खिचड़ा और सबीले इमाम हुसैन
खिचड़ंे के मुताल्लिक तो एक रिवायत मे आता है कि खास मुहर्रम के दिन खिचड़ा पकाना हजरत नूह अलैहिस्सलाम की सुन्नत है। चुनांचे मंकल है कि हजरत नूह की कश्ती तूफान से नजात पाकर जूदी पहाड़ पर ठहरी हो वह दिन आशुरह मुहर्रम था। हजरत नूह ने कश्ती के तमाम अनाजों को बाहर निकाला तो फोल (बड़ी मटर), गेहूं, जौ, मसूर,चना, चावल, प्याज यह सात किस्म के गल्ले मौजूद थे। आप ने उन सातों को एक हांडी में लाकर पकाया। चुनंाचे अल्लामा शहाबुद्दीन कल्यूबी ने फरमाया कि मिस्र में जो खाना आशूरह के दिन तबीखुल हुबूब (खिचड़ा) के नाम से मशहर है उसकी असल व दलील यही हजरत नूह अलैहिस्सलाम का अमल है। सबीले वगैरह बांटने में सवाबे खैर है।
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