सैयदुश्शुहदा हजरत सैयदना इमाम हुसैन के बारे में

मदरसा दारूल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार के सहायक अध्यापक मोहम्मद आजम ने बताया कि हजरत इमाम हुसैन का इस्मे गिरामी हुसैन और कुन्नीयत अबु-अब्दुल्लाह है। सैयद शबाबे अहलिल जन्नः यानि जन्नती जवानों के सरदार। एक बात और काबिले गौर है कि जन्नत में कोई बूढा न होगा। इसलिए यह यकीन के साथ कहा जा सकता है कि इमाम हसन और हुसैन तमाम जन्नतियेां के सरदार होंगे। आपके पिता हजरत अली है। माता का नाम हजरत फातिमा। आपके नाना पैगम्बरें खुदा मोहम्मद साहब है। नानी हजरत खदीजतुल कुब्रा़ है। आपका शजरए नसब यह है हुसैन बिन अली बिन अबी-तालिब बिन हाशिम बिन अब्द-मनाफ़ करशी हाशिमी व मुत्तलबी। विलादत बा सआदत इमाम हुसैन तीसरे इमाम और अबुल अइम्मा है। आपके पैदाइश के मुत्तालिक हदीस में आया है कि पैगम्बर साहब की चची जान पैगम्बर साहब की खिदमत में हाजिर हुई और अर्ज किया कि आज रात मैंने एक खतरनाक ख्वाब देखा है। हुजूर ने फरमाया क्या है? बोलीं, मैंने देखा है कि आपके जिस्म पाक का टुकड़ा काटा गया और मेरी गोद में रखा गया। रसूल ने फरमाया ख्वाब अच्छा है। इन्शाअल्लाह फातिमा केा एक लड़का पैदा होगा और वह तुम्हारी गोद में दिया जाएगा। जब इमाम हुसैन पैदा हुए तो मेरी गोद में दिये गये। और मेरा ख्वाब सच साबित हो गया। इमाम हुसैन 5 शाबानुल मुअज्जम सन् 4 हिजरी में बमकाम मदीना मनव्वरह में पैदा हुये। इसी तारीख को हजरत इमाम हुसैन की विलादत बा सआदत हुई, जो पैगम्बर साहब के जिस्म के एक टुकड़े है। जब पैगम्बर साहब ने आपके पैदा होने की खबर सुनी तो फौरन तशरीफ लाए। आपने दायें कान में अजान दी और बायें कान में इकामत पढ़कर इमाम हुसैन के मुहं में अपना लुआबे दहन डाला अैार दुआएं दी। फिर बहुक्में इलाही आपका नाम हुसैन रखा। सातवें दिन अकीका करके बच्चे के बालों के हमवजन चांदी खैरात करने का हुक्म दिया। आपके अकीके में दो मेढ़े जब्ह किये गये। शक्ल व शबाहात आप निहायत हसीन व खूबसूरत थे। आपकी शक्ल व सूरत के मुतअल्लिक हजरत फातिमा व हजरत अनस फरमाते है आप सीने से कदम तक पैगम्बर साहब के मुशाबह थे। शवाहिदुन्नुबुव्वः में है कि जब आप अंधेरे में बैठते तो आपकी पेशानी मुबारक और रूखसारों से रौशनी निकल कर कुर्ब व जवार को मनव्वर कर देती थी। इबादत व रियाजत आप बडे़ आबिद व जाहिद व तहज्जुद गुजार थे। पूरा-पूरा दिन और सारी-सारी रात नमाजें पढने और तिलावतें कुरआन हकीम में गुजार दिया करते थे। जिके्र खुदावन्दी का यह शौक करबला की तप्ती हुई जमीन पर तीन दिन के भूखे-प्यासे रह कर भी न छूटा। शहादत की हालत में भी दो रकअत नमाज अदा करके बारगाहे खुदावन्दी में अपना आखिरी नजराना पेश फरमा दिया। जब इमाम हुसैन की उम्र 7 साल की थी पैगम्बर साहब ने पर्दा फरमाया। जब हजरत अबुबक्र की रिहलत व हजरत उमर की खिलाफत शुरू हुई तो आप सवा दस बरस के थे। अहदे उस्मानी में पूरे जवान हो चुके थे। सन् 30 हिजरी में तबरिस्तान के जिहाद में शिर्कत फरमाई। अपने