*गोरखपुर का तीन मेहराबों वाला हाकिम खाना व खलीलाबाद का किला एक जैसे हैं*
गोरखपुर। एस0एम0नूरूद्दीन लिखते हैं ऐतिहासिक इमारत के मेहराब के अगल बगल दो छोटे मेहराब हैं जिसमें जंगले लगे हुए हैं। इसके पट अंदर कोठरी में खुलते है। प्रवेश द्वार के दाएं एवं बाएं इन कोठरियों में जाने के लिए लकड़ी के दरवाजे लगे हुए हैं। मुख्य द्वार अर्थात बड़े मेहराब और उसके दाएं एवं बाएं स्थित कोठरियों से होकर षटकोणीय खंभे है जो तीन खंडों में है और लगभग 40 फीट ऊंचें हैं। मुख्य द्वार के ऊपर की इमारत *हाकिम खाना* कही जाती है। इस इमारत में तीन मेहराब है। मध्य का मेहराब बड़ा और उसके दाएं एवं बाएं के मेहराब छोटे हैं, ये तीनों मेहराब जंगले के रुप में है। इसके ऊपर दीवार पर है शीर्ष बुर्ज। इसी तरह दोनों खंभों पर भी बुर्ज बने हुए हैं। हाकिम खाना के ठीक ऊपर पत्थर की तख्ती लगी हुई है जिस पर इस इमारत का निर्माण काल सन् 1841 ई. के साथ ही ई0ए0 रीड साहब तत्कालीन डीएम का नाम भी अंकित है।
यह नक्शा है उस ऐतिहासिक इमारत का जिसे लोग रीड साहब धर्मशाला के नाम से जानते है। धर्मशाला रीड साहब दूर से किले की तरह नजर आता है। पश्चिम तरफ है धर्मशाला का मुख्य द्वार। हाकिम खाना में जाने के लिए धर्मशाले के पश्चिमी प्रवेश द्वार से अंदर आने पर दाएं और बाएं तरफ सीढ़ियां बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों से होकर धर्मशाले के मुख्य द्वार के दोनों तरफ बने कमरों की छत पर जाया जा सकता है। हाकिम खाना विशाल कमरे के रूप में है। यह खास व्यक्तियों के रहने व ठहरने के लिए बनाया गया था। मगर इस पूरी इमारत पर मुगल कालीन वास्तुकला की स्पष्ट छाप है, तो यह स्थान दृष्टि व नियंत्रण रखने का विशेष स्थान रहा होगा। इस इमारत का कैंपस बदल चुका है। गेट ही खाली बचा हुआ है अपने वास्तविक स्थिति में। बाहर की पिछली दीवारें पर कुछ निशानियां हैं। यह धर्मशाला षटकोणीय आकार का है। बाहर की ओर 304 गुणे 216 फीट और अंदर की ओर 256 गुणे 166 फीट है। धर्मशाला में कुल 62 कमरे बने हुए हैं।
एस0एम0नूरूद्दीन लिखते हैं कि महानगर के मोहल्ला जगन्नाथपुर में स्थित है एक ऐतिहासिक धर्मशाला जिसे रीड साहब का धर्मशाला कहा जाता है, वैसे इस धर्मशाला को यूस सराय के नाम से भी जाना जाता है। रीड साहब धर्मशाला का वास्तुशिल्प मुगलकालीन है। जो मुगल बादशाह औरंगजेब आलमगीर के सिपहसालार काजी खलीलुर्हमान द्वारा खलीलाबाद में बनवाए गये किले से ज्यादा मेल खाता है। लिहाजा इसे मुगलकालीन किला कहा जा सकता है जिसे अंग्रेजों ने धर्मशाला का रूप दे दिया हो। धर्मशाला की बनावट कुछ और कहती है वहीं अंग्रेजों के दस्तावेज कुछ और कहते है। ब्रिटिश वास्तुकला से सभी परीचित हैं। खैर। कुछ सालों में इस इमारत का वजूद मिट जायेगा। ऐसी संभावना है।
यह नक्शा है उस ऐतिहासिक इमारत का जिसे लोग रीड साहब धर्मशाला के नाम से जानते है। धर्मशाला रीड साहब दूर से किले की तरह नजर आता है। पश्चिम तरफ है धर्मशाला का मुख्य द्वार। हाकिम खाना में जाने के लिए धर्मशाले के पश्चिमी प्रवेश द्वार से अंदर आने पर दाएं और बाएं तरफ सीढ़ियां बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों से होकर धर्मशाले के मुख्य द्वार के दोनों तरफ बने कमरों की छत पर जाया जा सकता है। हाकिम खाना विशाल कमरे के रूप में है। यह खास व्यक्तियों के रहने व ठहरने के लिए बनाया गया था। मगर इस पूरी इमारत पर मुगल कालीन वास्तुकला की स्पष्ट छाप है, तो यह स्थान दृष्टि व नियंत्रण रखने का विशेष स्थान रहा होगा। इस इमारत का कैंपस बदल चुका है। गेट ही खाली बचा हुआ है अपने वास्तविक स्थिति में। बाहर की पिछली दीवारें पर कुछ निशानियां हैं। यह धर्मशाला षटकोणीय आकार का है। बाहर की ओर 304 गुणे 216 फीट और अंदर की ओर 256 गुणे 166 फीट है। धर्मशाला में कुल 62 कमरे बने हुए हैं।
एस0एम0नूरूद्दीन लिखते हैं कि महानगर के मोहल्ला जगन्नाथपुर में स्थित है एक ऐतिहासिक धर्मशाला जिसे रीड साहब का धर्मशाला कहा जाता है, वैसे इस धर्मशाला को यूस सराय के नाम से भी जाना जाता है। रीड साहब धर्मशाला का वास्तुशिल्प मुगलकालीन है। जो मुगल बादशाह औरंगजेब आलमगीर के सिपहसालार काजी खलीलुर्हमान द्वारा खलीलाबाद में बनवाए गये किले से ज्यादा मेल खाता है। लिहाजा इसे मुगलकालीन किला कहा जा सकता है जिसे अंग्रेजों ने धर्मशाला का रूप दे दिया हो। धर्मशाला की बनावट कुछ और कहती है वहीं अंग्रेजों के दस्तावेज कुछ और कहते है। ब्रिटिश वास्तुकला से सभी परीचित हैं। खैर। कुछ सालों में इस इमारत का वजूद मिट जायेगा। ऐसी संभावना है।
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