एक सफर - अयोध्या यानी खुर्द मक्का जहां आज भी जियारत आम है पैगंबर हजरत शीस की मजार


-गोरखपुर टू देवा शरीफ वॉया अयोध्या 

-आंखों देखी

सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर। अयोध्या हमेशा सुर्खियों में रहा आज भी है और कल भी रहेगा।  22 अक्टूबर को मुझे भी अयोध्या जाने का इत्तेफाक हुआ। मैं पैगंबर हजरत शीस अलैहिस्सलाम की मजार देखने की उत्सुकता में अयोध्या गया। रास्ते में शहीद बाबरी मस्जिद की मजबूत बुनियाद भी देखी । राहगीरों ने बताया कि बाबरी मस्जिद की तरफ उंगली से इशारा भी न करना। मैंने जानने की कोशिश भी नहीं कि क्यों? खैर। मैंने एक दिन में देवा शरीफ (बाराबंकी) में हजरत वारिस पाक रहमतुल्लाह अलैह व अयोध्या में पैगंबर हजरत शीस अलैहिस्सलाम के मजार की जियारत (दर्शन) की और अयोध्या में ही दोपहर की सुकून के साथ नमाज अदा की और खुर्द मक्का देखा। अयोध्या को खुर्द मक्का भी कहते है। खैर।

दो दिवसीय मेरी यात्रा इत्तेफाकन शुरू हुई। शनिवार 21 अक्टूबर को तुर्कमानपुर से मेरे पास मनौव्वर अहमद का फोन आया देवा शरीफ (बाराबंकी) हजरत वारिस पाक के उर्स में चलने का। मैं कभी देवा शरीफ गया नहीं था। इसलिए न नकुर करते हुए तैयार हो गया। लालडिग्गी बंधे पर पेट्रोल पम्प के पास आल्टो कार में सभी मेरा इंतजार कर रहे थे। एक बुजुर्ग कल्लू चचा को लेकर हम पांच लोग थे। करीब दोपहर 2:00 बजे देवा शरीफ के लिए रवाना हुए। गाड़ी कल्लू चचा चला रहे थे। फोरलेन पर 80 की स्पीड  से हमारी कार आगे बढ़ रही थीं। सहजनवां में हमने मिठाई व पानी खरीदा। कुछ देर में विक्रमजोत पहुंचे। वहां हम पांच लोगों ने 720 रुपये में भरपेट खाना खाया। रास्ते में असर की नमाज पढ़ी। हम अपने सफर पर बढ़ते रहे। करीब सायं 7:30 बजे देवा शरीफ पहुंचे वहां अकीदतमंदों की भारी भीड़ थीं। दूरदराज से काफी जायरीन आये हुए थे। वहीं गोरखपुर के कुछ लोगों ने तीन हजार रुपया में रूम ले रखा था। हम लोग कुछ देर में फ्रेश हुए तब तक 9 बज चुके थे। हम जब रूम से चले तो रास्ते में पुराने जमाने की मार्केट नजर आयीं जहां मिठाईयों से लेकर हर तरह के खानपान की व्यवस्था थीं। मजार पर पेश करने के लिए चादर, फूल, शीरीनी वगैरह की भी काफी दुकानें थीं। पूरा दरगाह परिसर सजा हुआ था। अकीदतमंद झुंड के झुंड चादर वगैरह पेश कर रहे थे। कव्वालियां हो रही थीं। पूरा मेला लगा हुआ था। जमकर खरीददारी हो रही थीं। हमने मजार शरीफ स्थित मस्जिद में नमाज पढ़ने का फैसला किया। मजार परिसर के अंदर और बाहर औरत, बच्चे, बूढ़े, नौजवानों का बड़ा मज़मा था। हम भीड़ से होते हुए मस्जिद पहुंचे तो मस्जिद बंद कर दी गयी थीं। हमनें फिर जियारत करना बेहतर समझा। रास्ते में हमने दो गिलास लस्सी पीं। जियारत व फातिहा पढ़ रूम पर आकर रात की फर्ज नमाज अदा की। देवा शरीफ की गलियां, छतें, होटल जायरीन से भरे हुए थे। कुछ देर हमनें सोना बेहतर समझा। छत पर गये और सोने की