गोरखपुर में है महान सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलज़ी की निशानी
सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर। संजय लीला भंसाली की फिल्म 'पद्मावती' को लेकर देशभर में हो रहे हो हल्ले के बीच सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी फिर से सुर्खियों में है। जमाने भर में उनके नाम पर बवाले मचा हुआ है। सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली के पहले ऐसे महान शासक थे जिन्होंने कालाबाजारी रोकने के लिए वस्तुओं के दाम तय किए और कीमतें घटाईं। बाजार नियंत्रण में उनका कोई सानी नहीं था। अलाउद्दीन खिलजी खुले दरबार में न्याय करते थे। वह योग्य सेनानायक, अर्थ विशेषज्ञ, अनुभवी राजनीतिज्ञ व मध्यकालीन शासकों के समान सर्वशक्तिमान, ईमानदार व परेहजगार शासक थे। सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी का ताल्लुक गोरखपुर से भी जुड़ गया है। शहर में अलीनगर के रहने वाले कृष्ण चंद रस्तोगी के पास अलाउद्दीन खिलजी के खजाने के कुछ नायाब सिक्के मौजूद हैं। जो सुल्तान अलाउद्दीन व खिलजी वंश की याद दिलाते हैं। यहीं नहीं इनके संग्रह में लोदी, तुगलक, मुगल वंश के खजाने के नायाब सिक्के भी गुजरे जमाने की दास्तान बयां करते हैं। वहीं मैसूर के शेर टीपू सुल्तान, हैदर अली व शेर शाह सूरी का सिक्का भी इनके संग्रह की शोभा बढ़ा रहा हैं। 175 देशों का सिक्का रखने वाले कृष्ण चंद रस्तोगी के पास सिक्कों का खजाना हैं।
---अलाउद्दीन खिलजी के वंश की दास्तान बयां करते सिक्के
दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश के शासक जलालुद्दीन फ़िरोज ख़िलजी (1290-1296 ई.) 'ख़िलजी वंश' के संस्थापक थे। उन्होंने अपना जीवन एक सैनिक के रूप में शुरू किया था। अपनी योग्यता के बल पर उन्होंने 'शाइस्ता ख़ां' की उपाधि हासिल की और सिंहासन पर बैठें। उन्होंने दिल्ली के बजाय किलोखरी के मध्य में राज्याभिषेक करवाया। दिल्ली के इस पहले सुल्तान की गद्दी संभालते समय उम्र 70 वर्ष थी। 20 जुलाई 1296 ई. को भतीजे अलाउद्दीन ख़िलजी उर्फ जूना खान ने उनकी हत्या करा दी। कृष्णचंद्र रस्तोगी के संग्रह में जलालुद्दीन खिलजी के शासन का अरबी इबारत लिखा ताम्बे का सिक्का है।
वे बताते हैं कि अलाउद्दीन ख़िलजी ने चचा की हत्या कर दिल्ली के तख्त पर 22 अक्तूबर 1296 को बलबन के लाल महल में अपना राज्याभिषेक कराया। अलाउद्दीन अपने आप को दूसरा सिकंदर कहते थे।
उनके संग्रह में अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल के ताम्बे का गोलाकार सिक्का भी है। करनाल की टकसाल में निर्मित किए गए इन सिक्कों पर कलमा, सुलतान का नाम, पदवी टकसाल का नाम और हिजरी का उल्लेख मिलता है। अलाउद्दीन ने 1296 ई. से 1316 ई. तक शासन किया। अलाउद्दीन की हत्या एक हिजड़ा गुलाम ने 4 जनवरी 1316 ई. को विष देकर कर दी। कृष्णचंद्र रस्तोगी के संग्रह में अलाउद्दीन के बेटे कुतुबुद्दीन मुबारक शाह द्वारा चलाया गया सिक्का भी है। ताम्बे का यह सिक्का चौकोर बना है जिस पर अरबी में लिखा हुआ है। कुतुबुद्दीन 1316 ई. से 1320 ई. तक दिल्ली का शासक रहा। पिता की हत्या के पश्चात वह कैद में था, लेकिन कैद में रहते हुए ही गुलाम सुल्तान का कत्ल करा सुल्तान मुबारक अली शाह के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा।
