दीन व दुनिया की बातें और भी बहुत कुछ :::
बोल की लब आज़ाद हैं तेरे
लकड़ी का ताजिया
लिंक पाएं
Facebook
X
Pinterest
ईमेल
दूसरे ऐप
-
गोरखपुर। मियां साहब इमामबाड़ा जहां सोने चांदी ताजिया के लिए प्रसिद्ध है वहीं एक ताजिया ऐसा भी है जो सूफीसंत रोशन अली शाह ने बनवाया था। वह ताजिया आज भी लोगों के आस्था का अहम केंद्र बना हुआ है।
*जब शेख सनाउल्लाह आये राजा को पकड़ने* *राजा चंद्र सेन ने रामगढ़ताल के किनारे दुर्ग (किला) बनवाया था* गोरखपुर-परिक्षेत्र का इतिहास के लेखक डा. दानपाल सिंह लिखते हैं कि मध्यगुम के आरम्भ में रोहिणी व राप्ती नदी के मध्यवर्ती द्वीप स्थल पर डोमिनगढ़ की स्थापना हुई। सन् 1210 - 1226 ई. में राजा चन्द्र सेन ने डोमिनगढ़ राज्य पर विजय प्राप्त की। उस समय तक गोरखपुर शहर नहीं बसा था। डोमिनगढ़ सतासी राज्य का समीपवर्ती एक प्रमुख नगर एवं गढ़ था। राजा चन्द्रसेन ने डोमिनगढ़ पर आक्रमण किया। डोमिनगढ़ का किला बहुत मजबूत और प्राकृतिक साधनों द्वारा पूर्ण सुरक्षित था। डोमकटार पहले से संशाकित थे, उन्होंने पर्याप्त सैनिक तैयारी भी कर ली थी। किले में महीनों खाने-पीने की सामग्री रख ली गयी थी। डोमकटारों ने कई दिनों तक जमकर युद्ध किया। पराजय नजदीक देखकर डोमकटार राजा सुरक्षात्मक मुद्रा में आ गया तथा अपने बचे हुए सैनिकों के साथ किले के अंदर फाटक बंद कर बैठ गया। राजा चन्द्रसेन ने किले को ध्वस्त करने की आज्ञा दे दी। देखते ही देखते सतासी राज के सैनिकों (राजा चन्द्रसेन) ने दुर्गम किले को ध्वस्त कर दिया तथा उसमें छिप...
गोरखपुर शहर बहुत कदीम व तारीखी है। यहां शहीदों और वलियों के मजार बेशुमार हैं। ज्यादातर शहीदों के मजार का ताल्लुक हजरत सैयद सालार मसूद गाजी मियां अलैहिर्रहमां से है। इसके अलावा पहली जंगें आजादी के शहीदों के मजार कसीर तादाद में हैं। खैर। दीवाने फानी किताब में लिखा है कि बादशाह औरंगजेब के पुत्र मुअज्जम शाह उर्फ बहादुर शाह प्रथम (1707-1712 ई.) ने गोरखपुर में नया शहर बसाया और अपने नाम से मंसूब करके *'मुअज्जमाबाद'* रखा। शहरनामा किताब के मुताबिक शहजादा मुअज्जम शाह ने ही मुहल्ला धम्माल, अस्करगंज, शेखपुर, नखास बसाया और रेती पर पुल (उस वक्त राप्ती नदी पर) बनवाया। *शहर में यह भी बुजुर्ग गुजरे हैं* 1. *मुहल्ला इलाहीबाग* के शाह बदरुल हक अलैहिर्रहमां (विसाल 25 रबीउस्सानी सन् 1971 ई. मजार - कच्ची बाग कब्रिस्तान) 2. *मुहल्ला घासीकटरा* के हजरत मौलवी अब्दुल जब्बार शाह अलैहिर्रहमां (विसाल 2 जून सन् 1989 ई. मजार - कच्ची बाग कब्रिस्तान) 3. हजरत हजरत मौलवी जुमेराती शाह (विसाल 7 नवंबर सन् 1982 ई.) 4. *मुहल्ला बुलाकीपुर* के रहने वाले हजरत मोहम...
-आप जकात व सदका-ए-फित्र अदा करेंगे तो गरीब दुआएं देंगे -जकात की रकम हकदार मुसलमानों तक जल्द पहुंचायें -मुकद्दस रमजान का तीसरा रोजा सैयद फरहान अहमद गोरखपुर। मुकद्दस रमजान के शुरु होते ही रब की रहमतें बंदों पर बरस रही हैं। पहले दिन से मौसम खुशगवार बना हुआ हैं। इबादतों का सिलसिला जारी रहा। सहरी व इफ्तार का फैजान बदस्तूर जारी हैं। तंजीम कारवाने अहले सुन्नत के बानी मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने बताया कि इस्लाम में जकात फर्ज हैं। जकात पर हक मजलूमों, गरीबों, यतीमों, बेवाओं का है। इसे जल्द से जल्द हकदारों तक पहुंचा दें ताकि वह रमजान व ईद की खुशियों में शामिल हो सकें। जकात फर्ज होने की चंद शर्तें है। मुसलमान अक्ल वाला हो, बालिग हो, माल बकदरे निसाब (मात्रा) का पूरे तौर का मालिक हो। मात्रा का जरुरी माल से ज्यादा होना और किसी के बकाया से फारिग होना, माले तिजारत (बिजनेस) या सोना चांदी होना और माल पर पूरा साल गुजरना जरुरी हैं। सोना-चांदी के निसाब (मात्रा) में सोना की मात्रा साढ़े सात तोला (87 ग्राम 48 मिली ग्राम ) है जिसमें चालीसवां हिस्सा यानी सवा दो माशा...
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें