साथ आवाम बेहतर सुलूक करें। उलेमा का अदब करें।
जामा मस्जिद सौदागार में मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने बताया कि कुर्बानी का अर्थ होता है कि जान व माल को खुदा की राह में खर्च करना। कुर्बानी हमें दर्स देती है कि जिस तरह से भी हो सके अल्लाह की राह में खर्च करो। कुर्बानी हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है। बताया कि कुर्बानी में भेड़, बकरी, दुम्बा सिर्फ एक आदमी की तरफ से एक जानवर होना चाहिए और भैंस, ऊंट में सात आदमी शिरकत कर सकते है। कुर्बानी के लिए ऊंट पांच साल, भैंस दो साल, बकरी व खशी एक साल का होना चाहिए। उन्होंने सामूहिक कुर्बानी स्थलों पर पर्दा लगाकर कुर्बानी करने की अपील की साथ ही कहा कि आज भले ही सरकार स्वच्छता अभियान चला रही हो लेकिन इस्लाम ने कई सौ साल पहले स्वच्छता को आधा ईमान करार दिया हैं। इस्लाम 1400 साल से साफ-सफाई का दर्स देता चला आ रहा हैं। साफ-सफाई अल्लाह को पसंद हैं इसका हर मुसलमान को खास ख्याल रखना चाहिए।
नार्मल स्थित दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद मस्जिद में दसवें दर्स के दौरान इमाम मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने कहा कि खास जानवर को खास दिनों में कुर्बानी की नियत से जिब्ह करने को कुर्बानी कहते है। हदीस में इसके बेशुमार फजीलतें आयी है। हदीस में आया है कि हुजूर ने फरमाया कि यौमे जिलहिज्जा (दसवीं जिलहिज्जा) में इब्ने आदम का कोई अमल खुदा के नजदीक खून बहाने यानी कुर्बानी करने से ज्यादा प्यारा नहीं है। कुर्बानी का खून जमीन पर गिरने से पहले खुदा के नजदीक मकामें कुबूलियत में पहुंच जाता है। लिहाजा इसको खुशी से करो। कुर्बानी में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना चाहिए। जिलहिज्जा की 10,11,12 तारीख कुर्बानी के लिए खास दिन है। मगर पहला दिन अफजल है। देहात में 10 जिलहिज्जा की तुलू फज्र के बाद ही से कुर्बानी हो सकती है मगर बेहतर यह है कि तुलू आफताब के बाद कुर्बानी की जाये। शहर में नमाजें ईद से पहले कुर्बानी नहीं हो सकती। कुर्बानी दिन में करनी चाहिए। उन्होंने लोगों से कुर्बानी स्थल के आस-पास सफाई का उचित प्रबंध रखने की अपील की हैं।
मस्जिद सुभानिया तकिया कवलदह के इमाम मौलाना जहांगीर अजीजी ने कहा कि मुसलमानों का हर त्यौहार शांति का दर्स देता हैं। लिहाजा इसका ख्याल रखें कि हमारे किसी काम से किसी को भी जर्रा बराबर तकलीफ न होने पायें। उन्होंने कहा कि कुर्बानी के जानवर को एेब (दोष) से खाली होना चाहिए। अगर थोड़ा से ऐब हो तो कुर्बानी हो जायेगी मगर मकरुह होगी और ज्यादा हो तो कुर्बानी होगी ही नहीं। अंधे जानवर की कुर्बानी जायज नहीं इतना कमजोर जिसकी हड्डियां नजर आती हो और लगंड़ा जो कुर्बानी गाह तक अपने पांव से जा न सकें और इतना बीमार जिसकी बीमारी जाहिर हो जिसके कान या दूम तिहायी से ज्यादा कटे हो इन सब की कुर्बानी जायज नही। कुर्बानी स्थलों पर साफ-सफाई का उचित प्रबंध किया जाये। अपशिष्ट पदार्थ, हड्डी खून वगैरह गड्ढ़ों में दफन किया जाये।
