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हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां का तीन दिवसीय उर्स-ए-पाक 1 अगस्त से शुरू

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गोरखपुर। नार्मल स्थित हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां का सालाना उर्स-ए-पाक 1, 2, 3 अगस्त को अदबो एहतराम व अकीदत के साथ मनाया जायेगा। उर्स-ए-पाक में पूर्वांचल व दूर दराज के जिलों से बड़ी संख्या में मजार शरीफ का दर्शन करने आते है। यह जानकारी अराकीन कमेटी आस्तान-ए-आलिया हजरत बाबा मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां , वक्फ नम्बर 151 के अध्यक्ष इकरार अहमद ने पत्रकारों के रूबरू दरगाह पर दी। उन्होंने बताया कि 31 जुलाई को मेला शुरू हो जायेगा। रात्रि 10.00 बजे तहरीक दावते इस्लामी हिन्द द्वारा जलसा आयोजित होगा। उर्स-ए-पाक की शुरूआत 1 अगस्त को रात्रि 10.00 बजे बाद जलसा-ए-ईदमिलादुन्नबी के प्रोग्राम के साथ होगी। जिसमें मुख्य अतिथि के तौर पर कलकत्ता से सखावत हुसैन तशरीफ ला रहे है। इसके अलावा बलरामपुर के मौलाना मोहम्मद अली निजामी व मेंहदावल के मौलाना अलाउद्दीन तकरीर पेश करेंगे। नात-ए-पाक मुहम्मद इस्लाम गाजीपुरी, कमाल अख्तर अदरी मऊ व गोरखपुर के एजाज अहमद पेश करेंगे। संचालन मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही करेंगे। अध्यक्षता सैयद मोहम्मद अली मोहतिसम कबीर करेंगे। इसके अलावा अन्य जिलों के उलेमा-ए-किराम तशरीफ ला रहे ...

हजरत मुबाकर खां शहीद: ऐतिहासिक आस्ताना हिन्दू मुस्लिम एकता का केंद्र

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syed farhan ahmad गोरखपुर। निगाहें वली में वो तासीर देखी। बदलती हजारों की तकदीर देखी।। कुछ ऐसी ही तासीर है गोरखपुर के वालियों की निगाहों की। जिनकी एक निगाह बंदें पर पड़ जायें खुदा की रहमत जोश में आ जायें। जो यह कह दें वह खुदा के फजल से फौरन हो जाये। सर जमीं-ए-गोरखपुर सूफी संतों का गहवारा रही है। जिन्होंने समाज में फैली बुराईयों को खत्म कर एकता व भाईचारगी का पैगाम दिया। इंसानियत को जिंदा रखने में इनकी अहम भूमिका है। आज भी इन सूफी संतों का फैज बदस्तूर है। इनकी दरगाह व समाधियों पर हर मजहब के लोगों का तांता लगा रहता है। लोग इनके जरिये दिली मुरादें पाते है। इन्हीं बुर्जुग हस्तियों में शहर के बेतियाहाता स्थित नार्मल के निकट हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां का आस्ताना है। जहां बाबा आराम फरमा है। जिनका फैज हर खासो आम पर बराबर जारी है। गोरखपुर को बाबा के करम पर फख्र है। हजरत मुबारक खां शहीद पूर्वांचल के बड़ें औलिया-ए-किराम में शुमार होते है। आज भी इस दरगाह को आला मकाम हासिल है। आस्ताना आलिया की जामा मस्जिद के इमाम व खतीब हजरत मौलाना मकसूद अलाम मिस्बाही ने किताब सवानेह सालार मसूद गाजी के हवाले ...

