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उम्मुल मोमिनीन हज़रत सैयदा ज़ैनब बिन्ते ख़ुजै़मा रदियल्लाहु तआला अन्हा
शिफा खातून
आलिमा कोर्स, साल ए अव्वल
मदरसा रज़ा ए मुस्तफाﷺ, तुर्कमानपुर गोरखपुर।
आपका मुबारक नाम ज़ैनब है। वालिद का नाम ख़ुज़ैमा बिन हारिस और वालिदा का नाम हिंद बिन्ते औफ़ रदियल्लाहु तआला अन्हुमा है। आप बचपन ही से बहुत सखी और रहमदिल थीं। गरीबों और मिस्कीनों को खोज-खोज कर खाना खिलाया करती थीं इसीलिए लोग आपको "उम्मुलमसाकीन (मिस्कीनों की मां)" कहा करते।
आप रदियल्लाहु तआला अन्हा ताइफ व उसके आस पास आबाद मशहूर कबीला हवाज़िन की एक मशहूर शाख हिलाल बिन आमिर बिन स'अस'अह की एक अज़ीम खातून हैं।
आप अपने वतन ताइफ में में पैदा हुईं, यहीं आपकी परवरिश भी हुई। उस वक्त अरब में फितना, फसाद और बुराइयां काफी आम थीं। बुतों की पूजा, और पत्थर व दरख़्त की इबादत करना उनका मज़हबी शौक था। उस वक्त कुछ कबीलों में बच्चियों को ज़िंदा दफ्न करने को मज़हबी रिवायत और खानदानी शराफत समझा जाता था। चूंकि आप आप रदियल्लाहु तआला अन्हा एक पाकीज़ा और बुलंद पाया खानदान से निस्बत रखती थीं इसीलिए इस खौफनाक और बुरी रस्म से महफूज़ रहीं।
आपने बहुत कम अरसा हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के साथ गुज़ारे, निकाह के चंद महीनों बाद ही आपका इंतकाल हो गया था। इसीलिए सीरत व तारीख़ की किताबों में आप के हालात का ज़िक्र बहुत कम मिलता है। इस ज़िक्र की कमी के बावजूद आपकी अज़मत का सितारा काफी बुलंद नज़र आता है।
तारीख की रिवायत में काफी इख़्तेलाफ पाया जाता है कि हज़रत ज़ैनब बिन्त ख़ुज़ैमा का पहला निकाह किस से हुआ ? फिर आप किस तरह अल्लाह पाक के आखरी नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम के निकाह में आईं। तारीख की किताबों में मौजूद ज़्यादा सही व एतेमाद के काबिल रिवायत यहां नकल की जा रही है।
आपका निकाह पहले हज़रत तुफैल बिन हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब रदियल्लाहु तआला अन्हु से हुआ था। इसके बाद उनके भाई हज़रत उबैदह बिन हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब रदियल्लाहु तआला अन्हु से हुआ। मदीना शरीफ की तरफ हिजरत के बाद जंग ए बदर पेश आई, जिसमें हज़रत उबैदह बिन हारिस रदियल्लाहु तआला अन्हु शहीद हो गए। आखिर में नबी ए रहमत सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम ने उनका ग़म दूर करने और उनकी ज़िंदगी को सहारा देने के लिए उनसे शादी कर ली। नबी पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम ने हज़रते हफ़्सा बिन्ते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हा के बाद आपसे निकाह फरमाया।
अल्लाह पाक के आखरी नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम ने 3 हिजरी रमज़ान के महीने में आपसे निकाह फरमाया। आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम के निकाह में आने के आठ महीने बाद रबीउल आखिर 4 हिजरी में आप इंतकाल फरमा गईं।
जब मक्का में ज़ालिमों ने मुसलमानों की ज़िंदगी ज़ाहिरी तौर पर सख़्त दुश्वार कर दी और मुसलमानों पर तरह-तरह की मुश्किलात व आज़माइशों के पहाड़ तोड़े गए तो मुसलमान हब्शा फिर मदीना की तरफ हिजरत कर गए। उन हिजरत करने वाले मुसलमानों में उम्मुल मोमिनीन हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु तआला अन्हा भी थीं।
शे'अब अबी तालिब में जब नबी पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम को उनके मानने वालों के साथ ज़ुल्म व सितम करते हुए तीन सालों तक एक घाटी में कैद रखा गया था। हज़रते ज़ैनब उन खुश किस्मत सहाबियात में से हैं जिन्होंने इस मुश्किल वक्त में इस मुसीबत में कैद रहने के बावजूद भी ईमान पर मजबूती से कायम रहीं। यह इसलिए था कि उनका अपने रब से रिश्ता बहुत मज़बूत था। आपने ईमान बचाने की खातिर हर मशक्कत को गले लगाया। रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मुहब्बत में सख्तियां झेलीं। दरअसल यह आपके कामिल ईमान की साफ दलील है। आज जब मुसलमानों पर हर जानिब से ज़ुल्म व सितम के पहाड़ तोड़े जा रहे हैं आप रदियल्लाहु तआला अन्हा की सीरत हमारे लिए रास्ते का चिराग़ है कि हम हर हाल में अपने मज़हब पर मज़बूती से कायम रहें अगर अल्लाह पाक ने चाहा तो ज़ुल्म व सितम का यह दौर अन्करीब खत्म हो जाएगा।
