*गोरखपुर के दरवेशों ने रईसी में फकीरी की, शहर में है हजरत नक्को शाह, रेलवे लाइन वाले बाबा, हजरत कंकड़ शाह, हजरत तोता-मैना शाह की मजार*



गोरखपुर। सूफी वहीदुल हसन फरमाते हैं कि पूर्वांचल का ये मशहूर शहर दरिया-ए-राप्ती के किनारे आबाद है। जहां मशायख-ए-इजाम और शोहदा-ए-किराम के मजारात हैं। जहां उर्स के मौके पर और जुमेरात के दिन खेराजे अकीदत पेश करने के लिए अकीदतमंद इकट्ठा होते हैं। गोरखपुर रेलवे स्टेशन के यार्ड में शहीद बाबा की मजार है। गोरखपुर में बेशुमार शोहदा, मशायख और मज्जूबों के मजारात हैं। जहां तक मशायख-ए-इजाम व पीरीने तरीकत का सवाल है उनके मजारात काजी साहब के मैदान, मुहल्ला शेखपुर, खूनीपुर, रेती चौक, अस्करगंज, इलाहीबाग, गोलघर, बुलाकीपुर, काजीपुर खुर्द, मुहल्ला अबु बाजार, रहमतनगर, हुमायूंपुर आदि जगहों पर हैं। वहीं शोहदा की मजारात तकरीबन हर मुहल्ले में है। हर मुहल्ले में शहीद, मज्जूबों व मसायख  की मजार जरूर मिलेगी। गोरखपुर के मशायख-ए-इजाम की चंद विशेषताएं हैं। सलासिल अरबा चिश्तिया, कादरिया, नक्शबंदिया और सुहरावर्दिया सभी सलासिल के बुजुर्ग यहां असूदा-ए-खाक हैं। इन सलासिल की शाख दर शाख मसलन निजामिया, साबिरिया, फरीदिया, जहांगीरिया, फिरदौसिया, बहादुरिया वगैरह में भी यहां के मसायख मिजाज रखते थे। दूसरी विशेषता मशायख-ए-गोरखपुर की यह है कि ज्यादातर लोग बाहर से तशरीफ लायें। दीन का काम किया और यहीं मुस्तकिल तौर से बस भी गये। तीसरी विशेषता ये है कि इन में बहुतेरे साहिबे तसनीफ हुए हैं। किसी की किताब छप गयी किसी की नहीं छपी। चौथी विशेषता यह है कि चंद को छोड़कर सभी को शेरो शायरी से कुछ न कुछ लगाव जरूर रहा और उनके दीवान मुरत्तब होकर छपे। बाज मशायख के अशआर इल्हामी हैं और मारफते इलाही के सरबस्ताराज की कलीद भी। आखिरी विशेषता बड़ी ताज्जुब खेज है कि गोरखपुर के ज्यादातर मशायख साहिबे सरवत थे। इन हजरात ने अमीरी में भी फकीरी की। एक तरफ दौलत व सरवत थी तो दूसरी तरफ मुसल्ला, तस्बीह, चटाई, और लोटा। जिस किसी भी शेखे तरीकत को ले लीजिए उसके पास जिंदगी बसर करने की जरुरत से कहीं ज्यादा माल व मता था। यहां के सुयूख रईस होते हुए भी फकीरी दरवेशी और सुलूक के आला मदारिज (दर्जे) पर थे। अफसोस कि आज हम अपने अस्लाफ की रविश को भुलाते जा रहे हैं।

*1. हजरत सूफी नजीर अहमद शाह अलैहिर्रहमां - मजार नरकटिया बसंतपुर तकिया*
आपने हजरत मोहम्मद बहादुर अली शाह की बहुत खिदमत की और सिलसिला की तालीमात पर दिल जमई के साथ अमल किया। चुनांचे इख्लास की बिना पर आपको सिलसिला की इजाजत व खिलाफत अता कर दी गई। लोग आपकी मोहब्बत व शफकत की वजह से आपके करीब हुए। आपकी सोहबत व तवज्जो से यहां के और एतराफ के लोगों ने राहे मुस्तकीम पायीं। मजार शरीफ नरकटिया (बसंतपुर तकिया हजरत सूफी चराग शाह की मजार से चंद कदमों की दूरी पर) में है।।