इल्म का रोशन चिराग मदरसा तरक्की के साथ करता कदमताल

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सैयद फरहान अहमदए गोरखपुर। वक्त के साथ तरक्की ने रμतार पकड़ी। सोच बदली। तो बदल गया मदरसों का निजाम। दीनी व दुनियावी तालीम के साथ तरक्की से मदरसों ने कदमताल शुरू किया। नतीजा यह निकला की मदरसे से निकलने वाले तालिब.ए.इल्म ;शिक्षा का हासिल करने वालेद्ध को रोजगार के ढे“र सारे विकल्प मिल गये। इन मदरसों के तालीम की खुशबू से समाज का हर खित्ता मुनव्वर हो गया। आजादी के बाद मदरसों को समाज की मुख्यधारा से जुड़ने का मौका मिला। सरकार ने भी दिलचस्पी दिखायी तो मदरसों में शुरू हुई इस्लामी तालीम के साथ आधुनिक शिक्षा। दिलचस्पी और बढ़ी तो सरकार ने तकनीकी शिक्षा की शुरूवात कर सोने पर सुहागा कर दिया। मदरसों से हाफिजए आलिमए कामिलए मुμतीए मौलाना तो निकल ही रहे है वह भी के हुनर के साथ। इन मदरसों से तालीम हासिल कर रहे शिक्षार्थी देश के साथ विदेशों में दीन व दुनियावी खिदमत को अंजाम दे रहे है। मदरसों ने लड़कियों की शिक्षा के लिए भी खास काम किया। मदरसों में पढ़ने वालों में पचास फीसदी लड़कियां की तादाद है। रिपोर्ट में जानिए शहर के तरक्की याμता मदरसों के बारे में। जो तरक्की के साथ कदमताल कर रहे है। जिससे मिलती समाज को नय...

वाह ! कराची सूट का जलवाए रेशमी चूड़ियों की खनक

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ईद की तैयारी शवाब पर सैयद फरहान अहमद गोरखपुर। ईद की आमद जल्द होने वाली है। तैयारियां जोरों पर है। बाजार गुलजार है। हर दुकान पर ऽाीड़ आम है। शाहमारुफए घंटाघरए रेतीए मदीना मस्जिदए गीता प्रेसए जाफरा बाजारए गोरखनाथए गोलघर में रौनक शवाब पर है। इसी बहाने ईद के चांद में होने वाली शादियों की ऽाी तैयारी की जा रही है। इस बार जहां कुर्तों में दंबग हिट है वही महिलाओं में कराची सूट व लांग फ्राक का जलवा सिर चढ़ कर बोल रहा है। कहीं कहीं इसे पेशावरी सूट के नाम से ऽाी पुकारा जा रहा है। जनसंदेश संवाददाता ने उर्दू बाजारए शाहमारूफए रेती मार्केट का जायजा लिया। हर दूकान पर महिलाओं का हुजूम था। वहीं चूड़ियों की दुकानों पर ऽाी महिलाओं का हुजूम नजर आ रहा है। रेशमी चूड़ियां काफी डिमांडेड है। वह मेटेलए लाखए ढील की चूड़ियाए शिप की चूड़ियां पसंद की जा रही है। लड़कियों पर वेस्टर्न चूड़ियों का जादू छाया हुआ है। चूडी व्यवसायी अब्दुल्लाह ने बताया कि मेटेल की चूड़ियां 15.240 रुपये दर्जन मेंए लाख की चूड़ियां 70.250 रुपयाए ढील की चूड़िया 350.400 रुपयाए शिप की चूड़ियां 20.50 रुपया दर्जन के हिसाब से मिल रही है। वेस्टर्न चूड़ियों में...

112 साल से दीन का परचम बुलंद करता अजुंमन इस्लामियां गोरखपुर

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112 साल से दीन का परचम बुलंद करता अजुंमन इस्लामियां अंग्रेजों के जमाने का मदरसा अंजुमन देती दीन के साथ दुनियावी खिदमत सैयद फरहान अहमद । शहर.ए.गोरखुपर इल्म व अदब का गहवारा है। मदरसा अंजुमन इस्लामियां से तालीम याफ्ता लोग दुनिया के हर खित्ते में इल्म व अदब की रोशनी को फैलाये हुये है। पाकिस्तान तलक अंजुमन इस्लामियां की खुशबू बदस्तूर है। चौकिये मत शहर.ए.काजी मुफ्ती वलीउल्लाह ने बताया कि लोग कहते है कि अंजुमन से पाकिस्तान के पूर्व चीफ जस्टिस मौलाना मंतख्बुल हक ने शिक्षा हासिल की थी। लेकिन इसकी कोई सनद नहीं है। खैर। दुनिया के जाने माने मऊ के मौलाना हबीबुर्ररहमान सहित सैकड़ों मदाारिस के वाली अंजुमन से तालीम याफ्ता हुये जिन्होंने गोरखपुर के आसपास और बिहार तक में मदरसों की बुनियाद रखी। समय के साथ तरक्की में बदलाव होना लाजिमी। सोच बदली। बदल गया मदरसों का निजाम। दीनी व दुनियावी तालीम के साथ तरक्की से मदरसों का बढ़ा मयार। जिसके नतीजे में मदरसे से निकलने वाले तालिब.ए.इल्म को रोजगार के ढे“र सारे अवसर मिल गये। दीन ऽाी बनी दुनिया ऽाी। इन मदरसों की रोशनी से तालीम का चिराग हुआ और रोशन। मदरसों को समाज ...

