सदका-ए-फित्र ............................................मसाइल व अहकाम

सदकाए फित्र अदा करना वाजिब हैं। जो शख्स इतना मालदार है कि उस पर जकात वाजिब है । या जकात वाजिब हो मगर जरूरी असबाब से ज्यादा इतनी कीमत का माल व असबाब है जितनी कीमत पर जकात वाजिब होती है तो उस शख्स पर अपनी नाबालिग औलाद की तरफ से सदकाए फित्र देना वाजिब है। फित्रा वाजिब होने की तीन शर्तें है। आजाद होना मुसलमान होना, किसी ऐसे माल के निसाब का मालिक होना जो असली जरूरत से ज्यादा हो। उस माल पर साल गुजरना शर्त नहीं और न माल का तिजारती होना शर्त है और न ही साहिबे माल का बालिगा व अकीला होना शर्त हैं। यहां तक कि नाबालिग बच्चों और वो बच्चे जो ईद के दिन तुलू फज्र यानि सूरज निकलने से पहले पैदा हुये हो और मजनूनों पर भी फित्रा वाजिब हैं। उनके सरपरस्त हजरात को उनकी तरफ से फित्रा वाजिब है। फित्रा की मिकदार याानि मात्रा में 2 किलो 45 गा्रम गेहंू या उसके आटे की कीमत करीब 45 रूपया से चाहे, गेहूं या आटा दे या उसकी कीमत बेहतर है कि कीमत अदा करे। जब तक फित्रा अदा नहीं किय जाता है तब तक सारी इबादत जमीन व आसमान के बीच लटकी रहती है। जब फित्रा अदा कर दिया जाता है ।तो वह बारगाहे इलाही मंे पहुंच जाता है। रोजे मंे इबादत में किसी किस्म की कमी रह गयी है तो यह फित्रा उस इबादत की कमी को पूरा कर देता है। फित्रा मंे गेहंू की जो कीमत आम बाजारों में है उसे ही दिया जायेगा।

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