सब्जपोश मस्जिद जाफरा बाजार के इमाम हाफिज व कारी रहमत अली निजामी ने कहा कि कुर्बानी के दिनों में साफ-सफाई का सभी खास ख्याल रखें। बताया कि ऊंट और भैंस वगैरह में सात आदमी शिकरत कर सकते हैं कुर्बानी और अकीका की शिरकत हो सकती है। बकरा-बकरी, दुंबा, भेड़ एक आदमी की तरफ से कुर्बानी दी जायेगी। इस त्योहार में हर वह मुसलमान जो आकिल बालिग मर्द औरत जिसके पास तकरीबन 25 हजार रूपया हो हाजते अस्लिया को छोड़कर उसके ऊपर कुर्बानी वाजिब है। कुर्बानी के तीन दिनों के अंदर अगर उक्त रकम अा जायेगी तो कुर्बानी करवानी पड़ेगी।
खादिम हुसैन मस्जिद तिवारीपुर के इमाम हाफिज व कारी अफजल बरकाती ने कहा कि कुर्बानी के दिनों में अमीर-गरीब सब बराबर हो जाते हैं। कुर्बानी के गोश्त के तीन हिस्से कर लें। एक हिस्सा फुकरा और मशाकीन, एक हिस्सा दोस्त व अहबाब और एक अपने घर वालों के लिए रख छोड़े। अगर जानवर में कई लोग शरीक हो तो सारा गोश्त तौल कर तक्सीम किया जाये, अंदाज से नहीं। कुर्बानी की खाल सदका कर दें या किसी दीनी मदरसें को दे। उन्होंने बताया कि नवीं जिलहिज्जा के फज्र से तकबीरे तशरीक शुरु हो गई है। तेरहवीं के असर तक हर फर्ज नमाज के बाद बुलंद आवाज से कहना वाजिब है और तीन बार अफजल है।
गौसिया मस्जिद के इमाम मौलाना मोहम्मद अहमद ने कहा कि कुर्बानी के दिन रोजा रखना हराम हैं,। क्योंकि यह दिन मेहमान नवाजी का है। यह हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है। जिसे खुदा ने इस उम्मत के लिए बाकी रखा। बेहतर है दसवीं जिलहिज्जा को नमाज से पहले कुछ न खायें, गुस्ल करें साफ सुथरे या नये कपड़े हसबे इसतात पहने खुशबू लगाये, ईदगाह को तक्बीरे तशरीक बाआवाजें बुलंद कहता हुआ एक रास्ते से जायें और दूसरे रास्ते से वापस आयें। नमाज के बाद कुर्बानी करें। गरीबों, पास-पड़ोस में गोश्त भेजवायें।
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ईद-उल-अजहा का बाजार गुलजार
गोरखपुर। ईद-उल-अजहा पर्व को मनाने के लिए महानगर में सभी तैयारियां पूरी हो गई हैं। शुक्रवार को बकरीद के लिए मुसलमान भाइयों ने कुर्बानी के लिए जहां बकरे और भैंस की ऊंचे दामों पर खरीददारी की है, वहीं सेवइयां भी बाजार में इस अवसर पर खूब बिक्री हुई। घरों में लजीज व्यंजनों को बनाने लिए तैयारियां हुई। वहीं ईदगाहों व मस्जिदों में नमाज की तैयारियां मुकम्मल हो गई। मस्जिद कमेटियों ने बारिश से निपटने के लिए खास इंतजाम किए हैं। देर रात तक बकरा व भैंस की खरीददारी होती रही। मोलभाव का भी सिलसिल चला। कपड़ों का बाजार भी गुलजार नजर आया। खोवा व सूखे मेवे भी खूब बिके। मसाला, प्याज, लहसून, अदरख की भी खरीददारी साहबगंज मार्केट से हुई। बूचड़ों व कसाईयों ने भी कुर्बानी के लिए तैयारियां की हैं। रोटियां पकाने वाले होटल रात से ही रोटियां पकाने में जुट