" इतिहासकार आर वी स्मिथ अलाउद्दीन खिलजी के बारे में कहते हैं कि ‘अलाउद्दीन खिलजी ने मंगोलों से हिंदुस्तान की हिफाजत की। अगर अलाउद्दीन खिलजी नहीं होता तो आज हिंदुस्तान की शक्ल कुछ और होती।
‘दिल्ली दैट नो वन नोज’ और ‘दिल्ली : अननोन टेल्स ऑफ ए सिटी’ जैसी किताबों के लेखक स्मिथ कहते हैं, खिलजी ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए चित्तौड़ पर आक्रमण किया था, पद्मावती को जीतने के लिए नहीं।"
फिरोज शाह की याद दिलाते तुगलक वंश के सिक्के
दिल्ली सल्तनत के तुगलक वंश ने सन् 1320 ई. से लेकर सन् 1414 ई. तक दिल्ली की सत्ता पर राज किया। ग़यासुद्दीन ने तुग़लक़ वंश की स्थापना की, जिसने 1412 ई. तक राज किया। गयासुद्दीन तुग़लक़ उर्फ गाजी मलिक, उर्फ तुगलक गाजी दिल्ली सल्तनत में तुग़लक़ वंश का शासक था। 8 सितम्बर 1320 ई. को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। इसे तुग़लक़ वंश का संस्थापक भी माना जाता है। इसने कुल 29 बार मंगोल आक्रमण को विफल किया। सुल्तान बनने से पहले वह क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी के शासन काल में उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त का शक्तिशाली गर्वनर नियुक्त हुआ था। वह दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था, जिसने अपने नाम के साथ 'ग़ाज़ी' शब्द जोड़ा था। सम्भवतः नहर का निर्माण करवाने वाला ग़यासुद्दीन प्रथम सुल्तान था। स्थापत्य कला के क्षेत्र में ग़यासुद्दीन ने विशेष रूप में रूचि ली। अपने शसन काल में उसने तुग़लक़ाबाद नामक एक दुर्ग की नींव रखी। उसके लड़के जूना खान के निर्देश पर 1325 ई. में हत्या करा दी गई। गयासुद्दीन तुगलक ने चांदी के सिक्के चलाए। कृष्णचंद्र रस्तोगी के संग्रह में गयासुद्दीन तुगलक के सिक्के भी शामिल है। मोहम्मद बिन तुगलक
गयासुद्दीन तुग़लक़ की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जूना खॉ उर्फ मुहम्मद बिन तुग़लक़ (1325 ई. -1351 ई.) के नाम से 26 वर्षो तक दिल्ली की गद्दी पर बैठा। इसका मूल नाम उलूग खा था। उसने राजधानी को दिल्ली से देवगिरि स्थानान्तरित किया। देवगिरि को कुव्वतुल इस्लाम भी कहा गया। सुल्तान कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी ने देवगिरि का नाम ‘कुतुबाबाद’ रखा था और मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने इसका नाम बदल दौलताबाद कर दिया। सुल्तान की इस योजना के लिए सर्वाधिक आलोचना की गई। मुहम्मद तुग़लक़ की योजना असफल रही। इस कारण 1335 ई. में दौलताबाद से लोगों को दिल्ली वापस आने की अनुमति दे दी। मुहम्मद तुग़लक़ ने सांकेतिक व प्रतीकात्मक सिक्कों का प्रचलन करवाया। बरनी के अनुसार सम्भवतः सुल्तान ने राजकोष की रिक्तता के कारण एवं अपनी साम्राज्य विस्तार की नीति को सफल बनाने के लिए सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन करवाया। सांकेतिक मुद्रा के अन्तर्गत सुल्तान ने संभवतः पीतल (फ़रिश्ता के अनुसार) और तांबा (बरनी के अनुसार) धातुओं के सिक्के चलाये, जिसका मूल्य चांदी के रुपये टका के बराबर होता था। सिक्का ढालने पर राज्य का नियंत्रण नहीं रहने से अनेक जाली टकसाल बन गए। लगान जाली सिक्के से दिया जाने लगा, जिससे अर्थव्यवसथा ठप्प हो गई। सांकेतिक मुद्रा चलाने की प्रेरणा चीन तथा ईरान से मिली। वहां के शासकों ने इन योजनाओं को सफलतापूर्वक चलाया, जबकि मुहम्मद तुग़लक़ का प्रयोग विफल रहा। 20 मार्च 1951 ई. को उसकी मृत्यु हो गई।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें