भूत-प्रेत व अभिनेता राजपाल यादव भी जिस अर्थी बाबा की जमानत न बचा सके


syed farhan ahmad
गोरखपुर । कुछ लोग चुनाव जीतने के लिए लड़ते हैं तो वहीं कुछ लोग अखबारों की सुर्खियां पाने के लिए। अखबारों व चैनलों में सुर्खियां पाने के लिए ऊल-जलूल हरकतें करने से भी गुरेज नहीं करते हैं।  गोरखपुर में एक ऐसा शख्स हैं जो कई चुनावों में वाहियात हरकतें कर सुर्खियां तो बटौर ही लेता हैं लेकिन जमानत नहीं बचा पाता हैं।  उप्र का विधानसभा चुनाव चौरी-चौरा विधानसभा से लड़े इस शख्स  के लिए न तो बालीवुड अभिनेता राजपाल यादव का चेहरा और न ही भूत-प्रेत कुछ काम आ सके। यहां तक कि जमानत जब्त हो गयी। कुल 383 वोट मिलें।
नाम हैं अर्थी बाबा। चुनावी नारा था राम नाम सत्य है। दफ्तर का पता था श्मशान घाट। जिसने एमबीए किया हैं। कार्यकर्ता है भूत-प्रेत (कुछ आदमियों को छोड़कर)। यह दावा है इनका। जी हां, गोरखपुर जिले की चौरी चौरा विधानसभा सीट से सर्व संभाव पार्टी के प्रत्याशी का यही संक्षिप्त परिचय है। वैसे असली नाम राजन यादव है, पर लोग उन्हें अर्थी बाबा के नाम से ही जानते हैं। वजह यह है कि एमबीए कर चुके अर्थी बाबा अर्थी पर सवार हो कर ही हर चुनाव में प्रचार के लिए निकलते हैं। नामांकन दाखिल करने भी वह अर्थी पर सवार हो कर ही पहुंचे थे।
सर्व संभाव पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अभिनेता राजपाल यादव के भाई श्रीपाल यादव हैं। वैसे अर्थी बाबा के लिए चुनाव कोई नई चीज नहीं है। चुनाव को लेकर वह काफी गंभीर नजर आते लेकिन हैं उतने गंभीर हैं नहीं। इससे पहले वह कई बार निर्दलीय चुनाव लड़ चुके हैं, पर जीत का स्वाद कभी नहीं चख पाए। यह पहली दफा है जब किसी राजनीतिक दल ने उन्हें टिकट दिया था।

राजन यादव की मानें तो  एमबीए करने के दौरान उन्होंने सीखा कि लोगों का ध्यान कैसे आकर्षित किया जाता है। राजन यादव मानते हैं कि  उनके अर्थी पर सवार होकर प्रचार करने में कुछ गलत नहीं है। उन्होंने कहा था कि 'अगर मैं इस बार चुनाव जीता, मैं विधायक निधि का बड़ा हिस्सा गरीब गन्ना किसानों को दूंगा।' लेकिन कुछ ख्वाब हकीकत से दूर होते हैं। इस बार भी उनके साथ पुरानी सियासी रिवायत दोहरायी गई। जमानत भी नहीं बची।।लाखों मतदाताओं में गिनती  के 383 लोग ही इनसे मुतास्सिर नजर आयें।

लेकिन कौन बताये इनको कि चुनाव वाहियात तरीके से नहीं जनसमर्थन से लड़ा जाता हैं। जिसके पास जमानत तक बचाने के लिए लोग न हो वह विधानसभा में पहुंचेगा कैसे। खैर लोकतंत्र हैं सभी चुनाव लड़ सकते हैं। इसके लिए कुछ तो संजीदा होना पड़ेगा। सियासत खेल तमाशा नहीं।

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