पैगंबर-ए-इस्लाम के विलादत की खुशियां सारी कायनात मनाती है - मुफ्ती अजहर
-'महफिल-ए-सीरतुन्नबी' दर्स का 11वां दिन
गोरखपुर। नार्मल स्थित दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां पर 12 दिवसीय 'महफिल-ए-सीरतुन्नबी' दर्स के 11वें दिन शुक्रवार को मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने कहा कि 'मिलाद' अरबी लफ़्ज है जिसका अर्थ विलादत या पैदाइश होता हैं। पैगंबर-ए-इस्लाम की सीरत, सूरत, किरदार, व्यवहार, बातचीत व अन्य क्रियाकलाप, मेराज, मोजजों का बयान ही मिलाद-ए-पाक में बयान होता है। पैगंबर-ए-इस्लाम की विलादत (जन्मदिवस) की ख़ुशी मनाना ये सिर्फ इंसान की ही खासियत नहीं है बल्कि तमाम कायनात उनकी विलादत की खुशी मनाती है बल्कि खुद रब्बे क़ायनात मेरे मुस्तफा जाने रहमत का मिलाद पढ़ता है। पूरा क़ुरआन ही मेरे आका की शान से भरा हुआ है। अल्लाह कुरआन में इरशाद फरमाता है "वही है जिसने अपना रसूल हिदायत और सच्चे दीन के साथ भेजा" दूसरी जगह अल्लाह इरशाद फरमाता है "बेशक तुम्हारे पास तशरीफ़ लायें तुममे से वो रसूल जिन पर तुम्हारा मशक़्क़त में पड़ना गिरां है तुम्हारी भलाई के निहायत चाहने वाले मुसलमानों पर कमाल मेहरबान"। पहली आयत में अल्लाह उन्हें भेजने का ज़िक्र कर रहा है और भेजा उसे जाता है जो पहले से मौजूद हो मतलब साफ़ है कि पैगंबर-ए-इस्लाम पहले से ही आसमान पर या अर्शे आज़म पर या जहां भी अल्लाह ने उन्हें रखा वो वहां मौजूद थे, और दूसरी आयत में उनके तशरीफ़ लाने का और उनके औसाफ़ का भी बयान फरमा रहा है। यही तो मिलाद है। अल्लाह फरमाता है "बेशक तुम्हारे पास अल्लाह की तरफ़ से एक नूर आया और रौशन किताब"। यहां नूर से मुराद पैगंबर-ए-इस्लाम हैं और किताब से मुराद क़ुरआन-ए- मुक़द्दस है। लिहाजा मुसलमान ईद मिलादुन्नबी की खुशियां अदब व एहतराम के साथ मनाएं। इबादत करें, कुरआन पढ़े, दरूद व सलाम का नजराना पेश करें। गरीबों व यतीमों को खाना खिलायें, मरीजों का हालचाल पूछें। पड़ोसियों का ख्याल रखें।
मुफ्ती अख्तर हुसैन (मुफ्ती-ए-गोरखपुर) ने कहा कि इंसानों की रहनुमाई के लिए 12 रबीउल अव्वल यानी 20 अप्रैल सन् 571 ई. में अरब के मक्का शहर में पैगंबर-ए-इस्लाम का जन्म हुआ। वालिद का नाम हजरत अब्दुल्लाह था। पैगंबर-ए-इस्लाम की ज़ाहिरी जिंदगी (63) तिरसठ बरस की हुई। वालिद का इंतकाल विलादत से पहले हो गया। जब आपकी उम्र 6 साल की हुई तो वालिदा हजरत आमिना का इंतक़ाल हो गया। जब आपकी उम्र 8 साल की हुई तो दादा हजरत अब्दुल मुत्तलिब का इंतक़ाल हो गया। जब आपकी उम्र 12 साल की हुई तो आपने मुल्के शाम का तिजारती सफर किया और 25 साल की उम्र में मक्का की एक इज्ज़तदार ख़ातून हज़रत ख़दीजा (जो बेवा ख़ातून थीं) के साथ निकाह फ़रमाया और 40 साल की उम्र में ऐलान-ए-नुबूवत फ़ारान की चोटी से फ़रमाया और (53) साल की उमर में हिजरत की। आपने अल्लाह के पैगाम को पूरी दुनिया में पहुंचाया। मजलूमों, गुलामों, औरतों, बेसहारा, यतीमों को उनका हक दिलाया। आपकी मजार-ए-मुबारक मदीना शरीफ में हैं जहां पर आशिक-ए-रसूल जियारत कर फैजयाब होते हैं। पैगंबर-ए-इस्लाम के कब्र अनवर का अंदरूनी हिस्सा, जो आपके जिस्म अतहर से लगा हुआ है वह काबा शरीफ व अर्श-ए-आज़म से भी अफजल हैं। इस मौके पर मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही, इकरार अहमद, मंजूर आलम, अहमद फराज अब्दुल अजीज, सैफ अली, मो. अजीम, कैश रजा, मो. इब्राहीम, कारी महबूब आलम, शाह आलम, शहादत हुसैन, रमजान, कुतबुद्दीन सहित तमाम लोग मौजूद रहे।