आप रदियल्लाहु तआला अन्हा की सीरत निहायत पाकीज़ा थी। आप रहमदिली, शफक़त व मुहब्बत, इसार व कुर्बानी और वफाशिआरी जैसे अच्छे अख्लाक से मालामाल थीं। तारीख़ में आपका लकब ‘‘ उम्मुलमसाकीन’’ बताया गया है यानी मिस्कीनों और गरीबों की मां।उन्हें गरीबों की मां इसलिए कहा जाता है कि वह उन्हें खाना खिलाती थीं और सदक़ा व खैरात के ज़रिए उनकी मदद करती थीं।
एक बार उम्महातुल मोमिनीन ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम से पूछा कि जन्नत में सबसे पहले आप से कौन मिलेगा ? अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम ने फरमाया जिसके हाथ लम्बे होंगे। उम्महातुल मोमिनीन के बीच इख्तिलाफ हो गया कि हाथ किसके लम्बे हैं ? मगर जब हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु तआला अन्हा का इंतकाल हुआ तो यह बात ज़ाहिर हो गई कि खैरात व सदकात में उनका हाथ सबसे लम्बा था (यानी आप ज़्यादा सदका व खैरात किया करती थीं)।
अल्लाह पाक के आखरी नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम की इल्मी, रूहानी व पाक ज़िंदगी से फायदा हासिल करते हुए रबीउल आखिर चार हिजरी में तीस साल की उम्र पा कर हज़रते ज़ैनब बिन्त ख़ुज़ैमा रदियल्लाहु तआला अन्हा का विसाल हुआ। एक कौल यह भी है कि हुज़ूर सल्ल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम के निकाह में आने के सिर्फ दो या तीन महीने तक ही आप ज़ाहिरी तौर पर ज़िन्दा रहीं।
तमाम आलम के लिए रहमत बन कर तशरीफ लाने वाले, मुअल्लिमे कायनात (Teacher for the whole universe) सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने आप की नमाजे़े जनाज़ा पढ़ाई और जन्नतुल बकीअ में आपको दफ्न किया गया।
नबी पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम की पाक बीवियों में में आप पहली बीवी हैं जिनको जन्नतुल बक़ी'अ में दफ़्न किया गया।
उम्मुल मोमिनीन हज़रते खदीजा और उम्मुल मोमिनीन हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु तआला अन्हुमा के अलावा नबी पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम की किसी और बीवी ने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम की ज़ाहिरी ज़िंदगी में वफात नहीं पाई।
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हज़रते सैयदा ज़ैनब बिन्ते ख़ुुजैमा ने बहुत कम अरसा हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सोहबते बा फैज में बसर किया है क्योंकि आपके साथ निकाह के चंद माह बाद ही इनका इंतकाल हो गया था, इसलिए कुतुबे सीरत व तारीख़ में बहुत कम आप के अहवाल का जिक्र मिलता है, इसलिए कमिये जिक्र के बावजूद आपकी अज़मत का सितारा बुलंद नज़र आता है।
आपका इस्मे गिरामी ज़ैनब है। आप बचपन ही से बहुत सखी और रहमदिल थीं। गरीबों और मिस्कीनों को खोज-खोज कर खाना खिलाया करती थीं इसलिए लोग उनको ‘उम्मुल मसाकीन‘ (मिस्कीनों की मां) कहा करते थे। इनके वालिद का नाम ख़ुज़ैमा बिन हारिस रदियल्लाहु तआला अन्हु और वालिदा का नाम हिंद बिन्ते औफ़ रदियल्लाहु तआला अन्हु हैं। मशहूर सहाबी हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़हश से हज़रते ज़ैनब बिन्ते ख़ुज़ैमा का निकाह हुआ था, लेकिन जब हज़रते ज़ैनब के शौहर हज़रत अब्दुल्लाह जंगे उहुद में शहीद हो गए तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने तीन हिजरी में उनसे निकाह किया। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की जौजियत में आने के आठ माह बाद रबीउल आखिर चार हिजरी में 30 साल की उम्र में इंतकाल फरमा गईं।
हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के निकाह में : हज़रते ज़ैनब बिन्ते ख़ुजैमा का निकाह हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़हश रदियल्लाहु तआला अन्हु के साथ हुआ उनके गजवा-ए-उहुद में शहीद होने के बाद आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनका ग़म दूर करने के लिए उनसे शादी कर ली। हज़रते हफ़्सा बिन्ते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हा के बाद हज़रते ज़ैनब बिन्ते ख़ुज़ैमा रदिल्लाहु तआला अन्हा से निकाह किया।
आपको मिस्कीनों की मां क्यों कहा जाता है? : आप रदियल्लाहु तआला अन्हा की सीरत निहायत पाकीज़ा थी। पाकबाज़ी तो वैसे भी आपके खानदान की पहचान थी। जूदो सखा, रहमदिली, शफकत व मुहब्बत, इसार व कुर्बानी और फाशआरी की दौलत से मालामाल थीं। तारीख़ में आपका लकब ‘‘ उम्मुलमसाकीन’’ बताया गया है यानी मिस्कीनों और गरीबों की मां। जाहिर है कि यह तारीफ़ उन पर गालिब थी, निहायत नर्म दिल थीं। जिसकी वजह से उन्हें यह लकब मिला। उन्हें गरीबों की मां इसलिए कहा जाता है कि वह उन्हें खाना खिलाती थीं और सदका खैरात करती थीं।
उम्माहातुल मोमिनीन ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से पूछा कि जन्नत में सबसे पहले आप से कौन मिलेगा? अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया जिसके हाथ लम्बे होंगे, उम्महातुल मोमिनीन के बीच इख्तिलाफ हो गया कि हाथ किसके लम्बे हैं, मगर हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु तआला अन्हा का इंतकाल हुआ तो यह बात पता चल गई कि खैरात व सदकात में उनका हाथ सबसे लम्बा था।
ईमान की दौलत और हज़रत ज़ैनब रदियल्लाहु तआला अन्हा : जब मक्का में मुसलमानों की ज़िंदगी सख़्त दुश्वार हो गई और मुसलमान तरह-तरह की मुश्किलात व आजमाइशों से थक गए तो कुछ मुसलमान हबशा से मदीना की तरफ गए तो उन मुहाजिरीन मुसलमानों में उम्मुल मोमिनीन हज़रते ज़ैनब भी थीं। हज़रते जैनब उन खुश किस्मत सहाबियात में से हैं जिन्होंने शअब अबी तालिब के तीन साल जुल्म व सितम में कैद रहकर भी ईमान व यकीन और अजीयत व सब्र की कंदील को रौशन रखा। यह इसलिए था कि उनका अपने रब से रिश्ता बहुत मजबूत था। ईमान की आबरु के लिए हर मशक्कत को गले लगा लिया। रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मुहब्बत में यह सब सख्तियां झेलीं। यह दरअसल कमाले ईमान की खुली दलील है। ईमान व यकीन का रिश्ता भी ऐसा मज़बूत रिश्ता होता है कि इंसान इसकी खातिर वतन, घर बार सब कुछ छोड़ना गंवारा कर लेता है। यह वह बुलंद मकाम है जब अक्ल के बजाए मुहब्बत काम करती है। यह दौलत व अजमत बिना कोई शक के उम्मुल मोमिनीन हज़रते ज़ैनब बिन्ते ख़ुज़ैमा के हिस्से में आई।
विसाल : हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इल्मी व रूहानी फैजान से फै़ज़याब होते हुए और सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के दीदार के शरबत से अपनी आंखों को सैराब करते हुए हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की जौजियत में आने के आठ महीने बाद रबीउल आखिर चार हिजरी में तीस साल की उम्र पाकर हज़रते ज़ैनब ने सफ़रे आखि़रत का आगाज़ फरमाया। एक कौल यह है कि हुजूर सल्ल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की जौजियत में आने के बाद सिर्फ दो या तीन माह हयात रहीं। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने आप की नमाजे़े जनाज़ा पढ़ाई और जन्नतुल बकीअ में सुपुर्दे खाक किया। एक रिवायत के मुताबिक आपके तीन भाई थे, जो उनको कब्र में दफ़न करने के लिए उतरे। अज़वाजे मुतहहरात में वह पहली बीवी हैं जिनको जन्नतुल बकीअ में दफ़्न किया गया। उम्मुल मोमिनीन हज़रते खदीजा और उम्मुल मोमिनीन हज़रते ज़ैनब के अलावा किसी और अज़वाजे मुतहहरात ने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ज़िंदगी में वफात नहीं हुई।
शिफा खातून
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