रमजान के खाने पीने का हिसाब नहीं

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है। रमजाने मुबारक अल्लाह जहन्नमियों को छोड़ता है। लिहाजा चाहिए कि रमजान में नेक काम किए जाएं और गुनाहों से बचा जाए। कुरआन करीम में सिर्फ रमजान शरीफ ही का नाम लिया गया और इसी के फजाइल बयान हुए। किसी दूसरे महीने का न सराहतन नाम है न ऐसे फजाइल।महीनों में सिर्फ माहे रमजान का नाम कुरआन शरीफ में लिया गया। औरतों में बीबी मरियम का नाम कुरआन में आया। सहाबा में सिर्फ हजरत जैद बिन हारिसा का नाम कुरआन में लिया गया जिस से इन तीनों की अजमत मालूम हुई। रमजान शरीफ में अफतार और सहरी के वक्त दुआ कबूल होती है। यानी अफतार करते वक्त खजूर वगैर खाकर या पानी पीने के बाद और सहरी खाकर। ये मरतबा किसी और महीने को हासिल नहीं है। रमजान में पांच हर्फ है। रा, मीम, जाद, अलिफ, नून । रा से मुराद है रहमते इलाही। मीम से मुराद है मुहब्बते इलाही। जाद से मुराद है जमाने इलाही। अलिफ से मुराद है अमाने इलाही। नून से मुराद है नूरे इलाही। और रमजान में पांच इबादत खुसूसी होती है। रेाजा, तरावीह, तिलावते कुरआन, एतकाफ और शबे कद्र में इबादत। तो जो कोई सिदके दिल से ये पांच इबादत करे वो उन पांच इनामों ामुसतहिक है।

औवेसी टोपी के साथ इण्डोनेशिया व तुर्की टोपी की धूम

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सैयद फरहान अहमद गोरखपुर। रमजान माह बरकतों का खजाना लिये हुये है। जिसका फैज हर किसी को मिलता है। इस माह बंदा खुदा की इबादत में तल्लीन रहते है। जहाॅं इबादत का जिक्र होता है वहाॅ टोपी का जिक्र भला कैसे छुट सकता है। रमजान माह हर एक बंदे के सर पर ताज के रूप में टोपी जरूर पायेंगे। रमजान मंे टोपियों की बिक्री बढ़ जाती है। अब तक बाजार में लाखों टोपियों की बिक्री हो चुकी है। फैशन के इस दौर में टोपियां भी पीछे नहीं है। बाजार में एक से एक बेहतर स्टाइलिस टोपियों मौजूद है। जो बरबस ही हमें अपने ओर आकर्षित करती हैं। बाजार में इस समय इण्डोनेशियाइ, कोरिया, व चाइना टोपियां छायी हुई है। इसके अलावा तमाम तरह की रंग बिरंगी, सादी टोपियां बाजार में मौजूद है। वहीं एआईएमआईएम के अध्यक्ष व सांसद असदुद्दीन ओवैसी द्वारा पहने जाने वाली टोपी का क्रेज नौजवानांे के सर चढ़ कर बोल रहा है। इसकी कीमत 45 रूपया है। सबसे सस्ती टोपी बर्फी 5रू. मंे तो वही सबसे महंगी टोपी बरकाती गोल 1200रू. में बाजार में उपलब्ध है। टोपी के विक्रेता अख्तर ने बताया कि हर माह की तुलना में इस माह टोपियों की बिक्री बढ़ जाती है। अब तक 4 से 5 लाख टोपियो...

