गोरखपुर में नहीं हैं गाजी मियां की दरगाह, जानिए गाजी मियां के बारे में
खुदा ने रूतबा आला दिया हजरत मसऊद गाजी मियां को
गोरखपुर। खुदा ने रुतबा आला शहादत का दिया उनको।
पसंद आयी जो खिदमत हजरत मसऊद गाजी की।।
लरज जाते थे सारे दुश्मनें दीन नाम ही सुनकर।
अजीब तारी थी हैबत, हजरत मसऊद गाजी की।।
पिलाया आप ने एक घाट पानी शेर व बकरी को।
यह भी शान अदालत मसऊद गाजी की।।
गाजी मियां की मजार बहराइच में हैं। गोरखपुर में न उनकी मजार हैं और न हीं गाजी मियां की कोई पवित्र चीज न ही रौजा, आस्ताना व दरगाह । गाजी मियां का नाम किसी भी किताब में बाले मियां दर्ज नहीं हैं। लगन की रस्म लोग अपनी तरफ से मनाते हैं। गाजी मियां पर लिखी जीवनी में लिखा हैं कि मुगल काल में बादशाह औरंगजेब के दौर में कुछ रिवाज गैर इस्लामी शुरू हो गए। जो इस्लाम के सिद्धांत के खिलाफ थे। जिसको देखकर बादशाह को बुरा लगा। बादशाह ने मजार शरीफ के चारों तरफ फौज लगावा दी ताकि लोग अंदर न जाने पाएं। लोग चहारदीवारी की मिट्टी या ईंट उठाकर ले जाने लगे। दूसरे साल तक करीब 13 जगहों पर हिन्दुस्तान के मुख्तलिफ हिस्सों में मैदान गाजी या मजार गाजी कायम किया( जो इस्लाम के नजर से गलत हैं)। यह देखकर बादशाह ने पहरा उठवा लिया ताकि यह खुराफत और बढ़ने ना पाएं।
साक्ष्यों के मुताबिक हजरत सैयद मसऊद गाजी मियां रहमतुल्लाह अलैह हजरत अली की बारहवीं पुश्त से है। हजरत गाजी मियां का वंश हजरत मुहम्मद बिन हनफिया बिन हजरत अली करमल्लाहू वजहू से मिलता है। गाजी मियां के वालिद का नाम गाजी सैयद साहू सालार था। आप सुल्तान महमूद गजनवीं की फौज में कमांडर थे। सुल्तान ने साहू सालार के फौजी कारनामों को देख कर अपनी बहन सितर-ए-माला का निकाह आप से कर दिया। जिस वक्त सैयद साहू सालार अजमेर में एक किले को घेरे हुए थे, उसी वक्त गाजी मियां 15 फरवरी 1015 ईसवीं मुताबिक 12 शाबान 405 हिजरी को पैदा हुए। कहीं-कहीं आपकी पैदाईश की तारीख 21 रज्जब यानी 22 जनवरी भी दर्ज है। इनकी वालिदा बताती थी कि दौरान-ए-हमल जिस चीज की भी खाने की जरूरत पेश आती थी वह तुरंत मिल जाया करती थी। आप का वास्तविक नाम अमीर मसऊद था। गाजी मियां चार साल चार माह के हुए तो बिस्मिल्लाह ख्वानी हुई। हजरत इब्राहीम जैसा आपको उस्ताद मिला। आपने नौ साल की उम्र तक फिक्ह व तसव्वुफ की शिक्षा हासिल की। साथ ही साथ फौजी तालिम भी ली। सुल्तान गजनवीं ने भांजें को देखने के लिए गजनी बुलाया। आप अपनी वालिदा के साथ अजमेर के रास्ते गजनी पहुंचे। इस दौरान तमाम चमत्कार हुए।
गाजी मियां करीब तीन साल तक विभिन्न जंगों में अपने मामू के साथ शरीक रहे। आप बहुत मिलनसार थे। हर एक से कलमातें तौहीद व सुलूक तौहीद फरमाते थे। जिसकी वजह से सब को मुहब्बत इलाही का शौक होता था। बाद एशा जब तन्हाई में होते तो वुजू करते और इबादत-ए-इलाही में मश्गूल हो जाते। आप पर ऐसा गलबा तारी होता कि किसी को पहचान ना पाते। लगातार रात भर जागना और खुदा की इबादत का शौक आप के रग-रग में बस चुका था। आप ऐसे सूफी संतों की संगत में अपना जीवन व्यतीत करते थे, जिनका संसार के लौकिक विधा की अपेक्षा अलैकिक विधा पर अधिक अधिकार था। इसके अतिरिक्त आप युद्ध कला विशेषकर तीरंदाजी में भी पूर्ण अधिकार रखते थे।
जब आप गजनी से वापस हिन्दुस्तान आये तो आपने राजा महिपाल से जंग में फत्ह के बाद तख्त पर बैठने से इंकार कर दिया। सारी जिम्मेदारी अपने साथियों को सौंप कर मानवता का पैगाम देने के लिए निकल पड़े। आप 1031 ईसवीं को बहराइच के जुनूबी व मशीरिक सरहद से दाखिल हुए। यहां पर आग की पूजा करने वाले लोग रहते थे। ऊंच-नीच, जाति-पात का बोल बाला था। आपने इन रिवाजों का विरोध किया जो यहां के राजाओं को पसंद नहीं आया।
इसी दौरान आपके वालिद का इंतकाल 423 हिजरी को हुआ। आप पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। फिर भी आपने सब्र का दामन थामें रखा। एक दिन ख्वाब देखा की सैयद साहू सालार का लश्कर दरिया-ए-गंगा के किनारे ठहरा है शादी की तैयारी की जा रही है। हजरत सितर-ए-माला हाथ में फूलों का हार लिए खड़ी दिखती है पुकार उठती है तेरी शादी करवाने को दिल बेकरार है। फूलों का हार गले में डालकर सीने से लगा लेती है। ख्वाब से बेदार हुए उलेमा से ख्वाब की ताबीर पूछी।
उलेमा ने ताबीर बतायी कि जो भी ऐसा ख्वाब देखता है जल्द शहादत पाता है। गाजी मियां जब बहराइच में तशरीफ फरमा थे तब वहां के इक्कीस राजाओं ने मिलकर आपसे बहराइच खाली करने को कहा। गाजी मियां ने कहा कि मैं यहां पर हुकूमत करने नहीं आया हूं। उसके बावजूद राजा नहीं माने। राजाओं ने मिलकर हमला कर दिया आपने बहादुरी से जंग लड़ी। सुहेल देव से मुकाबला हुआ। बहादुरी से मुकाबला करते हुए आपने शहादत का जाम पिया।
असर मगरिब के दरम्यिन इस्लामी तारीख 14 रज्जब 423 हिजरी मुताबिक 10 जून 1034 ईसवीं के जेठ माह में कम उम्र में आपकी रूह मुबारक ने इस जिस्म खाक को छोड़ कर अब्दी जिदंगी हासिल की। कहीं-कहीं आपकी शहदात की तिथि 14 जून 1033 ईसवीं तो कहीं इस्लामी तारीख 424 हिजरी दर्ज है। परवरदिगारे आलम ने ताकयामत अपनी कहारी, जब्बारी व वहदानियत के ऐलान के लिए आप को चुन लिया। आप हमेशा इंसानों को एक नजर से देखते थे। सभी से भलाई करते। दुनिया के जाने के बाद भी आपका फैज जारी है। जहां पर मजहब, ऊंच-नीच, जात-पात की दीवार गिर जाती है।
-लगन के मुताल्लिक वाक़या
गोरखपुर। जब आपकी शोहरत दूर-दूर तक पहुंची। उस जमाने में रूधौली जिला बाराबंकी की रहने वाली बीबी साहिबा जोहरा जो सैयद जादी थी और पैदाइशी अंधी थी। उस वक्त आप की उम्र बारह साल की थी एक दिन आपके वालिद सैयद जमालुद्दीन ने घर में सैयद गाजी मियां की करामातों का जिक्र किया। बोले जो हाजतमंद बहराइच जाता हैं खुदा के फज्ल से गाजी मियां के वसीले से दिली मुराद पा जाता है।