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अल्लाह की अज़ीम नेमत हैं पैगंबर-ए-इस्लाम - मुफ्ती अख्तर
गोरखपुर। मोहल्ला गाजी रौजा मरहूम काजी नईमुर्रहमान के आहाता में पैगंबर-ए-इस्लाम के यौम-ए-विलादत (जन्मदिवस) की पूर्व संध्या पर शुक्रवार को रात्रि नमाज बाद जश्न-ए-ईद मिलादुन्नबी का आयोजन हुआ। जिसमें मुफ्ती अख्तर हुसैन ने कहा कि अल्लाह इरशाद फरमाता है "बेशक अल्लाह का बड़ा एहसान हुआ मुसलमानो पर कि उनमें उन्हीं में से एक रसूल भेजा जो उन पर उसकी आयतें पढ़ते हैं और उन्हें पाक करते हैं और उन्हें किताब और हिक़मत सिखाते है। अल्लाह ने हमें लाखों-करोड़ों नेमत दी लेकिन एहसान नहीं जताया। कसम है उस रब्बे क़ायनात की पूरा क़ुरआन उठाकर देख लीजिए कि क्या कहीं उसने अपनी किसी नेमत पर एहसान जताया हो अगर जताया है तो अपने महबूब को जब बन्दों के दरमियान भेजा तब जताया है। अब बताइए क्या जिस नेमत को देने पर वो खुद फरमा रहा है कि "मैंने एहसान किया बन्दों पर" ज़रा सोचिये कि कैसी ही अज़ीम नेमत है मेरे मुस्तफ़ा की विलादत। जब हजरत आदम अलैहिस्सलाम की तखलीक हुई तो हर जुमा ईद हो गयी। तो जो आदम का भी नबी है, उसके पैदा होने पर तो पूरे साल खुशियां मनानी चाहिए। अल्लाह अपनी दी हुई नेमतों का चर्चा करने का हुक्म दे रहा है। अल्लाह फरमाता है" और अपने रब की नेमत का खूब चर्चा करो। लिहाजा मुसलमान शरीयत के दायरे में रहकर ईद मिलादुन्नबी की खुशियां मनाएं। पटाखा फूलझड़ी से परहेज करें। इबादत करें। मिलाद की महफिल सजाएं। जुलूस-ए-मोहम्मदी अदबो एहतराम से निकले। हो हल्ला करने के बजाए नात शरीफ पढ़े। कसरत से दरूद व सलाम पढ़ें।
मौलाना फैजुल्लाह कादरी ने कहा कि पैगंबर-ए-इस्लाम ने इंसानों को जीने का सलीका बताया। लोगों को सही रास्तें पर चलने की तालीम दी। सारी दुनिया पैगंबर-ए-इस्लाम के तुफैल बनायी गयी। आप सारी दुनिया के लिए रहमत है। ईद मिलादुन्नबी के दिन महफिल-ए-मिलाद, कुरआन ख्वानी, नात ख्वानी करें। गरीबों, यतीमों को खाना खिलाएं। जुलूस-ए-मोहम्मदी में शामिल हों। जश्न-ए-आमदे रसूल का एहतमाम करें। अच्छे कपड़े पहने, खुशबू लगाएं, महफिल-ए-मिलाद में शिरकत करें। कार्यक्रम के आखिर में सलातो-सलाम पेश कर दुआ मांगी गयी।
इस दौरान काजी ईनामुर्रहमान, फरहानुर्रहमान, ताबिश, सिराज, शहबाज, फहीम, मोहम्मद आजम, हाफिज अब्दुर्रहमान, हाफिज नजरे आलम आदि तमाम मौजूद रहे।
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'जश्न-ए-ईद मिलादुन्नबी' की महफिलें शुरू
