सीएम योगी आदित्यनाथ का यह शहर कभी 'मुअज्जमाबाद' हुआ करता था
-अतीत के झरोखे से
-गोरखपुर मंदिर के ईद-गिर्द चारों तरफ हैं मुस्लिम आबादी
-औरंगजेब के सेना नायक काजी खलीलुर्हमान ने गोरखपुर से अयोध्या तक सड़क बनवायीं
-आसफुद्दौला ने गोरखनाथ मंदिर व इमामबाड़ा को बराबर जागीर दी
सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर। सीएम योगी आदित्यनाथ की वजह से गोरखपुर सुर्खियो में हैं। वजह बड़ी हैं। पहली बार गोरक्षनाथ पीठ से कोई सीएम हुआ हैं । गोरखपुर की पहचान गोरखनाथ मंदिर, मियां साहब इमामबाड़ा, गीता प्रेस के रुप में दूर तक हैं। गोरखनाथ मंदिर के चारों तरफ घनी मुस्लिम आबादी हैं। जहां पसमांदा मुस्लिम परिवार कई सौ साल से निवास कर रहे हैं। एक तरह से देखा जायें तो मंदिर के चारों ओर मुहाफिज किले की शक्ल में बसी हैं मुस्लिम आबादी। अतीत में यह शहर 'मुअज्जमाबाद' हुआ करता था। वह भी सौ साल तक। डा. दानपाल ने 'गोरखपुर-परिक्षेत्र का इतिहास' में लिखा हैं कि "सत्रहवीं शताब्दी के अंत में (औरंगजेब की मृत्यु 1707 ई. के कुछ वर्ष पूर्व) शहजादा मुअज्जम, जो बाद में बहादुर शाह के नाम से मुगल बादशाह बने, शिकार खेलने गोरखपुर आये। उन्होंने गोरखपुर में जामा मस्जिद बनवायीं । उनके सम्मान में गोरखपुर का नाम बदल कर 'मुअज्जमाबाद' कर दिया गया। 1801 ई. में अंग्रेजो के आने तक सरकारी कामकाज इसी नाम से होते रहे।' 'गोरखपुर इतिहास आदि से आज तक' के लेखक अब्दुर्रहमान गेहुंआसागरी लिखते हैं कि 1707 ई. में औरंगजेब (रह. ) के पुत्र मुअज्जम बहादुर शाह शिकार खेलने गोरखपुर आए उनके सम्मान में चकलेदार के आदेशानुसार गोरखपुर का नाम 'मुअज्जमाबाद' कर दिया गया। संगी मस्जिद, जामा मस्जिद व उर्दू बाजार का बसाव भी सम्पन्न हुआ। 1801 ई. में दुर्बल नवाब ने उपहार स्वरुप गोरखपुर अंग्रेजों को भेंट कर दिया। अंग्रेजों ने
सर्व प्रथम इसका नाम 'मुअज्जमाबाद'
से हटाकर पुन: गोरखपुर किया। 1801 ई. में अंग्रेजों ने गोरखपुर को जिला घोषित किया।
इस शहर पर सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी सहित तमाम मुगल शासकों की दिलचस्पी हमेशा रहीं।
-शहंशाह औरंगजेब के सेना नायक काजी खलीलुर्हमान ने गोरखपुर से अयोध्या तक सड़क बनवायीं
अब्दुर्रहमान गेहुंआसागरी अपनी किताब में लिखते हैं कि 1680 ई. में औरंगजेब के निपुण सेना नायक काजी खलीलुर्रहमान ने सबसे पहले गोरखपुर परिक्षेत्र का सर्वेक्षण किया। उन्होंने गोरखपुर आने वाले यात्रियों/श्रद्घालुओं के समुचित स्वागत-सेवा एवं सुरक्षा का प्रबंध किया। इसके बाद जनसहयोग से गोरखपुर से अयोध्या तक सड़क बनवायी। सड़क के किनारे छायादार वृक्ष लगवाए। रास्ते के दोनों तरफ श्रद्धालुओं के पड़ाव एवं खाने-पीने का प्रबंध किया।
-राजा टोडरमल ने बाबा गोरखनाथ का समाधि स्थल तो फिदाई खां ने मस्जिद बनवाई
डा. दानपाल लिखते हैं कि 1567 ई. में अकबर ने सिपहसालार फिदाई खां एवं राजा टोडरमल के नेतृत्व में एक सेना उजबेगों का विद्रोह खत्म करने के लिए भेंजीं। उजबेगों का पीछा करते हुये यह सेना गोरखपुर तक आ पहुंचीं।धुरियपार के राजा ने मुगल सेना के सामने समर्पण कर दिया। मुगलों ने पहली बार गोरखपुर में फौजी छावनी स्थापित की तथा यहीं से मुगलों ने पूरे जनपद पर अपना आधिपत्य कायम किया। इसी समय राजा टोडरमल ने बाबा गोरखनाथ का समाधि स्थल एव फिदाई खां ने वहीं कुछ दूर पर एक मस्जिद बनवायीं।
-आसफुद्दौला ने गोरखनाथ मंदिर व इमामबाड़ा को बराबर जागीर सौंपी
अब्दुर्रहमान अपनी किताब के पेज नं. 56 पर लिखते हैं कि 1775 ई. में अवध की बागडौर आसफुद्दौला ने संभाली। 1790 ई. में आसफुद्दौला शिकार खेलने गोरखपुर आया। इस काल तक गोरखपुर में (1675-1700) दो मुसलमान के बड़े घराने (उंचवा) आबाद हो चुके थे। आसफुद्दौला ने बाबा गोरखनाथ और रौशन अली से आशीष ग्रहण कर दोनों तपोस्थलियों पर बराबर जागीर समर्पित की। अपने कर्मचारियों से इमामबाड़ा बनाने का कार्य सौंपा।
गोरखनाथ तपोभूमि पर अकबर महान के शासनादेश से ही राजा टोडरमल द्वारा शानदार योगपीठ का निर्माण सम्पन्न हो चुका था। आसफुद्दौला ने उसमें आवश्यक सौन्दर्यीकरण का आदेश ज्ञापित करते हुए उसके चारों और मुस्लिम धर्मावलम्बियों को बसाने का आदेश दिया। हालांकि फिदाई खां के जमाने में भी मुस्लिम यहां आबाद थे। इस इलाके को पुराना गोरखपुर भी कहते हैं।
-ऐसे पड़ा नाम गोरखपुर
डा. दानपाल अपनी किताब में लिखते हैं कि राजा होरिल सिंह (मंगल सिंह) द्वारा गोरखपुर नगर की स्थापना की गयी। सतासी राजा होरिल सिंह द्वारा बाबा गोरखनाथ की समाधि के दक्षिण में एक छोटा सा कस्बा बसाया गया और बाबा गोरखनाथ के नाम पर गोरखपुर रखा। उन्होंने यहां एक राजमहल भी बनवाया। बाद में सतासी राज्य की राजधानी स्थानान्तरित होकर यहीं चलीं आयीं।
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