स्टाइलिस कुर्तों की बूम , फिर दबंग कुर्ता हिट

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बालीवुड के दबंग सलमान खान जिनकी हर अदा फैशन। उनके फैन को उनसे मोहब्बत बेइंतेहा । उनका हर स्टाइल, फैशन का जादू सिर चढ़ कर बोले। यकीन न हो तो बाजार का रूख कीजिये जनाब। इस ईद पर उनका जादू छाया हुआ है। इस बार ईद के मौके पर सुल्तान जो रिलीज हो रही है। लेकिन पिछली फिल्मों की खुमारी दर्शकों छायी हुई है। तभी तो हर खासो आम का पसंदीदा बना हुआ है दबंग कुर्ता। यह वहीं कुर्ता जिसे फिल्म दबंग में सलमान खान ने पहना था। इस बार तमाम स्टालिस कुर्तों में दबंग कुर्ता हर खासोआम का पसंदीदा बना हुआ है। बाजार में ऐसी कोई दुकान नहीं होगी जहां दबंग कुर्ता न हो। शाहमारुफ में तो अस्थायी कुर्तों का मेला लगा हुआ। लखनवी चिकन को चार चांद लगा रहा दबंग स्टाईल कुर्ता। ईद को खास बनाने की खुमारी छायी हुई है। रमजान का महीना आधा रुखसत हो चुका है। ईद की तैयारी शवाब पर है। ईद में किसी तरह की कमी न रह जायें इसका खासा ख्याल रखा जा रहा है। ईद के लिए खरीददारी जोरों पर है। इसके लिए शहर में कुर्तों का बाजार सज चुका है। इस बार बाजार में दबंग कुर्ता लोगों को काफी पसंद आ रहा है। इसकी खासियत है इसका पठानी कुर्ते की तरह लेकिन उससे शा...

ईद का तोहफा

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गोरखपुर हदीस में आया है कि नबी ईदुलफित्र के दिन कुछ खाकर नमाज के लिए तशरीफ ले जाते थे। ईद के दिन हजामत बनवाना, नाखुन तरशवाना, गुस्ल करना, मिस्वाक करना, अच्छे कपड़े पहनना, नए हों तो नए वरना धुले हुए। खुश्बु लगाना, अंगूठी पहनना(चांदी की सिर्फ साढ़े चार माशा) की। नमाजे फज्र मस्जिदे मुहल्ला में पढ़ना। ईदुल फित्रकी नमाज को जाने से पहले चन्द खजूरें खा लेनां। खजूर न हो तो मीठी चीज खा लेना। नमाजे ईद ईदगाह में अदा करना। ईदगाह पैदल जाना अफजल है और वापसी में सुवारी पर आने से हरज नहीं। नमाजे ईद के लिए एक रास्ते से जाना और दूसरे रास्ते से वापस आनां ईद की नमाज से पहले सदकए फित्र अदा करना। कसरत से सदका देना। ईदगाह का इत्मिनान वकार और नीची निगाह किए जाना। आपस में मुबारक बाद देना। बाद नमाजे ईद मुसाफह यानि हाथ मिलाना और मुआनका यानि गले मिलना। ईदुल फित्र की नमाज के लिए जाते हुए रास्ते में अहिस्ता से तकबीर अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, लाइलाहा इल्लल्लाह। वल्लाहु अकबर,अल्लाहुु अकबर, व लिल्लाहिल हम्द।।

सदका-ए-फित्र ............................................मसाइल व अहकाम

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सदकाए फित्र अदा करना वाजिब हैं। जो शख्स इतना मालदार है कि उस पर जकात वाजिब है । या जकात वाजिब हो मगर जरूरी असबाब से ज्यादा इतनी कीमत का माल व असबाब है जितनी कीमत पर जकात वाजिब होती है तो उस शख्स पर अपनी नाबालिग औलाद की तरफ से सदकाए फित्र देना वाजिब है। फित्रा वाजिब होने की तीन शर्तें है। आजाद होना मुसलमान होना, किसी ऐसे माल के निसाब का मालिक होना जो असली जरूरत से ज्यादा हो। उस माल पर साल गुजरना शर्त नहीं और न माल का तिजारती होना शर्त है और न ही साहिबे माल का बालिगा व अकीला होना शर्त हैं। यहां तक कि नाबालिग बच्चों और वो बच्चे जो ईद के दिन तुलू फज्र यानि सूरज निकलने से पहले पैदा हुये हो और मजनूनों पर भी फित्रा वाजिब हैं। उनके सरपरस्त हजरात को उनकी तरफ से फित्रा वाजिब है। फित्रा की मिकदार याानि मात्रा में 2 किलो 45 गा्रम गेहंू या उसके आटे की कीमत करीब 45 रूपया से चाहे, गेहूं या आटा दे या उसकी कीमत बेहतर है कि कीमत अदा करे। जब तक फित्रा अदा नहीं किय जाता है तब तक सारी इबादत जमीन व आसमान के बीच लटकी रहती है। जब फित्रा अदा कर दिया जाता है ।तो वह बारगाहे इलाही मंे पहुंच जाता है। रोजे मंे इबा...

