गोरखपुर - भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर, गैर भाजपा दलों की एकजुटता से होगा जबरदस्त मुकाबला
-11 मार्च को चुनाव, 14 को परिणाम
-गोरखपुर लोकसभा सीट उपचुनाव
सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर। गोरखपुर लोकसभा सीट के उपचुनाव की घोषणा हो गई है। 11 मार्च को उपचुनाव होगा और 14 मार्च को परिणाम आयेगा। इस उपचुनाव में एक तरफ भाजपा है तो दूसरी तरफ सपा, कांग्रेस, बसपा, पीस पार्टी, निषाद पार्टी आदि है। चर्चा है कि निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पुत्र को सपा टिकट दे सकती है। सपा की मंशा है कि सभी गैर भाजपाई दलों का समर्थन हासिल कर भाजपा को मात दी जाए। ओबीसी आर्मी के सम्मेलन में यह एकजुटता बनती नजर भी आयी। कुल मिलाकर इस सीट पर सपा जातिगत समीकरण सहेज लेती है तो आश्चर्यजनक परिणाम आ सकते है। निषाद, मुसलमान व यादव मतदाताओं के बदौलत भी जीत हासिल की जा सकती है। गोरखपुर के जीतिगत समीकरण की बात करें तो यहां पिछड़े और दलित मतदाताओं की बहुलता है। मुस्लिम समाज की भी व्यापकता इस लोकसभा क्षेत्र में है। गोरखपुर लोकसभा सीट में सबसे ज्यादा निषाद मतदाता है जिनकी संख्या करीब 04 लाख है। पिपराइच और गोरखपुर ग्रामीण में सबसे ज्यादा निषाद मतदाता हैं। एक अनुमान के मुताबिक इस लोकसभा क्षेत्र में करीब 1,50,000 मुस्लिम, 1,50,000 ब्राह्मण , 1,30,000 राजपूत, 1,60,000 यादव , 1,40,000 सैंथवार और वैश्य व भूमिहार मतदाता करीब एक लाख की संख्या में है।
इस सीट में ज़्यादातर शहरी क्षेत्र आता है। गोरखपुर नगर निगम भी इस सीट में आता है जिस पर भाजपा का कब्ज़ा है। गोरखपुर लोकसभा सीट में विधानसभा की पांच सीटें कैंपियरगंज, पिपराइच, गोरखपुर शहर, गोरखपुर ग्रामीण और सहजनवां आती हैं। सभी पर भाजपा का कब्जा है।
सीएम योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे के बाद खाली हुई इस सीट पर भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है, इसी लिए सीएम योगी आदित्यनाथ गोरखपुर में विभिन्न योजनाओं के बहाने जनता को रिझाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। हालांकि किसी दल ने प्रत्याशी घोषित नहीं किए है। सभी एक दूसरे के प्रत्याशी का इंतजार कर रहे है ताकि जातिगत समीकरणों के आधार पर रणनीति तय हो सके। सपा ने भी तैयारियां शुरू कर दी है। कांग्रेस चुनाव में सपा को समर्थन करेगी ऐसी संभावना है। बसपा उपचुनाव नहीं लड़ती इस लिहाज से एक तरह का मौन समर्थन सपा को मिलेगा। वहीं अन्य छोटे सेकुलर दलपीस पार्टी, निषाद पार्टी सपा को समर्थन के मूड में है।
--मतदाताओं की संख्या
2014 के लोकसभा चुनाव में गोरखपुर लोकसभा सीट में कुल 19,03,988 मतदाता थे जिनमें से 54.67 मतदाताओं ने मतदान किया। कुल 10,40,822 लोगों ने मतदान किया था जिसमें 5,82,909 पुरुष और 4,57,008 महिला मतदाताओं ने मतदान किया था। (नोट - वर्तमान में मतदाताओं की संख्या बढ़ गयी हैं)
--इस लोकसभा सीट का अतीत
अब तक हुए 16 लोकसभा चुनावों और एक उपचुनाव में भाजपा ने 07 बार, कांग्रेस ने 06 बार, निर्दलीय ने 03 बार, हिंदू महासभा ने 01 बार और भारतीय लोकदल ने 01 बार जीत दर्ज की है। सपा और बसपा इस सीट पर एक बार भी नहीं जींती।
1951-52 में गोरखपुर दक्षिण से सिंहासन सिंह कांग्रेस के सांसद चुने गए। यही सीट बाद में गोरखपुर लोकसभा सीट बनी। 1957 में गोरखपुर लोकसभा सीट से दो सांसद चुने गए। सिंहासन सिंह दूसरी बार सांसद बनें और दूसरी सीट कांग्रेस के महादेव प्रसाद ने जीती। 1962 के लोकसभा चुनाव में गोरखनाथ मंदिर ने चुनाव में दस्तक दी। गोरक्षापीठ के महंत दिग्विजय नाथ हिंदू महासभा के टिकट पर मैदान में उतरे। उन्होंने कांग्रेस के सिंहासन सिंह को कड़ी टक्कर दी लेकिन 3,260 वोटों से हार गए। सिंहासन सिंह लगातार तीसरी बार सांसद बनें। 1967 में दिग्विजय नाथ निर्दलीय चुनाव लड़ें और कांग्रेस से जीत गए। 1969 में दिग्विजय नाथ का निधन हो गया जिसके बाद 1970 में उपचुनाव हुआ। दिग्विजय नाथ के उत्तराधिकारी और गोरक्षपीठ के महंत अवैद्यनाथ ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और सांसद बने। 1971 में फिर से कांग्रेस ने इस सीट पर वापसी की। कांग्रेस के नरसिंह नरायण पांडेय चुनाव जीते। वहीं निर्दलीय अवैद्यनाथ चुनाव हार गए। 1977 में इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में भारतीय लोकदल के हरिकेश बहादुर चुनाव जीते। कांग्रेस के नरसिंह नरायण पांडेय चुनाव हार गए, वहीं अवैद्यनाथ लड़े ही नहीं। 1980 के चुनाव से पहले हरिकेश बहादुर कांग्रेस में चले गए। कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की और हरिकेश बहादुर कांग्रेस के टिकट पर दूसरी बार सांसद बने। 1984 के लोकसभा चुनाव से पहले हरिकेश लोकदल में चले गए। लेकिन इस बार पार्टी बदलने के बावजूद वे चुनाव नहीं जीत सके। कांग्रेस ने मदन पांडेय को चुनाव लड़ाया और मदन जीतकर सांसद बनें।1989 के चुनाव में राम मंदिर आंदोलन के दौरान गोरखनाथ मंदिर के मंहत अवैद्यनाथ फिर से चुनावी मैदान में उतर गए और हिंदू महसभा के टिकट पर अवैद्यनाथ दूसरी बार सांसद बने। 1991 की रामलहर में अवैद्यनाथ भाजपा में शामिल होकर चुनाव लड़े और फिर सांसद बने। 1996 में अवैद्यनाथ फिर भाजपा से लगातार तीसरी बार सांसद बने। 1998 में मंदिर के योगी और अवैद्यनाथ के उत्तराधिकारी युवा योगी आदित्यनाथ पहली बार सांसद बने। तब योगी सबसे कम उम्र के सासंद थें.1999, 2004, 2009 और 2014 में लगातार पांच बार योगी गोरखपुर से भाजपा के टिकट पर सांसद चुने गए। मार्च 2017 में यूपी के सीएम चुने जाने के बाद उन्होंने सांसद पद से त्याग पत्र दे दिया।
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