*2. हजरत अबुल गफूर शाह अलैहिर्रहमां - मजार रहमतनगर*
हजरत अबुल गफूर शाह मुहल्ला रहमतनगर के बाशिंदे थे। आबिद, नेक और मिलनसार होने के साथ इल्मे तसव्वुफ की बहुत सी किताबें रखते थे। आपकी खुशकिस्मती थी कि हजरत मो. अली बहादुर शाह अलैहिर्रहमां की कुर्बत हासिल हो गई। जिससे आपकी जिंदगी में रूहानी तब्दीली पैदा हुई और आप मुरीद हो गये। मुर्शिद से इजाजत व खिलाफत भी हासिल कर ली। आपने आवाम में शरीयत, तरीकत, मारफत और हकीकत के औसाफ फैलाकर सिलसिला-ए-आलिया, चिश्तिया, निजामिया, बहादुरिया को फरोग बख्शा। आपका विसाल 10 मई सन् 1920 ई. में हुआ। आपकी वसीयत के मुताबिक आपका मजार आप ही के मकान में है।
काबिलेगौर अब आप अंदाजा कर लें कि हजरत मो. अली बहादुर शाह अलैहिर्रहमां ने कितना काम किया और वो किस मकाम पर थे।

*3. हजरत सैयद असदुल्लाह शाह - मजार मियां बाजार* - मुहल्ला मियां बाजार शहर गोरखपुर के रहने वाले अब्दुल मजीद खां रईस-ए-गोरखपुर तारूफ के मोहताज नहीं हैं। इस खानदान का ताल्लुक किसी न किसी बुजुर्ग से जरूर रहा है। आपके दौलतकदा पर एक फकीर, दरवेश और रहनुमा-ए-तरीकत हजरत सैयद असदुल्लाह शाह रहा करते थे। अब्दुल मजीद ने आपके दस्ते हक पर बैअत की और खूब खिदमत की। यहां रहकर हजरत सैयद असदुल्लाह शाह ने बहुतों को खुदा की राह बतायी। हजरत सैयद असदुल्लाह शाह सीवान बिहार के रहने वाले थे। आपके मुर्शिद का नाम हजरत सैयद अली हबीब शाह कादरी था।  आप उनके खलीफा भी थे। आपका गोरखपुर में विसाल हुआ। आपका मजार शरीफ अब्दुल मजीद खां के आबाई कब्रिस्तान मुहल्ला मियां बाजार में है।

*4.दरगाह हजरत मूसा शाह शहीद उर्फ रेलवे लाइन वाले बाबा - गोरखपुर रेलवे स्टेशन प्लेटफार्म नं. 2*

रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नं. 2 के पास दरगाह हजरत मूसा शाह शहीद अलैहिर्रहमां है। जिन्हें रेलवे लाइन वाले बाबा के नाम से भी जाना जाता है। गोरखपुर रेलवे स्टेशन के पटरियों के बीच यह मजार करीब दो सौ साल पुरानी बताई जाती है। कहा जाता है कि जब भारत में अंग्रेज रेलवे को बढ़ावा दे रहे थे। उस वक्त गोरखपुर के इस रेलवे स्टेशन के पास भी पटरिया बिछाई जा रही थीं। दिन भर काम का नतीजा रात को सिफर में तब्दील हो जाया करता था। अधिकारी से लेकर पटरी बिछाने वाले सुबह होते ही जब पटरियों को निहारते तो पटरिया उसी अवस्था में रहती जिस अवस्था में मजदूर निकल कर पटरियों को लगाते थे। कहा जाता है कि बाबा के इस करामत ने अंग्रेजों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया और आखिर में वह मजार को छोड़कर पटरिया लगाने को मजबूर हुए। उस वक्त से लेकर आज तक पटरियों के बीच में बाबा की दरगाह मौजूद है और यहां अकीदतमदों की भीड़ भी जमा होती है और लोग कहते है कि बाबा की दुआ से सब कुछ ठीक हो जाता है। सन् 1930 ई. से लेकर अब तक पटरियों के बीच में मौजूद दरगाह और लोगों की भीड़ यह बताने के लिए काफी है कि यहां कुछ न कुछ तो है। यहीं एक और बुजुर्ग की भी मजार है।

