आला हजरत ने रसूलल्लाह की सुन्नतों को जिंदा किया - मौलाना मसूद
-कुल शरीफ के साथ 99वां उर्स-ए-आला हजरत संपन्न
गोरखपुर। 14वीं सदी हिजरी के मुजद्दीद आला हजरत इमाम रजा खां अलैहिर्रहमां का 99वां उर्स-ए-पाक शहर में विभिन्न जगहों पर कुल शरीफ की रस्म के साथ संपन्न हुआ।
मदरसा दारूल उलूम अहले सुन्नत मजहरूल उलूम घोसीपुरवां में उर्स-ए-आला हजरत के मौके पर आयोजित जलसे में अलजामियतुल अशरफिया मुबारकपुर के मौलाना मसूद अहमद बरकाती ने बतौर मुख्य अतिथि कहा कि आला हजरत ने हिंद उपमहाद्वीप के मुसलमानों के दिलों में अल्लाह और पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहौ तआला अलैहि वसल्लम के प्रति प्रेम भर कर और पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहौ तआला अलैहि वसल्लम की सुन्नतों को जिंदा किया। आपने एक हजार से ज्यादा किताबें लिखीं। आपके द्वारा कुरआन शरीफ का किया गया शानदार उर्दू तर्जुमा "कंजुल ईमान" पूरी दुनिया में मकबूल है। आपका "फतावा रजविया" इस्लामी कानून का इंसाइक्लोपीडिया हैं। यह देश की खुशनसीबी है कि आला हजरत भारत के मशहूर शहर बरेली में पैदा हुए। इनकी शुरूआती तालीम अपने पिता हजरत नकी अली खां अलैहिर्रहमां के द्वारा हुई। हजरत शाह आले रसूल मारहरवी और शाह अबुल हुसैन नूरी से भी तालीम हासिल की। आपने पूरी दुनिया में इस्लाम का सही पैगाम पहुंचाया। आला हजरत का पूरा खानवादा इस्लाम की तरक्की में लगा रहा।
आला हजरत के छोटे साहबजादे हजरत मुस्तफा रजा खां अलैहिर्रहमां जिनको दुनिया मुफ्ती-ए-आजम हिंद के नाम से जानती है। उन्होंने अपनी पूरी जिदंगी दीन-ए-इस्लाम के लिए वक्फ कर दी। उन्हीं ने इस मदरसा मजहरूल उलूम की बनियाद 25 नवंबर सन् 1978 ई. में रखीं। यहां से कई दर्जन छात्र हर साल आलिम बनकर इल्म की खुशबू फैला रहे हैं।
मदीना मस्जिद के इमाम मौलाना अब्दुल्लाह बरकाती ने कहा कि हर मुरीद को अपने पीर पर नाज होता है, लेकिन आला हजरत ऐसे मुरीद हैं कि उन पर उनके पीर को नाज है।
आला हजरत के पीर सैय्यद आले रसूल अलैहिर्रहमां फरमाते हैं कि अगर कयामत के रोज खुदा उनके पूछेगा कि दुनिया में तू मेरे लिए क्या लेकर आया है तो अपनी इबादत रियाजत पेश नहीं करूंगा। बल्कि खुदा की बारगाह में आला हजरत इमाम अहमद रजा को पेश कर दूंगा।
कारी मोहम्मद तनवीर अहमद कादरी ने कहा कि आला हजरत ने फि़त्ना और फसाद के जमाने में मुसलमानों को उनका ईमान बचाने में मदद की। आला हजरत अहले सुन्नत वल जमात (मुसलमानों) के सच्चे रहनुमा है। जिनकी तालीम ने 14सौ साल से चले आ रहे इस्लाम को तकात दी। उनकी किताबें व उनका नातिया कलाम 'हदाएके बख्शिश' पूरी दुनिया में मशहूर है।
नात शरीफ नूर अहमद नूर व साजिद रजा ने पेश की। सरपरस्ती कारी रईसुल कादरी, अध्यक्षता मौलाना अब्दुर्रब व संचालन मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने की। आखिर में कुल शरीफ की रस्म अदा कर सारी दुनिया में अमन व शंति की और विभिन्न मुल्कों में मुसलमानों पर हो रहे जुल्म से हिफाजत की दुआएं मांगी गयी और सलातो सलाम पढ़ा गया।
इस मौके पर मौलाना जाहिद मिस्बाही, हाफिज शाकिर, हाफिज अय्यूब, कारी नियाज अहमद, अब्दुल जब्बार, कारी तनवीर अहमद, मौलाना मकबूल अहमद, कारी अंसारुल हक आदि मौजूद रहे।
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रसूलल्लाह पर जान व दिल से फ़िदा थे आला हजरत - मौलाना असलम
गोरखपुर। तुर्कमानपुर स्थित नूरी मस्जिद में बुधवार को बाद नमाज फज्र कुरआन ख्वानी हुई। बाद नमाज जोहर कुल शरीफ की रस्म अदा की गयी। इसके बाद लंगर तक्सीम किया गया।
मस्जिद के इमाम मौलाना मोहम्मद असलम रज़वी ने तकरीर पेश करते हुए कहा कि आला हजरत इमाम
अहमद रजा खां अलैहिर्रहमां
ने पूरी ज़िन्दगी अल्लाह व रसूल की इताअत व फरमा बरदारी में गुजारी। आला हज़रत महबूब-ए-ख़ुदा रसूलल्लाह पर जान व दिल से फ़िदा व क़ुर्बान थे। आला हज़रत शरीअत व सुन्नत के जबरदस्त आलिम थे। सहाबा-ए-किराम और अहले बैत के आशिक़-ए-सादिक और वफादार गुलाम थे।