ईद का चाॅंद देखने का बयान

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गोरखपुर। हदीस मंे है नबी ए पाक ने फरमाया कि रोजा न रखों जब तक चाॅंद न देख लो और इफ्तार न करो जब तक चाॅद न देख लो और अगर बादल हो तो मिक़दार पूरी कर लो। पाॅंच महीनों का चांद देखना वाजिबे किफाया है शाबान, रमजान, शव्वाल, ज़ीक़ादा, ज़िलहिज्जा। शाबान का इसलिए कि अगर रमजान का चांद देखते वक्त अबर या गुबार हो तो तीस पूरे कर के रमजान शुरू करें और रमजान का रोजा रखने के लिए और शव्वाल का रोजा खत्म करने के लिए और जीकादा का जिलहिज्जा के लिए और जिलहिज्जा का बकराईद के लिए। शाबान की उन्तीस को शाम के वक्त चांद देखें दिखाई दे तो कल रोजा रखें वरना शाबान के तीस दिन पूरे करके रमजान का महीना शुरू करें। नबी ए पाक ने फरमाया कि महीना 29 का भी होता है और 30 का भी। रोजा चांद देख कर शुरू करो और चांद देख कर रोजा बंद कर दो। अगर आसमान साफ नहीं है तो 30 की गिनती पूरी करो। जमाते कसीरा(बड़ी जमात यानि बहुत से लोग ) यह शर्त उस वक्त है जब रोजा रखने या ईद करने के लिए शहादत गुजरे और अगर किसी और मामले के लिए दो मर्द या एक मर्द दो औरतों सिका(आदिल) की शहादत गुजरी और काजी ने शहादत के बिना पर हुक्म दे दिया तो अब यह शहादत काफी हैै। रो...

ईदुल फित्र की नमाज के लिए जाते हुए रास्ते में अहिस्ता से तकबीरे तशरीक

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तक़्बीरे तशरीक़ गोरखपुर। अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, लाइलाहा इल्लल्लाह। वल्लाहु अकबर,अल्लाहुु अकबर, व लिल्लाहिल हम्द।। पढ़ी जायेगी। नमाज ईदगाह में जाकर पढ़ना और रास्ता बदल कर आना, पैदल जाना और रास्ते में तकबीरे तशरीक पढ़ना सुन्नत हैं।

ईदैन की नमाज का तरीका

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गोरखपुर। ईद की नमाज आबादी से बाहर खुले मैदान मंे जमाअत के साथ अदा करनी चाहिए। बूढे़ कमजोर अगर शहर की बड़ी मस्जिद में पढ़ लें, तो भी दुरूस्त है। जब सफें दुरूस्त हो जाएं तो ईदुल फित्र की नमाज के लिये सबसे पहले नीयत करलें कि ‘‘ मैं नियत करता हॅंू दो रकआत नमाज वाजिब ईदुल फ़ित्र की जायदमय छः तकबीर के , वास्ते अल्लाह के, पीछे इस इमाम के, रूख मेरा काबा शरीफ की तरफ। इमाम तक्बीरे तहरीमा कहे तो आप भी दोनों हाथ कानों तक हाथ उठाए और अल्लाहु अकबर कहकर हाथ नाफ से नीचे बांध लें फिर सना पढे़। इसके बाद तीन बार ‘‘अल्लाहु अकबर’’ कहिए और हर बार दोनों हाथ तक्बीरे तहरीमा की तरह कानों तक उठाइए हर तक्बीर के बाद हाथ छोड़ दीजिए, मगर तीसरी तक्बीर के बाद हाथ फिर बाॅंध लीजिए और इमाम ‘अअ़ूजु’ और ‘बिस्मिल्लाह’ पढ़ कर किरात शुरू करे और मुक्तदी खामोशी से इमाम की किरात सुनें और इमाम की पैरवी में रूकूअ व सज्दे करें- रूकूअ व सुजूद के बाद खड़े होकर दूसरी रकआत की किरात खामोशी के साथ सुनिए। किरात पूरी करने के बाद जब इमाम तक्बीर कहे तो आप भी इमाम के साथ धीमी आवाज में तक्बीरें कहते जाइए और तक़्बीरों के दरमियान दोनों हाथ खुले छो...

