गोरखपुर : मलेशियाई तर्ज पर संवर रही दरगाह मुबारक खां शहीद मस्जिद


सैयद फरहान अहमद

गोरखपुर। मुस्‍लिम समुदाय के लिए मस्‍जिद उनका सबसे पवित्र स्‍थान होता है। यहां आकर वो ईश्‍वर से सीधे रूबरू होते हैं। वैसे तो सभी मस्‍जिदें एक खास शैली में ही बनायी जाती हैं पर गोरखपुर  में नार्मल स्थित दरगाह हजरत मुबारक खां स्थित एक ऐसी  मस्‍जिद हैं जो अपने आर्टिटेक्‍चर व इंटीरियर से आपको स्‍तब्‍ध कर देगी। गोरखपुर की इस पुरानी मस्जिद को क्वालालमपुर मलेशिया स्थित जामा मस्जिद अबू के तर्ज पर संवारा जा रहा हैं। पिछले छह माह से नफीस खान और उनकी टीम इस काम में लगी हुई हैं और रमजान में पूरा कार्य मुकम्मल हो जायेगा। मस्जिद पूरी तरह वातानुकूलित है। शीशे व लाइट से जगमगाती इस मस्जिद को गोरखपुर की सबसे सुंदर मस्जिद कहा जा सकता  है। ऐसी साज-सज्जा वाली मस्जिद गोरखपुर में नहीं हैं। इस मस्जिद की सुंदरता में चार चांद लगाने में मार्बल का भी अहम योगदान है। इस मस्जिद को सजाने में मार्बल, अर्द्ध कीमती पत्थरों, क्रिस्टल और प्लाईवुड आदि चीज़ों के अलावा प्राकृतिक सामग्री का भी प्रयोग किया गया है। दरगाह के मुतवल्ली इकरार अहमद ने बताया कि मस्जिद के लिए कालीन विदेश से मंगाया जा रहा हैं। उन्होंने बताया कि करीब 20-25 लाख रुपया मस्जिद की साज-सज्जा में आया हैं। उन्होंने बताया कि मलेशिया की मस्जिद से बेहतर इस मस्जिद की सजावट उतरी हैं।

यह भी जानें
-दरगाह मुबारक खां शहीद गोरखपुर में मुसलमानों की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र हैं।
-यहां मौजूद मस्जिद गोरखपुर की  सबसे खुबसूरत मस्जिद में शुमार है।
-मस्जिद की साज-सज्जा में 6 माह लगे हैं।
-नमाजियों की सहूलियत के लिए छह एसी लगाये गये हैं।
-मस्जिद का काम अंतिम चरण में हैं रमजान में काम मुकम्मल हो जायेगा।
-यहां एक बार में करीब 500 से अधिक लोग एक साथ नमाज़ पढ़ सकते हैं।
-मस्जिद हजरत मुबारक खां शहीद दरगाह से जुड़ी हुई हैं
-यह दरगाह सैकड़ों सालों पुरानी हैं।
-यहीं पास में मदरसा फैजाने मुबारक खां शहीद हैं।
-यहीं गोरखपुर की सबसे पुरानी ईदगाह भी हैं। इसी ईदगाह को देखकर मुंशी प्रेमचंद ने ईदगाह जैसी कालजयी रचना लिखीं थीं।
-यहां हिन्दू-मुस्लिम सभी की समान सहभागिता रहती हैं।
-ईद, बकरीद और जुमा में मस्जिद खचाखच भरी रहती हैं। यहां हजारों लोग नमाज अदा करते हैं। शबे बरात में भी जमकर भीड़ होती हैं।
-यहां मस्जिद में इबादत और मजार पर जियारत करने दोनों की सहूलियत हैं।
-दरगाह पर बड़ी तादाद में महिलाएं आती हैं।
-गुरुवार को काफी भीड़ होती हैं।
- मदरसे के बच्चे मस्जिद में कुरआन शरीफ याद करते हैं।
-ईद बाद दरगाह पर उर्स मनाया जाता हैं । यहां मेला भी लगता हैं।





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