हाफिज-ए-मिल्लत का पैगाम - इत्तेहाद व इत्तेफाक से मिलेगा अमन
-उर्स-ए-पाक
गोरखपुर। नार्मल स्थित दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां पर शनिवार को दीनी तालीम के लिए एशिया में अलग पहचान रखने वाली अरबी यूनिवर्सिटी अलजामियतुल अशरफिया के संस्थापक हाफिज-ए-मिल्लत हजरत शाह अब्दुल अजीज अलैहिर्रहमां का 43वां उर्स-ए- पाक अदबो एहतराम के साथ मनाया गया। चादरपोशी व कुल शरीफ की रस्म अदा कर लंगर बांटा गया।
इस मौके पर उलेमाओं ने हाफिज-ए-मिल्लत की दीनी व दुनियावी खिदमात पर रौशनी डाली। मौलाना असलम रज़वी ने कहा कि हाफिज-ए-मिल्लत पूरे तौर पर शरीयत के आमिल थे। लोगों को शरीयत समझाने वाले थे और अमल कराने वाले भी थे। अपनी पूरी जिंदगी अल्लाह और इंसानों की सेवा में गुजार कर दीन और दुनिया दोनों में अपना नाम रौशन कर लिया। आपका पैगाम था कि " जमीन के ऊपर काम, जमीन के नीचे आराम" यानी जब तक इंसान जिंदा रहे मजहब, मुल्क व इंसानियत की सेवा कर नेक अमल करता रहे ताकि मौत के बाद कब्र में चैन व सुकून हासिल हो सके।
कारी शराफत हुसैन ने कहा कि हाफिज-ए-मिल्लत ने कौम की दीनी और दुनियावी रहनुमाई की। मदरसा मिस्बाहुल उलूम को अरबी यूनिवर्सिटी अलजामियतुल अशरफिया का रूप दिया। आपने इत्तेहाद व इत्तेहाफ का संदेश दिया, ताकि पूरी दुनिया में इत्तेहाद व इत्तेफाक का माहौल बने और अमन शंति कायम हो सके। मौलाना नूर अहमद ने कहा कि कहा कि हाफिज-ए-मिल्लत 20वीं सदी की अजीम शख्सियत थे। उन्होंने तालीम व तरबीयत के मैदान में बड़ा कारनामा अंजाम दिया।
संचालन मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने किया। नात शरीफ हाफिज शहादत, कारी अंसारुल हक, कारी मोहसिन, एजाज गोरखपुरी आदि ने पेश की। इससे पहले उर्स का आगाज कारी महबूब रजा ने कुरआन शरीफ की तिलावत से किया। अंत में कुल शरीफ की रस्म अदा की गयी। चादरपोशी के बाद सलातो सलाम पढ़ कौमो मिल्लत की भलाई व मुल्क में अमनों सलामती की दुआ की गयी। लंगर व शीरीनी हर खासो आम में तकसीम की गयी।
उर्स में हाजी रफीक, मो, शरीफ, मो. नसीम, मौलाना अली अहमद, मौलाना हिदायतुल्लाह, सैयद कबीर अहमद, इकरार अहमद, जमशेद अहमद, अब्दुल अजीज, सैफ अली, हाफिज शाकिब रजा, हाफिज अजीम अहमद, अशरफ रजा आदि सहित दूर-दराज से काफी संख्या में आये अकीदतमंदो ने शिरकत की।
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