ईदैन की रातों में कयाम करे उसका दिल न मरेगा

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गोरखपुर। कुरआन शरीफ में अल्लाह तआला फरमाता है, रोजों की गिनती पूरी करो और अल्लाह की बड़ाई बोलो कि उसने तुम्हें हिदायत फरमाएं। हदीस में आया है कि नबी ए पाक ने फरमाया कि जो जिस दिन लोगों के दिल मरेंगे। जो पाॅंच रातों में शब बेदारी करे उसके लिए जन्नत वाजिब है जिलहिज्जा की आठवीं, नवीं, दसवीं रातें और ईदुल फ़ित्र की रात और शाबान की पन्द्रहवीं यानी शबे बारात। हदीस में है जब नबी ए पाक मदीने में तशरीफ लाए उस जमाने में अहले मदीना साल में दो दिन खुशी करते थे महरगान व नैरोज। फरमाया यह क्या दिन हैं लोगों ने अर्ज किया जाहिलियत में हम इन दिनों में खुशी करते थे। फरमाया अल्लाह तआला ने उनके बदले में इनसे बेहतर दो दिन तुम्हें दिये ईदे अजहा व ईदुल फित्र के दिन। नबी ए पाक ने फरमाया ईदुल फित्र के दिन कुछ खाकर नमाज के लिये तशरीफ ले जाते। ईद केा एक रास्ते से तशरीफ ले जाते और दूसरे से वापस होते। हदीस में है कि एक मर्तबा ईद के दिन बारिश हुई तो मस्जिद में हुजूर ने ईद की नमाज पढ़ी। ईदैन की नमाज वाजिब है और इसकी अदा की वही शर्तें है जो जुमे के लिए है सिर्फ इतना फर्क हैं कि जुमे में खुत्बा शर्त है और ईदैन में स...

ईदुल फित्र की मुबारक रात को ‘लैलतुल जाइजा’ यानी इनाम की रात के नाम से पुकारा जाता है

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ईद की खुशी इबादतगुजार बंदों के लिए गोरखपुर ..नबी ए पाक ने फरमाया रमजान शरीफ के मुबारक महीने के मुतअल्लिक इस महीने का पहला अशरा रहमत, दूसरा अशरा मग्फिरत, तीसरा अशरा जहन्नम से आजादी का है। मालूम हुआ कि ये महीना रहमतो, मगाफिरत और दोजख से आजादी का महीना है। लिहाजा इस रहमत, मगफिरत और दोजख से आजादी के इनआमात की खुशी में हमें ईद सईद की खुशी मनाने का मौका मिला। ईदुल फित्र के दिन खुशी का इजहार करना सुन्नत है। हदीस में है कि जब ईदुल फित्र की मुबारक रात तशरीफ लाती है तो इसे ‘लैलतुल जाइजा’ यानी इनाम की रात के नाम से पुकारा जाता है। जब ईद की सुब्ह होती है तो अल्लाह अपने मासूम फरिशतों को तमाम शहरों में भेजता है।चुनाॅंचे वो फरिशतें जमीन पर तशरीफ लाकर सब गलियों और राहों के सिरों पर खड़े हो जाते है। ओर इस तरह निदा देते है ऐ उम्मते मुहम्मद (सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम )उस खुदा की बारगाह की तरफ चलो। जो बहुत ही ज्यादा अता करने वाला और बड़े से बड़ा गुनाह माफ फरमाने वाला है। खुदा फरमाता है ऐ मेरे बन्दों ! मांगों! क्या मांगते हो? मेरी इज्जत व जलाल की कसम! आज के रोज इस नमाजे ईद के इज्तिमाअ में अपनी आखिरत के बारे ...

