अबू नसर फाराबी

(873 ई.- 950 ई.) अबू नसर फाराबी का पूरा नाम अबू-नसर मुहम्मद बिन जोजलग बिन तरखान फाराबी है। वह 873 ई. में तुर्किस्तान के नगर फारान में पैदा हुए। इसलिए फाराबी कहलाते हैं। फाराबी को दर्शनशास्त्र और विज्ञान से बड़ा लगाव था। एक बार उनके पिता क एक मित्र ने यूनान के महान दर्शनशास्त्री अरस्तू की कुछ पुस्तकें धरोहर के तौर पर रखवा दीं। क्योंकि फाराबी को दर्शनशास्त्र में रूचि थी इसलिए उन्होंने वह सभी पुस्तकें पढ़ डालीं। यद्यपि अरस्तू की पुस्तकों का फाराबी से पहले कई विद्वानों ने अनुवद कर दिया था। लेकिन फाराबी ने बड़ी निपुणता से अरस्तू की जटिल ओर कठिन समस्याओं का वर्णन किया ओर उन्हें सुबोध बनाया। फाराबी के प्रयत्न से ही अरस्तू के दर्शनशास्त्र को लोकप्रियता मिली। फाराबी को लिखने-पढ़ने का बड़ा शौक था और उनका जीवन अध्ययन और पुस्तक लेखन को समर्पित हो चुका था। मुस्लिम जगत के महान दर्शनशास्त्री होने के बावजूद विज्ञान में भी उनका योगदान कम नहीं है। उनकी पुस्तक ’अहसाउल उलूम’ विज्ञान पर विशिष्ट पुस्तक मानी जाती है। उन्होंने संगीत कला का भी गहरा अध्ययन किया। फाराबाी की पुस्तक ’अलमोसीकी’ संगीत कला में विशेष स्थान रखती है। उन्होंने एक साज का भी आविष्कार किया। जिसे कानून कहते है। उन्हें अध्ययन का इतना शौक थ कि आयुर्विज्ञान, दर्शनशास्त्र और विज्ञान की शिक्षा के लिए वह हरान गए और वहां बड़े-बड़े विद्वानों से शिक्षा ग्रहण की। दर्शन और तर्कशास्त्र की शिक्षा उस समय के प्रसिद्ध विद्वान यूहन्न बिन खेलान से प्राप्त की। हरान से आप बगदाद आए और अपनी शिक्षा पूरी की। खलीफा सैफुद्दौला आपका बहुत आदर करता था फिर भी उन्होंने सादा जीवन व्यतीत किया। 950 ई. मंे उनका देहांत हुआ तो स्वयं सैफुद्दौला ने उनके जनाजे की नमाज पढ़ाई।

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