*5. दरगाह हजरत नक्को शाह बाबा धर्मशाला बाजार*
धर्मशाला बाजार में आपसी सौहार्द के प्रतीक हजरत अली नक्की शाह उर्फ नक्को बाबा अलैहिर्रहमां की दरगाह है। आपका निधन 3 अप्रैल 1992 ई. में शुक्रवार (अलविदा) बामुताबिक रमजानुल मुबारक की 29 तारीख को शाम 7:35 मिनट पर हुआ। आप मज्जूब थे। आप हमेशा यादे इलाही में गुम रहते थे। आपसे कई करामतें भी हुआ करती थीं। हर साल रमजानुल मुबारक में उर्स-ए-पाक मनाया जाता है। सामूहिक रोजा इफ्तार सभी मजहब के लोग मिलजुल कर करते हैं। प्रत्येक जुमेरात को काफी मजमा जुटता है। नक्को शाह बाबा बहुत रियर फोटो नीचे हैं।

*6. दरगाह हजरत कंकड़ शाह रेल म्यूजियम*
गोल्फ ग्राउंड रेलवे आफिस (रेल म्यूजियम) के निकट दरगाह हजरत कंकड़ शाह अलैहिर्रहमां है। रबीउल अव्वल की 24 व 25 तारीख को उर्स-ए-पाक अकीदत से मनाया जाता है। दरगाह से सटे बेलाल मस्जिद भी है। दरगाह की इमारत व मजार करीब 20 साल पहले बनवायी गयी है। मजार व मस्जिद शानदार है। इस साल यानी 2018 में हजरत कंकड़ शाह का 58वां उर्स मनाया जायेगा यह शहीद की मजार है। इसके मुतवल्ली सलीम मीनाई हैं। यहां रमजान के दस दिनों में तरावीह की नमाज के दौरान एक कुरआन शरीफ मुकम्मल किया जाता है। यहां पांचों वक्त की नमाज के अलावा जुमा, ईद-उल-फित्र व ईद-उल-अजहा की नमाज भी होती है। इस वक्त शहर में यह दरगाह अपना एक अलग मकाम रखती है। मजार व मस्जिद की बाहरी इमारत को शानदार टाईल्स से सजाया गया है। मजार के गेट के सामने वुजूखाना है। गुंबद हरे टाईल्स से सजाया गया है। मस्जिद की दो मीनारें हैं। यह दरगाह हर इधर से गुजरने वाले का ध्यान खींचती हैं। अकीदतमंद सलाम करके ही आगे बढ़ते हैं।


*7. दरगाह हजरत तोता मैना शाह गोलघर*
गोलघर में हजरत तोता- मैना शाह अलैहिर्रहमां की दरगाह है। यहां मुहर्रम की 24 तारीख को अकीदत से उर्स मनाया जाता है। दरगाह कमेटी के सचिव फेरहाजुल सेराज 'जेम्स' का कहना है कि बाबा के निकट बहुत ही अधिक संख्या में तोता-मैना पक्षी रहा करते थे, बाबा उन पक्षियों से प्रेम करते थे, इसी कारण इस मजार का नाम तोता-मैना पड़ा। मजार की बिल्डिंग करीब 40 वर्ष पूर्व शहर के व्यापारी गुलाब चंद जायसवाल ने बनवायीं। यह शहीद की मजार है। दरगाह के अंदर तीन शहीदों की मजार है। एक शहीद की मजार दरगाह से बाहर है। दरगाह को बेहतरीन किस्म के टाईल्स से सजाया गया है।





टिप्पणियाँ

  1. इनकी बदौलत भारत विश्व गुरु है
    सर झुका कर सलाम

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  2. जुमेरात के दिन इन गुरुदेव का दर्शन करने वाले लोग सदैव सुखी जीवन के भागी होंगे।

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