उन्होंने दुआ की ऐ वली को शहीद को दर्जा अता करने वाले मालिक, गाजी मियां के तुफैल मेरी लड़की को आंख वाला कर दें। रौजे पर हाजिरी दूंगा। इधर जोहरा बीबी ने अहद किया कि अगर मैं आंख पा जाऊंगी तो मजार शरीफ पर हाजिरी दूंगी। आप मोहब्बत-ए-गाजी मियां में ऐसी गुम हुई की दिन रात गाजी मियां का नाम जुबान से जारी रहता। जब मोहब्बत इश्क की मंजिल को पा लिया तो एक रात ख्वाब में देखा दरवाजे पर कोई घुड़सवार आया है। पानी मांगा जोहरा बीबी पानी लेकर दरवाजे पर पहुंची और गिलास सवार की तरफ बढ़ाती है। आवाज आयी मेरी तरफ देखो।
बस उसी वक्त आखें रौशन हो गयी। बहराइच जाने की बात करती है। यहां पर मजार की चौहद्दी तामीर करती है। जब यहां आती है तो फिर यहीं की होकर रह जाती है। यहीं पर रह कर आपका इंतेकाल 19 साल की उम्र में हुआ। यहीं पर आपका मजार हैं। जेठ माह में जोहरा बीबी साहिबा का इंतेकाल हो गया और साल गुजरते रहे और फिर एक दिन ऐसा आया कि इस दिन को लोगों ने लगन के नाम से मंसूब कर दिया।
-आस्ताने आलिया पर बादशाहों की हाजिरी
गोरखपुर। रिवायत के मुताबिक बहराइच स्थित हजरत सैयद सालार मसऊद गाजी मियां के मजार शरीफ पर मुहम्मद शाह तुगलक, प्रसिद्ध पर्यटक इब्नेबतूता और तुगलक वंश के एक सम्राट फिरोज शाह तुगलक ने हाजिरी दी। तबकात-ए-अकबरी में लिखा है कि शहंशाह अकबर कहता था कि एक दिन अकबराबाद से सैयद मसऊद गाजी मियां के मजार पर गया। सल्तनत व मुगलकालीन बादशाहों ने समय-समय पर हाजिरी दी। मजार शरीफ की चौहद्दी व गुम्बद का निर्माण तुगलक वंश के सम्राट फिरोज शाह तुगलक ने कराया था। इमारत नसरूद्दीन महमूद फिरोज शाह तुगलक ने बनवायी। रिवायत है कि वालिदा फिरोजशाह तुगलक ने हजरत गाजी मियां के झंडे को देखकर लोगों से इसके बाबत दरयाफ्त किया। गाजी मियां के बाबत जिसको जो भी मालूम था बताया। आप ने भी दुआं मांगी कि अगर मेरा लड़का जंग से कामयाब बा मुराद वापस आएगा तो मैं भी गाजी मियां की मजार पर हाजिरी दूंगी। खुदा ने दुआं कुबूल फरमायी।
जब सुल्तान जंग से वापिस लौटा तो शिकस्त से एकदम फत्ह हो जाने के चमत्कार को कह सुनाया और कहा कि खुदा ही बेहतर जानता है यह क्यूं कर हुआ। जबकि मुझकों मुकम्मल शिकस्त का एहसास हो चला था। अलगरज फिरोजशाह तुगलक मय अपनी मां के साथ बहराइच जियारत के लिए आया। इल्तुतमिश का लड़का नसरूद्दीन महमूद बादशाह बनने से पहले 1249 ईसवीं में बहराइच का गर्वनर नियुक्त हुआ। उसने रौजा-ए-अतहर में तब्दीलियां की। कुछ नई तामीर करवायी।
-हजरत गाजी मियां के मजार की करामतें
गोरखपुर। हजरत गाजी मियां की करामतें मशहूर है। साढ़े नौ सौ बरस से रखा हुआ कुरआन और पैरहन शरीफ जिस पर अभी तक खून के दाग जाहिर है। देखने वालों को राहे मुस्तकीम पर चलाते है। बुर्स के दाग और कोढ़ियों को मेला व मौका-ए-उर्स पर अच्छा होते देखा जा सकता है। मेला हिंदी महीने माद्य में चांद की तीसरी तारीख को होता है। हिंदू मुस्लिम सभी को बराबर फायदा मिलता है। इसके अलावा बहुत सारी करामतें मशहूर है। जिसको लिखने के लिए बड़े दफ्तर की जरूरत है। सबसे बड़ी यहीं करामत है कि यहां पर हर मजहब के मानने वाले लाखों की तादाद में आते है।
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