
है। रमजाने मुबारक अल्लाह जहन्नमियों को छोड़ता है। लिहाजा चाहिए कि रमजान में नेक काम किए जाएं और गुनाहों से बचा जाए। कुरआन करीम में सिर्फ रमजान शरीफ ही का नाम लिया गया और इसी के फजाइल बयान हुए। किसी दूसरे महीने का न सराहतन नाम है न ऐसे फजाइल।महीनों में सिर्फ माहे रमजान का नाम कुरआन शरीफ में लिया गया। औरतों में बीबी मरियम का नाम कुरआन में आया। सहाबा में सिर्फ हजरत जैद बिन हारिसा का नाम कुरआन में लिया गया जिस से इन तीनों की अजमत मालूम हुई। रमजान शरीफ में अफतार और सहरी के वक्त दुआ कबूल होती है। यानी अफतार करते वक्त खजूर वगैर खाकर या पानी पीने के बाद और सहरी खाकर। ये मरतबा किसी और महीने को हासिल नहीं है।
रमजान में पांच हर्फ है। रा, मीम, जाद, अलिफ, नून । रा से मुराद है रहमते इलाही। मीम से मुराद है मुहब्बते इलाही। जाद से मुराद है जमाने इलाही। अलिफ से मुराद है अमाने इलाही। नून से मुराद है नूरे इलाही। और रमजान में पांच इबादत खुसूसी होती है। रेाजा, तरावीह, तिलावते कुरआन, एतकाफ और शबे कद्र में इबादत। तो जो कोई सिदके दिल से ये पांच इबादत करे वो उन पांच इनामों ामुसतहिक है।
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