कोशिश करने लगे। लेकिन कव्वाली की आवाजें सोने नहीं दे रही थीं। कव्वाली के बोल भी नहीं समझ आ रहे थे। भोर में कुल शरीफ की रस्म के वक्त तक सिर्फ करवट बदलते रहे। कुल शरीफ की रस्म के समय उठे (4:00 बजे भोर में)। वुजू बनाया चल पड़े दरगाह की तरफ। जब बाजार से होते हुए दरगाह की तरफ पहुंचे तो भीड़ रात से भी ज्यादा। साथ के दोस्तों ने मिठाईयां खरीदी और किसी तरह गेट पर पहुंचे। कुल शरीफ की रस्म अदा कर,
एक कदीमी मस्जिद में फज्र की नमाज अदा कर चाय वगैरह पी। फिर हमने पैगंबर हजरत शीस अलैहिस्सलाम की मजार देखने के लिए अयोध्या का रुख किया। रास्ते में पशुओं का मेला भी देखा। हम पांच में से दो लोगों ने देवा शरीफ में ही रुकने का फैसला किया। हम चले तो रास्ते में टॉयर बदलने की नौबत भी आयीं। हमनें टॉयर बदला और चल पड़े अयोध्या। पहले फैजाबाद पहुंचे। हमारे साथ चल रहे कल्लू चचा पहले यहां भी आ चुके थे। जो हर इमारत के बारे में बताते रहे। रास्ते में शिया मस्जिद मिली उन्होंने बताया कि इस शिया मस्जिद की मीनार में एक सुरंग है जो लखनऊ में निकलती हैं। फैजाबाद होते हुए अयोध्या पहुंचे। अयोध्या की सड़के स्वागत होर्डिंग से पटी हुई थीं। वजह अभी सीएम आदित्यनाथ छोटी दीवाली मनाकर गये थे। फिर हम दोपहर के वक्त अयोध्या पहुंचे। कल्लू चचा बहुत साल पहले अयोध्या आ चुके थे, लेकिन दरगाह हजरत शीस अलैहिस्सलाम का रास्ता फिर भी लोगो से पूछना पड़ा। लोगों ने बताया अयोध्या में मणि पर्वत के नाम से वो जगह मशहूर है। उसी टीले के बगल में ही हज़रत की दरगाह है। जब हम कुछ दूर आगे बढ़े तो फिर से रास्ता पूछने की सोंची एक यादव जी भैस चराते मिले। हमने जैसे ही गाड़ी रोकी हमारे सर पर टोपी देख कर बोले हजरत शीस पैगम्बर की मजार पर जायेंगे। हमने हां में सर हिलाया उन्होंने रास्ता बताया। हमनें शुक्रिया किया। कुछ दूर बाद हम फिर भटके। इस बार हमें एक ऐसा शख्स मिला जिसने बाबरी मस्जिद की शहादत अपने आंखों से देखी थीं। बाबरी मस्जिद की शहादत के वक्त उसकी उम्र 16-17 वर्ष की रही होगी। उसका घर भी बाबरी मस्जिद से चंद कदमों की दूरी पर था। अब वह वहां नहीं रहता लेकिन उसकी जानकारी बहुत प्रमाणिक और दिलचस्प थीं। नाम मोहम्मद खलील कुरैशी। अब रायगंज गौड़ियाना अयोध्या में रहते हैं। जानवर खरीद फरोख्त करते है। हमनें उनको अपने साथ लिया। दरगाह हजरत शीस अलैहिस्सलाम पर पहुंचे। कल्लू चचा तो दरगाह के अंदर चले गये लेकिन मैं और मनौव्वर अहमद  खलील से अयोध्या के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने के इच्छुक थे। खलील के मुताबिक मजार हजरत शीस अलैहिस्सलाम स्थित कब्रिस्तान हिंदुस्तान का सबसे बड़ा व पुराना कब्रिस्तान है। खलील ने बताया कि अयोध्या को खुर्द मक्का के नाम से भी जाना जाता है। इसकी वजह यह बतायीं कि यहां मजारें बहुत हैं। हम जहां खड़ें थे वहां एक सैकड़ों साल पुराना इमली की दरख्त था जो प्राकृति का नायाब