इब्ने बतूता : Untold Muslim Scientist, philosophers story


 


(24 फ़रवरी 1304 ई० 1378 अगर चौदहवीं शताब्दी में संसार के सबसे बड़े यात्री की खोज की जाए तो इब्ने बतूता का नाम यात्रियों की तालिका में सबसे ऊपर नज़र आता है। उनका जन्म तंजा नामी स्थान पर हुआ। 29 वर्ष की आयु में हज यात्रा पर निकले और यहां से सुदूर देशों के सफ़र पर चले गये।

क्योंकि इब्ने बतूता इस्लाम धर्म के बड़े ज्ञानी भी थे इसलिए जहाँ भी वह गये लोगों ने इब्ने बतूता दिल्ली में उनका आदर सम्मान किया। उनकी भारत यात्रा बड़ी रोचक है वह अलाउद्दीन खिलजी के ज़माने में भारत आये और सात वर्ष दिल्ली के क़ाज़ी (मजिस्ट्रेट) रहे। उन्होंने अपनी भारत यात्रा सिंध से शुरू की थी जिसमें भारत की संस्कृति, भूगोलिक स्थिति, कर वसूल करने के तरीके और दिल्ली की भव्यता का सुन्दर विवरण दर्ज है। अलाउद्दीन ख़िलजी ने उन्हें अपना दूत बनाकर चीन के सम्राट के पास भेजा था जिसके लिए उन्होंने गुजरात से जलपोत में यात्रा शुरू की रास्ते में वह लंका, मलाया और दर्जनों टापुओं से गुजरे, वह जहाँ-कहीं गये वहाँ के हालात बड़े दिलचस्प अंदाज़ में लिखे। उनका सफ़रनामा चौदहवीं शताब्दी के भारत पर विश्वसनीय दस्तावेज़ माना जाता है।

दक्षिणी एशिया के अलावा उन्होंने उत्तरी अफ्रीका के देशों की यात्रा की। मिस्त्र के नगर इस्कन्द्रिया का हाल वह इस तरह लिखते हैं, ‘यह शहर घनी आबादी वाला है यहाँ आवश्यकता का हर सामान मिलता है। हर प्रकार के लोग रहते हैं। हालांकि यह एक प्राचीन नगर है फिर भी चहल-पहल देखते ही बनती है। नगर के विवरण में वहाँ की मस्जिदों और पिरामिडों का
जिक्र भी है।’ इब्ने बतूता के सफ़रनामों की एक विशेषता यह है कि वह शासक वर्ग के बारे में ही नहीं आम आदमी के हालात भी बड़े विस्तार से लिखते हैं। वह नील नदी पार करके अरब आना चाहते थे लेकिन रास्ते में पता चला कि वहाँ युद्ध छिड़ा हुआ है। उन्हें वापस आना पड़ा और उन्होंने सीरिया का रुख किया।

सीरिया की राजधानी दमिश्क़ की प्रशंसा करते हुए वह कहते हैं कि यह शहर नई और प्राचीन इमारतों से भरा पड़ा है। यहाँ के लोग बड़े दयावान हैं। हर कोई ग़रीबों की सहायता करना चाहता है अगर किसी यात्री का पैसा समाप्त हो जाए या किसी व्यापारी को घाटा हो जाए तो यहां के लोग उसकी पैसे से सहायता करते हैं। लोग ग़रीब लड़कियों की शादियां कराने और कैदियों को कारावास से छुड़ाने में मदद करते हैं।

एक दिन इब्ने बतूता बाज़ार से गुजर रहे थे कि एक दास के हाथ से चीनी मिट्टी का बर्तन गिरकर टूट गया। वह रोने लगा। वहाँ खड़े एक व्यक्ति ने उसे बताया जाओ टूटे हुए बर्तन के टुकड़े सरकारी विभाग में ले
जाओ वहाँ से तुम्हें सहायता मिल जाएगी। दास बर्तन के टुकड़े ले गया और उसे उसकी राशि मिल गई।

इब्ने बतूता दमिश्क की सभ्यता के खास पहलू पर रोशनी डालते हैं कि यहाँ के लोगों में सहकारिता की भावना है। लोग मिल-जुलकर मदरसे, मस्जिदें, सड़कें, मक़बरे और सराय बनवाते हैं।

इब्ने बतूता जिन मशहूर लोगों से मिले उनका जिक्र भी बड़े विस्तार से किया है। उनका सफ़रनामा संसार की सभी बड़ी भाषाओं में प्रकाशित हो चुका है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

*गोरखपुर में डोमिनगढ़ सल्तनत थी जिसे राजा चंद्र सेन ने नेस्तोनाबूद किया*

*गोरखपुर के दरवेशों ने रईसी में फकीरी की, शहर में है हजरत नक्को शाह, रेलवे लाइन वाले बाबा, हजरत कंकड़ शाह, हजरत तोता-मैना शाह की मजार*

जकात व फित्रा अलर्ट जरुर जानें : साढे़ सात तोला सोना पर ₹ 6418, साढ़े बावन तोला चांदी पर ₹ 616 जकात, सदका-ए-फित्र ₹ 40