हजरत मुबाकर खां शहीद: ऐतिहासिक आस्ताना हिन्दू मुस्लिम एकता का केंद्र

syed farhan ahmad गोरखपुर। निगाहें वली में वो तासीर देखी। बदलती हजारों की तकदीर देखी।। कुछ ऐसी ही तासीर है गोरखपुर के वालियों की निगाहों की। जिनकी एक निगाह बंदें पर पड़ जायें खुदा की रहमत जोश में आ जायें। जो यह कह दें वह खुदा के फजल से फौरन हो जाये। सर जमीं-ए-गोरखपुर सूफी संतों का गहवारा रही है। जिन्होंने समाज में फैली बुराईयों को खत्म कर एकता व भाईचारगी का पैगाम दिया। इंसानियत को जिंदा रखने में इनकी अहम भूमिका है। आज भी इन सूफी संतों का फैज बदस्तूर है। इनकी दरगाह व समाधियों पर हर मजहब के लोगों का तांता लगा रहता है। लोग इनके जरिये दिली मुरादें पाते है। इन्हीं बुर्जुग हस्तियों में शहर के बेतियाहाता स्थित नार्मल के निकट हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां का आस्ताना है। जहां बाबा आराम फरमा है। जिनका फैज हर खासो आम पर बराबर जारी है। गोरखपुर को बाबा के करम पर फख्र है। हजरत मुबारक खां शहीद पूर्वांचल के बड़ें औलिया-ए-किराम में शुमार होते है। आज भी इस दरगाह को आला मकाम हासिल है। आस्ताना आलिया की जामा मस्जिद के इमाम व खतीब हजरत मौलाना मकसूद अलाम मिस्बाही ने किताब सवानेह सालार मसूद गाजी के हवाले से बताया कि हजरत मुबारक खंा शहीद के बारे में किताब में काफी कुछ है। विस्तृत तौर पर ऐतिहासिक किताब तारीख-ए-महमूदवी में बाबा के बारे में उल्लेख मिलता है। उन्होंने बताया कि हजरत मुबारक खंा शहीद की पैदाइश अजमेर शरीफ में करीब 1015 ईसवीं के आसपास हुई। आप हजरत सैयद सालार मसूद गाजी मियां के खलीफा मुरीदीन में से थे। गाजी मियां आपसे बेहद मोहब्बत रखते थे। गाजी मियां ने बुराईयों के खात्मे के लिए आपको सर जमीं-ए-गारेखपुर भेजा। जिस समय आप यहां पर तशरीफ लायें । जुल्म व ज्यादती का बोलबाला था। सरकश (क्रुर) राजाओं की हुकूमत थी। किदवंती मशहूर है कि मोहद्दीपुर स्थित रामगढ़ताल मौजूद है वहीं राजाओं की रियासत हुआ करती थी। जिनके जुल्म से इंसानियत थर्रा गयी थी। जुल्म से निजात दिलाने के लिए बाबा तशरीफ लायें। लोगों का दिल आपने अपने किरदार व अख्लाक से जीता। लोगों के अंदर मोहब्बत का पैगाम दिया। जब आपकी लोकप्रियता की चर्चा आम हुई तो राजा घबरा गया। आपसे बैर रखने लगा। राजा के पाप का घड़ा भर गया तो उसने बाबा से बदला लेने की ठानी। चूंकि आप गाजी मियां की फौज में अच्छे ओहदें पर काम कर चुकें थे। रूहानी महारत के साथ फौजी महारत में आपका कोई सानी नहीं था। जब जंग के अलावा कोई चारा नहीं रह गया तो आपने सरकश राजाओं के खिलाफ बहादुरी से जंग लड़ी। हक और बातिल की जंग में आपने बहादुरी के साथ लड़ते-लड़ते करीब 29 साल की उम्र में तकरीबन 1044 ईसवीं में आपने शहादत का जाम पिया। आपके साथ आपके छह भाईयों ने भी शहादत पायी। खुदा का कहर उस राजा की रियासत को ले डूबा। धरती पलट गयी। राजा अपने महल व रियासत के साथ गर्क हो गया। किदंवती है कि रामगढ़ताल के नीचे राजा का महल व रियासत दफन है। यह रामगढ़ताल उस अतीत के वाकिया का गवाह है। मौलाना अजहर शम्सी ने बताया कि आज भी आप अपनी कब्र में जिंदा हैं। इसकी तस्दीक कुरआन की आयत से होती है। जिसमें कहा गया है कि शहीदों को मुर्दा न कहो। बल्कि वो जिंदा है। बाबा हर हाजतमंद की मुश्किलात को खुदा की बारगाह व नबी के तुफैल पूरी करवा रहे है। बाबा का फैज जारी है। आये दिन नयी-नयी करामतों का जुहूर होता रहता है। उन्होंने बताया कि हजरत कुतुब की मंजिल पर फाइज थे। अपनी मां के पेट में कुरआन शरीफ की तिलावत करते थे। आप पैदाइशी वली है। आपके पैदा होने व गोरखपुुर आने की बिशारत लोगों ने दी। ऐतिहासिक आस्ताना तालीम के साथ समाजी खिदमात भी अंजाम दे रहा है। आस्ताना पर फैजान-ए-मुबारक खां शहीद मदरसा कायम है। जहां पर करीब 40 बच्चें तालीम हासिल कर रहे है। जिन्हें बेहतरीन उस्ताद हिफ्ज व किरत के साथ अन्य शिक्षाएं दी जा रही है। साथ ही यहां के चलने वाले लंगर से गरीब भूखों को दो वक्त की रोटी मयस्सर हो जा रही है। इसके अलावा ईद, ईदुल अज्हा के लिए ऐतिहासिक ईदगाह है। जहां पर कई हजार लोग नमाज अदा करते है। इसके अलावा आस्ताना से सटे जामा मस्जिद है जहां पांच वक्त की नमाजों के साथ जुुमा की नमाज अदा की जाती है। जुमेरात, जुुमा, शब-ए-बारात के मौके पर काफी भीड़ आस्ताने पर रहती है। -----------------------

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