नमूना लग रहा था। खलील ने बताया कि अभी कुछ दिनों पहले इसकी एक डाल टूट गई थी जो कई हजार में बिकी थी। यहीं पर मुसलमानों का कर्बला भी  हैं जहां मुहर्रम में ताजिया दफनाया जाता है। खलील ने कब्रिस्तान में एक-एक अवैध निर्माण भी दिखाया। यहां तक कब्रिस्तान में मंदिर भी बनाया गया था। खलील ने तीन चार ऐतिहासिक मस्जिदें दिखायीं जो झाड़-झंखाड़ से पटी नजर आ रही थीं। मस्जिद की मीनारें भी साफ नजर आ रही थीं। इसके अलावा ऐतिहासिक कुएं, कब्रे, बुजुर्गों की मजारें, जिन्नाती मस्जिद सब कुछ यहां मौजूद है। जिसे सभी सरकारों ने नजरअंदाज किया है। इतना पुराना व ऐतिहासिक कब्रिस्तान बाउंड्री से महरूम है। यहां सपा सरकार की कब्रिस्तान की बाउंड्री योजना नहीं पहुंची । जो ताज्जुब में डालती है वहीं एक सवालिया निशान भी छोड़ती है।  यहां हमने जिन्नात की कब्र भी देखी। यहां एक बड़ा सा तालाब भी नजर आया जहां मवेशी मौज मस्ती कर रहे थे और चरवाहे एक पेड़ पर मौजूद कब्र के इर्द-गिर्द आराम कर रहे थे। जिसमें हिंदू-मुसलमान सभी थे। कब्रिस्तान में हिंदु परिवार ने घर भी बना लिया हैं। जो भी हो यहां सुकून बेइंतहा मिला। यहां आज भी मुसलमानों को दफन किया जाता है। हमने वह कब्रिस्तान भी देखा जहां बाबरी मस्जिद के एक फरीक मरहूम हाशिम अंसारी दफन हैं।

हमनें अब पैगंबर हजरत शीस अलैहिस्सलाम की दरगाह में इंट्री ली। भीड़ तो वहां न के बराबर थी। गेट पर एक महिला फूल और इत्र की शीशी लिए बैठी थीं। जो एक जमाने से यहां गेट पर फूल लगाती है। हमनें वुजू करने के बाद उससे चमेली के फूल व इत्र की शीशी खरीदी। फिर हमने मजार पर हाजिरी दी और फातिहा पढ़ी। बहुत लम्बी मजार है हजरत शीस अलैहिस्सलाम की। कल्लू चचा ने बताया कि जब वह यहां आये थे तब टिन शेड नहीं था खुले में मजार थी। मजार से सटे नमाज पढ़ने का इंतजाम था। जहां अब टाइल्स वगैरह लग गया है। हमनें सुकूनों कल्ब से नमाज अदा की।  फिर वहां मौजूद इमाम साहब से दरगाह परिसर में मौजूद कब्रों के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि यहां पक्की मजारें हजरत शीस अलैहिस्सलाम के परिवार वालों की है। उन्होंने बताया कि पूरे हिंदुस्तान में पैगंबर की मजार केवल अयोध्या में हैं। उन्होंने बताया कि यह पैगंबर हजरत आदम अलैहिस्सलाम के लड़के है। उन्होंने एक जगह की और निशानदेही की कि हजरत शीस अलैहिस्सलाम की बीवी हुर थीं और वह यहां चिहिंत स्थान पर रुहानी तौर पर आती हैं लेकिन वहां कोई मजार नहीं है। इमाम साहब का नाम मैं भूल गया, खैर। उन्होंने बताया कि यह पुरात्व विभाग के अंडर में है। बड़ी जद्दोजहद के बाद यहां टिनशेड लग पाया। इमाम साहब ने बताया कि कोतवाली अयोध्या में एक मजार और है जो बेहद लम्बी है वह हजरत शीस अलैहिस्सलाम के पुत्र हजरत हिन्द रहमतुल्लाह अलैह की है। लोग उसे पैगंबर नूह अलैहिस्सलाम की मजार कहते है हालांकि ऐसा बिल्कुल नहीं हैं। हमनें पैगंबर हजरत शीस