अमीनाबाद सरीखा नजारा शाहमारूफ बाजार गोरखपुर

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गोरखपुर। रमजान माह हर तरफ नूरानी शमां लिये आता है। यह नूरानियत ईद तक बदस्तूर जारी रहती है। रमजान की आमद पर जहां इबादतगाहें गुलजार होती है और खुदा की रजा में बंदे लगे रहते है। उसी तरह ईद की खुशियां मनाने के लिए भी खासा ऐहतमाम किय जाता है। क्योंकि ईद खुशी का पैगाम लाती है। वैसे तो रमजान के आमद से ही खरीदारी शूरू हेा जाती है। कुर्ता पैजामा, शर्ट पैंट, सलवार सूट के कपड़े पहले से खरीद लिये जाते है। क्योंकि दर्जीयों के पास इतना ज्यादा आर्डर आ जाता है। की समय से कपड़ा मिलना मुश्किल हो जाता हैं । इसलिए रमजान शुरू होते ही कपड़े सीलने के लिए दे दिये जाते है। 15 रमजान के बाद तो दर्जी कपड़ा लेने से मना कर देते हे। लेकिन रेडीमेड कपडों की बिक्री चांद रात तक चलती रहती है। आइये हम लिये चलते है उन जगहों पर जो रमजान की खरीदारी के लिए मशहूर है जहाॅं हर रेंज वैराइटी व बजट में फिट आने वाली चीजें मिल जायेंगी। लखनऊ के अमीनाबाद सरीखा जैसा नजारा जनपद के शाहमारूफ बाजार मे 20वीं रमजान से शुरू हो जाता है। अगर इस बाजार को हम गोरखपुर का अमीनाबाद कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। रेतीरोड मदीना मस्जिद से लगायत शाहमारूफ...

बाकरखानी अफगानिस्तान से गोरखपुर पहुंची

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बाकरखानी सैयद फरहान अहमद गोरखपुर। रमजान की आमद से मुस्लिम बाहुल्य इलाकों की फिजा नूरानी हो जाती है। सुबह शाम की रौनक देखते ही बनती है। इफ्तार, सहरी व लजीज व्यंजनों की खुशबू लोगों को अपनी ओर खींचती नजर आती है। नखास, मदीना मस्जिद, शाहमारूफ व जामा मस्जिद उर्दू बाजार की फिजां बेहद दिलकश नजर आती है। यहां की बनने वाली ब्रिरयानी, कोरमा, सीक कबाब, गोल कबाब, गलौटी कबाब सभी के पसंद है। इन लजीज व्यंजनो को चखने के लिए यहां विभिन्न प्रकार की रोटियां भी बेहद जायकेदार व मुगलिया है। तंदूर से गरमा गर्म निकलती हुई यह रोटियां बरबस ही आपको अपनी ओर खींचती है। जहां फुटकर में सैकड़ों के हिसाब से बाकरखानी, शीरमाल , नान, खमीरी रोटी, रूमाली रोटी, कुल्चा जैसी कई अन्य तरह की रोटियां मिल जाएंगी। आज हम आपको एक ऐसी ही रोटी के बारे में आपको बता रहे है। जिसने अफगानिस्तान, बांग्लादेश, जौनपुर, बनारस का लम्बा सफर तय कर गोरखपुर में दस्तक दी। मुगल बादशाहों और बाद में नवाबों के बावर्ची खाने की शान माने जाने वाली बाकरखानी रोटी अपने जायके व खुबसूरती के लिए गोरखपुर के खान पान में चार चांद लगा रही है। बाकरखानी की रमजान में मा...