आला हज़रत ख़ुलफ़ा-ए- राशिदीन हज़रत अबुबक्र, हज़रत उमर, हज़रत उस्मान ग़नी, हज़रत अली के सच्चे जांनिसार और मदह ख़्वां थे।
मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने कहा कि आला हजरत का इस्लामी शरीयत के कवानीन पर मुस्तमिल फतावा रजविया जो हनफी फिक्ह का सबसे अजीम इंसाइक्लोपीडिया है। इसी नाते मॉरिशस की हुकूमत ने फतावा रजविया का अंग्रेजी अनुवाद करवा कर अपने कोर्ट में इस्लामिक लाॅ के मुताल्लिक फैसले के लिए बतौर सुबूत रखवाया है। आज मॉरिशस में सारे इस्लामी फैसले इसी किताब की रोशनी में होते है। मिस्र की विश्वविख्यात अल अजहर यूनिवर्सिटी में आला हजरत की किताबों का अनुवाद कराकर पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। पूरी दुनिया में आला हजरत की जिंदगी, किताबों व फतावों पर रिसर्च किया जा रहा है। आज पूरी दुनिया में उर्स-ए-आला हजरत मनाया जा रहा है। जो इस बात का सबूत है कि आज दुनिया के हर कोने में आला हजरत के चाहने वाले मौजूद हैं।
नात शरीफ कारी मो. मोहसिन ने पेश की। इस दौरान अलाउद्दीन निजामी, शाबान अहमद, शरीफ अहमद, साबिर अली, सैफ, कैफ, वलीउल्लाह, वसीउल्लाह, मो. कैश, मनौव्वर अहमद, सेराज अहमद सहित तमाम अकीदतमंद शामिल हुए।
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दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद पर हुई कुल शरीफ की रस्म
गोरखपुर। नार्मल स्थित हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां दरगाह पर मौजूद मदरसा दारुल उलूम अहले सुन्नत फैजाने मुबारक खां शहीद में उर्स-ए-आला हजरत मनाया गया। दरगाह पर कुरआन ख्वानी, नात ख्वानी व तकरीरी प्रोग्राम का आयोजन किया गया। कुल शरीफ की रस्म अकीदत के साथ अदा हुई।
इस मौके पर मुफ्ती अख्तर हुसैन (मुफ्ती-ए-गोरखपुर) ने कहा कि आला हजरत की जिंदगी का हर गोसा कुरआन और सुन्नत पर अमल करने व सुन्नियत को जिंदा करने में गुजरा। 14वीं सदी हिजरी के मुजद्दीदे दीन-ओ-मिल्लत आला हजरत से ईमान-ए-कामिल की तारीफ पूछी गई तो आपने फरमाया रसूल को हर बात में सच्चा जानना, रसूल की हक्कानियत को सच्चे दिल से मानना ईमान है। अल्लाह और रसूल के महबूबों से मोहब्बत रखें अगरचे दुश्मन हों, अल्लाह और रसूल के मुखालिफों से दुश्मनी रखे अगरचे जिगर के टुकड़े हो। यही आला हजरत की तालीम है।
कारी महबूब रजा ने कहा कि आला हजरत फरमाते है कि ईमान वालो का अक़ीदा है कि नबी-ए-पाक को हर ताकत अल्लाह ने अता की है। अल्लाह ने अपने महबूब रसूल को तमाम नेमत व दौलत रहमत व बरकत और हर खैर ख़ज़ानों की कुंजी का मालिक व मुख़्तार बनाया है। अल्लाह ने हर शर और बला के दूर करने की ताकत व कुव्वत अता फरमा कर नबी-ए-पाक को दाफेईल बला और मुश्किल कुशा बनाया है। अल्लाह ने दुनिया वालों को बता दिया है कि रहमत व बरकत मेरे महबूब के जरिए मिलेगी। इसलिए कि हमने सबके लिया रहमत अपने महबूब नबी को बनाया है और जिस घर में रहमत होगी वह घर नेमत व दौलत सुकून व इत्मिनान का गहवारा होगा। जिस मकान में रहमत होगी उस मकान में बला व बीमारी मुसीबत व ज़हमत दूर हो जाएगी तो पता चला की अल्लाह तआला ने अपने हबीब हम बीमारों के तबीब नबी-ए-पाक को नफा पहुंचाने और मुश्किलों को दूर करने वाला बनाया है। यही पैगाम उम्र भर आला हजरत देते रहे कि नबी-ए-पाक की जात बहुत अजमत व बुलंदी वाली है।
इस मौके पर मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही, दरगाह के मुतवल्ली इकरार अहमद, कारी शराफत हुसैन कादरी, अब्दुल अजीज, शहादत हुसैन अजीम, मोहम्मद अलीम, अनवर हुसैन, अशरफ रजा, सैफ रजा, शारिब, शाकिब, अब्दुल राजिक आदि मौजूद रहे। दीवाना बाजार स्थित मदरसा दारूल उलूम हुसैनिया में हाफिज नजरे आलम कादरी व मुफ्ती अख्तर हुसैन की सदारत में उर्स-ए-आला हजरत मनाया गया एवं कुल शरीफ की रस्म अदा की गयी।
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