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आला हजरत की जिंदगी पर अमल ही अकीदत का सुबूत
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बरेली। उर्स-ए-रजवी कादरी के दूसरे रोज अंतर्राष्ट्रीय इमाम अहमद रजा कांफ्रेंस का आयोजन मथुरापुर स्थित इस्लामिलक सेंटर पर किया गया। जमात रजा मुस्तफा की ओर से आयोजित कांफ्रें स में देश विदेश के कई बड़ी आलिम व सज्जादगान जुटे। उन्होंने आला हजरत के मिशन को आगे बढ़ाने का आह्वान करते हुए उनकी जिंदगी अमल में लाने को कहा।
इस मौके पर इस्लामी मिशन इंग्लैंड के मौलाना फरोगउल कादरी ने कहा कि आला हजरत की जिंदगी पर अमल करते हुए अपनी जिंदगी गुजारें तभी हमारी अकीदत की पहचान होगी। उन्होंने कहा कि आला हजरत की याद मनाने के लिए असल फायदा तभी है जब जोश के साथ होश भी रखें। हम सब को उन्हीं के बताए रास्ते पर चल कर उनके नजरिये को आगे बढ़ाना है। मौलाना जियाउल मुस्तफा अमजदी ने कहा कि आला हजरत ने सुन्नियत के लिए बड़ा काम किया है। जिसका कोई मुकाबला नहीं है।
जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं शहर काजी मौलाना असजद रजा खां कादरी ने कहा कि दुनिया की जिंदगी चार दिन की है मगर हमेशा की जिंदगी रसूल की मोहब्बत में बसी है। उन्होंने दुनिया की चकाचौंध से भी दूर रहने को कहा। ताजुश्शरिया की सरपरस्ती में संपन्न हुए इस जलसे में जद्दा के शेख तारिक हसन, श्री लंका के इदरीस पटेल व हाफिज उस्मान पटेल, साउथ अफ्रीका के डा. अब्दुल्ला मंसूर, यूएई के नौशाद हुसैन, सय्यद सूफियान, बंगलादेश के मौलाना मंसूर अहमद के अलावा भारत के विभिन्न देशों व प्रांतों से आए आमिलों को संबोधन करना बाकी था। संचालन मौलाना शुएब रजा व मौलाना शहाबउद्दीन रजवी ने किया। हाजी नाजिम बे
*जब शेख सनाउल्लाह आये राजा को पकड़ने* *राजा चंद्र सेन ने रामगढ़ताल के किनारे दुर्ग (किला) बनवाया था* गोरखपुर-परिक्षेत्र का इतिहास के लेखक डा. दानपाल सिंह लिखते हैं कि मध्यगुम के आरम्भ में रोहिणी व राप्ती नदी के मध्यवर्ती द्वीप स्थल पर डोमिनगढ़ की स्थापना हुई। सन् 1210 - 1226 ई. में राजा चन्द्र सेन ने डोमिनगढ़ राज्य पर विजय प्राप्त की। उस समय तक गोरखपुर शहर नहीं बसा था। डोमिनगढ़ सतासी राज्य का समीपवर्ती एक प्रमुख नगर एवं गढ़ था। राजा चन्द्रसेन ने डोमिनगढ़ पर आक्रमण किया। डोमिनगढ़ का किला बहुत मजबूत और प्राकृतिक साधनों द्वारा पूर्ण सुरक्षित था। डोमकटार पहले से संशाकित थे, उन्होंने पर्याप्त सैनिक तैयारी भी कर ली थी। किले में महीनों खाने-पीने की सामग्री रख ली गयी थी। डोमकटारों ने कई दिनों तक जमकर युद्ध किया। पराजय नजदीक देखकर डोमकटार राजा सुरक्षात्मक मुद्रा में आ गया तथा अपने बचे हुए सैनिकों के साथ किले के अंदर फाटक बंद कर बैठ गया। राजा चन्द्रसेन ने किले को ध्वस्त करने की आज्ञा दे दी। देखते ही देखते सतासी राज के सैनिकों (राजा चन्द्रसेन) ने दुर्गम किले को ध्वस्त कर दिया तथा उसमें छिप...
गोरखपुर। सूफी वहीदुल हसन फरमाते हैं कि पूर्वांचल का ये मशहूर शहर दरिया-ए-राप्ती के किनारे आबाद है। जहां मशायख-ए-इजाम और शोहदा-ए-किराम के मजारात हैं। जहां उर्स के मौके पर और जुमेरात के दिन खेराजे अकीदत पेश करने के लिए अकीदतमंद इकट्ठा होते हैं। गोरखपुर रेलवे स्टेशन के यार्ड में शहीद बाबा की मजार है। गोरखपुर में बेशुमार शोहदा, मशायख और मज्जूबों के मजारात हैं। जहां तक मशायख-ए-इजाम व पीरीने तरीकत का सवाल है उनके मजारात काजी साहब के मैदान, मुहल्ला शेखपुर, खूनीपुर, रेती चौक, अस्करगंज, इलाहीबाग, गोलघर, बुलाकीपुर, काजीपुर खुर्द, मुहल्ला अबु बाजार, रहमतनगर, हुमायूंपुर आदि जगहों पर हैं। वहीं शोहदा की मजारात तकरीबन हर मुहल्ले में है। हर मुहल्ले में शहीद, मज्जूबों व मसायख की मजार जरूर मिलेगी। गोरखपुर के मशायख-ए-इजाम की चंद विशेषताएं हैं। सलासिल अरबा चिश्तिया, कादरिया, नक्शबंदिया और सुहरावर्दिया सभी सलासिल के बुजुर्ग यहां असूदा-ए-खाक हैं। इन सलासिल की शाख दर शाख मसलन निजामिया, साबिरिया, फरीदिया, जहांगीरिया, फिरदौसिया, बहादुरिया वगैरह में भी यहां के मसायख मिजाज रखते थे। दूसरी विशेषता मशायख-ए-...
-आप जकात व सदका-ए-फित्र अदा करेंगे तो गरीब दुआएं देंगे -जकात की रकम हकदार मुसलमानों तक जल्द पहुंचायें -मुकद्दस रमजान का तीसरा रोजा सैयद फरहान अहमद गोरखपुर। मुकद्दस रमजान के शुरु होते ही रब की रहमतें बंदों पर बरस रही हैं। पहले दिन से मौसम खुशगवार बना हुआ हैं। इबादतों का सिलसिला जारी रहा। सहरी व इफ्तार का फैजान बदस्तूर जारी हैं। तंजीम कारवाने अहले सुन्नत के बानी मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने बताया कि इस्लाम में जकात फर्ज हैं। जकात पर हक मजलूमों, गरीबों, यतीमों, बेवाओं का है। इसे जल्द से जल्द हकदारों तक पहुंचा दें ताकि वह रमजान व ईद की खुशियों में शामिल हो सकें। जकात फर्ज होने की चंद शर्तें है। मुसलमान अक्ल वाला हो, बालिग हो, माल बकदरे निसाब (मात्रा) का पूरे तौर का मालिक हो। मात्रा का जरुरी माल से ज्यादा होना और किसी के बकाया से फारिग होना, माले तिजारत (बिजनेस) या सोना चांदी होना और माल पर पूरा साल गुजरना जरुरी हैं। सोना-चांदी के निसाब (मात्रा) में सोना की मात्रा साढ़े सात तोला (87 ग्राम 48 मिली ग्राम ) है जिसमें चालीसवां हिस्सा यानी सवा दो माशा...
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