अलविदा की नमाज पढ़ी और मुल्क की खुशहाली व अमन के लिए दुआएं कीं

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पवित्र माह रमजान के आखिरी शुक्रवार को छोटी ईद अर्थात अलविदा की नमाज के लिए शहर भर की मस्जिदों में भारी भीड़ उमड़ी। रोजेदारों ने । सुबह से ही रोजेदार अलविदा की नमाज की तैयारियों में लगे थे। बच्चे, बूढ़े, जवान सभी ने गुस्ल किया। साफ-सुथरे कपड़े पहने। इत्र लगाया और मस्जिदों की ओर रुख किया। यह नमाज रमजान के आखिरी शुक्रवार को पढ़ी जाती है जिसमें रमजान के मुबारक महीने को विदाई दी जाती है। मस्जिद मुबारक खां शहीद, जामा मस्जिद उर्दू बाजार, जामा मस्जिद रसूलपुर, जामा मस्जिद रहमतनगर, मस्जिद इमामबाड़ा, मस्जिद गाजी रौजा, मदीना मस्जिद, मस्जिद झाऊ, जामा मस्जिद सौदागार मोहल्ला, शिया जामा मस्जिद सहित तमाम मस्जिदों में अलविदा के मौके पर जुमा की नमाज व खुतबा अदा किया गया एवं सलातो सलाम पेश किया गया और मुल्क की तरक्की की दुआएं मागी गई। महिलाओं ने घरों में इबादत की। मस्जिद कमेटियों ने नमाजियों की भारी तादात के मद्देनजर विशेष इंतजाम किया था। इमाम कुरैशिया मस्जिद मौलाना सदरूल हक निजामी, शेख झाऊं मस्जिद के पेश इमाम मौलाना फैजुल्लाह कादरी, मदीना मस्जिद के इमाम मौलाना अब्दुल्लाह बरकाती, गाजी रौजा मस्जिद के इमाम हा...

हर रात इबादत में गुजारने का आसान नुस्खा

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हर रात इबादत में गुजारने का आसान नुस्खा अल्लाह की खुशनुदी के ख्वाहिशमंदों ! हो सके तो सारा साल हर रात में कुछ न कुछ नेक अमल जरूर कर लेना चाहिए। कि न जाने कब शबे कद्र हो जाए। हर रात में दो फर्ज नमाजें आती है। मगरिब इशा कम अज कम इन दोनों नमाजों की जमाअत का तो खूब ही एहतिमाम होना चाहिए। कि अगर शबे कद्र में इन की जमाअत नसीब हो गई तो बेड़ा पार है। बल्कि रोजना ऐशा फज्र की जमाअत भी खुसूसियत के साथ आदत डाल लीजिए। सही मुस्लिम शरीफ की हदीस में है कि पैगम्बर साहब का फरमान है जिसने ऐशा की नमाज बा जमात पढ़ी उसने गोया आधी रात कियाम किया। और जिसने फज्र की नमाज बा जमाअत अदा की गोया पूरी रात कियाम किया। अल्लाह की रहमत के मतलाशियो! अगर तमाम साल यही आदते जमाअत रही तो शबे कद्र में भी इन दोनों नमाजों की जमात नसीब हो जायेगी। और रात भी सोए रहने के बावजूद भी शबे कद्र मेंतमाम रात इबादत करने का सवाब मिल जाएगा।

शब-ए-कद्र 27 वीं रमजान को

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गोरखपुर। अगरचे बुजुगाने दीन और मुफस्सिरीन मुहद्दीसी का शबे कद्र क तअययुन में जबरदस्त इख्तिलाफ है। ताहम भारी अकसरियत की राय यही है कि हर साल शबे कद्र माहे रमजानुल मुबाकर की सताईसवंी शब को ही होती है। हजरत उबई बिन कअब सताईसवीं शबे रमजान की को शबे कद्र कहते है। हुजूरे गौसे आजम भी इसी के काइल है। हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर भी इसी के काइल है। हजरत इमामें आजम भी इसी के हामी है। हजरत शाह अब्दुल अजीज मुहद्दिस देहलवी भी फरमाते है कि शबे कद्र रमजान शरीफ की सत्ताईसवी रात ही को होती है। अपने बयान की ताइद के लिए उन्होंने देा दलाइल बयान फरमाए है अव्वलन ये कि लैलतुल कद्र का लफज नौ हुरूफ पर मुशतमिल है और ये कलिमा सूरए कद्र में तीन मरतबा इस्तेमाल किया गया है । इसी तरह तीन को नौ से जरब देने से हासिल जरब सत्ताईस आता है। जो इस बात का गम्माज है कि शबे कद्र सताईसवीं को होती है। दूसरी तवजीह ये पेश करते है कि इस सूरए मुबारका में तीस कलिमात यानी तीस अल्फाज है । सताईसवीं कलिमा ही है। जिस का मरकज लैलतुल कद्र है। गोया अल्लाह तबारक व तआला की तरफ से नेक लोगों के लिए ये इशारा है कि रमजान शरीफ की सताईसवीं को शबे कद्र ...