गए। शनिवार को सबसे पहले मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार में प्रात: 6:30 बजे ईद-उल-अजहा की नमाज अदा की जायेगी और सबसे अंत में जामा मस्जिद सैदागार में प्रात: 10:30 बजे नमाज अदा की जायेगी। मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में मेले जैसे माहौल नजर आया। चारों तरफ कुर्बानी के जानवर दिख रहे हैं। बतातें चलें कि कुर्बानी 2, 3 व 4 सितम्बर तक होगी। महंगाई का असर कुर्बानी के जानवरों पर साफ तौर पर नजर आ रहा है। इस बार जानवरों में एक हजार से 1500 रुपए तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। छह हजार से लेकर 20 हजार तक के जानवर बाजार में उपलब्ध हैं। जामा मस्जिद उर्दू बाजार, शाहमारूफ, खूनीपुर, जबहखाना, रेती रोड, मदीना मस्जिद, तुर्कमानपुर, चक्सा हुसैन, खुनीपूर, अस्करगंज, जाफराबाजार, रसूलपुर, इलाहीबाग, गोरखनाथ, दीवान बाजार, गाजीरौजा और ऊंचवा में जानवरों की बाजार चरम पर रहा। जानवरों की कीमत इस बार काफी बढ़ गई है। बड़े जानवरों में एक हिस्से के लिए 2000 से 3000 रुपए पेशगी के तौर पर लिया जा रहा है।
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ईद-उल-अजहा की नमाज का तरीका
मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने ईद-उल-अजहा की नमाज का तरीका बताते हुए कहा कि पहले नियत कर ले कि "नियत की मैंने दो रकात नमाज ईद-उल-अजहा वाजिब मय जायद छः तकबीरों के वास्ते अल्लाह तआला के इस इमाम के पीछे मुहं मेरा काबा शरीफ की तरफ 'अल्लाहु अकबर' कह कर हाथ बांध ले और 'सना' पढ़ें। दूसरी और तीसरी मरर्तबा 'अल्लाहु अकबर' कहता हुआ हाथ कानों तक ले जायें फिर छोड़ दे। चौथी मर्तबा तकबीर कहकर हाथ कानों तक ले जायें फिर नाफ के नीचे बांध लें। अब इमाम के साथ रकात पूरी करे। दूसरी रकात में किरत के बाद तीन मर्तबा तकबीर कहता हुआ हाथ कानों तक ले जायें और हाथ छोड़ दे चौथी मर्तबा बगैर हाथ उठायें तकबीर कहता हुआ रुकूअ में जायें और नमाज पूरी कर लें, बाद नमाज इमाम खुत्बा पढ़े और जुम्ला हाजिरीन खामोशी के साथ सुने खुत्बा सुनना वाजिब है। जिन मुकतादियों तक आवाज न पहंचती हो उन्हें भी चुप रहना वाजिब है बाद दुआ मांगे फिर बाद दुआ इजहारे मर्शरत के लिए हाथ मिलाना व गले मिलना बेहतर है।
कुर्बानी करने का तरीका
जानवर को बायें पहलू पर इस तरह लिटाये कि किब्ला को उसका मुहं हो और अपना दाहिना पांव उसके पहलू पर रख कर जल्द जिब्ह करें। अलबत्ता जिब्ह से पहले दुआ पढ़े फिर ‘‘बिस्मिल्लाहि अल्लाहु अकबर’’ पढ़ कर जब्ह करे फिर दुआ पढ़ें ‘‘ अल्लाहुम्म तक़ब्वल मिन्नी कमा तक़ब्बल त मिन खलीलि क इब्राहीम अलैहिस्सलाम व हबीबि क मुहम्मदिन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम’’
अगर कुर्बानी अपनी तरफ से हो तो ‘‘मिन्नी’’ और अगर दूसरों की तरफ से हो तो ‘‘मिन्नी’’ के बजाए ‘‘मिन’’ कह कर उसका नाम लें।
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