*गोरखपुर के रहमतनगर की दरगाह हजरत मोहम्मद अली बहादुर शाह अलैहिर्रहमां 110 साल पुरानी है*


मसायख-ए-गोरखपुर के लेखक सूफी वहीदुल हसन ने पेज 68, 69 व 70 पर लिखा है कि मसायख-ए-इजाम और सुफिया किराम की जिंदगियों को अगर करीब से देखा जाये तो यह बात वाजे होकर सामने आती है कि इन बुजुर्गों ने दीने मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम को फरोग देने में अपना माल व मताअ राहे हक में लुटा दिया। दुनिया को हेच समझा और अगर जरुरत पड़ी तो वतन को भी खैराबाद कहा। चुनांचे हकीकत से आशना, इल्मे लदुन्नी से आरास्तां शेखे तरीकत हजरत मोहम्मद अली बहादुर शाह अलैहिर्रहमां अपने पीरो मुर्शिद हजरत शेख सैयद जमाल शाह  (जमालुल्लाह) अलैहिर्रहमां के हुक्म से अपना आबाई वतन रामपुर छोड़कर गोरखपुर तशरीफ लाये और मुहल्ला रहमतनगर में कयाम पजीद हुए। मुहल्ला रहमतनगर की किस्मत जाग उठी और यहां अल्लाहु की सदा बुलंद होने लगी। आज भी मदरसा बहादुरिया का बोर्ड बताना चाहता है कि वह कौन सी अजीम हस्ती थी जिसने अंधेरे से अंजान इंसान को उजाले में कर दिया। आपकी सिलसिला चिश्तिया निजामिया था। आपकी जात से मंसूब होकर यह सिलसिला चिश्तिया निजामिया बहादुरिया हो गया। आज तक बहादुरिया शाख फल फूल रही है। मुरीदों की तादाद का कोई शुमार नहीं था। बहुत से खुलफा हुए जिनमें उलेमा भी शामिल थे। आपके मुताल्लिक मशहूर है कि जब आप मारूफ बयान फरमाते तो लोग पर कैफियत तारी हो जाती थी। आप के खुलफा की तब्लीग से यह सिलिसिला मशरिकी यूपी, बिहार व बंगाल से फैलकर बैरुने हिंद में भी फैज पहुंचाने लगा। आपका विसाल तीन रबीउस्सानी 1330 हिजरी में हुआ। मजार शरीफ मुहल्ला रहमतनगर में मस्जिद के बगल में है। हजरत मोहम्मद अली गौहर शाह व हजरत मोहम्मद अली असगर शाह आपके साहबजादे थे। दोनों साहबजादे बाकरामत बुजुर्ग थे। हजरत मोहम्मद अली बहादुर शाह की खानकाह बहादुरिया के आहाते में दोनों साहबजादों की मजार है। 

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