वालिदे गिरामी हजरत अली के अहद में जंगे जुमल व जंगे सिफ़्फीन में शिर्कत फरमाई। इल्म व फज्ल तमाम अहले तारीख का मुत्तफका फैसला है कि हजरत इमाम हुसैन इल्म व फजल में बड़ा मर्तबा रखते थे। आपके हम-अस्र आपसे फतवा दर्याफ्त करते थे। आपकी तकरीर व तहरीर की कोई नजीर नहीं मिलती। आज भी आपकी तकरीरें व खुतबात तारीख के सफ़हात की जीनत बने हुए है। जिन्हें पढ़कर आपके जोरे ब्यान और फसाहत व बलागत का अंदाजा होता है। हजरत इमाम हुसैन ने भी अपने बड़े भाई इमाम हसन के साथ पच्चीस हज फरमाए। इमाम हुसैन की कुर्बानी की तारीख हजरत इमाम हंुसैन 3 जिलहिज्जा सन् 60 हिजरी को अपने अहले बैत मवाली व खुद्दाम को हमराह ले कर मक्का शरीफ से इराक की तरफ रवाना हो गए। सन् 61 हिजरी मुताबिक सन् 681 ई0का आगाज हो चुका था।मोहर्रम सन् 61 हिजरी 2 तारीख बरोज जुमेरात मुताबिक 20 अक्टूबर के दिन करबला पहुंचे।सातवीं मोहर्रम से जालिमों ने पानी बंद कर दिया।नहरे फुरात पर 500 फौजियों को लगा दिया गया तााकि इमाम हुसैन का काफिला पानी न पी सकें। 9 मुहर्रमुल-हराम सन् 61 हिजरी जुमेरात शाम के वक्त इब्न-साद ने अपने साथियों को इमाम हुसैन के कााफिले पर हमला करने का हुक्म दिया। आशूरह मुहर्रम की रात खत्म हुई और दसवीं मुहर्रम सन् 61 हिजरी मुताबिक 28 अक्टूबर सन् 681 ई0 की कयामत नुमा सुबह नमूदार हुई। इमाम हुसैन के अहले बैत व जांनिसार एक-एक कर शहीद हो गए आखिर में हजरत इमाम हुसैन अपने खेमे में तशरीफ लाये। सन्दूक खोला। कुबाए मिस्री जेबे तन फरमाई। अपने नाना जाना पैगम्बर साहब का अमामए मुबारक सर पर बांधा। सैयदुश्शुहदा हजरत अमीर हमजा रजियल्लाहु अन्हु की ढाल पुश्त पर रखी। शेरे खुदा हजरत सैयदुना अली की तलवार जुलफिकार गले हमाइल की और हजरत जाफर तय्यारका नेजा हाथ में लिया। ओर अपने बिरादरे अकबर इमाम हसन का पटका कमर में बांधा। इस तरह शहीदों के आका, जन्नत के नौजवानों के सरदार सब कुछ राहे हक में कुरबान करने के बाद अब अपनी जाने अजीज का नजराना पेश करने के लिए तैयार हो गए।तीन दिन के भूखे प्यासे और अपनी निगाहों के सामने अपने बेटों भाईयों भतीजों और जां निसारों को राहे हक में कुर्बान कर देने वाले इमाम। पहाडों की तरह जमीहुई फौजों के मुकाबले में शेर की तरह डट कर खडे हो गए और मैदाने करबला में एक वलवला अंगेज रिज़्ज़ पढी जो आपके नसब और जाती फजाइल पर मुशतमिल थी और उसमें शामियों को रसुूले करीम की नाखुशी व नाराजगी और जुल्म केअंजाम से डराया था। उसके बाद आपने एक फसीह व बलीग तकरीर फरमाई। और जबरदस्त मुकाबला हक और बातिल के बीच शुरू हुआ। तीर नेजा और शमशीर के बहत्तर (72) जख्म खाने के बाद आप सज्दे में गिरे और अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए वासिले बहक हो गए। 65 साल 5 माह 5 दिन की उम्र शरीफ में जुमा के दिन मुहर्रम की दसवीं तारीखें सन् 61 हिजरी मुताबिक 681 इमाम आली मकाम इस दारे फानी से रेहलत फरमा गए। ---------------------

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