ईद का चाॅंद देखने का बयान
गोरखपुर।
हदीस मंे है नबी ए पाक ने फरमाया कि रोजा न रखों जब तक चाॅंद न देख लो और इफ्तार न करो जब तक चाॅद न देख लो और अगर बादल हो तो मिक़दार पूरी कर लो। पाॅंच महीनों का चांद देखना वाजिबे किफाया है शाबान, रमजान, शव्वाल, ज़ीक़ादा, ज़िलहिज्जा। शाबान का इसलिए कि अगर रमजान का चांद देखते वक्त अबर या गुबार हो तो तीस पूरे कर के रमजान शुरू करें और रमजान का रोजा रखने के लिए और शव्वाल का रोजा खत्म करने के लिए और जीकादा का जिलहिज्जा के लिए और जिलहिज्जा का बकराईद के लिए। शाबान की उन्तीस को शाम के वक्त चांद देखें दिखाई दे तो कल रोजा रखें वरना शाबान के तीस दिन पूरे करके रमजान का महीना शुरू करें। नबी ए पाक ने फरमाया कि महीना 29 का भी होता है और 30 का भी। रोजा चांद देख कर शुरू करो और चांद देख कर रोजा बंद कर दो। अगर आसमान साफ नहीं है तो 30 की गिनती पूरी करो।
जमाते कसीरा(बड़ी जमात यानि बहुत से लोग ) यह शर्त उस वक्त है जब रोजा रखने या ईद करने के लिए शहादत गुजरे और अगर किसी और मामले के लिए दो मर्द या एक मर्द दो औरतों सिका(आदिल) की शहादत गुजरी और काजी ने शहादत के बिना पर हुक्म दे दिया तो अब यह शहादत काफी हैै। रोजा रखने या ईद करने के लिए सबुत हो गया।
टेलीफोन, मोबाइल, इंटरनेट, एसएमएस, चांद का हो जाना नहीं साबित हो सकता है, न बाजारी अफवाह,जंतरीयों और अखबारों में छपा होना कोई सबूत है। आजकल अमूमन देखा जाता है 29 रमजान को बकसरत एक जगह से दूसरी जगह उपरोक्त माध्यमों से संदेश भेजे जाते है चांद हुआ या नहीं। और कहीं से यह संदेश आया कि फला जगह ईद का चांद देखा गया तो बस लो ईद आ गयी, यह महज नाजायज हराम है।
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