औरतों को मजहबे इस्लाम के सदके में मिला अधिकार, तलाक जुल्म नहीं एहसान : मुफ्ती अलाउद्दीन


-मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार में जलसा
गोरखपुर। मदरसा दारूल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार का 8वां इस्लाहे मआशरा व दस्तारबंदी समारोह (दीक्षांत समारोह) मंगलवार को आयोजित हुआ। छह छात्रों के सिर दस्तार बांध प्रमाण पत्र प्रदान किया गया।


इस मौके पर अन्तर्राष्ट्रीय इस्लामिक वक्ता मेंहदावल के मुफ्ती अलाउद्दीन मिस्बाही ने कहा कि कुरआन पाक रब का कलाम हैं। यह एक वाहिद किताब हैं जो सारी किताबों का सरताज हैं। यहां तक कि कयामत तक पैदा होने सारे सवालों का जवाब कुरआन पाक में हैं।
रसूलल्लाह को शरीयत बनाने व बदलने का अख्तियार रब ने दिया हैं। कुरआन,हदीस, इज्मा व कयास मुस्लिम लॉ के स्रोत हैं।
मजहबें इस्लाम ने इस किताब के जरिए जो कानून अता किए हैं उनसे इंसानियत की हिफाजत होती हैं और आदमियत का वकार बढ़ता हैं। इसलिए मेरा कहना हैं कि शरीयत ने एक मर्द को अपनी बीवी को तलाक देने का जो हक दिया हैं वह औरतों पर जुल्म नहीं एहसान हैं। अगर शौहर बीबी के बीच रहना मुश्किल हो जायें तो तलाक एक तरीका हैं अलग होने का। अगर तलाक न होता तो समाज में बहुत सी खराबियां पैदा हो जाती। इस्लाम पूरी इंसानी बिरादरी की हिफाजत की बात करता हैं। यहीं वजह हैं कि हमारे मजहब की बरकत के नाते औरतों को इज्जत से जीने का हक मिला। यह हमारे मजहब की देन हैं कि औरत निकाह के रिश्ते से लगकर घर की मलिका बनती हैं।

उन्होंने कहा कि मेरे मजहब की बरकत यह है कि उसने औरतों को माल के ऐतबार से चार तरह का हक दिया हैं। बेटी को बाप के माल में, बीवी को शौहर के माल में, मां को बेटे के माल में, दादी को पोते के माल में हक मजहबे इस्लाम ने दिया हैं। आप गौर करें कि  इस्लाम माल के ऐतबार से औरतों को इतना अधिकार देता हैं। वही इस्लाम  इज्जतो वकार के हिसाब से औरतों को बेहिसाब अधिकार देता हैं। हमारा दावा हैं कि आज औरतों के साथ पूरी दुनिया में जो अधिकार देने की बात की जा रही हैं वह मजहबें इस्लाम का सदका हैं, इसलिए सारे लोगों को इस्लामी कानून पर गौर करने की दावत दी जाती हैं।

उन्होंने सभी से अपील करते हुए कहा  हैं कि अगरचे शौहर बनकर तीन तलाक का हक मिलता हैं लेकिन इसका गलत इस्तेमाल न किया जायें और मामूली-मामूली बातों पर तलाक देकर शरई कानून का मजाक न उड़ाया जायें। एक  जमाने में इस्लाम पर चलना मुश्किल था, लेकिन आज इस्लाम पर चलना आसान है। मुसलमानों को फिर से उसी मरकज यानी हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम की जात से अपना रिश्ता कायम करना होगा, जहां से मुसलमानों को इज्जत मिली थी और मिलेगी। तभी मुसलमानों का खोया हुआ वकार वापस आ सकता हैं।
उन्होंने कहा कि जो औरतें इस्लामी कानून को नहीं मानती हैं वह खुद ही इस्लाम से बाहर हैं। कुरआन शरीफ में तलाक का खुले लफ्जों में उल्लेख हैं। नजमा हेपतुल्ला जैसे लोग जिन्हें कुरआन की एक आयत पढ़ने का सऊर नहीं वह तीन तलाक पर बात कर रहे हैं। अहले हदीस जैसी बातिल  जमातें तीन तलाक पर उंगली उठाती हैं। जबकि हदीस की किताबों में स्पष्ट रुप से तीन तलाक का उल्लेख हैं। यह कैसी जमात हैं जो एक हदीस को तो मानती हैं और दूसरे का इंकार करती हैं। जो इस्लाम के एक कानून को भी मानने से इंकार करेगा वह खुद बा खुद इस्लाम से बाहर हो जायेगा। सरकार पहले औरतों को जिंदगी देने की बात करें। हत्या, ब्लात्कार सहित तमाम अपराध औरतों  के साथ हो रहे हैं और सरकार अपराध रोकने में नाकाम रही हैं।

