शब-ए-कद्र 27 वीं रमजान को
गोरखपुर। अगरचे बुजुगाने दीन और मुफस्सिरीन मुहद्दीसी का शबे कद्र क तअययुन में जबरदस्त इख्तिलाफ है। ताहम भारी अकसरियत की राय यही है कि हर साल शबे कद्र माहे रमजानुल मुबाकर की सताईसवंी शब को ही होती है। हजरत उबई बिन कअब सताईसवीं शबे रमजान की को शबे कद्र कहते है। हुजूरे गौसे आजम भी इसी के काइल है। हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर भी इसी के काइल है। हजरत इमामें आजम भी इसी के हामी है। हजरत शाह अब्दुल अजीज मुहद्दिस देहलवी भी फरमाते है कि शबे कद्र रमजान शरीफ की सत्ताईसवी रात ही को होती है। अपने बयान की ताइद के लिए उन्होंने देा दलाइल बयान फरमाए है अव्वलन ये कि लैलतुल कद्र का लफज नौ हुरूफ पर मुशतमिल है और ये कलिमा सूरए कद्र में तीन मरतबा इस्तेमाल किया गया है । इसी तरह तीन को नौ से जरब देने से हासिल जरब सत्ताईस आता है। जो इस बात का गम्माज है कि शबे कद्र सताईसवीं को होती है। दूसरी तवजीह ये पेश करते है कि इस सूरए मुबारका में तीस कलिमात यानी तीस अल्फाज है । सताईसवीं कलिमा ही है। जिस का मरकज लैलतुल कद्र है। गोया अल्लाह तबारक व तआला की तरफ से नेक लोगों के लिए ये इशारा है कि रमजान शरीफ की सताईसवीं को शबे कद्र होती है।
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