गोरखपुर। पैगंबर-ए-इस्लाम की यौम-ए-विलादत (जन्मदिवस) का पर्व ईद मिलादुन्नबी शनिवार को अकीदत के साथ मनाया जायेगा। महफिल-ए-मिलाद की तैयारियां मुकम्मल हो चुकीं हैं। शुक्रवार की शाम से ही 'जश्न-ए-ईद मिलादुन्नबी' की महफिलों का सिलसिला शुरू हो गया। पूरे माह 'जश्न-ए-ईद मिलादुन्नबी' की महफिल सजायी जायेगी। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के घरों, मस्जिदों में मिलाद की महफिल, कुरआन ख्वानी, फातिहा ख्वानी, नात ख्वानी शुरू हो चुकी है। मुबारकबाद देने का सिलसिला भी जारी हैं। मस्जिदों व दरगाहों व मुहल्लों को फूलों, लाइटों, इस्लामी झण्डों, गुब्बारों, झंडियों से सजाया गया है। शनिवार को अलसुबह शहर की तमाम मस्जिदों पर परचम कुशाई (इस्लामी झंडा फहराना) होगी। या नबी सलाम अलैका, या रसूल सलाम अलैका, मुस्तफा जाने रहमत पर लाखों सलाम जैसी सदाओं से फिजा गूंज उठेगी। ईद मिलादुन्नबी के मौके पर बच्चों से लेकर बड़ों में खासा उत्साह दिख रहा हैं। मुस्लिम धर्मगुरु पैगंबर-ए-इस्लाम की सीरत पर रोशनी डालेंगे।
-यहां से निकलेगा जुलूस-ए-मोहम्मदी
गोरखपुर। जुलूस-ए-मोहम्मदी की तैयारियां पूरी हो चुकी है। शनिवार को अलसुबह परचम कुशाई के बाद जुलूस-ए-मोहम्मदी निकलना शुरू होगा तो देर रात तक इसका सिलसिला चलेगा। नखास जुलूसों का केंद्र रहेगा। अधिकतर जुलूस यहीं से जुलूस गुजरेंगे। नखास व खूनीपुर चौराहे पर जुलूसों का खैरमकदम कर सम्मानित किया जायेगा। जुलूस-ए-मोहम्मदी में पैगंबर-ए-इस्लाम के जीवन, कुरआन और हदीस से जुड़ी झांकियां व मस्जिदों के माडल आकर्षण का केंद्र रहेंगे। इस्लामी परचम व बैनर भी देंगे इस्लाम का पैगाम। दरूदों सलाम, नार-ए-तकबीर व नार-ए-रिसालत की सदाएं बुलंद की जायेंगी। मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार से सुबह 9:30 बजे, मोहल्ला गाजी रौजा से सुबह 10:00 बजे, मोहल्ला रहमतनगर से शाम 6:00 बजे, मोहल्ला खोखरटोला से दोपहर 2:30 बजे
वारिस कमेटी मियां बाजार की से रात्रि 8:00 बजे नूर मोहम्मद दानिश के नेतृत्व में जुलूस-ए-मोहम्मदी निकाला जायेगा। जिसमें रौजा-ए-रसूल का माडल आकर्षण का केंद्र रहेगा। यह जुलूस मियां बाजार, घोष कंपनी, नखास, खूनीपुर, मिर्जापुर, लालडिग्गी, मदरसा चौराहा, घंटाघर, रेती होता हुआ मियां बाजार में समाप्त होगा। तहरीक दावत-ए-इस्लामी हिंद गोरखपुर की जानिब से दोपहर 2:00 बजे कुरैशिया मस्जिद खूनीपुर से जुलूस-ए-मोहम्मदी निकाला जायेगा। छोटे काजीपुर व बड़े काजीपुर में दोपहर 3:00 बजे पैगंबर-ए-इस्लाम के मूए मुबारक (पवित्र बाल) की जियारत करवाई जायेगी। बक्शीपुर के थवई पुल पर 'कदम रसूल' की जियारत को भी भीड़ उमड़ेगी। इसके अलावा खूनीपुर पानी की टंकी, मिर्जापुर, कच्चीबाग, निजामपुर, बसंतपुर, तुर्कमानपुर, छोटे काजीपुर, बेनीगंज , पिपरापुर, बहरामपुर, तिवारीपुर, बक्शीपुर, इस्माईलपुर, बेनीगंज, जाफरा बाजार, घोष कंपनी, मेवातीपुर, शेखपुर, इलाहीबाग, पुराना गोरखपुर, दशहरी बाग रसूलपुर, चक्सा हुसैन, हुमायूंपुर, अंसारी रोड, जमुनहिया बाग, गुलहरिया, झुगिंया बाजार, मेडिकल कॉलेज, डीहवापुर, फतेहपुर, करमहां से भी जुलूस- ए- मोहम्मदी निकाला जायेगा।
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