जाने-माने धर्मगुरु इलाहाबाद से आये पीरे तरीकत सैयद गुलाम गौस मियां ने कहा कि बच्चों को डाक्टर, इंजीनियर के साथ दीनदार बनायें। बच्चा अगर दीनदार होगा तो वह जिस भी क्षेत्र में जायेगा दीन उसकी रहनुमाई करता नजर आयेगा। सामाजिक सुधार की बात करने वाले पहले खुद के अंदर सुधार लाएं। उलेमा और मदरसों का सामाजिक सुधार में अहम रोल है। यहां से फारिग होने वाले छात्र मदरसे से हासिल ज्ञान को खुद की जिदंगी में भी उतारें और दूसरों तक भी पहुंचाएं। समाज सुधारने की शुरुआत हमें सबसे पहले अपने घर से करनी होगी। इस्लाम कल भी हक था, आज भी हक है और कल कयामत तक  हक ही रहेगा। नमाज जैसी अजीम नेमत को देखकर सरोजनी नायडू कहने पर मजबूर हो गई थीं कि दुनिया में सबसे बेहतरीन निजाम इस्लामी निजाम हैं। वजह बताते हुए कहा था कि जब मस्जिद से अजान की सदा आती हैं तो मुसलमान मस्जिदों का रुख करते हैं। एक इमाम होता हैं उसके पीछे एक सफ में काला, गोरा, अमीर-गरीब, अफसर-मजदूर सब कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होते हैं। समाज में समानता व भाईचारा का इससे बेहतर उदाहरण रहती दुनिया तक पेश नहीं किया जा सकता हैं। एक ही सफ में खड़े हो गये महमूद व अयाज, न कोई बंदा रहा न कोई बंदा नवाज। इसलिए मुसलमानों संभल जाओ इस्लाम का दामन मजबूती से थामों, दुनिया में भी कामयाब होगे और आखिरत में भी। नमाज कायम करो। तीन तलाक पर उन्होंने बातिल कूवतों को आड़े हाथों लिया और कहा जब हमें संविधान ने पर्सनल लॉ दिए हैं तो उसे छिनने का हक किसी को नहीं हैं।


महराजगंज के इस्लामिक वक्ता मौलाना शेर मोहम्मद ने कहा नाम से नहीं अमल व किरदार से भी मुसलमान बनिए। जब दूर से कोई देखें तो कहने को मजबूर हो जायें कि वह देखो रसूल का शैदाई जा रहा हैं। रसूल के इश्क में तड़पने वाला दिल ही मोमिन का दिल होता हैं। अपने दिल को नबी के इश्क का मदीना बना लो। हक बोलो, हक कहो, हक के तरफदार बनो। रसूल के वफादर बनो। सब्र और नमाज के जरिए मदद तलब करो। बुराई से दूरी अख्तियार करो। बुरों की सोहबत से बचो। कोयला छुओगे तो कालिख लगेगी। फूल छुओगे तो महक जाओगे। उन्होंने तीन तलाक को कुरआन शरीफ के हवाले से बताया । सूर: निशा की आयत बतायी जिसमें रब ने मियां बीवी के बीच अनबन होने पर कई तरीके से सुलह समझौता होने की बात स्पष्ट लफ्जों में कह कर रहनुमाई फरमायीं। वहीं तलाक देने का तरीका बताया।


प्रोग्राम का आगाज तिलावते कलाम पाक से कारी सरफुद्दीन ने किया। नात शरीफ मुबारकपुर के कारी अशहर अजीजी व मौलाना इरशाद अहमद ने प्रस्तुत की। संचालन मौलाना रियाजुद्दीन कादरी ने व अध्यक्षता मदरसे के प्रधानाचार्य नजरे आलम कादरी ने किय। आखिर में सलातो सलाम पढ़ देश और कौम की तरक्की के लिए दुआएं मांगी गयी।



 -इनके सिर सजा दस्तार मिला प्रमाण पत्र

मदरसा दस्तारबंदी (दीक्षांत) की रवायत के मुताबिक मुख्य अतिथि मुफ्ती अलाउद्दीन मिस्बाही, पीरे तरीकत सैयद गुलाम गौस मियां व मौलाना शेर मोहम्मद ने छात्रों के सिर पर दस्तार बांध,  प्रमाण पत्र प्रदान कर दुआओं से नवाजा ।

1. मौलाना मोहम्मद अहमद हसन (बस्ती)

2. मौलाना नाजिर हुसैन (महराजगंज)

3. मौलाना मोहम्मद कलीमुल्लाह (महराजगंज)

4. मौलाना जीशान रजा (सहसाराम, बिहार)

5. हाफिज मोहम्मद अहसन रजा (मऊ)

6. हाफिज मोहम्मद कासिफ रजा (गोरखपुर)



-यह लोग रहे मौजूद

मदरसे के प्रबंधक हाजी तहव्वर हुसैन, मुफ्ती अख्तर हुसैन अजहरी, हाफिज रेयाज अहमद, नवेद आलम, मोहम्मद आजम, हाफिज रहमत अली, मौलाना इदरीश, मो. नसीम खान, सूफी निसार अहमद, हाफिज अबू अहमद, इकरार, आरिफ, वसीउल्लाह, मकसूद, आफताब, शम्सुज्जोंहा, जीलानी , मोहम्मद इस्माईल खान, हिदायतुल्लाह, अब्दुल हमीद, गुलाम मोहम्मद, मोहसिन खान, अब्कादुल रहीम कारी अनीस अहमद, एडवोकेट शमसुल इस्लाम, मो. कासिम, सलाहुद्दीन, गौसिया सुम्बुल, शबाना, आफरीन आदि मौजूद रहे।


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