अलैहिस्सलाम की मजार की प्रमाणिकता या दस्तावेजी साक्ष्य जानने की कोशिश की तो पता चला कि ऐसा कोई साक्ष्य या प्रमाण मौजूद नहीं हैं जो यह तस्दीक करता हो कि यह पैगंबर हजरत शीस अलैहिस्सलाम की मजार ही हो। लेकिन मुसलमान की हजारों सालों से मान्यता है कि यह हजरत शीस अलैहिस्सलाम की मजार है। खैर यहां सुकून बहुत हैं। अयोध्या जब आना हो तो यहां जरुर आईए। यहां की सभी चीजों को संरक्षण की दरकार है। नहीं तो यह गुजरे जमाने की खास निशानियों का कहीं पता नहीं चलेगा। इस दरगाह पर हिंदू-मुसलमान सभी आते हैं बिना किसी भेद-भाव के।
हमनें वहां मौजूद गुल्लक में कुछ पैसे डाले और सलाम करते हुए बाहर निकले। खलील हमारा इंतजार कर रहे थे। हमने बाबरी मस्जिद के शहादत के वक्त की दास्तान भी तफसील से सुनी। उन्होंने बताया कि बाबरी मस्जिद की शहादत के वक्त उनके घर सहित तमाम मुस्लिम घरों को दस-दस हजार कारसेवकों ने घेर रखा हुआ था लेकिन अल्लाह का करम था कि वह बच गये। हमने उनका नम्बर जानना चाहा तो उन्हें नम्बर याद नहीं था। ऐन वक्त पर हमारा मोबाइल भी धोखा दे दिया और स्वीच ऑफ हो गया नहीं तो और भी मकामात की तस्वीर मुहैया कराते। फिर हमने खलील को कुछ पैसा देना चाहा तो उसने इंकार करते हुए दुआ की दरखास्त की। उसने अयोध्या में मुस्लिम आबादी, मस्जिद, मजारों के बारे में भी बताया। फिर हम वहां रुखस्त हुए। चौराहे पर पहुंचे। चौराहे पर पहुंचे तो सिक्योरिटी थीं। हमनें पुलिस से गोरखपुर का रास्ता पूछा। हमारे सरों पर टोपी थी इस वजह से हमें लगा कि सबकी निगाहें हमें घूर रही हो। खैर हम गोरखपुर जाने वाले के निकले। रास्ते में पुरानी इमारते मिलीं। कल्लू चचा ने बताया कि यह इमारतें अवध के नवाबों ने बनायीं थी। इसलिए इन इमारतों पर उस दौर का राजशाही चिंह दो मछली हर पुरानी इमामरत पर नजर आयेंगी। तकरीबन हर पुरानी इमारत पर ऐसे चिंह नजर भी आया। जो यह दर्शाने के लिए काफी है कि मुस्लिम हुक्मरां भेदभाव नहीं करते थे। फिर हमारा गुजर उस जगह से हुआ जहां शहीद बाबरी मस्जिद के अवशेष है। उस एरिया को प्रतिबंधित किया गया था। वहां पर फोटो खींचना भी प्रतिबंधित था। हमनें दूर से ही शहीद बाबरी मस्जिद को खेराजे अकीदत पेश किया। इसके बाद शहर से होते हुए  हम सरयू घाट पर पहुंचे जहां काफी शांति थीं। गोंडा जाने वाली रोड पर बालू खनन का काम जोर-शोर से हो रहा था। चलते-चलते हम गोरखपुर हाइवे पर पहुंचे। एक मुस्लिम होटल पर अंडा करी व दाल रोटी खायी। फिर सफर जारी रहा। शाम होते मगहर पहुंचे एक मदरसे पर असर की नमाज अदा की। मगरिब के समय नौसढ़ पर पहुंचे वहां मस्जिद में नमाज अदा की। शाम करीब 6:00 बजे घर में दाखिल हुए। लेकिन रात भर यह सोचते रहे अयोध्या में कितना कुछ हैं लेकिन हमने ठीक से जाना नहीं। यह शहर नहीं बल्कि एक इतिहास है। हिंदू-मुस्लिम के झगड़ों ने इस संवरने ने नहीं दिया।


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